Milky Mist

Tuesday, 8 July 2025

आईबीएम की पूर्व इंजीनियर ने 25 हजार रुपए के निवेश से फेसबुक पर बिजनेस शुरू किया, घर से चल रहे इस बिजनेस का टर्नओवर अब 4 करोड़ रुपए

08-Jul-2025 By उषा प्रसाद
गुरुग्राम

Posted 03 May 2021

आईबीएम की पूर्व इंजीनियर अंजलि अग्रवाल ने अपनी ऊंची सैलरी वाली नौकरी छोड़कर खुद का बिजनेस शुरू किया. उन्होंने कोटा डोरिया सिल्क (केडीएस) कंपनी साल 2014 में महज 25 हजार रुपए के निवेश से शुरू की थी.

आज, उन्होंने केडीएस को न केवल 4 करोड़ रुपए टर्नओवर वाली कंपनी बना दिया है, बल्कि वे मूल कोटा (राजस्थान) के पारंपरिक कोटा डोरिया कपड़े को वैश्विक मार्केट में ले गईं. उन्होंने कई बुनकरों और कारीगरों को नौकरी भी दी है.
अंजलि अग्रवाल ने 2014 में 25 हजार रुपए के निवेश से कोटा डोरिया सिल्क की स्थापना की थी. (फोटो : विशेष व्यवस्था से)

अंजलि प्रोप्रायटरशिप फर्म केडीएस के जरिए साड़ियों, दुपट्‌टों और घर की सजावट के सामान जैसे कर्टन्स, कुशन कवर और टेबल क्लॉथ की बिक्री करती हैं. केडीएस एक प्रोप्रायटरशिप फर्म है.

उनके उत्पादों को वेबसाइट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे फेसबुक और वॉट्सएप के जरिए ऑनलाइन बेचा जाता है.

कोटा डोरिया एक हवादार कपड़ा होता है, जो मुलायम और वजन में हल्का होता है. यह गर्मियों का एक आदर्श परिधान है. इसे राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्र के निवासी पहनते हैं.

अंजलि ने सबसे पहले फेसबुक पर कपड़े बेचना शुरू किया था. जल्द ही विदेशों से भी मांग आने लगी. वे कहती हैं, “यह कपड़ा कॉटन और सिल्क दोनों तरह से उपलब्ध होता है.”
अपने उद्यमी जीवन के शुरुआती उत्साहजनक दिनों को याद कर अंजलि कहती हैं, “अमेरिका से अलसुबह 3 या 4 बजे लोग पूछताछ करते थे और मुझे तत्काल प्रतिक्रिया देनी होती थी. स्टार्टअप के रूप में कुछ बड़ा हासिल करने और सफल होने के लिए शुरुआत में बहुत दीवानेपन और आक्रामकता की जरूरत होती है.”

अंजलि कहती हैं उनकी कुल बिक्री में 70% हिस्सा सलवार सूट्स, 20% हिस्सा साड़ियों और 5% हिस्सा दुपट्‌टों और घर के सजावटी सामान का है.

सामान्य कोटा कपड़ों के उत्पादों की कीमत 299 रुपए से 3,999 रुपए के बीच है. वहीं प्योर जरी कोटा हैंडलूम साड़ी की कीमत 4,999 से लेकर 2 लाख रुपए के बीच है.
अंजलि के कोटा फैब्रिक के परिधानों की दोस्तों और सहयोगियों ने हमेशा तारीफ की है.

आज, उन्होंने करीब 1,500 रिसेलर्स का नेटवर्क तैयार कर लिया है. इनमें से अधिकतर दक्षिण भारत में फैले हैं. अंजलि कहती हैं, “इनमें से कई गृहिणियां हैं. हालांकि कुछ कामकाजी महिलाएं, बूटीक संचालिकाएं और दुकानदार भी हमसे जुड़े हैं.”

असेट-लाइट मॉडल अपनाने वाली अंजलि अपने गुरुग्राम स्थित घर पर बने ऑफिस से काम करती हैं. उनके साथ सिर्फ 9 कर्मचारी जुड़े हैं. इनमें से 8 महिलाएं हैं.

होलसेल कारोबार और एक्सपोर्ट के लिए उनके पास कोटा में एक वेयरहाउस भी है. इसे उनके ससुर सुभाष अग्रवाल संभालते हैं. अंजलि अपनी सफलता का श्रेय उनसे मिले प्रचुर सहयोग को देती हैं.

केडीएस का 15% बिजनेस एक्सपोर्ट के जरिये होता है. केडीएस के भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, दुबई और मलेशिया में 5 लाख से अधिक ग्राहक हैं.

अंजलि पावरलूम और हैंडलूम फैब्रिक्स दोनों का कारोबार करती हैं.

अंजलि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुनकरों के साथ काम करती हैं, वहीं उन्होंने उत्तर प्रदेश के 30 लूम्स से भी समझौता किया है. फैब्रिक्स की डिजाइन के लिए काम करने वाले क्राफ्ट्समेन देशभर में फैले हैं.

अंजलि कहती हैं, “जब मैंने कॉरपोरेट क्षेत्र को अलविदा कहने और उद्यमी बनना तय किया तो मैं सीधे कोटा के बुनकरों के पास गई थी. जो बहुत बुरी स्थिति में थे. मैंने उन्हें केडीएस के लिए कपड़े बुनने का काम दिया. मैं एक्सक्लूसिव डिजाइन के लिए उनके साथ बहुत नजदीकी के साथ काम कर रही हूं.”
अंजलि अपने गुरुग्राम स्थित घर के ऑफिस में नौ कर्मचारियों के साथ काम करती हैं.

अंजलि बताती हैं, “मधुबनी क्रिएशंस के लिए मेरे फैब्रिक बिहार जाते हैं, वहीं डिजिटल प्रिंट्स यूपी, नोएडा, सूरत, मुंबई और आंध्र प्रदेश में होती हैं.”

अंजलि को जैसे-जैसे टेक्सटाइल इंडस्ट्री में महारत हासिल हुई, वैसे-वैसे वे बुनकरों के साथ नजदीकी से काम करने लगीं. उन्होंने मूल कपड़े में 10 से 90 प्रतिशत तक बदलाव किए. ऐसा उन्होंने कॉटन और सिल्क मिक्स दोनों कपड़ों पर किया.

अंजलि खुद के बल पर बनी पेंटर हैं. कपड़ों पर सुंदर डिजाइन बनाने का श्रेय उनकी कलात्मक योग्यता को जाता है.

वे कहती हैं, “कॉलेज के दिनों और दफ्तर में काम करते वक्त मुझे अपने कपड़ों के लिए शुभकामनाएं मिलती थीं. कई तो मुझसे हूबहू कपड़ा मंगवाने की मांग करते थे.

अंजलि शुरुआत में दिल्ली और गुरुग्राम के अपने दोस्तों और सहयोगियों के लिए कोटा फैब्रिक के परिधान बुलवाया करती थीं. वे कहती हैं, “मुझे कभी यह अहसास नहीं हुआ कि कपड़ों की यही समझ मुझे एक उद्यमी बनने की ओर ले जाएगी और मुझे पारंपरिक कोटा डोरिया फैब्रिक को आधुनिक रूप देने का मौका मिलेगा.” यही वह शुरुआती बिंदु था, जिसने अंजलि को केडीएस स्थापित करने के लिए गंभीरता से सोचने पर मजबूर किया.

वे कहती हैं, “मुझे लगा कि कोटा डोरिया फैब्रिक सिर्फ राजस्थान तक सीमित है. तभी मैंने तय किया कि इस सुंदर, वजन में हल्के इस कपड़े के प्रति जागरुकता बढ़ाने की यात्रा शुरू की जाए. साथ ही भारत के दूसरे हिस्सों और दुनियाभर तक इसे पहुंचाया जाए.

यूनिवर्सिटी इंजीनियरिंग कॉलेज कोटा से इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाली अंजलि का जन्म राजस्थान के जोधपुर में हुआ. वे वहीं पली-बढ़ीं.

इंजीनियरिंग के बाद अंजलि ने महाराष्ट्र के जलगांव में जुलाई 2003 में एम्को लिमिटेड में ट्रेनी इलेक्ट्रिकल डिजाइन इंजीनियर के रूप में काम किया.

करीब डेढ़ साल बाद उन्होंने एम्को छोड़ दी और जूनियर इंजीनियर के रूप में जोधपुर में स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड से जुड़ गईं.
रंगारंग कोटा फैब्रिक.

हालांकि, शादी होने और अपने पति के साथ गुड़गांव बस जाने के कारण उन्हें दो महीने में ही नौकरी छोड़नी पड़ी. इसके बाद वे दिल्ली में बॉम्बे सबबर्न इलेक्ट्रिक सप्लाई (बीएसईएस) से इलेक्ट्रिकल प्रॉक्योरमेंट इंजीनियर के रूप में जुड़ीं.

बीएसईएस में एक साल नौकरी के बाद, वे 2007 में सैप एससीएम कन्सल्टेंट के रूप में गुरुग्राम में आईबीएम से जुड़ीं. वहां उन्होंने 2014 तक नौकरी की. इसके बाद केडीएस लॉन्च करने के लिए नौकरी छोड़ दी.

50 हजार रुपए महीने सैलरी वाली कॉरपोरेट नौकरी छोड़ना अंजलि के लिए आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने अपने मन की आवाज सुनी और उद्यमिता की राह चुनी.

वे कहती हैं, “मुझमें आत्मविश्वास था कि मैं जरूर सफल होऊंगी. मुझमें आत्मविश्वास था कि मैं सबकुछ संभाल लूंगी.”

उनके घर से फल-फुल रही इस कंपनी की ताकत फेसबुक पेज से बढ़ने लगी. 2015 तक उन्होंने पूरी तरह समर्पित ई-कॉमर्स वेबसाइट लॉन्च कर दी.

अंजलि को अपना पहला ऑर्डर केरल के एक ग्राहक से मिला. उसने सलवार के कपड़े के लिए 5 हजार रुपए का ऑर्डर दिया था. जल्द ही उनके पास पूछताछ बढ़ गई. बिजनेस बढ़ने लगा.

पहले साल में, अंजलि ने करीब 15 लाख रुपए का बिजनेस किया. साल-दर-साल केडीएस ने 100% से अधिक वृद्धि दर्ज की.

अंजलि कहती हैं, “कोटा फैब्रिक की ऐसी मांग देखकर मैं आश्चर्यचकित थी.” 2015 के अंत तक उनके पास 1 लाख से अधिक ग्राहक हो गए. इनमें से अधिकतर दक्षिण भारत से थे.

असली कोटा फैब्रिक की देखरेख मुश्किल होती है. अंजलि ने इसे मजबूत बनाने के लिए बहुत काम किया. उन्होंने लूम में कपड़े में मामूली बदलाव करवाया और इसके बाद बात बन गई.
अंजलि चेन्नई में अपना पहला केडीएस स्टोर खोलने की योजना बना रही हैं.

वे खुलासा करती हैं, “इस कपड़े की ड्राई क्लीनिंग बहुत महंगी थी और मध्यम वर्गीय परिवार की महिलाएं इसे वहन नहीं कर सकती थीं. मुझे फैब्रिक को मजबूत बनाने पर काम करना पड़ा.”

अंजलि के मुताबिक, कोटा सामान्यत: प्योर जरी साड़ी के लिए प्रसिद्ध है. उसमें शुद्ध सोने का इस्तेमाल होता है. इस तरह की एक साड़ी बुनने में एक से तीन महीने का समय लगता है.

अब अंजलि कोटा फैब्रिक के पुरुषों के कपड़े लाने की योजना बना रही हैं. वे अपना होम फर्निशिंग का कारोबार भी यूरोपीय देशों में बढ़ाने की योजना बना रही हैं. वे इस साल चेन्नई में एक स्टोर शुरू करने की योजना बना रही हैं. इसके बाद जयपुर या दिल्ली में स्टोर खोल सकती हैं.

अंजलि रोज सुबह 4 बजे उठ जाती हैं और सबसे पहले अपनी डिजाइन पर काम कर उन्हें बुनकरों के पास भेजती हैं. वे गुरुग्राम में एक सुंदर घर में अपने पति सुदीप अग्रवाल और 11 वर्ष के बेटे अभ्युदय के साथ रहती हैं.

 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Dairy startup of Santosh Sharma in Jamshedpur

    ये कर रहे कलाम साहब के सपने को सच

    पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से प्रेरणा लेकर संतोष शर्मा ने ऊंचे वेतन वाली नौकरी छोड़ी और नक्सल प्रभावित इलाके़ में एक डेयरी फ़ार्म की शुरुआत की ताकि जनजातीय युवाओं को रोजगार मिल सके. जमशेदपुर से गुरविंदर सिंह मिलवा रहे हैं दो करोड़ रुपए के टर्नओवर करने वाले डेयरी फ़ार्म के मालिक से.
  • Bengaluru college boys make world’s first counter-top dosa making machine

    इन्होंने ईजाद की डोसा मशीन, स्वाद है लाजवाब

    कॉलेज में पढ़ने वाले दो दोस्तों को डोसा बहुत पसंद था. बस, कड़ी मशक्कत कर उन्होंने ऑटोमैटिक डोसामेकर बना डाला. आज इनकी बनाई मशीन से कई शेफ़ कुरकुरे डोसे बना रहे हैं. बेंगलुरु से उषा प्रसाद की दिलचस्प रिपोर्ट में पढ़िए इन दो दोस्तों की कहानी.
  • Success story of helmet manufacturer

    ‘हेलमेट मैन’ का संघर्ष

    1947 के बंटवारे में घर बार खो चुके सुभाष कपूर के परिवार ने हिम्मत नहीं हारी और भारत में दोबारा ज़िंदगी शुरू की. सुभाष ने कपड़े की थैलियां सिलीं, ऑयल फ़िल्टर बनाए और फिर हेलमेट का निर्माण शुरू किया. नई दिल्ली से पार्थो बर्मन सुना रहे हैं भारत के ‘हेलमेट मैन’ की कहानी.
  • Pagariya foods story

    क्वालिटी : नाम ही इनकी पहचान

    नरेश पगारिया का परिवार हमेशा खुदरा या होलसेल कारोबार में ही रहा. उन्होंंने मसालों की मैन्यूफैक्चरिंग शुरू की तो परिवार साथ नहीं था, लेकिन बिजनेस बढ़ने पर सबने नरेश का लोहा माना. महज 5 लाख के निवेश से शुरू बिजनेस ने 2019 में 50 करोड़ का टर्नओवर हासिल किया. अब सपना इसे 100 करोड़ रुपए करना है.
  • Crafting Success

    अमूल्य निधि

    इंदौर की बेटी निधि यादव ने कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया, लेकिन उनकी दिलचस्पी कपड़े बनाने में थी. पढ़ाई पूरी कर उन्होंने डेलॉयट कंपनी में भी काम किया, लेकिन जैसे वे फैशन इंडस्ट्री के लिए बनी थीं. आखिर नौकरी छोड़कर इटली में फैशन इंडस्ट्री का कोर्स किया और भारत लौटकर गुरुग्राम में केएस क्लोदिंग नाम से वुमन वियर ब्रांड शुरू किया. महज 3.50 लाख से शुरू हुआ बिजनेस अब 137 करोड़ रुपए टर्नओवर वाला ब्रांड है. सोफिया दानिश खान बता रही हैं निधि की अमूल्यता.