पिता की दी ‘भीड़ से अलग खड़े होने’ की सीख से प्रेरित होकर बने सफल कारोबारी
21-Nov-2024
By जी सिंह
कोलकाता
बनवारी लाल मित्तल जब स्कूल में पढ़ते थे तब उनके पिता ने उनसे कहा था : “हमेशा भीड़ से अलग खड़े होने की कोशिश करो और जीवन में सफल होने के लिए वह काम करो जो कोई और नहीं कर रहा है.”
पिता के ये शब्द उम्र के 49 बरस पार कर चुके मित्तल के लिए सफलता का आधार बन गए. उन्होंने अपने पिता के इन शब्दों से प्रेरणा लेते हुए हमेशा दूसरों से कुछ अलग करने की कोशिश की.
बनवारी लाल मित्तल ने दवाइयों के ऑनलाइन कारोबार में अवसर देख साल 2014 में सस्तासुंदर की स्थापना की. (फ़ोटो: मोनिरुल इस्लाम मुलिक)
|
क़रीब तीन दशक पहले खाली हाथ कोलकाता आए बनवारी लाल ने अपनी लगन से एक ऐसा मज़बूत व्यावसायिक साम्राज्य खड़ा किया जिसका साल 2016-17 में सालाना कारोबार 111 करोड़ रुपए रहा और 2018 में इसके बढ़कर 150 करोड़ रुपए तक पहुंचने की संभावना है.
साल 2014 में स्थापित इनकी कंपनी सस्तासुंदर वेंचर्स लिमिटेड आज बीएसई और एनएसई में लिस्टेड है. साथ ही इसकी सहायक कंपनी के तौर पर शुरू हुई सस्तासुंदर हेल्थबडी लिमिटेड का एक ई-फ़ार्मेसी पोर्टल सस्तासुंदर डॉट कॉम भी है. वो इसी नाम से फ़ार्मेसी चेन भी चलाते हैं.
जापान की अग्रणी दवाई निर्माता कंपनी रोहतो ने इसी साल 5 मिलियन डॉलर का निवेश करते हुए सस्तासुंदर हेल्थबडी के 13 प्रतिशत शेयर ख़रीदे हैं.
सस्तासुंदर की ख़ुद की दवा निर्माण कंपनी भी है, जो पश्चिम बंगाल के बारुईपुर में स्थित है. साल 2014 में 120 स्टाफ़ मेंबर्स के साथ शुरू हुई इस फ़ार्मेसी में आज क़रीब 550 कर्मचारी कार्यरत हैं. साथ ही पूरे प्रदेश में इनके कुल 192 आउटलेट्स हैं, जो सीधे ग्राहकों से दवाइयों के ऑर्डर लेते हैं.
राजस्थान के सीकर जिले में स्थित दांता गांव में 1 जुलाई 1968 को जन्मे बनवारी लाल 6 भाई-बहनों में पांचवें नंबर पर आते हैं. इनके पिता स्व. सांवरमल मित्तल का कोलकाता शहर में कपड़ों का एक छोटा सा कारोबार था.
बनवारी लाल याद करते हैं, “मैं मध्यम वर्गीय परिवार में पला-बढ़ा. राजस्थान में जीवनयापन के सीमित साधन होने से दूसरे राज्यों में पलायन कर चुके समुदाय के अन्य लोगों की तरह मेरे पिता भी अधिकतर कोलकाता में ही रहते थे. हमें पाल-पोसकर बड़ा करने की पूरी ज़िम्मेदारी मेरी मां पर थी.”
बनवारी लाल ने साल 1988 में दांता के सरकारी स्कूल से पढ़ाई पूरी की. इसके अगले साल ही वो अपने पिता के पास कोलकाता रहने आ गए.
सस्तासुंदर 15 प्रतिशत डिस्काउंट पर घर तक दवाइयां पहुंचाने की सुविधा देती है.
|
कोलकाता से 30 किमी दूर बारुईपुर में सस्तासुंदर के कारखाने में बातचीत के दौरान बनवारी लाल ने बताया, “उस समय हमारे जिले में आगे की पढ़ाई के लिए कोई अच्छा कॉलेज नहीं था. इसीलिए हायर सेकंडरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने कोलकाता आने का फ़ैसला किया.”
वो आगे बताते हैं, “जब कोलकाता आया, तो पिताजी ने स्पष्ट कर दिया था कि वो मेरे रहने और पढ़ने का ख़र्च नहीं उठाएंगे. मुझे ख़ुद ही अपनी सभी ज़रूरतों को पूरा करना होगा.”
सबसे महत्वपूर्ण, उनके पिता ने उन्हें एक प्रेरणादायक सलाह दी. उस सलाह को याद करते हुए बनवारी लाल कहते हैं, “उन्होंने मुझसे कहा कि भीड़ में खड़े होने और वही काम करने से कोई फ़ायदा नहीं होता, जो सभी लोग कर रहे हैं. पिताजी की इस बात ने ज़िंदगी के प्रति मेरा नज़रिया बदल दिया और मैंने दूसरों से अलग खड़े होने का प्रण लिया.”
साल 1989 में उन्होंने उमेशचंद्र कॉलेज में कॉमर्स के छात्र के तौर पर दाख़िला ले लिया. इसके साथ-साथ उन्होंने चार्टर्ड अकाउंटेंट की पढ़ाई भी शुरू कर दी.
बनवारी लाल कहते हैं, “मैं अपने पिता के साथ बुर्राबाज़ार इलाक़े में एक 200 वर्ग फ़ीट के कमरे में रहता था. उन्होंने मुझे अपने साथ रहने की मंजूरी तो दे दी थी लेकिन अपने अन्य ख़र्चों के लिए मैंने काम की तलाश शुरू कर दी और एक निजी कंपनी में टाइपिस्ट के तौर पर पार्ट टाइम काम करना शुरू कर दिया. मैंने राजस्थान में हिंदी टाइपिंग सीखी थी, जो मेरे काम आ गई.”
बनवारी लाल महीने के 1800 रुपए कमा लेते थे, जो उनके ख़र्च पूरे करने के लिए काफ़ी थे. उनकी कड़ी दिनचर्या में सुबह 6 से 11 बजे तक मॉर्निंग कॉलेज, दोपहर में सीए की कक्षाएं और शाम के समय पार्ट टाइम काम शामिल था.
राज्य में 192 हेल्थबडी आउटलेट हैं, जहां ग्राहक दवा मंगवाने के लिए ऑर्डर दे सकते हैं.
|
बनवारी लाल याद करते हैं, “राजस्थान में हिंदी टाइपिंग सीखते समय मेरे दोस्त मुझ पर हंसा करते थे, पर मैं रुका नहीं. उन दिनों कोलकाता में हिंदी टाइपिस्ट की काफ़ी कमी थी, जिससे मुझे नौकरी हासिल करने में मदद मिल गई.”
साल 1992 में वे 4000 रुपए प्रतिमाह के वेतन पर वो कर एवं वित्त प्रबंधक के तौर पर बिरला समूह में नौकरी करने लगे. वहां उन्होंने 8 साल काम किया. नौकरी छोड़ते समय उनका वेतन 25,000 रुपए प्रतिमाह हो गया था.
इसी दौरान, साल 1996 में कोलकाता की रहने वाली आभा मित्तल के साथ इनकी शादी हुई. दो लड़कियों व एक लड़के समेत इनकी तीन संतानें हुईं.
साल 2000 में नौकरी छोड़ने के बाद वो बतौर सीए दो साल काम करते रहे. इस दौरान अपना ख़ुद का कारोबार चालू करने की योजना भी बनाते रहे.
उन्हें वित्तीय सुविधाओं के बारे में बिलकुल भी जानकारी नहीं थी, इसलिए साल 2002 में उन्होंने माइक्रोसेक फ़ाइनेंशियल सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड के नाम से अपनी वित्त कंपनी की शुरुआत की, जो स्टॉक ब्रोकिंग, मर्चेंट बैंकिंग और वित्तीय सलाह का काम करती थी. इसमें कुल 2.5 करोड़ रुपए का निवेश लगा था.
बनवारी लाल बताते हैं, “उस समय तक मैंने 80 लाख रुपए जमा कर लिए थे. बाक़ी पैसे मैंने अपने दोस्त से 15 प्रतिशत के सालाना ब्याज़ पर लिए थे.”
उन्होंने दक्षिण कोलकाता की कैमक स्ट्रीट में लगभग 60 लाख रुपए में ख़रीदे गए 2500 वर्ग फ़ीट के कार्यालय में 3 कर्मचारियों से शुरुआत की.
महज तीन साल बाद यानी साल 2005 में वो दक्षिण कोलकाता के बालीगंज में 10,000 वर्ग फ़ीट के कार्यालय में स्थानांतरित हो गए, जिसे उन्होंने 3.5 करोड़ रुपए में ख़रीदा.
बनवारी लाल स्पष्ट बताते हैं, “हमारा कारोबार लगातार बढ़ रहा था और साल 2010 में हमने क़रीब 45 करोड़ रुपए का कारोबार किया. लेकिन इसके बाद मुश्किलें आनी शुरू हो गईं.”
बनवारी लाल को इस वित्त वर्ष में 150 करोड़ रुपए का कारोबार करने की उम्मीद है.
|
साल 2011 में चर्चित कोल घोटाला सामने आया. उनके अधिकतर ग्राहक बड़े कारोबारी थे, जिनका कारोबार मुख्य रूप से कोयले पर निर्भर था. घोटाले का ख़ुलासा होने के बाद उन्होंने अपने कई बड़े ग्राहक खो दिए और उनका कारोबार मुश्किल हालातों से जूझने लगा.
बनवारी लाल को अपने व्यापार की योजना के बारे में नए सिरे से सोचना पडा. उन्होंने नए व्यापारिक अवसर खोजने के लिए काम से छुट्टी ली और यूरोप निकल गए. वहां फ़ार्मेसी और उसकी वितरण प्रणाली की तरफ़ उनका ध्यान आकर्षित हुआ.
वो बताते हैं, “मैंने विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत अन्य प्रतिष्ठित स्वास्थ्य एजेंसियों की रिपोर्ट्स पढ़ी. इससे मुझे समझ आया कि किस तरह हमारे देश में ग़रीब लोगों को ग़लत उपचार व नकली दवाइयों के ज़रिये ठगा जा रहा था.”
“मैंने महसूस किया कि हमारी वितरण प्रणाली में दोष है. उन्नत किस्म की दवाइयां सीधे ग्राहकों के हाथ में पहुंचनी चाहिए. इसके बाद मैंने दवाइयों की वितरण प्रणाली पर आधारित अपना नया कारोबार शुरू करने की ठानी.”
पिता की दी हुई सीख एक बार फिर उन्हें याद आ गई. बनवारी लाल कहते हैं, “ऑनलाइन फ़ार्मेसी भारत के लिए बिलकुल नई अवधारणा थी. इसके ज़रिये मैं भीड़ से अलग खड़ा हो सकता था.”
14 जनवरी 2014 को अपने पुराने सहयोगी एवं वर्तमान में कंपनी के एक निदेशक रवि कांत शर्मा के साथ मिलकर क़रीब 150 करोड़ रुपए के निवेश से उन्होंने एक ई-फ़ार्मेसी सस्तासुंदर की स्थापना की.
इस नए कारोबार के लिए शहर के बाहर स्थित राजारहाट इलाके़ में इन्होंने 15 कोटाह ज़मीन क़रीब 40 लाख रुपए में ख़रीदी. बनवारी लाल बताते हैं, “मैंने अपनी वित्त कंपनी से हुई सारी कमाई इसमें लगा दी. मुझे पूरा भरोसा था कि व्यापार की यह योजना भारत में ज़रूर चलेगी.”
उनका यह विश्वास सही साबित हुआ और फार्मेसी के कारोबार ने गति पकड़ ली. साल 2015 में इन्होंने क़रीब 20 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार किया. यह आंकड़ा साल 2016 में बढ़कर 63.5 करोड़ रुपए तक पहुंच गया.
बनवारी लाल अपने लंबे समय के कारोबारी सहयोगी रवि कांत शर्मा (बाएं), जो कंपनी के निदेशक हैं.
|
अपनी रणनीति का ख़ुलासा करते हुए वो कहते हैं, “हमने हेल्थबडी की श्रृंखला शुरू की, ऐसी दुकानें जो सीधे ग्राहकों से ऑर्डर लेकर क़ीमत में 15 प्रतिशत छूट के साथ दवाइयां उनके घर पहुंचाती थी.”
दवाइयों के ऑर्डर ऑनलाइन भी लिए जाते हैं. बनवारी लाल के अनुसार, “हम बड़ी मात्रा में दवाइयां ख़रीदते थे, जिससे दवा निर्माता कंपनियों से छूट लेने में आसानी होती थी. हम इसका फ़ायदा अपने ग्राहकों को पहुंचाते हैं.”
कंपनी जल्द ही दिल्ली व देश के अन्य राज्यों में अपनी सेवाएं शुरू करने की योजना बना रही है. बनवारी लाल का लक्ष्य आने वाले 5 सालों में सस्तासुंदर को 6000 करोड़ रुपए के कारोबार वाली कंपनी बनाना है.
यह सफल कारोबारी काम के अलावा अन्य परोपकारी कामों के लिए भी समय निकाल लेता है. इनमें स्कूलों के मध्यान्ह भोजन के लिए फंड्स देना और आई डोनेशन कैम्प्स में हेल्थ किट्स का वितरण शामिल है.
बनवारी लाल आज की युवा पीढ़ी को सलाह देते हैं.
वो कहते हैं : “कड़ी मेहनत करो, अपने सपनों पर यक़ीन रखो और हमेशा भीड़ से अलग खड़े होने की कोशिश करो.”
वाक़ई, उन्होंने ख़ुद के लिए एक अलग राह चुनी और सफलता की ओर बढ़ चले.
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
डिज़ाइन की महारथी
21 साल की उम्र में नीलम मोहन की शादी हुई, लेकिन डिज़ाइन में महारत और आत्मविश्वास ने उनके लिए सफ़लता के दरवाज़े खोल दिए. वो आगे बढ़ती गईं और आज 130 करोड़ रुपए टर्नओवर वाली उनकी कंपनी में 3,000 लोग काम करते हैं. नई दिल्ली से नीलम मोहन की सफ़लता की कहानी सोफ़िया दानिश खान से. -
इन्हाेंने किराना दुकानों की कायापलट दी
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के आईटी ग्रैजुएट वैभव अग्रवाल को अपने पिता की किराना दुकान को बड़े स्टोर की तर्ज पर बदलने से बिजनेस आइडिया मिला. वे अब तक 12 शहरों की 50 दुकानों को आधुनिक बना चुके हैं. महज ढाई लाख रुपए के निवेश से शुरू हुई कंपनी ने दो साल में ही एक करोड़ रुपए का टर्नओवर छू लिया है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान. -
नॉनवेज भोजन को बनाया जायकेदार
60 साल के करुनैवेल और उनकी 53 वर्षीय पत्नी स्वर्णलक्ष्मी ख़ुद शाकाहारी हैं लेकिन उनका नॉनवेज होटल इतना मशहूर है कि कई सौ किलोमीटर दूर से लोग उनके यहां खाना खाने आते हैं. कोयंबटूर के सीनापुरम गांव से स्वादिष्ट खाने की महक लिए उषा प्रसाद की रिपोर्ट. -
युवाओं ने ठाना, बचपन बेहतर बनाना
हमेशा से एडवेंचर के शौकीन रहे दिल्ली् के सात दोस्तों ने ऐसा उद्यम शुरू किया, जो स्कूली बच्चों को काबिल इंसान बनाने में अहम भूमिका निभा रहा है. इन्होंने चीन से 3डी प्रिंटर आयात किया और उसे अपने हिसाब से ढाला. अब देशभर के 150 स्कूलों में बच्चों को 3डेक्स्टर के जरिये 3डी प्रिंटिंग सिखा रहे हैं. -
आईआईएम टॉपर बना किसानों का रखवाला
पटना में जी सिंह मिला रहे हैं आईआईएम टॉपर कौशलेंद्र से, जिन्होंने किसानों के साथ काम किया और पांच करोड़ के सब्ज़ी के कारोबार में धाक जमाई.