तंगहाली में बर्तन धोए, अब इनकी कंपनियों का टर्नओवर 250 करोड़
21-Nov-2024
By जी. सिंह
कटक
न ग़रीबी और न ही तूफ़ान के कारण हुए 10 करोड़ रुपए के नुकसान से सरत कुमार साहू के हौसले टूटे.
उन्होंने एक छोटे से फ़ूड स्टाल से शुरुआत की और आज 66 साल की उम्र में 250 करोड़ रुपए का कारोबार करने वाली उनकी कंपनी में 1,000 लोग काम करते हैं.
सरत कुमार साहू ओम ऑइल ऐंड फ़्लोर मिल्स के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं.
ओम ऑइल ऐंड फ़्लोर मिल्स के मैनेजिंग डायरेक्टर सरत कुमार साहू ने कारोबार के शुरुआती दिनों में बैलगाड़ी पर भी सामान बेचा. (सभी फ़ोटो – टिकन मिश्रा)
|
सरत का ताल्लुक कटक के मध्यमवर्गीय परिवार से है. तीन भाई-बहन में वो दूसरे थे. उनके पिता छोटा सा भोजनालय चलाते थे, जिससे परिवार का ख़र्च बमुश्किल चल पाता था.
हायर सेकंडरी के बाद सरत ने कॉलेज में एडमिशन लिया, लेकिन उनका भाई ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग का कोर्स करने चेन्नई चला गया. इस कारण पिता की मदद की ज़िम्मेदारी सरत पर आ गई.
कर्मचारी को पैसा न देना पड़े, इसलिए उन्होंने पिता के साथ बर्तन धोए, खाना परोसा और डिलिवरी भी की.”
हालांकि सरत कबड्डी के मैदान में विजेता थे. वो बताते हैं, “मैं साल 1968 से 1972 तक ओडिशा कबड्डी टीम का कप्तान रहा. 1973 में राज्य कबड्डी एसोसिएशन का सचिव चुना गया. खेल ने मुझे किसी भी क्षेत्र में शीर्ष पर रहने के लिए प्रेरित किया.”
साल 1974 में जब उनका भोजनालय प्रशासन ने ढहा दिया तो परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा.
सरत अफ़सोस करते हैं कि “हम कुछ ही मिनटों में कंगाल हो गए थे.”
सालों बाद 1999 में ओडिशा में आए तूफ़ान ने उनके विस्तार पाते बिज़नेस को भारी नुकसान पहुंचाया. तब उन्हें एक और झटका लगा.
सरत बताते हैं, “तूफ़ान ने 10 करोड़ रुपए क़ीमत की मशीनें तबाह कर दी थीं. मैं बर्बाद हो गया था, लेकिन मैंने दोबारा खड़े होने का निश्चय किया. जल्द ही मैं कामयाब भी रहा.”
जीवन में कोई भी बाधा सरत को स्थायी रूप से नहीं रोक सकी. भोजनालय ढहने के बाद वो ओडिशा स्मॉल इंडस्ट्रीज़ कॉर्पोरेशन लिमिटेड के उद्यमिता प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल हो गए.
यहां प्रशिक्षणार्थियों को 750 रुपए महीना स्टाइपेंड मिलता था.
सरत बताते हैं, “मैंने तीन महीने की ट्रेनिंग के रूप में मिले मौक़े का फ़ायदा उठाया. उस वक्त पैसे की भी सख़्त ज़रूरत थी.”
इस बीच पिता ने टी-स्टॉल खोला, जहां सरत मदद करने लगे.
वो बताते हैं, “मेरे मन में बिज़नेस शुरू करने का विचार जन्म ले चुका था. लेकिन पैसे नहीं थे. मैं कोलकाता में मसाले की एक फ़ैक्टरी में काम करने लगा, ताकि मसालों की समझ हो सके. कुछ महीने काम करके मैं कटक लौट आया.”
ओम ऑइल ऐंड फ्लोर मिल्स की अनुषंगी कंपनी रुचि फूडलाइन आटा, नूडल्स और ४८ प्रकार के मसालों समेत 300 प्रॉडक्ट बनाती है.
|
साल 1976 में 26 साल की उम्र में सरत ने उद्यमी बनने की ओर पहला क़दम उठाया. उन्होंने कटक में 450 रुपए महीने के किराए पर 1600 वर्ग फ़ीट जगह ली, जो अब कंपनी का मुख्यालय है.
वो कहते हैं, “उस इलाक़े में अनाज पीसने की ज़्यादा चक्कियां नहीं थीं, इसलिए मैंने वहां निवेश करने का निश्चय किया.”
इस तरह 5,000 रुपए के निवेश से ओम ऑइल एंड फ़्लोर मिल्स लिमिटेड की शुरुआत हुई. स्टार्टअप के संघर्ष को याद करते हुए सरत बताते हैं, “इसके लिए मेरी बचत काम आई, बाकी पैसा पिताजी ने टी-स्टॉल की कमाई से दिया.”
“मैंने मशीन ख़रीदने के लिए बैंक से 9,500 रुपए का कर्ज लिया. हमने रुचि आटा (गेहूं आटा) से शुरुआत की.”
सरत बताते हैं, “वो दिन वाक़ई बेहद मुश्किल थे. मैं बैलगाड़ी पर सामान रखकर दुकान-दुकान जाता और भुवनेश्वर, पुरी तथा अन्य जिलों में बेचने की कोशिश करता.”
कंपनी ने अपने प्रॉडक्ट भी बढ़ाए. 1976 में रुचि फ़ूडलाइन की नींव रखी गई, जो ओम ऑइल ऐंड फ्लोर मिल्स लिमिटेड की अनुषंगी कंपनी थी. कंपनी ने 1978 में सेंवई और 1979 में पास्ता बेचना शुरू किया.
साल 1997 में ओम ऑइल ऐंड फ्लोर मिल्स पब्लिक लिमिटेड कंपनी बन गई.
|
साल 1980 में रुचि ने मसालों के बिज़नेस में प्रवेश किया और हल्दी, धनिया पाउडर व काली मिर्च पैक करना शुरू किया. साल 1985 तक कंपनी का टर्नओवर 25 लाख तक पहुंच चुका था.
सरत बताते हैं, “बिक्री में बढ़ोतरी के बावजूद, मैंने अपनी मार्केटिंग रणनीति नहीं बदली. दुकान-दुकान जाकर प्रॉडक्ट के बारे में फ़ीडबैक लेकर बदलाव करना जारी रखा.”
साल 1995 तक कंपनी का टर्नओवर 80 लाख को पार कर गया.
जब भी मौक़ा आया, बेहतर उत्पादन के लिए सरत ने नई तकनीक का इस्तेमाल किया. उदाहरण के लिए उन्होंने इटली से पास्ता मशीन मंगाई.
साल 2013 में कंपनी ने फ़्रोज़िट रेडी-टू-हीट-ऐंड-ईट आइटम लॉन्च किए. ये प्रॉडक्ट अकेले रह रहे कामकाजी महिला-पुरुष या होस्टल के छात्रों के लिए थे.
आज रुचि 300 तरह के प्रॉडक्ट बनाती है, जिन्हें ओडिशा में 200 डीलरों और देशभर में 40 सुपर स्टॉकिस्ट की सहायता से बेचा जाता है.
रुचि के प्रॉडक्ट ओडिशा में 200 डीलरों और देशभर में 40 सुपर स्टॉकिस्ट की मदद से बेचे जाते हैं.
|
उनके बच्चे अरबिंद (38) और रश्मि साहू (35) कंपनी में डायरेक्टर हैं. दोनों अपने पिता के मूल मंत्र ‘कठिन परिश्रम करो, ईमानदार रहो और गुणवत्ता से कोई समझौता मत करो’ का अनुसरण करते हैं.
सरत पर काम का जुनून अब भी सवार है.
“हम सॉफ़्ट ड्रिंक्स के बाज़ार में प्रवेश करने की योजना बना रहे हैं. मेरा सपना है कि ओडिशा के उद्यमी देश का नाम रोशन करें.”
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
बहादुर बेटी
माता-पिता की अति सुरक्षित छत्रछाया में पली-बढ़ी कैरोलीन गोमेज ने बीई के बाद यूके से एमएस किया. गुड़गांव में नौकरी शुरू की तो वे बीमार रहने लगीं और उनके बाल झड़ने लगे. इलाज के सिलसिले में वे आयुर्वेद चिकित्सक से मिलीं. धीरे-धीरे उनका रुझान आयुर्वेदिक तत्वों से बनने वाले उत्पादों की ओर गया और महज 5 लाख रुपए के निवेश से स्टार्टअप शुरू कर दिया। दो साल में ही इसका टर्नओवर 50 लाख रुपए पहुंच गया. कैरोलीन की सफलता का संघर्ष बता रही हैं सोफिया दानिश खान... -
ख़ुदकुशी करने चली थीं, करोड़पति बन गई
एक दिन वो था जब कल्पना सरोज ने ख़ुदकुशी की कोशिश की थी. जीवित बच जाने के बाद उन्होंने नई ज़िंदगी का सही इस्तेमाल करने का निश्चय किया और दोबारा शुरुआत की. आज वो छह कंपनियां संचालित करती हैं और 2,000 करोड़ रुपए के बिज़नेस साम्राज्य की मालकिन हैं. मुंबई में देवेन लाड बता रहे हैं कल्पना का अनूठा संघर्ष. -
सपनों का छात्रावास
साल 2016 में शुरू हुए विद्यार्थियों को उच्च गुणवत्ता के आवास मुहैया करवाने वाले प्लासिओ स्टार्टअप ने महज पांच महीनों में 10 करोड़ रुपए कमाई कर ली. नई दिल्ली से पार्थो बर्मन के शब्दों में जानिए साल 2018-19 में 100 करोड़ रुपए के कारोबार का सपना देखने वाले तीन सह-संस्थापकों का संघर्ष. -
'भाई का वड़ा सबसे बड़ा'
मुंबई के युवा अक्षय राणे और धनश्री घरत ने 2016 में छोटी सी दुकान से वड़ा पाव और पाव भाजी की दुकान शुरू की. जल्द ही उनके चटकारेदार स्वाद वाले फ्यूजन वड़ा पाव इतने मशहूर हुए कि देशभर में 34 आउटलेट्स खुल गए. अब वे 16 फ्लेवर वाले वड़ा पाव बनाते हैं. मध्यम वर्गीय परिवार से नाता रखने वाले दोनों युवा अब मर्सिडीज सी 200 कार में घूमते हैं. अक्षय और धनश्री की सफलता का राज बता रहे हैं बिलाल खान -
तंगहाली से कॉर्पोरेट ऊंचाइयों तक
बिकाश चौधरी के पिता लॉन्ड्री मैन थे और वो ख़ुद उभरते फ़ुटबॉलर. पिता के एक ग्राहक पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर थे. उनकी मदद की बदौलत बिकाश एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी में ऊंचे पद पर हैं. मुंबई से सोमा बैनर्जी बता रही हैं कौन है वो पूर्व क्रिकेटर.