Milky Mist

Saturday, 23 November 2024

किराए पर बाइक मिलने में परेशानी हुई तो बाइक रेंटल सर्विस शुरू करने का आइडिया आया, 7.5 लाख रुपए निवेश वाले स्टार्ट-अप का टर्नओवर आज 7.5 करोड़ रुपए

23-Nov-2024 By गुरविंदर सिंह
बेंगलुरु

Posted 13 Nov 2020

छुट्टियों में पुड्‌डुचेरी की एक ट्रिप ने बेंगलुरु के दो कॉलेज छात्रों का जीवन बदल दिया. वे लौटे और उन्होंने बाइक रेंटल कंपनी की शुरुआत की. यह कर्नाटक की पहली ऐसी कंपनी थी. यह एक ऐसी सफलता थी, जो उन्होंने राज्य के परिवहन विभाग से तमाम जरूरी मंजूरियां लेकर हासिल की.


अभिषेक चंद्रशेखर और आकाश सुरेश ने साल 2015 में जब अपना बाइक रेंटल स्टार्ट-अप 'रॉयल ब्रदर्स' शुरू किया, तब दोनों की उम्र महज 22 साल थी. यह शुरुआत उन्होंने 5 रॉयल एनफील्ड क्लासिक 350 क्रूजर बाइक से की थी. उस समय उनके पास बेंगलुरु में 800 वर्ग फुट का एक ऑफिस और 100 वर्ग फुट का एक गैरेज था.


(बाएं से दाएं) रॉयल ब्रदर्स के सह-संस्थापक आकाश सुरेश, अभिषेक चंद्रशेखर और कुलदीप पुरोहित.


महज दो कर्मचारियों, जो वे दोनों खुद थे, से शुरू हुई कंपनी ने इस साल 7.5 करोड़ रुपए का टर्नओवर हासिल किया है और अब कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल, गुजरात, तेलंगाना और राजस्थान के 25 शहरों में इसकी मौजूदगी है.

फिलहाल उनके बेड़े में 2000 बाइक है. इनमें महंगी बीएमडब्ल्यू (प्रत्येक की कीमत 4.5 लाख रुपए) और हार्ले डेविडसन (प्रत्येक की कीमत 7 लाख रुपए) बाइक भी शामिल हैं. उनकी टीम में अब 90 कर्मचारी हैं.

शुरुआत हालांकि साधारण थी. दोनों दोस्तों को अपना स्टार्ट-अप लॉन्च करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा. कर्नाटक में इस क्षेत्र में दोनों पहले ऐसे व्यक्ति थे, जो यह काम कर रहे थे. टू-व्हीलर रेंटल सर्विस के लिए उस समय कर्नाटक में लाइसेंस उपलब्ध नहीं था. इसलिए दोनों को शुरू से शुरुआत करनी पड़ी.

आकाश याद करते हैं, "हमने राज्य के ट्रांसपोर्ट सेक्रेटरी से मिलने की हिम्मत जुटाई और उनसे अपने प्रोजेक्ट के बारे में बात की. हमने उन्हें विस्तार से बताया कि इस सेवा से न केवल यात्रियों को सुविधा होगी, बल्कि सरकार को भी राजस्व मिलेगा. हमें उनकी प्रतिक्रिया को लेकर थोड़ा संदेह था, लेकिन संयोग से वे मददगार निकले.''

उस समय दोनों बेंगलुरु के आरवी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में पढ़ाई कर रहे थे और से ग्रैजुएशन के तीसरे साल में थे. अभिषेक मेकेनिकल इंजीनियरिंग और आकाश कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई कर रहे थे.


रॉयल ब्रदर्स के पास 25 शहरों में 2,000 मोटरबाइक का बेड़ा है.


दरअसल, दोनों को बाइक रेंटल सर्विस शुरू करने का आइडिया पुड्‌डुचेरी से आया था. वे वहां घूमने के लिए एक मोटरबाइक किराए पर लेना चाहते थे.

अभिषेक कहते हैं, "हमें एक व्यक्ति मिल गया, जिसने हमें बाइक दे दी. लेकिन उस बाइक के कोई दस्तावेज नहीं थे. उस व्यक्ति ने हमसे कहा कि रास्ते में यदि पुलिस पकड़ ले तो हम उसे फोन कर दें. बाकी सब वह देख लेगा. उस व्यक्ति ने उन्हें कोई रसीद भी नहीं दी थी.''

अभिषेक के मुताबिक, "बेंगलुरु लौटकर हमने बाइक रेंटल के लिए रिसर्च की. आश्चर्यजनक रूप से हमें मालूम पड़ा कि कर्नाटक में ऐसी एक भी कंपनी नहीं थी जो टू-व्हीलर किराए पर देती हो. हमें तत्काल बिजनेस का अवसर नजर आया. हमने तय किया कि हम यही काम करेंगे.''

अभिषेक कहते हैं, "कॉलेज की पढ़ाई खत्म होने के तुरंत बाद मई 2015 में हमने रॉयल ब्रदर्स की शुरुआत कर दी. हम कभी किसी कैंपस प्लेसमेंट में नहीं बैठे, क्योंकि हम हमेशा से उद्यमी बनना चाहते थे. हमने संचालन शुरू किए बगैर स्टार्ट-अप लॉन्च कर दिया था, क्योंकि लाइसेंस आना अभी बाकी था. हम यह नहीं जानते थे कि लाइसेंस आने में कितना समय लगेगा, लेकिन हम पूरी तरह से आश्वस्त थे कि आइडिया सफल होगा.''


अभिषेक चंद्रशेखर ने बेंगलुरु के आरवी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है.


दोनों ने रॉयल बाइसन ऑटोरेंटल्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में 7.5 लाख रुपए का निवेश किया. फंड का इंतजाम उन्होंने अपने परिवारों से किया. जुलाई में उन्हें राज्य सरकार से अनुमति मिल गई और उन्होंने संचालन शुरू कर दिया.

अभिषेक कहते हैं, "हमने बिना किसी स्टाफ के काम शुरू किया था. शुरुआत में हम खुद वाहनों को साफ करते थे और डिलीवरी भी खुद ही देते थे. दस्तावेज भी हम ही लेते थे. ग्राहक सेवा लेने के लिए अपने लाइसेंस और अन्य दस्तावेज जैसे आईडी प्रूफ अपलोड कर देते थे.''

बाइक किराए से लेने का शुल्क 50 रुपए प्रति घंटा तय था. बाइक कम से कम 10 घंटे और अधिकतम 30 दिन के लिए किराए पर ली जा सकती थी. पेट्रोल ग्राहक को ही भरवाना होता है. कंपनी कोई सिक्योरिटी डिपॉजिट नहीं लेती.

राज्य में अपनी तरह का पहला स्टार्ट-अप होने से शुरुआती दिनों में उन्हें अच्छा मीडिया कवरेज मिला. इससे उन्हें अधिक बिजनेस मिला. अभिषेक कहते हैं, "हमने उसी साल अक्टूबर में बिना गियर वाली 10 स्कूटी और खरीदी, लेकिन मांग बढ़ती जा रही थी और हमारे पास अधिक वाहन खरीदने के लिए संसाधन नहीं थे.'' इस तरह उन्होंने तय किया कि वे लोगों से भी उनकी बाइक किराए पर लेंगे.

अभिषेक बताते हैं कि बाइक के मालिक को किराए की 70 प्रतिशत राशि मिलती थी. शेष राशि हम कंपनी के हिस्से के रूप में रख लेते थे.

आकाश सुरेश ने बेंगलुरु के आरवी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की है.


जनवरी 2016 में, उन्होंने मैंगलुरु में एक बाइक डीलर को पहली फ्रैंचाइजी दी. रॉयल ब्रदर्स का संचालन शुरू हाेने के तीन महीने बाद जुड़े कंपनी के तीसरे सह-संस्थापक 32 वर्षीय कुलदीप पुरोहित कहते हैं, "हमने उनसे 50 हजार रुपए लिए. समझौता यह हुआ कि किराए की 80 प्रतिशत राशि वह रखेगा और 20 प्रतिशत हिस्सा हमें देगा.''

2018 तक तीनों के पास करीब 300 बाइक हो चुकी थी. उनका कामकाज कर्नाटक के 8 शहरों में फैल चुका था. जल्द ही उन्होंने आंध्र प्रदेश, केरल और तेलंगाना तक विस्तार किया.

कंपनी कोविड काल के पहले तक अच्छा काम कर रही थी. कोविड के चलते उनका कामकाज प्रभावित हुआ. इसके चलते उन्हें अपने बिजनेस में नया आयाम जोड़ने का दबाव पड़ा. यह था- बाइक लंबे समय के लिए किराए पर देना.

आकाश कहते हैं, "मासिक किराए का शुल्क करीब 3000 रुपए प्रति महीना है. यह योजना कारगर साबित हुई है क्योंकि लोग सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने के लिए सार्वजनिक वाहनों के बदले बाइक पसंद कर रहे हैं.''

आज, फ्रैंचाइजी का शुल्क 3 से 5 लाख रुपए के बीच है. यह शहर के आकार और बिजनेस की संभावना पर निर्भर करता है.

रॉयल ब्रदर्स के तीसरे सह-संस्थापक कुलदीप पुरोहित कंपनी से लॉन्चिंग के तीन महीने बाद जुड़े.


बिजनेस के जोिखम के बारे में अभिषेक बताते हैं, "हमने अपनी बाइक्स में जीपीएस लगाए हैं. सभी बाइक्स का बीमा भी है. अब तक हमारी तीन बाइक्स चोरी हो चुकी हैं.''

...तो बिजनेस में उन्होंने किन चुनौतियों का सामना किया और नए उद्यमियों को उनकी क्या सलाह है? इस पर अभिषेक कहते हैं, "हमने कई चुनौतियों का सामना किया. शुरुआत में बैंकें हमें लोन देने के लिए तैयार नहीं थीं. लेकिन हमने कभी हिम्मत नहीं हारी. उद्यमियों में सफल होने की सशक्त इच्छाशक्ति होनी चाहिए और राह अपने आप खुलती जाती है.''

 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Success of Hatti Kaapi

    बेंगलुरु का ‘कॉफ़ी किंग’

    टाटा कॉफ़ी से नया ऑर्डर पाने के लिए यूएस महेंदर लगातार कंपनी के मार्केटिंग मैनेजर से मिलने की कोशिश कर रहे थे. एक दिन मैनेजर ने उन्हें धक्के मारकर निकलवा दिया. लेकिन महेंदर अगले दिन फिर दफ़्तर के बाहर खड़े हो गए. आखिर मैनेजर ने उन्हें एक मौक़ा दिया. यह है कभी हार न मानने वाले हट्टी कापी के संस्थापक यूएस महेंदर की कहानी. बता रही हैं बेंगलुरु से उषा प्रसाद.
  • Success story of anti-virus software Quick Heal founders

    भारत का एंटी-वायरस किंग

    एक वक्त था जब कैलाश काटकर कैलकुलेटर सुधारा करते थे. फिर उन्होंने कंप्यूटर की मरम्मत करना सीखा. उसके बाद अपने भाई संजय की मदद से एक ऐसी एंटी-वायरस कंपनी खड़ी की, जिसका भारत के 30 प्रतिशत बाज़ार पर कब्ज़ा है और वह आज 80 से अधिक देशों में मौजूद है. पुणे में प्राची बारी से सुनिए क्विक हील एंटी-वायरस के बनने की कहानी.
  • Vada story mumbai

    'भाई का वड़ा सबसे बड़ा'

    मुंबई के युवा अक्षय राणे और धनश्री घरत ने 2016 में छोटी सी दुकान से वड़ा पाव और पाव भाजी की दुकान शुरू की. जल्द ही उनके चटकारेदार स्वाद वाले फ्यूजन वड़ा पाव इतने मशहूर हुए कि देशभर में 34 आउटलेट्स खुल गए. अब वे 16 फ्लेवर वाले वड़ा पाव बनाते हैं. मध्यम वर्गीय परिवार से नाता रखने वाले दोनों युवा अब मर्सिडीज सी 200 कार में घूमते हैं. अक्षय और धनश्री की सफलता का राज बता रहे हैं बिलाल खान
  • Metamorphose of Nalli silks by a young woman

    सिल्क टाइकून

    पीढ़ियों से चल रहे नल्ली सिल्क के बिज़नेस के बारे में धारणा थी कि स्टोर में सिर्फ़ शादियों की साड़ियां ही मिलती हैं, लेकिन नई पीढ़ी की लावण्या ने युवा महिलाओं को ध्यान में रख नल्ली नेक्स्ट की शुरुआत कर इसे नया मोड़ दे दिया. बेंगलुरु से उषा प्रसाद बता रही हैं नल्ली सिल्क्स के कायापलट की कहानी.
  • The Yellow Straw story

    दो साल में एक करोड़ का बिज़नेस

    पीयूष और विक्रम ने दो साल पहले जूस की दुकान शुरू की. कई लोगों ने कहा कोलकाता में यह नहीं चलेगी, लेकिन उन्हें अपने आइडिया पर भरोसा था. दो साल में उनके छह आउटलेट पर हर दिन 600 गिलास जूस बेचा जा रहा है और उनका सालाना कारोबार क़रीब एक करोड़ रुपए का है. कोलकाता से जी सिंह की रिपोर्ट.