Milky Mist

Monday, 10 November 2025

20,000 से शुरुआत कर 40 करोड़ का कारोबार खड़ा करने वाला उद्यमी

10-Nov-2025 By रीना नोंगमैथेम
इंफाल

Posted 14 Mar 2018

इंफाल के डॉ. थंगजाम धाबाली 61 वर्ष के हैं, लेकिन इस उम्र में भी उन्हें रोकना जैसे नामुमकिन है.

डॉ. धाबाली एक डायग्नोस्टिक चेन और दो स्टार होटलों के मालिक हैं. उनका सालाना कारोबार क़रीब 40 करोड़ रुपए का है.

तीस साल पहले जब उन्होंने शुरुआत की थी, तब मणिपुर में डायग्नोस्टिक चेन और स्टार होटल की शुरुआत एक नई सोच जैसे थे.

यह एक बड़ा ख़तरा था.

डॉ. धाबाली कहते हैं, “अगर आप किसी क्षेत्र में पथ प्रदर्शक बनते हैं तो उसके फ़ायदे और नुक़सान दोनों होते हैं. हालांकि अगर एक बार आपने मुश्किलों को पार कर लिया, तो आप हमेशा उस क्षेत्र में अग्रणी रहेंगे, हमेशा दूसरों से एक क़दम आगे रहेंगे.”

1983 में शुरू हुई डॉ. थंगजाम धाबोली की डायग्नोस्टिक लैब मणिपुर में किसी योग्य पैथोलॉजिस्ट की पहली ऐसी लैब थी. (फ़ोटो - विक्रम वाई)

मणिपुर में स्वास्थ्य सेवाओं और मेहमाननवाज़ी उद्योग के अग्रणी उद्यमी के रूप में डॉ. धाबोली की बहुत इज़्ज़त है.

वो बाबीना (बीएबीआईएनए) समूह के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर हैं.

इस सफ़र की शुरुआत 1983 में इंफाल में एक छोटी डायग्नोस्टिक्स लैब से हुई थी.

आज बाबीना समूह मणिपुर में सबसे बेहतरीन होटल और उत्तर-पूर्व भारत के सबसे बड़े डायग्नोस्टिक्स सेंटर में से एक सेंटर चलाता है.

ये उपलब्धियां डॉ. धाबाली की दूरदर्शिता और उनकी कड़ी मेहनत को दर्शाती है.

वर्ष 1983 में उनकी डायग्नोस्टिक लैब मणिपुर की पहली ऐसी लैब थी, जिसे कोई योग्य पैथोलॉजिस्ट संचालित करते थे. डॉ. धाबाली याद करते हुए कहते हैं, “शुरुआत में मुझे काफ़ी परेशानी हुई. हमारे पास बैंक में सुरक्षा के रूप में जमा करने के लिए कोई ज़ायदाद नहीं थी, इसलिए कोई बैंक हमें ऋण देने को तैयार नहीं था.”

वो ऐसा वक्त था जब बैंक स्टार्ट-अप प्रोजेक्ट में पैसा लगाने में भरोसा नहीं करते थे.

वो मुस्कुरा कर कहते हैं, “पहला ऋण मुझे 8,000 रुपए फ्रिज ख़रीदने के लिए मिला.”

डॉ. धाबाली एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में पले-बढ़े. उनके नौ भाई-बहन थे और पैसे की कमी परिवार के लिए हमेशा एक मुद्दा रहती थी.

उनके स्वर्गीय पिता थांगजाम बीरचंद्र सिंह का कपड़े का छोटा सा कोराबार था, लेकिन आर्थिक चुनौतियों के बावजूद उन्होंने सभी 10 बच्चों को शिक्षा दिलाई.

डॉ. धाबाली ने सरकारी स्कूल में शिक्षा हासिल की. वो पढ़ाई में अच्छे थे और इसी के चलते उन्हें इंफाल के रीज़नल मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस में दाख़िला मिल गया.

इस कॉलेज को अब रीजनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ (रिम्स) के नाम से जाना जाता है.

बाद में डॉ. धाबाली ने इसी कॉलेज की पैथोलॉजी या रोग-निदान विभाग में एसोसिएट प्रोफ़ेसर के पद पर काम किया.

उन्हें 100 रुपए मासिक छात्रवृत्ति मिलती थी, जिसमें उन्हें अपने सारे ख़र्च समेटना होते थे.

1978 में एमबीबीएस ख़त्म करने के बाद उन्हें चंडीगढ़ के प्रतिष्ठित पोस्टग्रैजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआई) में पैथोलॉजी में एमडी करने के लिए दाख़िला मिल गया.

वक्त बीता. डॉ. धाबाली की शादी हुई और उनके घर एक बेटी ने जन्म लिया. उनकी पत्नी डॉ. एस रीता भी पीजीआई में अपनी पीजी की पढ़ाई कर रही थीं. डॉ. रीता वर्तमान में रिम्स में फ़ार्माकोलॉजी या औषधशास्त्र विभाग में प्रोफ़ेसर हैं.

पति-पत्नी ने अपनी नन्ही बेटी को माता-पिता की देखरेख में छोड़ दिया था.

1982 में डॉ. धाबाली की पीजीआई से पढ़ाई पूरी हो गई. उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें रिम्स में एक पक्की नौकरी मिल जाएगी.

मणिपुर, दीमापुर, कोहिमा (नगालैंड), अगरतला (त्रिपुरा) और आइजॉल (मिज़ोरम) में बाबीना डायग्नोस्टिक्स के 150 सैंपल कलेक्शन सेंटर हैं.

 

वे कहते हैं, “जब 1982 में मुझे वो सरकारी नौकरी नहीं मिली, तो मैं भीतर से टूट गया. वो मेरी ज़िंदगी का सबसे ख़राब वक्त था.”

उस वक्त रिम्स में कोई पद रिक्त नहीं था. लेकिन जैसे ही बाद में पता चला, यह बात डॉ. धाबाली के पक्ष में गई.

उन्होंने कुछ नया और चुनौतीपूर्ण करने का फ़ैसला किया.

डॉ. धाबाली के पास कोई जमा-पूंजी नहीं थी. वो पीजीआई में 1,000 रुपए महीने की छात्रवृत्ति पर अपनी गुज़र-बसर करते थे.

उन्होंने इंफाल में एक निजी क्लीनिकल लैब शुरू करने का फ़ैसला किया. उस वक्त इंफाल में ऐसी कोई सुविधा नहीं थी.

लेकिन यह सब कैसे होता? लैब शुरू करने के लिए धन कहां से आएगा? ऐसे में उनकी पत्नी ने उनकी मदद की.

वो कहते हैं, “मेरे ससुर ने मदद की पेशकश की. उन्होंने मुझे बीर टिकेंद्रजीत रोड पर छोटा व्यावसायिक प्लॉट और 20,000 रुपए दिए.”


नौ नवंबर 1983 को क्लीनिक का उद्घाटन हुआ और इसका नाम उनकी बेटी के नाम पर रखा गया.

इस तरह बाबीना क्लीनिकल लैब अस्तित्व में आई.

वो हंसते हुए कहते हैं, “मज़दूरी बचाने के लिए मैंने पेंटिंग से लेकर बिजली की फ़िटिंग करने तक का काम किया.”

उन्होंने चार लोगों के साथ काम की शुरुआत की. मेडिकल उपकरण इतने महंगे थे कि उन्हें ख़रीदना नामुमकिन था, इसलिए उन्होंने ज़रूरी उपकरण किराए पर ले लिए.

डॉ. धाबाली इंफाल में एक थ्री स्टार और एक फ़ोर स्टार होटल के मालिक हैं.

वो याद करते हैं, “हमने ख़ून और पेशाब के टेस्ट जैसी बुनियादी सुविधाओं से शुरुआत की. इसके लिए सामान, उपकरणों और मोनोक्युलर कंपाउंड 170 रुपए मासिक के किराए पर एक सेवानिवृत्त डॉक्टर से लिए.”

“मेरे एक दोस्त के ससुर की लैब उपकरणों और दूसरे सामान की दुकान थी. उन्होंने मुझे मुफ़्त में टेस्ट ट्यूब, कांच के बर्तन और कुछ दूसरी छोटी-मोटी चीज़ें दीं.”

एक तरफ़ उनका लैब का कारोबार धीरे-धीरे बढ़ रहा था, दूसरी ओर उन्हें 1984 में रिम्स में एसोसिएट प्रोफ़ेसर की नौकरी मिल गई. वर्ष 1994 में उन्होंने कॉलेज से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और अपने फलते-फूलते कारोबार पर ध्यान देने लगे.

वर्ष 1995 में इसका नाम बाबीना डायग्नोस्टिक्स रखा गया. आज बाबीना डायग्नोस्टिक्स का मुख्यालय इंफाल के पूर्व में पोरोम्पट में है. इसकी एक और ब्रांच रिम्स के नज़दीक है. बाबीना डायग्नोस्टिक्स उत्तर-पूर्व में सबसे बड़े मेडिकल डायग्नोस्टिक्स सेंटर में से एक है.

जब डॉ. धाबाली को लगा कि इंफाल में यात्रियों के लिए अच्छी होटल नहीं हैं तो उन्होंने मेहमाननवाज़ी उद्योग में क़दम रखा.

दीमापुर, कोहिमा (नगालैंड), अगरतला (त्रिपुरा) और आइज़ॉल (मिज़ोरम) के अलावा राज्य में कंपनी के 150 से ज़्यादा सैंपल कलेक्शन सेंटर हैं.

बाबीना डायग्नोस्टिक्स में कई तरह के टेस्ट की सुविधाएं मौजूद हैं. इनमें बेहद जटिल मॉलीक्युलर डायग्नोस्टिक्स टेस्ट जैसी सुविधा भी उपलब्ध है.

उत्तर-पूर्व में यह पहली क्लीनिकल लैब है जिसे नेशनल एक्रिडिटेशन बोर्ड फ़ॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लैबोरेटरीज़ का प्रमाणपत्र मिला है.

वर्ष 2009 में डॉ. धाबाली ने अपने मेहमाननवाज़ी उद्योग को आगे बढ़ाते हुए इंफाल में स्टार-श्रेणी का पहला होटल खोला. नाम रखा गया- द क्लासिक.

होटल क्षेत्र में शुरुआत करने के बारे में वो कहते हैं, “आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है.”

बाबीना सेंटर की ओर से जब कोई सम्मेलन का आयोजन होता था और मणिपुर के बाहर से साथी इंफाल आते थे, तो वो होटलों की परेशानियों का ज़िक्र करते थे.

इस समस्या से निपटने के लिए उन्होंने स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया से नौ करोड़ रुपए का ऋण लिया और 9 नवंबर 2009 को ‘द क्लासिक’ का उद्घाटन हुआ.

चरमपंथ और उससे जुड़ी चुनौतियां डॉ. धाबाली के बिज़नेस प्लान का हिस्सा है.

9 नवंबर जादुई तारीख़ साबित हुई. इस दिन नॉर्थ-ईस्ट डेवलपमेंट फ़ाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड के 23 करोड़ के ऋण की मदद से 2015 में होटल क्लासिक ग्रैंड की शुरुआत हुई.

अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने इस कारोबार में भी कामयाबी हासिल की थी.

मणिपुर चरमपंथ से जूझ रहा है और ऐसे में एक बड़ी कंपनी को चलाना आसान काम नहीं है.

विभिन्न गुटों से भिन्न-भिन्न रूपों में चंदे की मांग आती रहती है और आपको हालात से समझौता करना पड़ता है.

डॉ. धाबाली स्वीकारते हैं, “यदि आप कोई कारोबार कर रहे हैं, तो आपको इन सबसे निपटना आना चाहिए. इन मांगों को पूरा करना हमारी व्यापारिक योजनाओं का हिस्सा है! हम उन्हें (चरमपंथ गुटों को) चुनौती नहीं दे सकते और हमें उन्हें ख़ुश रखना ही होगा.”

डॉ. धाबाली के तीनों बच्चे भी इस बिज़नेस से जुड़ गए हैं. डॉ. बाबीना पैथोलॉजिस्ट हैं. उनका बड़ा बेटा डॉ. मोमोचा रेडियोलॉजिस्ट है, जबकि छोटे बेटे नाओबा ने होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई की है और वो मेहमाननवाज़ी कारोबार (हॉस्पिटैलिटी बिज़नेस) का डायरेक्टर है.

बाबीना ग्रुप में क़रीब 800 लोग काम करते हैं - 500 मेहमाननवाज़ी में और 300 स्वास्थ्य सेवा में.

 

आज डॉ. धाबाली सफ़लता का प्रतीक बन गए हैं.

स्वास्थ्य में उत्कृष्टता के लिए उन्हें वर्ष 2010 में नॉर्थ-ईस्ट एक्सिलेंस अवार्ड और इंडिया लीडरशिप अवार्ड, स्वास्थ्य सेवा में उत्कृष्टता के लिए 2012 में इंडियन अचीवर्स अवार्ड और मदर टेरेसा एक्सिलेंस पुरस्कार जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उन्हें कई दूसरे पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है.

उन्होंने अपना साम्राज्य थोड़ा-थोड़ा करके बनाया है. वो कहते हैं, “ये कड़ी मेहनत और सकारात्मक सोच का इनाम है.” डॉ. धाबाली ने 800 लोगों को रोज़गार दिया है, जिनमें 500 मेहमाननवाज़ी और 300 स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र से हैं.

आगे उनकी योजना एक कैंसर स्पेशलिटी अस्पताल बनाने की है और हमें पूरा भरोसा है कि वो इसे ज़रूर पूरा करके दिखाएंगे और कामयाबी हासिल करेंगे.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • New Business of Dustless Painting

    ये हैं डस्टलेस पेंटर्स

    नए घर की पेंटिंग से पहले सफ़ाई के दौरान उड़ी धूल से जब अतुल के दो बच्चे बीमार हो गए, तो उन्होंने इसका हल ढूंढने के लिए सालों मेहनत की और ‘डस्टलेस पेंटिंग’ की नई तकनीक ईजाद की. अपनी बेटी के साथ मिलकर उन्होंने इसे एक बिज़नेस की शक्ल दे दी है. मुंबई से देवेन लाड की रिपोर्ट
  • Smoothies Chain

    स्मूदी सम्राट

    हैदराबाद के सम्राट रेड्‌डी ने इंजीनियरिंग के बाद आईटी कंपनी इंफोसिस में नौकरी तो की, लेकिन वे खुद का बिजनेस करना चाहते थे. महज एक साल बाद ही नौकरी छोड़ दी. वे कहते हैं, “मुझे पता था कि अगर मैंने अभी ऐसा नहीं किया, तो कभी नहीं कर पाऊंगा.” इसके बाद एक करोड़ रुपए के निवेश से एक स्मूदी आउटलेट से शुरुआत कर पांच साल में 110 आउटलेट की चेन बना दी. अब उनकी योजना अगले 10 महीने में इन्हें बढ़ाकर 250 करने की है. सम्राट का संघर्ष बता रही हैं सोफिया दानिश खान
  • Once his family depends upon leftover food, now he owns 100 crore turnover company

    एक रात की हिम्मत ने बदली क़िस्मत

    बचपन में वो इतने ग़रीब थे कि उनका परिवार दूसरों के बचे-खुचे खाने पर निर्भर था, लेकिन उनका सपना बड़ा था. एक दिन वो गांव छोड़कर चेन्नई आ गए. रेलवे स्टेशन पर रातें गुजारीं. आज उनका 100 करोड़ रुपए का कारोबार है. चेन्नई से पी.सी. विनोज कुमार बता रहे हैं वी.के.टी. बालन की सफलता की कहानी
  • Air-O-Water story

    नए भारत के वाटरमैन

    ‘हवा से पानी बनाना’ कोई जादू नहीं, बल्कि हकीकत है. मुंबई के कारोबारी सिद्धार्थ शाह ने 10 साल पहले 15 करोड़ रुपए में अमेरिका से यह महंगी तकनीक हासिल की. अब वे बेहद कम लागत से खुद इसकी मशीन बना रहे हैं. पीने के पानी की कमी से जूझ रहे तटीय इलाकों के लिए यह तकनीक वरदान है.
  • Johny Hot Dog story

    जॉनी का जायकेदार हॉट डॉग

    इंदौर के विजय सिंह राठौड़ ने करीब 40 साल पहले महज 500 रुपए से हॉट डॉग बेचने का आउटलेट शुरू किया था. आज मशहूर 56 दुकान स्ट्रीट में उनके आउटलेट से रोज 4000 हॉट डॉग की बिक्री होती है. इस सफलता के पीछे उनकी फिलोसॉफी की अहम भूमिका है. वे कहते हैं, ‘‘आप जो खाना खिला रहे हैं, उसकी शुद्धता बहुत महत्वपूर्ण है. आपको वही खाना परोसना चाहिए, जो आप खुद खा सकते हैं.’’