Milky Mist

Thursday, 20 November 2025

कैसे एक दलित लड़की ने स्‍थापित किया 2,000 करोड़ का साम्राज्य?

20-Nov-2025 By देवेन लाड
मुंबई

Posted 02 Jun 2018

कल्पना सरोज के बिज़नेस साम्राज्य का सालाना टर्नओवर 2,000 करोड़ रुपए से ज़्यादा का है. जिन छह कंपनियों को वो संचालित करती हैं, उनमें क़रीब 600 लोग काम करते हैं.

कल्‍पना जिन छह कंपनियों की मालकिन हैं, वे हैं - कामानी ट्यूब्स लिमिटेड, कामानी स्टील री-रोलिंग मिल्स प्राइवेट लिमिटेड, सैकरूपा शुगर फ़ैक्ट्री प्राइवेट लिमिटेड, कल्पना बिल्डर्स ऐंड डेवलपर्स, कल्पना सरोज ऐंड एसोसिएट्स और केएस क्रिएशंस फ़िल्म प्रोडक्शन.

लेकिन कल्‍पना को यह सब तोहफ़े में नहीं मिला. उन्‍होंने बचपन में सबसे मुश्किल हालात देखे, पर बहादुरी से विपरीत परिस्थितियों का मुकाबला किया और सफल उद्यमी के रूप में उभरीं.

बचपन में मुश्किल परिस्थितियों से जूझने वाली कल्‍पना सरोज आज छह कंपनियों की मालकिन हैं. इन कंपनियों का सालाना टर्नओवर 2,000 करोड़ रुपए है. फ़ोटो में वे प्रो-कबड्डी लीग में दिखाई दे रही हैं. (सभी फ़ोटो – विशेष व्‍यवस्‍था से)


कल्पना सरोज का जन्म साल 1958 में महाराष्ट्र के अकोला जिले में एक निम्‍न मध्यवर्गीय परिवार में हुआ. पिता पुलिस कांस्टेबल थे. उनके दो भाई और दो बहनें थीं.

कक्षा सात के बाद ही उनकी शादी कर दी गई थी. शादी के बाद वो पति के घर ठाणे की उल्हासनगर बस्ती आ गईं.

ससुराल में 12-15 सदस्यों का परिवार 10 बाय 5 वर्ग फ़ुट के एक ही कमरे में रहता था.

कल्पना ने इससे पहले मलिन बस्ती नहीं देखी थी.

कल्पना याद करती हैं, छह महीने के भीतर ही पति ने मुझे परेशान करना शुरू कर दिया. खाने में नमक कम हो जाने पर भी वो मुझे मारते थे.

कल्पना को घर से बाहर जाने या परिवार से संपर्क करने की इजाज़त नहीं थी. एक दिन उनके पिता किसी काम से उसी इलाक़े में आए तो एक क्षण के लिए वो अपनी बेटी को पहचान तक नहीं पाए.

कल्पना कहती हैं, वो मुझे तुरंत वहां से ले गए. वो मेरी आज़ादी का दिन था.

लेकिन चुनौतियां ख़त्म नहीं हुई थीं.

उनके घर वापस आने के बाद गांव वालों ने परिवार पर ताने कसने शुरू कर दिए. जब वो दोबारा स्कूल गईं तो वहां भी परेशान किया गया.

प्रताड़ना से तंग आकर एक दिन उन्होंने ज़हर की तीन बॉटल पी ली.

कल्पना बताती हैं, मैं बहुत छोटी थी और ताने सहना मुश्किल होता जा रहा था. मुझे अपनी मां के लिए बहुत बुरा लगता था, क्योंकि उन्होंने सबसे ज़्यादा ताने सहे.

उन्हें सरकारी अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों की कोशिशों से उनकी हालत में सुधार आया.

कल्‍पना को एक नई ज़िंदगी मिली थी. इसके बाद उन्‍होंने तय किया कि वे कुछ करके दिखाएंगीं.

बेहतर भविष्‍य की कामना लिए सन् 1972 में कल्‍पना मुंबई आ गईं.


साल 1972 में उन्होंने परिवार को मुंबई जाने देने के लिए राज़ी कर लिया. इस क़दम ने उनकी ज़िंदगी बदल दी.

वो दादर के रेलवे क्वार्टर में अपने अंकल के दोस्त के घर रहने लगीं और लोअर परेल में कपड़ा फ़ैक्ट्री में 60 रुपए महीने में बतौर हेल्पर काम करने लगीं.

कुछ ही महीने में उन्होंने साथ में सिलाई का काम भी शुरू कर दिया और जल्द ही 100 रुपए महीना कमाने लगीं.

वे मुस्‍कुराहट के साथ कहती हैं, मैंने 100 रुपए का नोट पहली बार देखा था... और वह मेरी कमाई थी.

कल्‍पना इसके बाद नहीं रुकीं और राह में आने वाले हर अवसर को भुनाया. उन्‍होंने दो साल के भीतर ही इतने पैसे कमा लिए कि कल्याण पूर्व में एक छोटा घर किराए पर ले लिया और अपने परिवार के साथ वहीं रहने लगीं.

उसी साल महंगी दवा की कमी से उनकी 17 वर्षीय बहन की मौत हो गई.

कल्पना याद करती हैं, उसका चेहरा आज भी मेरी आंखों के सामने घूमता है. वो मदद के लिए मेरी ओर देख रही थी... लेकिन मैं कुछ नहीं कर पाई. तब मैंने ढेर सारे पैसे कमाने का निश्चय किया.

साल 1975 में कल्पना ने पिछड़े समुदायों के लिए चल रही एक सरकारी योजना के अंतर्गत 50 हज़ार रुपए का क़र्ज लिया और कल्याण में एक बुटीक खोला. साथ ही फर्नीचर री-सेलिंग का भी काम शुरू किया.

उनका बिज़नेस चल निकला. साल 1978 में उन्होंने बेरोज़गारों की मदद के लिए सुशिक्षित बेरोज़गार युवक संगठन की शुरुआत की. क़रीब 3000 लोग इस संस्था से जुड़े. नौकरी दिलाने में उनकी मदद की गई.

सन् 1975 में कल्‍पना ने कल्‍याण में एक बुटीक शुरू किया.


उनके पिता ने फर्नीचर बिज़नेस संभाला, जबकि छोटी बहन ने बुटीक.

धीरे-धीरे लोग उन्हें ताई (बड़ी बहन) कहकर बुलाने लगे हालांकि तब वे 20 वर्ष की ही थीं.

कल्पना और उनके परिवार की ज़िंदगी बेहतर हो चली थी. उनके बिज़नेस में अगला बड़ा मोड़ क़रीब 20 साल बाद आया.

साल 1995 में एक आदमी ने कल्पना से कहा कि उसे पैसे की सख्त ज़रूरत है और वो अपनी ज़मीन ढाई लाख में बेचना चाहता है. कल्पना ने उसे सिर्फ़ एक लाख का ऑफ़र दिया, लेकिन उसने स्‍वीकार कर लिया. बाद में उन्‍हें पता चला कि उस व्यक्ति ने ज़मीन सस्ते में क्‍यों बेची. दरअसल, वह ज़मीन क़ानूनी पचड़े में फंसी थी.

कल्पना को ज़मीन की ख़रीद-फ़रोख्त के बारे में बिल्‍कुल भी जानकारी नहीं थी, लेकिन वो कलेक्टर से मिलीं, जिन्होंने मामले को सुलझाने में मदद की. अगले दो सालों में उन्हें ज़मीन बेचने की अनुमति मिल गई.

कल्पना ने वह ज़मीन बिल्डर को दे दी, जिसने अपने ख़र्च पर वहां निर्माण किया.

कल्पना को तैयार इमारत को बेचने में मिले पैसे का 35 प्रतिशत हिस्सा मिला, जबकि 65 प्रतिशत बिल्डर को गया. इस तरह रियल एस्टेट में उनकी एंट्री हुई.

साल 1998 में प्रॉपर्टी बाज़ार में तेज़ी आई और वो इन मामलों की एक्सपर्ट बन गईं. हालांकि उन्हें जान से मारने की धमकियां भी मिलीं, लेकिन वो डिगी नहीं.

प्रॉपर्टी बाज़ार में उन्हें तब तक चार करोड़ रुपए का फ़ायदा हो चुका था. इस पैसे को उन्होंने गन्ना फ़ैक्ट्री में निवेश किया और शकर बनाने लगीं.

बीमार कंपनी कामानी ट्यूब्स का अधिग्रहण कर उसे शुरू करने के बाद कल्‍पना के जीवन ने नया मोड़ ले लिया.


इस बीच, उनके क़ानूनी झगड़े सुलझाने वाली महिला के रूप में उनकी ख्‍़याति कामानी ट्यूब्स तक भी पहुंची. कुर्ला की यह कंपनी कॉपर ट्यूब्‍़स, रॉड्स, एलईडी लाइट्स आदि बनाती थी. कंपनी को कई बार घाटा हुआ था और वो सालों से क़ानूनी पचड़े में फंसी थी.

साल 1987 में अदालत ने कर्मचारियों से कंपनी चलाने के लिए कहा, लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाए. तबसे कंपनी बंद थी. साल 1999 में कर्मचारी कल्पना के पास आए.

कल्‍पना हंसती हैं, कंपनी में 3,500 बॉस थे. बैंक ने उन्‍हें क़र्ज दिया था, लेकिन 1987 से 1998 तक वो कुछ नहीं कर पाए. ऊपर से क़र्ज बढ़कर 116 करोड़ हो गया. कंपनी पर 140 केस चल रहे थे और दो यूनियन थीं. सबकुछ गड़बड़ था. लेकिन यह मैंने सब कुछ सुलझा दिया.

कल्पना ने 10 सदस्यों की एक टीम बनाई, जिसमें मार्केटिंग और फ़ाइनेंस के लोग, बैंक डायरेक्टर, वकील और सरकार के कंसल्टेंट शामिल थे.

यह आसान नहीं था, लेकिन आखिरकार साल 2006 में कल्‍पना ने कंपनी की चेयरपर्सन का पद संभाला. वो सभी क़र्जदारों से मिलीं. उनकी कोशिशों के चलते बैंकों ने कामानी को पेनाल्टी, ब्‍याज आदि चुकाने से छूट दे दी.

कल्पना बताती हैं, मुझे कल्याण में अपनी एक प्रॉपर्टी तक बेचनी पड़ी और साल 2009 में कामानी ट्यूब्स सीका (सिक इंडस्ट्रियल कंपनीज़ एक्ट) से बाहर आ गई. साल 2010 में हमने दोबारा कंपनी शुरू की. हम फ़ैक्ट्री को वाडा ले गए और पांच करोड़ रुपए निवेश किए. साल 2011 में हमें तीन करोड़ रुपए का मुनाफ़ा हुआ.

धीरे-धीरे उन्होंने दूसरे बिज़नेस शुरू किए.

कामानी ट्यूब्स आज मुनाफ़े वाली कंपनी है. कंपनी का सालाना मुनाफ़ा पांच करोड़ रुपए का है. कल्‍पना की सभी कंपनियों का कुल टर्नओवर 2,000 करोड़ रुपए है.

कल्‍पना का मुंबई में अमीर और प्रसिद्ध लोगों के साथ उठना-बैठना है. इस फ़ोटो में वो दिवंगत बॉलीवुड अभिनेत्री श्रीदेवी के साथ दिखाई दे रही हैं.


कल्पना सरोज, एक दलित लड़की, जिन्होंने कपड़े की फ़ैक्ट्री में हेल्पर से शुरुआत की, आज कल्याण में 5,000 वर्ग फ़ुट के घर में रहती हैं. लेकिन ऐसा नहीं कि 60 वर्ष की उम्र में उनकी रफ़्तार रुकी है.

वो अब राजस्थान के होटल बिज़नेस में निवेश कर रही हैं.

निजी जीवन में कल्पना ने दोबारा शादी की, लेकिन उनके पति चल बसे. उनकी बेटी सीमा ने होटल मैनेजमेंट कोर्स किया है, उनका बेटा अमर कॉमर्शियल पायलट है.

कल्पना को साल 2013 में ट्रेड ऐंड इंडस्ट्री के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया गया. साथ ही उन्हें भारत सरकार ने भारतीय महिला बैंक में बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स में भी शामिल किया.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • World class florist of India

    फूल खिले हैं गुलशन-गुलशन

    आज दुनिया में ‘फ़र्न्स एन पेटल्स’ जाना-माना ब्रैंड है लेकिन इसकी कहानी बिहार से शुरू होती है, जहां का एक युवा अपने पूर्वजों की ख़्याति को फिर अर्जित करना चाहता था. वो आम जीवन से संतुष्ट नहीं था, बल्कि कुछ बड़ा करना चाहता था. बिलाल हांडू बता रहे हैं यह मशहूर ब्रैंड शुरू करने वाले विकास गुटगुटिया की कहानी.
  • how a boy from a small-town built a rs 1450 crore turnover company

    जिगर वाला बिज़नेसमैन

    सीके रंगनाथन ने अपना बिज़नेस शुरू करने के लिए जब घर छोड़ा, तब उनकी जेब में मात्र 15 हज़ार रुपए थे, लेकिन बड़ी विदेशी कंपनियों की मौजूदगी के बावजूद उन्होंने 1,450 करोड़ रुपए की एक भारतीय अंतरराष्ट्रीय कंपनी खड़ी कर दी. चेन्नई से पीसी विनोज कुमार लेकर आए हैं ब्यूटी टायकून सीके रंगनाथन की दिलचस्प कहानी.
  • Rich and cool

    पान स्टाल से एफएमसीजी कंपनी का सफर

    गुजरात के अमरेली के तीन भाइयों ने कभी कोल्डड्रिंक और आइस्क्रीम के स्टाल से शुरुआत की थी. कड़ी मेहनत और लगन से यह कारोबार अब एफएमसीजी कंपनी में बढ़ चुका है. सालाना टर्नओवर 259 करोड़ रुपए है. कंपनी शेयर बाजार में भी लिस्टेड हो चुकी है. अब अगले 10 सालों में 1500 करोड़ का टर्नओवर और देश की शीर्ष 5 एफएमसीजी कंपनियों के शुमार होने का सपना है. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह
  • Sid’s Farm

    दूध के देवदूत

    हैदराबाद के किशोर इंदुकुरी ने शानदार पढ़ाई कर शानदार कॅरियर बनाया, अच्छी-खासी नौकरी की, लेकिन अमेरिका में उनका मन नहीं लगा. कुछ मनमाफिक काम करने की तलाश में भारत लौट आए. यहां भी कई काम आजमाए. आखिर दुग्ध उत्पादन में उनका काम चल निकला और 1 करोड़ रुपए के निवेश से उन्होंने काम बढ़ाया. आज उनके प्लांट से रोज 20 हजार लीटर दूध विभिन्न घरों में पहुंचता है. उनके संघर्ष की कहानी बता रही हैं सोफिया दानिश खान
  • Taking care after death, a startup Anthyesti is doing all rituals of funeral with professionalism

    ‘अंत्येष्टि’ के लिए स्टार्टअप

    जब तक ज़िंदगी है तब तक की ज़रूरतों के बारे में तो सभी सोच लेते हैं लेकिन कोलकाता का एक स्टार्ट-अप है जिसने मौत के बाद की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर 16 लाख सालाना का बिज़नेस खड़ा कर लिया है. कोलकाता में जी सिंह मिलवा रहे हैं ऐसी ही एक उद्यमी से -