Milky Mist

Sunday, 23 March 2025

तंगहाली में बर्तन धोए, अब इनकी कंपनियों का टर्नओवर 250 करोड़

23-Mar-2025 By जी. सिंह
कटक

Posted 18 Apr 2018

न ग़रीबी और न ही तूफ़ान के कारण हुए 10 करोड़ रुपए के नुकसान से सरत कुमार साहू के हौसले टूटे.

उन्होंने एक छोटे से फ़ूड स्टाल से शुरुआत की और आज 66 साल की उम्र में 250 करोड़ रुपए का कारोबार करने वाली उनकी कंपनी में 1,000 लोग काम करते हैं.

सरत कुमार साहू ओम ऑइल ऐंड फ़्लोर मिल्स के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं.

ओम ऑइल ऐंड फ़्लोर मिल्स के मैनेजिंग डायरेक्‍टर सरत कुमार साहू ने कारोबार के शुरुआती दिनों में बैलगाड़ी पर भी सामान बेचा. (सभी फ़ोटो – टिकन मिश्रा)


सरत का ताल्लुक कटक के मध्यमवर्गीय परिवार से है. तीन भाई-बहन में वो दूसरे थे. उनके पिता छोटा सा भोजनालय चलाते थे, जिससे परिवार का ख़र्च बमुश्किल चल पाता था.

हायर सेकंडरी के बाद सरत ने कॉलेज में एडमिशन लिया, लेकिन उनका भाई ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग का कोर्स करने चेन्नई चला गया. इस कारण पिता की मदद की ज़िम्मेदारी सरत पर आ गई.

कर्मचारी को पैसा न देना पड़े, इसलिए उन्होंने पिता के साथ बर्तन धोए, खाना परोसा और डिलिवरी भी की.

हालांकि सरत कबड्डी के मैदान में विजेता थे. वो बताते हैं, मैं साल 1968 से 1972 तक ओडिशा कबड्डी टीम का कप्तान रहा. 1973 में राज्य कबड्डी एसोसिएशन का सचिव चुना गया. खेल ने मुझे किसी भी क्षेत्र में शीर्ष पर रहने के लिए प्रेरित किया.

साल 1974 में जब उनका भोजनालय प्रशासन ने ढहा दिया तो परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा.

सरत अफ़सोस करते हैं कि हम कुछ ही मिनटों में कंगाल हो गए थे.

सालों बाद 1999 में ओडिशा में आए तूफ़ान ने उनके विस्‍तार पाते बिज़नेस को भारी नुकसान पहुंचाया. तब उन्हें एक और झटका लगा.

सरत बताते हैं, तूफ़ान ने 10 करोड़ रुपए क़ीमत की मशीनें तबाह कर दी थीं. मैं बर्बाद हो गया था, लेकिन मैंने दोबारा खड़े होने का निश्चय किया. जल्द ही मैं कामयाब भी रहा.

जीवन में कोई भी बाधा सरत को स्‍थायी रूप से नहीं रोक सकी. भोजनालय ढहने के बाद वो ओडिशा स्मॉल इंडस्ट्रीज़ कॉर्पोरेशन लिमिटेड के उद्यमिता प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल हो गए.

यहां प्रशिक्षणार्थियों को 750 रुपए महीना स्‍टाइपेंड मिलता था.

सरत बताते हैं, मैंने तीन महीने की ट्रेनिंग के रूप में मिले मौक़े का फ़ायदा उठाया. उस वक्त पैसे की भी सख़्त ज़रूरत थी.

इस बीच पिता ने टी-स्टॉल खोला, जहां सरत मदद करने लगे.

वो बताते हैं, मेरे मन में बिज़नेस शुरू करने का विचार जन्‍म ले चुका था. लेकिन पैसे नहीं थे. मैं कोलकाता में मसाले की एक फ़ैक्टरी में काम करने लगा, ताकि मसालों की समझ हो सके. कुछ महीने काम करके मैं कटक लौट आया.

ओम ऑइल ऐंड फ्लोर मिल्‍स की अनुषंगी कंपनी रुचि फूडलाइन आटा, नूडल्‍स और ४८ प्रकार के मसालों समेत 300 प्रॉडक्‍ट बनाती है.


साल 1976 में 26 साल की उम्र में सरत ने उद्यमी बनने की ओर पहला क़दम उठाया. उन्होंने कटक में 450 रुपए महीने के किराए पर 1600 वर्ग फ़ीट जगह ली, जो अब कंपनी का मुख्‍यालय है.

वो कहते हैं, उस इलाक़े में अनाज पीसने की ज़्यादा चक्कियां नहीं थीं, इसलिए मैंने वहां निवेश करने का निश्चय किया.

इस तरह 5,000 रुपए के निवेश से ओम ऑइल एंड फ़्लोर मिल्‍स लिमिटेड की शुरुआत हुई. स्‍टार्टअप के संघर्ष को याद करते हुए सरत बताते हैं, इसके लिए मेरी बचत काम आई, बाकी पैसा पिताजी ने टी-स्टॉल की कमाई से दिया.

मैंने मशीन ख़रीदने के लिए बैंक से 9,500 रुपए का कर्ज लिया. हमने रुचि आटा (गेहूं आटा) से शुरुआत की.

सरत बताते हैं, वो दिन वाक़ई बेहद मुश्किल थे. मैं बैलगाड़ी पर सामान रखकर दुकान-दुकान जाता और भुवनेश्वर, पुरी तथा अन्‍य जिलों में बेचने की कोशिश करता.

कंपनी ने अपने प्रॉडक्ट भी बढ़ाए. 1976 में रुचि फ़ूडलाइन की नींव रखी गई, जो ओम ऑइल ऐंड फ्लोर मिल्‍स लिमिटेड की अनुषंगी कंपनी थी. कंपनी ने 1978 में सेंवई और 1979 में पास्ता बेचना शुरू किया.

साल 1997 में ओम ऑइल ऐंड फ्लोर मिल्‍स पब्लिक लिमिटेड कंपनी बन गई.


साल 1980 में रुचि ने मसालों के बिज़नेस में प्रवेश किया और हल्दी, धनिया पाउडर व काली मिर्च पैक करना शुरू किया. साल 1985 तक कंपनी का टर्नओवर 25 लाख तक पहुंच चुका था.

सरत बताते हैं, बिक्री में बढ़ोतरी के बावजूद, मैंने अपनी मार्केटिंग रणनीति नहीं बदली. दुकान-दुकान जाकर प्रॉडक्‍ट के बारे में फ़ीडबैक लेकर बदलाव करना जारी रखा.

साल 1995 तक कंपनी का टर्नओवर 80 लाख को पार कर गया.

जब भी मौक़ा आया, बेहतर उत्पादन के लिए सरत ने नई तकनीक का इस्तेमाल किया. उदाहरण के लिए उन्होंने इटली से पास्ता मशीन मंगाई.

साल 2013 में कंपनी ने फ़्रोज़िट रेडी-टू-हीट-ऐंड-ईट आइटम लॉन्‍च किए. ये प्रॉडक्‍ट अकेले रह रहे कामकाजी महिला-पुरुष या होस्टल के छात्रों के लिए थे.

आज रुचि 300 तरह के प्रॉडक्‍ट बनाती है, जिन्‍हें ओडिशा में 200 डीलरों और देशभर में 40 सुपर स्टॉकिस्ट की सहायता से बेचा जाता है.

रुचि के प्रॉडक्‍ट ओडिशा में 200 डीलरों और देशभर में 40 सुपर स्टॉकिस्ट की मदद से बेचे जाते हैं.


उनके बच्चे अरबिंद (38) और रश्मि साहू (35) कंपनी में डायरेक्टर हैं. दोनों अपने पिता के मूल मंत्र कठिन परिश्रम करो, ईमानदार रहो और गुणवत्‍ता से कोई समझौता मत करो का अनुसरण करते हैं.

सरत पर काम का जुनून अब भी सवार है.

हम सॉफ़्ट ड्रिंक्स के बाज़ार में प्रवेश करने की योजना बना रहे हैं. मेरा सपना है कि ओडिशा के उद्यमी देश का नाम रोशन करें.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Udipi boy took south indian taste to north india and make fortune

    उत्तर भारत का डोसा किंग

    13 साल की उम्र में जयराम बानन घर से भागे, 18 रुपए महीने की नौकरी कर मुंबई की कैंटीन में बर्तन धोए, मेहनत के बल पर कैंटीन के मैनेजर बने, दिल्ली आकर डोसा रेस्तरां खोला और फिर कुछ सालों के कड़े परिश्रम के बाद उत्तर भारत के डोसा किंग बन गए. बिलाल हांडू आपकी मुलाक़ात करवा रहे हैं मशहूर ‘सागर रत्ना’, ‘स्वागत’ जैसी होटल चेन के संस्थापक और मालिक जयराम बानन से.
  • Multi-crore businesswoman Nita Mehta

    किचन से बनी करोड़पति

    अपनी मां की तरह नीता मेहता को खाना बनाने का शौक था लेकिन उन्हें यह अहसास नहीं था कि उनका शौक एक दिन करोड़ों के बिज़नेस का रूप ले लेगा. बिना एक पैसे के निवेश से शुरू हुए एक गृहिणी के कई बिज़नेस की मालकिन बनने का प्रेरणादायक सफर बता रही हैं दिल्ली से सोफ़िया दानिश खान.
  • seven young friends are self-made entrepreneurs

    युवाओं ने ठाना, बचपन बेहतर बनाना

    हमेशा से एडवेंचर के शौकीन रहे दिल्ली् के सात दोस्‍तों ने ऐसा उद्यम शुरू किया, जो स्कूली बच्‍चों को काबिल इंसान बनाने में अहम भूमिका निभा रहा है. इन्होंने चीन से 3डी प्रिंटर आयात किया और उसे अपने हिसाब से ढाला. अब देशभर के 150 स्कूलों में बच्‍चों को 3डेक्‍स्‍टर के जरिये 3डी प्रिंटिंग सिखा रहे हैं.
  • Success story of helmet manufacturer

    ‘हेलमेट मैन’ का संघर्ष

    1947 के बंटवारे में घर बार खो चुके सुभाष कपूर के परिवार ने हिम्मत नहीं हारी और भारत में दोबारा ज़िंदगी शुरू की. सुभाष ने कपड़े की थैलियां सिलीं, ऑयल फ़िल्टर बनाए और फिर हेलमेट का निर्माण शुरू किया. नई दिल्ली से पार्थो बर्मन सुना रहे हैं भारत के ‘हेलमेट मैन’ की कहानी.
  • thyrocare founder dr a velumani success story in hindi

    घोर ग़रीबी से करोड़ों का सफ़र

    वेलुमणि ग़रीब किसान परिवार से थे, लेकिन उन्होंने उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ा, चाहे वो ग़रीबी के दिन हों जब घर में खाने को नहीं होता था या फिर जब उन्हें अनुभव नहीं होने के कारण कोई नौकरी नहीं दे रहा था. मुंबई में पीसी विनोज कुमार मिलवा रहे हैं ए वेलुमणि से, जिन्होंने थायरोकेयर की स्थापना की.