Milky Mist

Saturday, 27 July 2024

स्कूल में पढ़ते-पढ़ते बेची जीन्स, अब हैं 20 करोड़ की कंपनी के मालिक

27-Jul-2024 By गुरविंदर सिंह
कोलकाता

Posted 04 Apr 2018

38 वर्ष की उम्र में अलकेश अग्रवाल भारत की सबसे बड़ी प्रिंटर कार्टेज रिसाइकिल नेटवर्क कंपनी चलाते हैं. इसका नाम है री-फ़ील कार्टेज इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड. कंपनी ने वर्ष 2016-17 में 20 करोड़ रुपए का टर्नओवर हासिल किया है.

बहुत दिन नहीं हुए जब वो 25 रुपए कमाने पर भगवान को धन्‍यवाद दिया करते थे, जो वो दोस्‍तों को जीन्‍स बेचकर जुटाते थे. तब वो स्‍कूल में ही पढ़ते थे.

अलकेश अग्रवाल ने वर्ष 1998 में अपने बचपन के दोस्‍त अमित बारनेचा के साथ कंप्‍यूटर्स बेचना शुरू किया और धीरे-धीरे अपना बिज़नेस फैलाया. (सभी फ़ोटो – समीर वर्मा)


11 अप्रैल 9179 में कोलकाता के एक अमीर परिवार में जन्‍मे अलकेश को जीवन के शुरुआती दौर में ही बुरे दिन देखने पड़े. सरसों के तेल का कारोबार करने वाले उनके पिता का साया उनसे छिन गया. इसके साथ ही परिवार को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा.

अलकेश ने जब काम करना शुरू किया, तो बहुत जल्‍द मां को भी खो दिया. तमाम बाधाओं को पार कर आज वो री-फ़ील कार्टेज इंजीनियरिंग के चार संस्‍थापकों में से एक हैं. इस कंपनी ने 800 से अधिक लोगों को रोज़गार दे रखा है.

अलकेश बताते हैं, ‘‘हमारा संयुक्‍त परिवार था और आर्थिक स्थिति भी ठीक थी. लेकिन वर्ष 1991 में कोलकाता में एक सड़क दुर्घटना में पिता की मृत्‍यु के बाद अचानक सबकुछ बदल गया. देखते ही देखते हमारी स्थिति बिगड़ गई. मेरे चाचाओं का ख़ुद का बिज़नेस था और उनका अपना परिवार भी था. कोई भी पिता का स्‍थान नहीं ले सकता. मेरी मां को भी गंभीर सदमा लगा था, जिससे वे कभी पूरी तरह नहीं उबर पाईं. हमारे पास कुछ पैसे नहीं बचे थे.’’

कोलकाता के लेकटाउन स्थित अपने दफ़्तर में बैठे अलकेश बताते हैं, ‘‘तंगी के चलते मुझे कम फ़ीस वाले स्‍कूल में पढ़ना पड़ा. अगले पांच साल तक हमने एक जैसा भोजन किया. रोज़ आलू और दाल. लैंडलाइन फ़ोन भी हटवाना पड़ा.’’

वर्ष 2011 में री-फ़ील कार्टेज इंजीनियरिंग ने क्‍लब लैपटॉप की शुरुआत की. इस आउटलेट पर लैपटॉप की रिपेयरिंग की जाती थी और एक्‍सेसरीज़ भी बेची जाती थी.


कक्षा 9 में अलकेश ने पहली बार कमाना शुरू किया. वो याद करते हैं, ‘‘मेरा एक दोस्‍त जीन्‍स बेचता था. वह मुझे कुछ जीन्‍स दे देता था और मैं अपने दोस्‍तों व शुभचिंतकों के पास जाकर वह जीन्‍स ख़रीदने को कहता था.’’

‘‘मुझे आज भी याद है मैंने पहली जीन्‍स बेचकर 25 रुपए कमाए थे. मैं इस कमाई को अपनी पॉकेटमनी के तौर पर रखता था. इसके बाद मैंने अपने परिवार से एक भी पैसा नहीं लिया.’’

उन्‍होंने वर्ष 1999 में उमेश चंद्र कॉलेज से कॉमर्स में ग्रैजुएशन किया. वो बताते हैं, ‘‘कॉलेज में उपस्थिति अनिवार्य नहीं थी, इसलिए मैंने इस समय का इस्‍तेमाल एक रिश्‍तेदार की सीए फ़र्म में जाकर किया. वहां ऑफिस में एक कंप्‍यूटर था. वहीं इसके प्रति मेरी दिलचस्‍पी जागी. मैंने एक कंप्‍यूटर ख़रीदना तय किया. उन दिनों कंप्‍यूटर काफ़ी महंगे थे. क़ीमत थी क़रीब 42,000 रुपए. तब मां ने जेवर बेचकर मेरी ज़रूरत पूरी की.’’

इस समय तक वो ट्यूशन भी लेने लगे थे और हर महीने 800 रुपए कमाने लगे थे. चूंकि कंप्‍यूटर इतने आम नहीं थे, इसलिए उनके पड़ोसी अक्‍सर उनसे इस बात की सलाह लिया करते थे कि किस तरह का कंप्‍यूटर ख़रीदा जाए.

अलकेश हंसते हुए कहते हैं, ‘‘इस काम में मुझे कारोबार का अवसर दिखा और मैंने कंप्‍यूटर बेचने वाले दुकानदार से संपर्क बढ़ाया. इसके बाद मैं उसके पास ग्राहक भेजने लगा और वह मुझे हर कंप्‍यूटर की बिक्री पर कुछ पैसे देने लगा.’’

वर्ष 1998 में उन्‍होंने बचपन के दोस्‍त अमित बारनेचा के साथ नेक्‍सस कंप्‍यूटर्स की शुरुआत की और कंप्‍यूटर बेचने लगे. हालांकि उस समय अलकेश के पास निवेश के लिए फूटी कौड़ी भी नहीं थी.

री-फ़ील कार्टेज इंजीनियरिंग के संस्‍थापकों अमित बारनेचा, समिट लखोटिया और राजेश अग्रवाल के साथ अलकेश (दाएं से दूसरे).


अलकेश कहते हैं, ‘‘हमने 40 वर्गफ़ीट की जगह से काम शुरू किया, जो कोलकाता में अमित के पिता के दफ़्तर का एक छोटा सा हिस्‍सा था. मेरा छोटा भाई राजेश भी हमसे जुड़ गया. हम कंप्‍यूटर असेंबल करते, ऑर्डर लेते और उन्‍हें डिलिवर करने के लिए बस से सफर करते.’’

फ़र्म बेहतर काम करने लगी और 1998-99 में टर्नओवर 5 लाख रुपए पहुंच गया. जीवन भी बेहतर चल रहा था कि वर्ष 2001 में ब्रेन ट्यूमर से अलकेश की मां का निधन हो गया. अलकेश कहते हैं, ‘‘उनके निधन के बाद मैं टूट गया.’’

हालांकि फ़र्म का टर्नओवर बढ़ता गया. वर्ष 2004-05 में यह 5 करोड़ रुपए पहुंच गया. उसी साल तीन साझेदारों ने कुछ अलग करने का फ़ैसला किया और कार्टेज बिज़नेस से अलग हो गए.

कंपनी के एडमिनिस्‍ट्रेशन प्रमुख 40 वर्षीय अमित बताते हैं, ‘‘कार्टेज बिज़नेस में बहुत संभावना थी, लेकिन यह क्षेत्र संगठित नहीं था.’’

वर्ष 2006 में अलकेश ने रजनी से शादी की. दोनों को वर्ष 2008 में एक बेटा हुआ.

री-फ़ील कार्टेज इंजीनियरिंग को ताज़ा वित्‍त वर्ष में 24 करोड़ रुपए टर्नओवर हासिल करने की उम्‍मीद है.


9 फ़रवरी 2007 को उन्‍होंने री-फ़ील कार्टेज इंजीनियरिंग कंपनी बनाई. अलकेश के 40 वर्षीय साथी समित लखोटिया चौथे साझेदार के रूप में फ़र्म से जुड़े.

कंपनी के टेक्निकल और आईटी विभाग के प्रमुख 37 वर्षीय राजेश कहते हैं, ‘‘हमने लेकटाउन में 7000 रुपए प्रति महीने के किराए पर 700 वर्गफ़ीट जगह ली. नेक्‍सस कंप्‍यूटर से हुई आय के 5 लाख रुपए इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर पर निवेश किए और कार्टेज बिज़नेस शुरू करने के इच्‍छुक लोगों को फ्रैंचाइज़ी देने लगे.’’

‘‘हमने प्रति फ्रैंचाइज़ी 8-10 लाख रुपए शुल्‍क लिया. उन्‍हें हमारा लोगो इस्‍तेमाल करना होता था. हम उनकी दुकान स्‍थापित करने में मदद करते थे. हम कार्टेज मंगवाते, पैक करते और सप्‍लाई करते.’’

वर्ष 2011 में उन्‍होंने क्‍लब लैपटॉप की स्‍थापना की. यह ऐसा आउटलेट था, जहां लैपटॉप रिपेयर किए जाते थे और उनकी एक्‍सेसरीज़ बेची जाती थी. आज 120 क्‍लब लैपटॉप आउटलेट हैं. कार्टेज बिज़नेस के साथ 86 शहरों में 250 फ्रैंचाइज़ी हैं.

अलकेश कहते हैं, ‘‘हमारे पास कुल 800 कर्मचारी हैं. वर्ष 2017-18 में हमारा कुल टर्नओवर 24 करोड़ रहने की उम्‍मीद है.’’

समित कहते हैं, ‘‘अब हमने थोक में ट्रॉफ़ी बेचने के क्षेत्र में क़दम बढ़ाया है. हम पूर्वी भारत में ट्रॉफ़ी के सबसे बड़े आयातक हैं. आगामी वर्षों में हम इसे और बढ़ाना चाहते हैं.’’

सफलता के मंत्र पर चारों एक सुर में बोलते हैं, ‘‘कभी भी उम्‍मीद का दामन मत छोड़ो. याद रखो कि यदि परेशानियां आ रही हैं तो आप सही राह पर हैं.’’


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • How Two MBA Graduates Started Up A Successful Company

    दो का दम

    रोहित और विक्रम की मुलाक़ात एमबीए करते वक्त हुई. मिलते ही लगा कि दोनों में कुछ एक जैसा है – और वो था अपना काम शुरू करने की सोच. उन्होंने ऐसा ही किया. दोनों ने अपनी नौकरियां छोड़कर एक कंपनी बनाई जो उनके सपनों को साकार कर रही है. पेश है गुरविंदर सिंह की रिपोर्ट.
  • Success story of Sarat Kumar Sahoo

    जो तूफ़ानों से न डरे

    एक वक्त था जब सरत कुमार साहू अपने पिता के छोटे से भोजनालय में बर्तन धोते थे, लेकिन वो बचपन से बिज़नेस करना चाहते थे. तमाम बाधाओं के बावजूद आज वो 250 करोड़ टर्नओवर वाली कंपनियों के मालिक हैं. कटक से जी. सिंह मिलवा रहे हैं ऐसे इंसान से जो तूफ़ान की तबाही से भी नहीं घबराया.
  • how a boy from a small-town built a rs 1450 crore turnover company

    जिगर वाला बिज़नेसमैन

    सीके रंगनाथन ने अपना बिज़नेस शुरू करने के लिए जब घर छोड़ा, तब उनकी जेब में मात्र 15 हज़ार रुपए थे, लेकिन बड़ी विदेशी कंपनियों की मौजूदगी के बावजूद उन्होंने 1,450 करोड़ रुपए की एक भारतीय अंतरराष्ट्रीय कंपनी खड़ी कर दी. चेन्नई से पीसी विनोज कुमार लेकर आए हैं ब्यूटी टायकून सीके रंगनाथन की दिलचस्प कहानी.
  • Archna Stalin Story

    जो हार न माने, वो अर्चना

    चेन्नई की अर्चना स्टालिन जन्मजात योद्धा हैं. महज 22 साल की उम्र में उद्यम शुरू किया. असफल रहीं तो भी हार नहीं मानी. छह साल बाद दम लगाकर लौटीं. पति के साथ माईहार्वेस्ट फार्म्स की शुरुआती की. किसानों और ग्राहकों का समुदाय बनाकर ऑर्गेनिक खेती की. महज तीन साल में इनकी कंपनी का टर्नओवर 1 करोड़ रुपए पहुंच गया. बता रही हैं उषा प्रसाद
  • kakkar story

    फर्नीचर के फरिश्ते

    आवश्यकता आविष्कार की जननी है. यह दिल्ली के गौरव और अंकुर कक्कड़ ने साबित किया है. अंकुर नए घर के लिए फर्नीचर तलाश रहे थे, लेकिन मिला नहीं. तभी देश छोड़कर जा रहे एक राजनयिक का लग्जरी फर्नीचर बेचे जाने के बारे में सुना. उसे देखा तो एक ही नजर में पसंद आ गया. इसके बाद दोनों ने प्री-ओन्ड फर्नीचर की खरीद और बिक्री को बिजनेस बना लिया. 3.5 लाख से शुरू हुआ बिजनेस 14 करोड़ का हो चुका है. एकदम नए तरीका का यह बिजनेस कैसे जमा, बता रही हैं उषा प्रसाद.