Milky Mist

Tuesday, 20 May 2025

तंग घर, तंगहाल दिन; इच्छाशक्ति के बलबूते बनाया 5 करोड़ सालाना का ग्लास बिजनेस

20-May-2025 By गुरविंदर सिंह
कोलकाता

Posted 16 May 2021

मध्यम वर्गीय संघर्षशील परिवार में जन्मे मोहम्मद शादान सिद्दिक को ग्लास के बिजनेस में सफलता और दौलत दोनों मिलीं. आज 33 वर्षीय शादान की 5 करोड़ रुपए टर्नओवर वाली कंपनी है.

उनकी कंपनी ग्लास्टो इंडिया प्राइवेट लिमिटेड का मुख्यालय कोलकाता में है. यह कंपनी डिजाइनर और सेफ्टी ग्लास समेत विभिन्न प्रकार के ग्लास बनाती है. कोलकाता में इनके तीन शोरूम हैं, जहां वे अपने प्रोडक्ट बेचते हैं.
मोहम्मद शादान सिद्दिक ने 2016 में कोलकाता में डेकोरेटिव और सेफ्टी ग्लासेस का शोरूम शुरू किया था. उन्होंने इसे 5 करोड़ रुपए टर्नओवर वाली कंपनी बना दिया. (सभी फोटो : विशेष व्यवस्था से)

सात भाई-बहनों के साथ कोलकाता की रिपॉन स्ट्रीट के 200 वर्ग फुट के घर में पले-बढ़े शादान कहते हैं, “हम 300 से अधिक प्रकार के ग्लासेस और मिरर बेचते हैं. हम एल.ई.डी. ग्लासेस, विनीशियन, लैकर्ड, एंटीक और कॉन्कैव मिरर बेचते हैं. हमारे प्रोडक्ट की लागत 3,000 रुपए से 2 लाख रुपए के बीच है.”

वे जब कक्षा 12 में थे, तभी उन्होंने अपने पिता को खो दिया था. चार साल बाद ही एक बड़े भाई को भी खो दिया. वे जापान में नौकरी करते थे और परिवार को आर्थिक मदद भी करते थे.

शादान ने जिस तरह ये आघात सहे और युवा उद्यमी बनने के लिए छोटे-छोटे काम किए, वह जीवन में मुश्किल परिस्थितियों का सामना कर रहे किसी भी व्यक्ति प्रेरित कर सकता है.

उनके पिता की शहर में छोटी किराना दुकान थी, लेकिन इससे होने वाली कमाई से उनके चार भाइयों और तीन बहनों के परिवार का गुजारा बमुश्किल चल पाता था. शादान माता-पिता की छठी संतान थे.

शादान कहते हैं, “हम 200 वर्ग फुट के कमरे में रहते थे, जिससे टॉयलेट और किचन जुड़े हुए थे. पास में मेरे पिता की किराना दुकान थी. उनकी कमाई बहुत ज्यादा नहीं थी, लेकिन वे अपने सभी बच्चों को अच्छा शिक्षा देना चाहते थे. इसलिए उन्होंने हम सबको अंग्रेजी मीडियम के कॉन्वेंट स्कूल में दाखिल करवा दिया था. हमारी शिक्षा के लिए पैसे जुटाने के लिए वे घंटों मेहनत करते थे.”

शादान तेज बुद्धि वाले छात्र थे. उनके पिता को उन्हीं पर भरोसा था. पिता चाहते थे कि वे चिकित्सा पेशा अपनाकर डॉक्टर बनें.
अपने ग्लास एम्पोरियम में शादान.

शादान याद करते हैं, “मुझे भी यह पेशा पसंद था. इसलिए मैंने 2004 में कोलकाता के सेंट पॉल कॉलेज से 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करने का निर्णय लिया.”

लेकिन परिवार को उस समय त्रासदी ने आ घेरा, जब मई 2004 में उनके पिता की कार्डिएक अरेस्ट से मौत हो गई.

शादान कहते हैं, “वह जीवन का पीड़ादायी समय था. मैं अपने पिता के लिए कुछ करना चाहता था और उन्हें मेरी सफलता बताना चाहता था. लेकिन वे इसे देखने के लिए जीवित ही नहीं रहे. मैं टूट गया था. लेकिन मैंने हार नहीं मानी और अगले दो साल तक लगातार प्रवेश परीक्षाएं देता रहा.”

2006 में उन्होंने अंतत: टेक्नो इंडिया यूनिवर्सिटी में प्रोडक्शन इंजीनियरिंग में दाखिला लिया. यह शहर का एक प्रतिष्ठित कॉलेज था.

उनके तीसरे नंबर के भाई मोहम्मद शदाबुद्दीन और एक बड़ी बहन मिलकर किराना दुकान संभालने लगे. उनके एक अन्य बड़े भाई मोहम्मद आजाद की जापान की एक निजी कंपनी में नौकरी लग गई और वे भी परिवार की मदद करने लगे.

शादान कहते हैं, “जापान से बड़े भाई परिवार के खर्च के लिए हर महीने 50 हजार रुपए भेजते थे. वे मेरी कॉलेज की फीस भी भरते थे.” लेकिन उनकी आमदनी से परिवार को होने वाली मदद स्थायी नहीं रह सकी. मोहम्मद आजाद की भी 2008 में कार्डिएक अरेस्ट से जापान में मौत हो गई. वे उस समय महज 28 साल के थे.

अपने मृत भाई की बचत से पढ़ाई पूरी करने वाले शादान कहते हैं, “उनकी मौत से परिवार को भावनात्मक आघात लगा, जो अभी पिता को खोने के बाद उबर भी नहीं पाया था.”

2010 में उनका मल्टीनेशनल ऑइल प्रोडक्शन कंपनी में कैंपस प्लेसमेंट हो गया और वे असम के गुवाहाटी चले गए.

वे कहते हैं, “मुझे 15 हजार रुपए महीना सैलरी पर प्रोडक्शन मैनेजर पद पर रखा गया. तीन साल बाद जब मैंने नौकरी छोड़ने का निर्णय लिया, तब मेरी सैलरी 40 हजार रुपए हो चुकी थी. मैं अपना खुद का कुछ करना चाहता था. 2013 में मैंने इस्तीफा सौंपा और कोलकाता लौट आया.”

उनके सबसे छोटे भाई मोहम्मद दानिश सिद्दिक ने परिवार की किराना दुकान बंद कर दी और ग्लास व मिरर शॉप खोल ली.

ग्लास बिजनेस में दाखिल होने के बारे में शादान कहते हैं, “मुझे अपनी भविष्य की योजना के बारे में अभी निर्णय लेना बाकी था और विभिन्न विकल्प तलाश रहा था. मैंने मार्केटिंग में एम.बी.ए. करना तय किया और कोलकाता के गोयनका कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में प्रवेश ले लिया.
अपने भाई को दुकान में काम करते देख शादान का झुकाव ग्लास बिजनेस की तरफ हुआ.

“उन दिनों, मैं अपने भाई दानिश को उसकी दुकान में काम करते हुए देखता था. धीरे-धीरे, इस बिजनेस में मेरी दिलचस्पी बढ़ने लगी.

“मैंने पाया कि साधारण ग्लास और मिरर तो बहुत से लोग बना रहे थे, लेकिन कोलकाता ही नहीं, पूरे पूर्वी भारत में कोई भी डेकोरेटिव और सेफ्टी ग्लास का कारोबार नहीं कर रहा था. मुझे इसमें बिजनेस का विकल्प दिखाई दिया. मैंने एम.बी.ए. करने के दौरान डेकोरेटिव ग्लास पर अपनी रिसर्च जारी रखी.”

2015 में कोर्स पूरा करने के बाद, उन्होंने फरवरी 2016 में रिपॉन स्ट्रीट में अपने घर के नजदीक 100 वर्ग फुट की छोटी डिजाइनर ग्लास और मिरर शॉप शुरू की.

“मैंने 3 लाख रुपए के निवेश से तीन साझेदारों के साथ मिलकर दुकान शुरू की थी. मैंने अपनी बचत से कुछ पैसे इसमें निवेश किए थे. हम दुकान का 15 हजार रुपए महीना किराया चुकाते थे और एल.ई.डी. मिरर, मॉडर्न मिरर, डेकाेरेटिव ग्लास, विनीशियन मिरर, इचिंग ग्लास, ग्लास वॉल पैनल, डेकोरेटिव लैकर्ड ग्लास और फ्लोट अनील्ड ग्लास बेचते थे.”

उन्हें उम्मीद थी कि दुकान पहले दिन से बहुत सफल रहेगी, लेकिन उनकी योजना धराशायी हो गई. पहले छह महीने कोई बिक्री नहीं हुई.

बिजनेस के शुरुआती दिनों में आई चुनौतियों से शादान गंभीर चिंता में पड़ गए थे. वे कहते हैं, “हमें बमुश्किल कोई ऑर्डर मिल रहे थे. मैंने यह सोचना शुरू कर दिया कि कहीं मैंने गलत निर्णय तो नहीं ले लिया. हम जो ग्लास बेच रहे थे, वे सामान्य ग्लास के मुकाबले 20 से 30 गुना महंगे थे. वह निराश करने वाला समय था.”

लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने अमेजन और अन्य ऑनलाइन पोर्टल पर अपनी कंपनी को जोड़ना शुरू कर दिया. जल्द, उनके पास ऑर्डर उमड़ने लगे. उन्हें कोलकाता ही नहीं, देश के अन्य हिस्सों से भी ऑर्डर मिलने लगे.

शादान कहते हैं, “अपने प्रोडक्ट भेजते समय हम सभी जरूरी सावधानियां रखते थे. ग्लास को लकड़ी के बॉक्स के भीतर पर्याप्त सहारे के साथ रखा जाता था, ताकि कोई टूट-फूट न हो.”

पहले साल (2016-17) में उन्होंने 30 लाख रुपए का टर्नओवर हासिल किया. शादान कहते हैं, “जब हमने शुरुआत की थी, तब हम मैन्यूफैक्चरिंग बाहर से करवाते थे, लेकिन अगले ही साल हमने कोलकाता के बाहरी इलाके में अपनी यूनिट शुरू कर दी. इसके साथ ही शहर में अपना दूसरा शोरूम शुरू कर दिया.”
शादान की योजना अगले तीन साल में 50 फ्रैंचाइजी शोरूम शुरू करने की है.

2018 में कंपनी प्राइवेट लिमिटेड में तब्दील हो गई. अब उनके कोलकाता में तीन शोरूम हैं. उनके कोलकाता मेट्रो, पतंजलि, सिफी और बजाज जैसे कई बड़े क्लाइंट हैं.

कंपनी के पास 20 नियमित कर्मचारी हैं और अन्य 80 कॉन्ट्रेक्ट पर. शादान की योजना अगले तीन साल में 50 फ्रैंचाइजी शोरूम शुरू करने की है.

नए उद्यमियों को वे सलाह देते हैं : यह स्पष्टता होना चाहिए कि आप बिजनेस में क्या करना चाहते हैं. पैसे से पैसा नहीं बनता, लेकिन यह काबिलियत से संभव है.
 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Bikash Chowdhury story

    तंगहाली से कॉर्पोरेट ऊंचाइयों तक

    बिकाश चौधरी के पिता लॉन्ड्री मैन थे और वो ख़ुद उभरते फ़ुटबॉलर. पिता के एक ग्राहक पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर थे. उनकी मदद की बदौलत बिकाश एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी में ऊंचे पद पर हैं. मुंबई से सोमा बैनर्जी बता रही हैं कौन है वो पूर्व क्रिकेटर.
  • Once his family depends upon leftover food, now he owns 100 crore turnover company

    एक रात की हिम्मत ने बदली क़िस्मत

    बचपन में वो इतने ग़रीब थे कि उनका परिवार दूसरों के बचे-खुचे खाने पर निर्भर था, लेकिन उनका सपना बड़ा था. एक दिन वो गांव छोड़कर चेन्नई आ गए. रेलवे स्टेशन पर रातें गुजारीं. आज उनका 100 करोड़ रुपए का कारोबार है. चेन्नई से पी.सी. विनोज कुमार बता रहे हैं वी.के.टी. बालन की सफलता की कहानी
  • thyrocare founder dr a velumani success story in hindi

    घोर ग़रीबी से करोड़ों का सफ़र

    वेलुमणि ग़रीब किसान परिवार से थे, लेकिन उन्होंने उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ा, चाहे वो ग़रीबी के दिन हों जब घर में खाने को नहीं होता था या फिर जब उन्हें अनुभव नहीं होने के कारण कोई नौकरी नहीं दे रहा था. मुंबई में पीसी विनोज कुमार मिलवा रहे हैं ए वेलुमणि से, जिन्होंने थायरोकेयर की स्थापना की.
  • Success story of anti-virus software Quick Heal founders

    भारत का एंटी-वायरस किंग

    एक वक्त था जब कैलाश काटकर कैलकुलेटर सुधारा करते थे. फिर उन्होंने कंप्यूटर की मरम्मत करना सीखा. उसके बाद अपने भाई संजय की मदद से एक ऐसी एंटी-वायरस कंपनी खड़ी की, जिसका भारत के 30 प्रतिशत बाज़ार पर कब्ज़ा है और वह आज 80 से अधिक देशों में मौजूद है. पुणे में प्राची बारी से सुनिए क्विक हील एंटी-वायरस के बनने की कहानी.
  • How Two MBA Graduates Started Up A Successful Company

    दो का दम

    रोहित और विक्रम की मुलाक़ात एमबीए करते वक्त हुई. मिलते ही लगा कि दोनों में कुछ एक जैसा है – और वो था अपना काम शुरू करने की सोच. उन्होंने ऐसा ही किया. दोनों ने अपनी नौकरियां छोड़कर एक कंपनी बनाई जो उनके सपनों को साकार कर रही है. पेश है गुरविंदर सिंह की रिपोर्ट.