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Thursday, 13 November 2025

किसानों की आत्महत्याओं से पसीजा सॉफ्टवेयर इंजीनियर अमेरिका छोड़ कर्नाटक लौटा, जैविक खेती को बढ़ावा दिया, 25 करोड़ टर्नओवर वाली रिटेल चेन बनाई

13-Nov-2025 By बिलाल खान
मांड्या (कर्नाटक)

Posted 02 Sep 2021

जब आदर्शवाद से जन्मा व्यावसायिक काम समुदाय की मदद करने की इच्छा के साथ सफल हो जाता है, तो यह गुजरात में अमूल की कहानी की तरह जन आंदोलन का रूप ले लेता है.

कर्नाटक के सॉफ्टवेयर इंजीनियर मधु चंदन अमेरिका में फलता-फूलता बिजनेस छोड़कर भारत लौट आए और जैविक खेती करने लगे. इसके जरिए उन्होंने मांड्या जिले के सैकड़ों किसानों का जीवन बदल दिया है.

मधु चंदन ने पहला ऑर्गेनिक मांड्या स्टोर 2015 में शुरू किया था. आज यह आठ स्टोर के साथ 25 करोड़ रुपए की टर्नओवर वाली ऑर्गेनिक रिटेल चेन बन गया है. (फोटो: विशेष व्यवस्था से)  

किसानों से कृषि उत्पादों को खरीदना और उन्हें ‘ऑर्गेनिक मांड्या' स्टोर्स में बेचकर मधु ने न केवल किसानों को सीधा बाजार उपलब्ध कराया, बल्कि 25 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाली ऑर्गेनिक रिटेल चेन भी बनाई. इसकी शुरुआत उन्होंने 2015 में मांड्या के बेंगलुरु-मैसुरु राजमार्ग पर पहला स्टोर खाेलकर की थी.

मधु कहते हैं, “अब हमारे आठ ऑर्गेनिक मांड्या स्टोर हैं; इनमें से छह बेंगलुरु में हैं और दो बेंगलुरु-मैसुरु राजमार्ग पर हैं.” स्टोर पर सब्जियां, अनाज, दालें और कई अन्य उत्पाद बेचे जाते हैं.

मधु कहते हैं, “हमारे सबसे लोकप्रिय उत्पाद घी, मक्खन, गुड़ पाउडर, कोल्ड प्रेस्ड नारियल तेल और राजमुडी चावल हैं. स्टोर का आकार 1000 वर्ग फुट से 4000 वर्ग फुट तक है.” मधु ने भारत लौटने का फैसला ऐसे समय किया था, जब कर्नाटक में बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे थे.

1 अप्रैल से 29 जुलाई 2015 के बीच राज्य में हुई कुल 197 आत्महत्याओं में से अकेले मांड्या जिले में 29 किसानों की आत्महत्याएं दर्ज की गई थीं. पूरे राज्य में सिर्फ इसी जिले में सबसे ज्यादा आत्महत्या हुई थीं.

लगातार हो रही आत्महत्याओं और किसानों की बुरी दुर्दशा ने मधु को परेशान कर दिया. वे मांड्या जिले के एक किसान परिवार से ही ताल्लुक रखते थे.

उनके पिता बेंगलुरु के कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय में कुलपति रहे. इसीलिए परिवार का कृषि से जुड़ाव जारी रहा. उनकी मां एक गृहिणी थीं.

मधु ने मांड्या जिले के किसानों से बातचीत की और उन्हें जैविक खेती के फायदे बताए.

मधु ने स्कूली पढ़ाई बेंगलुरु के यूएएस कैंपस स्कूल से की और मैसूर विश्वविद्यालय के पीईटी इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार इंजीनियरिंग में ग्रैजुएशन किया.

उन्होंने 2000 में बेंगलुरु की रेलक्यू सॉफ्टवेयर के साथ करियर शुरू किया. वे 2002 में यूके गए और सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में विभिन्न कंपनियों में काम किया. उनका काम उन्हें इजराइल, फिलीपींस और अमेरिका जैसे विभिन्न देशों में ले गया.

2005 में उन्होंने अमेरिका के सैन जोस में वेरिफाया कॉर्पोरेशन नामक कंपनी की सह-स्थापना की. उन्होंने मोबाइल की टेस्टिंग और विंडोज एप्लीकेशंस के लिए एक ऐसा प्रोडक्ट बनाया, जो अब दुनिया भर के कॉर्पोरेट्स उपयोग करते हैं.

मधु कहते हैं, “मैं लाखों रुपए कमा रहा था और अच्छा जीवन जी रहा था. मेरे पास वो सब कुछ था, जो मैं चाहता था. हालांकि मैं अपने जिले (मांड्या) के लोगों को देखकर खुश नहीं था. वहां मेरे दादा एक किसान थे और संघर्ष कर रहे थे. मैं उनकी मदद करना चाहता था.”

वेरिफाया का बेंगलुरु में अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) कार्यालय था. वे अक्सर अमेरिका से शहर के दौरे पर आते रहते थे. शहर में आने-जाने के लिए वे ऑटो की सेवा लेते थे या सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करते थे.

इन यात्राओं के दौरान ही उन्होंने देखा कि बेंगलुरु में कई ड्राइवर, वैट्रस और अन्य मांड्या से थे और इस तरह का छोटा-मोटा काम कर रहे थे. ये सब किसानों के बेटे और बेटियां थे.

मधु बताते हैं, “वे शहर चले आए थे क्योंकि उन्हें खेती में कोई उम्मीद नहीं दिखाई दी थी. मुझे लगा कि मुझे अपने जिले के लोगों के लिए कुछ करना चाहिए. मुझे पता था कि किसान गलत तरीके से खेती कर रहे थे और इसीलिए उन्हें नुकसान हुआ था.”

किसान जिन रसायनों और कीटनाशकों का उपयोग कर रहे थे, वे खेती के खर्चों को बढ़ा रहे थे. यह खेत की जमीन के लिए खतरनाक था और इनमें उगने वाला अन्न भी स्वास्थ्यकारी नहीं था.

चूंकि लागत अधिक ही बनी रही, इस कारण कई किसान कर्ज लेकर जैसे-तैसे खेती करते रहे. ऐसे में मुनाफा होना मुश्किल था. जब किसानों को फसलों की सही कीमत नहीं मिलती थी, तो उन्हें नुकसान होता था और कर्ज चुकाने के दबाव में आत्महत्या के लिए मजबूर होते थे.

मधु के आठ ऑर्गेनिक मांड्या स्टोर में करीब 60 लोग काम करते हैं.

जब मधु ने मांड्या में किसानों की मदद करने की योजना के बारे में अपनी पत्नी अर्चना को बताया तो उन्होंने उनके फैसले का समर्थन किया.

आखिरकार 2014 में मधु भारत लौट आए. मांड्या में किसानों के साथ बातचीत करने और उन्हें जैविक खेती के लाभों को समझाने के बाद उसी साल उन्होंने मांड्या जैविक किसान सहकारी समिति (Mandya Organic Farmers Cooperative Society) की स्थापना की.

मधु कहते हैं, “शुरुआत में किसी ने मुझ पर विश्वास नहीं किया. हालांकि, मैंने सबको दिखाने के लिए एक एकड़ खेत में जैविक खेती शुरू कर दी थी. जब किसानों ने नतीजे देखे और स्वास्थ्य व कृषि भूमि के लिए जैविक खेती के लाभों को समझा, तो उन्होंने भी इसे चुनना शुरू कर दिया.”

“हालांकि, यह उतना आसान नहीं था, जितना लगता है. जब कुछ किसानों ने जैविक खेती की ओर रुख किया, तो वे बुरी तरह विफल रहे.”

लेकिन मधु लगे रहे और टिकाऊ मॉडल विकसित करने के लिए रणनीतियों को अपनाते रहे. इसी के तहत उन्होंने पूरे खेत को एक ही बार में जैविक खेती करने के बजाय किसानों को धीरे-धीरे बदलाव के लिए प्रोत्साहित किया. और धीरे-धीरे जैविक खेती के तहत क्षेत्र बढ़ने लगा.

मधु कहते हैं, “हम अकार्बनिक खेती को छोड़कर अचानक जैविक खेती नहीं कर सकते. जिस मिट्टी में सालों से रसायनों और कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता रहा है, उस मिट्टी के संघटन को बदलने में दो से तीन साल का समय लगता है.

अगली चुनौती जैविक उत्पादों के लिए बाजार तलाशने की थी. 2015 में, मधु ने ऑर्गेनिक मांड्या की शुरुआत की. यह एक ऐसा स्टोर था, जहां किसानों से खरीदे गए जैविक उत्पादों को बेचा जाता था.

मधु ने जैविक उत्पादों के लिए किसानों को अधिक कीमत चुकाई क्योंकि जैविक विधि से उगाई गई उपज रासायनिक रूप से उगने वाली फसलों के मुकाबले कई गुना कम थी.


बेंगलुरु-मैसूर हाईवे पर सबसे बड़े ऑर्गेनिक मांड्या स्टोर में से एक स्टोर.

इसके परिणाम स्वरूप, जैविक मांड्या स्टोर पर उत्पादों की कीमत अन्य स्टोर की तुलना में अधिक थी, लेकिन जैविक उत्पादों में रुचि रखने वाले उपभोक्ता अधिक राशि चुकाने के लिए तैयार थे.

मधु के पास 10,000 वर्ग फुट का एक गोदाम भी है, जहां किसानों द्वारा उगाए गए खाद्य पदार्थों को खरीदा जाता है और फिर दुकानों में बेचने के लिए विभिन्न उत्पादों में प्रसंस्कृत किया जाता है.

मांड्या के लगभग 1200 किसान वर्तमान में मांड्या जैविक किसान सहकारी समिति के तहत जैविक खेती कर रहे हैं. जिले के लगभग 60 लोग गोदाम में काम करते हैं और अन्य 60 स्टोर में कार्यरत हैं.

मधु कहते हैं, “मैंने कुछ दोस्तों से उधार लेकर 1 करोड़ रुपए के निवेश से अपना पहला स्टोर शुरू किया था. इसके बाद से बिक्री बढ़ रही है. पिछले वित्त वर्ष में टर्नओवर 25 करोड़ रुपए से अधिक रहा.”

मधु का मानना ​​है कि समय आ गया है कि लोग प्रकृति के साथ तालमेल बैठाकर स्वस्थ और खुशहाल जीवन जीने की दिशा में काम करें. वे एक दिन पूरे मांड्या को जैविक खेती वाला जिला बनाने और खेती को सम्मानजनक पेशा बनाने का सपना देखते हैं.

ऑर्गेनिक मांड्या किसानों से खरीदे जाने वाले जैविक उत्पादों के लिए अधिक कीमत चुकाती है.  

मधु का मानना ​​​​है कि खेती से सिर्फ 10,000 रुपए कमाने वाला किसान बड़े शहर में एक लाख रुपए कमाने वाले इंजीनियर की तुलना में अधिक खुश, स्वस्थ और शांत दिमाग वाला होता है.

वे कहते हैं, “हम प्रभावशाली करियर, महंगे और बड़े घरों में रहने के सपने देखकर अपने जीवन को जटिल बना लेते हैं. इसके लिए हम अधिक से अधिक मेहनत करते हैं, जिससे खुशी और मन की शांति खो जाती है.”

मधु और अर्चना की 18 वर्ष एक बेटी अदिति है.

 

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