Milky Mist

Tuesday, 9 December 2025

अमेरिका में इंटेल की अच्छी-खासी नौकरी छोड़ भारत लौटे, 1 करोड़ के निवेश से 44 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाला डेयरी ब्रांड बनाया

09-Dec-2025 By सोफिया दानिश खान
हैदराबाद

Posted 08 Sep 2021

32 साल की उम्र, आईआईटी ग्रैजुएट, यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स से मास्टर्स और डॉक्टरेट की डिग्री, अमेरिका में इंटेल जैसी बड़ी कंपनी में छह साल काम का अनुभव और इस बीच भारत आकर गाय पालन! ऊंची डिग्री और शानदार कॅरियर के बाद यह काम बहुत छोटा लग सकता है, लेकिन किशोर इंदुकुरी ने यही किया. इंटेल की नौकरी छोड़ वे भारत लौटे और शमशाबाद में हैदराबाद अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्‌डे के पास लीज पर लिए फार्म पर 20 गायों से एक डेयरी फार्म शुरू किया.

आज उनका कारोबार सिड्स फार्म (Sid’s Farm) के रूप में विकसित हो चुका है. यह एक डेयरी ब्रांड है, जो हैदराबाद और उसके आसपास के ग्राहकों को करीब 20 हजार लीटर दूध बेचता है. इसका टर्नओवर 44 करोड़ रुपए है.

किशोर इंदुकुरी ने सिड्स फार्म सिर्फ 20 गायों और आठ कर्मचारियों के साथ शुरू किया था. (फोटो: विशेष व्यवस्था)

डेयरी उद्यमी के रूप में अपने शुरुआती दिन याद करते हुए 42 वर्षीय किशोर कहते हैं, “शुरुआत में हमने थोक बाजार में दूध 15 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से बेचा. हमें घाटा उठाना पड़ा. क्योंकि उत्पादन लागत ही करीब 30 रुपए प्रति लीटर थी.”

“इसके बाद हमने दूध सीधे ग्राहकों को बेचने का फैसला किया, जो एक कठिन काम था. लोगों से जुड़ने के लिए हम कई हाउसिंग सोसायटी और सामुदायिक केंद्रों पर गए.

“हमने मेरी पत्नी हिमा द्वारा डिजाइन किए पैम्फलेट बांटे. इसमें हमारे दूध के लाभों के बारे में बताया गया था कि उसमें कोई प्रिजर्वेटिव, एंटीबायोटिक्स, हाॅर्मोन या पानी की मिलावट नहीं थी. हम लोगों से कहते थे कि वे पहले दूध चखें. उसके बाद ऑर्डर दें.”

शुरुआत में वे दूध को स्टेनलेस स्टील की बोतलों में ले गए. ग्राहक डिलीवरी पॉइंट पर आकर दूध अपने बर्तनों में ले जाते थे.

यह व्यवस्था बहुत महंगी साबित हुई और इसलिए उन्होंने दूध को प्लास्टिक पाउच में पैक करना शुरू कर दिया.

किशोर ने जो किया, उसका आनंद लिया. कारोबार साल-दर-साल बढ़ने लगा. महज आठ लोगों से शुरू हुए इस फार्म में आज 110 लोग काम करते हैं.

गाय और भैंस के दूध के अलावा वे गाय और भैंस का घी, दही और पनीर भी बेचते हैं.

हैदराबाद से करीब 45 किमी दूर शबद में अपने फार्म में किशोर.

विदेश में पढ़े और इंटेल जैसी कंपनी में काम कर चुके किशोर ने जब नौकरी छोड़ने और भारत लौटने का फैसला किया, तब उनकी तनख्वाह करीब 50 लाख रुपए सालाना थी. किशोर के लिए पिछला दशक सबसे अधिक संतोषजनक रहा.

किशोर हैदराबाद के एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उनके पिता नरसिम्हा राजू महिंद्रा एंड महिंद्रा कंपनी में इंजीनियर थे. वहां उन्होंने सेवानिवृत्ति तक 25 साल काम किया.

उनकी मां लक्ष्मी एक गृहिणी थीं. उनके छोटा भाई अब सॉफ्टवेयर इंजीनियर है.

उन्होंने कक्षा 10 तक नालंदा विद्यालय हाई स्कूल में पढ़ाई की और 1996 में लिटिल फ्लावर जूनियर कॉलेज से 96% के साथ 12वीं की पढ़ाई पूरी की.

किशाेर ने केमेस्ट्री विषय से बीएससी आईआईटी खड़गपुर से किया. वे कहते हैं, “मध्यम वर्गीय परिवार से होने के कारण मेरे माता-पिता के लिए जीवन में अच्छा करने का एकमात्र तरीका शिक्षा ही थी. इसलिए वे मेरी पढ़ाई को लेकर बहुत सजग थे.”

बाद में, उन्होंने मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालय से पॉलिमर साइंस और इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेजुएशन और डॉक्टरेट दोनों किए.

अपने युवावस्था के दिनों के बारे में किशोर बताते हैं, “आईआईटी में सालाना शुल्क 800 रुपए था. मैसाचुसेट्स जाने के लिए मुझे पूरी छात्रवृत्ति मिली. मेरे पिता ने बस मुझे फ्लाइट का टिकट और जरूरत पड़ने पर खर्च के लिए 500 डॉलर दिए थे.”

पीएचडी पूरी करने के बाद वे चांडलर (एरिजोना) स्थित इंटेल कॉर्पोरेशन में सीनियर क्वालिटी एंड रिलायबिलिटी इंजीनियर के रूप में नौकरी करने लगे. उन्होंने इंटेल में अगस्त 2005 से तब तक काम किया, जब तक कि साल 2011 में भारत लौटने का फैसला नहीं किया.

किशोर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के करीब 1500 किसानों से दूध खरीदते हैं. शाहबाद में उनके फार्म पर करीब 100 मवेशी हैं.

इंटेल में उन्हें सीनियर प्रोसेसिंग इंजीनियर के रूप में पदोन्नत किया गया था और उनका अंतिम वेतन लगभग 4 लाख रुपए था. वे कहते हैं, “नौकरी के चलते मुझे जापान, दक्षिण कोरिया और अन्य यूरोपीय देशों में यात्रा करने का मौका मिला.”

“अमेरिका में जीवन बहुत आरामदायक हो सकता है. मैंने इंटेल ऑफिस के पास चांडलर में एक घर भी खरीद लिया था, लेकिन जीवन में कुछ कमी थी. मैं एक बड़े मौके की तलाश में था (जो मुझे नहीं मिल रहा था).

“जब मैंने भारत लौटने का फैसला किया तो मेरे बॉस ने पूछा कि मैं वास्तव में क्या करना चाहता हूं. मेरे पास कहने को कुछ नहीं था. लेकिन मेरी पत्नी इस फैसले से बहुत खुश थी.”

हैदराबाद लौटकर किशोर ने कई काम आजमाए. वे कहते हैं, “मैंने सब्जियां उगाईं और छात्रों को टोफेल (TOEFEL) और जीआरई (GRE) में सफलता हासिल करने के लिए कोचिंग दी. मैंने जितना संभव हो सके, उतनी चीजों में हाथ डाला, क्योंकि मुझे नहीं पता था कि कौन सा काम चल निकलेगा.”

फिर उन्होंने शमशाबाद में एयरपोर्ट के पास 24 एकड़ जमीन ली और डेयरी फार्मर किया. दो साल में करीब 1 करोड़ रुपए का निवेश करने वाले किशोर कहते हैं, “मैंने 20 मवेशियों के साथ शुरुआत की और 2013 तक कारोबार चल निकला. मैंने अन्य सभी काम छोड़ दिए और अपनी डेयरी पर ध्यान देना शुरू कर दिया.”

“मैंने परिवार, दोस्तों से पैसे जुटाए. अपनी बचत से पैसे भी लगाए.”

शुरुआती वर्षों में उन्होंने कंपनी को एक प्रोपराइटरशिप फर्म के रूप में चलाया. 2016 में इसे सिड्स फार्म प्राइवेट लिमिटेड के रूप में पंजीकृत करवाया.
2018 में, किशोर ने शबद में 4 एकड़ का फार्म खरीदा, जो हैदराबाद से लगभग 45 किमी दूर स्थित है.

वे कहते हैं, “फार्म खुले मैदानों के बीच स्थित है. हमारे पास धान के खेतों, कुछ आम के बगीचों और खुले खेतों के बीच आधुनिक प्रसंस्करण सुविधा और मॉडल डेयरी फार्म (100 मवेशियों के साथ) है.”

ग्राहकों को 20 हजार लीटर की रोजाना आपूर्ति बनाए रखने के लिए फार्म 1500 किसानों के नेटवर्क से दूध खरीदता है.
सिड के फार्म के उत्पादों को कड़े गुणवत्ता परीक्षण से गुजारा जाता है.  

वे कहते हैं, “हमसे दो-तीन मवेशियों से लेकर 20 या अधिक मवेशियों वाले किसान जुड़े हैं. किसानों को दूध की मात्रा और गुणवत्ता के आधार पर हर 10 दिनों में एक बार कुछ हजार से एक लाख रुपए तक का भुगतान किया जाता है.”

ये सभी किसान तेलंगाना के शबद, शादनगर, केशमपेट, महबूबनगर, तेलंगाना के वानापर्थी और आंध्र प्रदेश के कुरनूल में हैं. कुरनूल उनके फार्म से सबसे दूर 200 किमी पर स्थित है. दूध को चिलर वाहनों में फार्म तक पहुंचाया जाता है.

लगभग 12 हजार ग्राहक उनके एप के माध्यम से जुड़े हैं. वे अन्य ई-कॉमर्स पोर्टल जैसे बिग बास्केट डेली और सुपर डेली के माध्यम से भी बिक्री करते हैं.

पिछले साल से सिड के फार्म का दूध रिटेल स्टोर्स पर भी उपलब्ध है. गाय का दूध 76 रुपए प्रति लीटर और भैंस का दूध 90 रुपए प्रति लीटर की दर से बेचा जाता है.

दिलचस्प बात यह है कि किशोर ने इस ब्रांड का नाम अपने 11 वर्षीय बेटे के नाम पर रखा. किशोर कहते हैं, “यह मेरे बेटे के साथ-साथ ग्राहकों से भी वादा है कि हम सर्वश्रेष्ठ सेवा करेंगे, क्योंकि हम भी यही दूध पीते हैं.”


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Hotelier of North East India

    मणिपुर जैसे इलाके का अग्रणी कारोबारी

    डॉ. थंगजाम धाबाली के 40 करोड़ रुपए के साम्राज्य में एक डायग्नोस्टिक चेन और दो स्टार होटल हैं. इंफाल से रीना नोंगमैथेम मिलवा रही हैं एक ऐसे डॉक्टर से जिन्होंने निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में जन्म लिया और जिनके काम ने आम आदमी की ज़िंदगी को छुआ.
  • Archna Stalin Story

    जो हार न माने, वो अर्चना

    चेन्नई की अर्चना स्टालिन जन्मजात योद्धा हैं. महज 22 साल की उम्र में उद्यम शुरू किया. असफल रहीं तो भी हार नहीं मानी. छह साल बाद दम लगाकर लौटीं. पति के साथ माईहार्वेस्ट फार्म्स की शुरुआती की. किसानों और ग्राहकों का समुदाय बनाकर ऑर्गेनिक खेती की. महज तीन साल में इनकी कंपनी का टर्नओवर 1 करोड़ रुपए पहुंच गया. बता रही हैं उषा प्रसाद
  • Success story of three youngsters in marble business

    मार्बल भाईचारा

    पेपर के पुश्तैनी कारोबार से जुड़े दिल्ली के अग्रवाल परिवार के तीन भाइयों पर उनके मामाजी की सलाह काम कर गई. उन्होंने साल 2001 में 9 लाख रुपए के निवेश से मार्बल का बिजनेस शुरू किया. 2 साल बाद ही स्टोनेक्स कंपनी स्थापित की और आयातित मार्बल बेचने लगे. आज इनका टर्नओवर 300 करोड़ रुपए है.
  • Dream of Farming revolution in city by hydroponics start-up

    शहरी किसान

    चेन्नई के कुछ युवा शहरों में खेती की क्रांति लाने की कोशिश कर रहे हैं. इन युवाओं ने हाइड्रोपोनिक्स तकनीक की मदद ली है, जिसमें खेती के लिए मिट्टी की ज़रूरत नहीं होती. ऐसे ही एक हाइड्रोपोनिक्स स्टार्ट-अप के संस्थापक श्रीराम गोपाल की कंपनी का कारोबार इस साल तीन गुना हो जाएगा. पीसी विनोज कुमार की रिपोर्ट.
  • former indian basketball player, now a crorepati businessman

    खिलाड़ी से बने बस कंपनी के मालिक

    साल 1985 में प्रसन्ना पर्पल कंपनी की सालाना आमदनी तीन लाख रुपए हुआ करती थी. अगले 10 सालों में यह 10 करोड़ रुपए पहुंच गई. आज यह आंकड़ा 300 करोड़ रुपए है. प्रसन्ना पटवर्धन के नेतृत्व में कैसे एक टैक्सी सर्विस में इतना ज़बर्दस्त परिवर्तन आया, पढ़िए मुंबई से देवेन लाड की रिपोर्ट