इस पिता ने बेटी के साथ की नायाब शुरुआत, ‘डस्टलेस पेंटिंग’ से पुताई बनाते हैं आसान
23-Nov-2024
By देवेन लाड
मुंबई
साल 1996. ठाणे में अतुल इंगले जब घर को पेंट कर रहे थे, तब पेंटिंग से उड़ी धूल से उनके दो बच्चे बीमार पड़ गए.
इस अप्रिय स्थिति ने उन्हें यह सोचने पर मजबूर किया कि क्या कोई तरीक़ा है जिससे पेंट करते वक्त धूल न उड़ेे. और इस तरह उनका शोध शुरू हुआ.
क़रीब दो दशक के शोध, परीक्षण, आविष्कार और सुधार के बाद साल 2014 में उन्होंने अपनी बेटी नियति के साथ एक लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप फ़र्म ‘डस्टलेस पेंटिंग’ की स्थापना की.
अतुल इंगले और उनकी पूर्व टीवी पत्रकार बेटी नियति ने डस्टलेस पेंटिंग की शुरुआत की है. दोनों धूल उड़े बग़ैर पुताई सेवा मुहैया करा रहे हैं. (सभी फ़ोटो: अज़हर खान)
|
साल 2016-17 में कंपनी का टर्नओवर क़रीब 30 लाख रुपए था. अतुल के शोध और मेहनत के बावजूद कंपनी ने अभी तक मुनाफ़ा नहीं कमाया है, लेकिन वो कभी भी पैसे के पीछे नहीं भागे.
वो हमेशा से ही ऐसी तकनीक का आविष्कार करना चाहते थे, जिससे बच्चों की सेहत पर असर न पड़े.
क़रीब 15 साल के लंबे शोध, कोशिशों, असफलताओं के बाद आख़िरकार साल 2013 में उन्हें एक दोस्त ने अपने घर पर डस्टलेस पेंटिंग का हूनर दिखाने का मौक़ा दिया.
65 वर्षीय अतुल और 30 वर्षीय नियति से मेरी मुलाक़ात मुंबई के चेंबूर में हुई, जहां दोनों डस्टलेस पेंटिंग कर रहे थे.
पिता के साथ जुड़ने और कंपनी की सह-स्थापना से पहले नियति बिज़नेस पत्रकार थीं.
वो कहती हैं, “डस्टलेस पेंटिंग पिता का जुनून है, जिसके चलते मैंने अपना करियर छोड़ दिया और उनके साथ जुड़ गई.”
“
उन्होंने कभी भी कोशिश करना नहीं छोड़ा. डस्टलेस पेंटिंग पर उनका शोध आज भी जारी है. वो लगातार तकनीक को बेहतर करना और सबसे बेहतरीन उपकरण का इस्तेमाल करना चाहते हैं.”
इस सफ़र की शुरुआत साल 2013 में वसंत विहार से हुई, जब अतुल के दोस्त धीरज गाडगिल ने उन्हें अपने घर पर डस्टलेस पेंटिंग तकनीक का इस्तेमाल करने को कहा.
इस काम में 21 दिन लगे और अतुल को तीन लाख रुपए मिले.
अतुल कहते हैं, “दोस्त को मेरे शोध के बारे में पता था, इसलिए उन्होंने इसका प्रयोग करने को कहा. पुताई के दौरान किसी सामान को घर से निकालने की ज़रूरत नहीं पड़ी. मैंने ऐसे लोगों को काम पर लगाया, जिन्हें मैंने महीनों ट्रेनिंग दी थी. काम बेहद अच्छा हुआ और धीरज बहुत ख़ुश हुए.”
धीरज ने अतुल के काम की सिफ़ारिश अन्य दोस्तों से की और धीरे-धीरे अतुल के पास काम आने लगा.
नागपुर में साल 1962 में जन्मे अतुल ने वीरमाता जीजाबाई टेक्निकल इंस्टिट्यूट से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की.
वो हमेशा बेहतरीन छात्र रहे और हमेशा कक्षा में टॉप किया करते थे.
उन्होंने करियर की शुरुआत क्रॉम्प्टन ग्रीव्ज़ के साथ की, जहां उन्होंने पांच साल काम किया. इसके बाद वो सऊदी अरब चले गए, जहां उन्होंने हनीवेल, ख़ैबर ट्रेडिंग, बीटा कंसल्टेंसी जैसी कंपनियों के साथ साल 2004 तक काम किया.
पिता-पुत्री की जोड़ी ने अपने कारोबार में अब तक 80 से 85 लाख रुपए का निवेश किया है.
|
अतुल बताते हैं, “जब मैं काम कर रहा था, तब भी मेरा शोध जारी था. शोध में बहुत पैसा लगा, लेकिन मेरे लिए यह बिज़नेस नहीं बल्कि एक समस्या का समाधान खोजने जैसा था.”
दो सालों की खोज के बाद अतुल ने 1998 में एक मशीन बनाई, लेकिन वो फ़ेल हो गई.
वो निराश नहीं हुए और उन्होंने अपना शोध जारी रखा.
“साल 2004 में मैं वापस भारत आ गया. साल 2011 में आख़िरकार मुझे सफ़लता मिली और मैंने अपना घर बिना धूल उड़ाए रंगा.”
अतुल ने साल 2014 में 28 लाख रुपए निवेश कर बिज़नेस शुरू किया. उन्होंने डस्ट कंट्रोल के लिए एक स्क्रबिंग मशीन का आविष्कार किया और डस्टलेस पेंटिंग की शुरुआत की.
रुइया कॉलेज से बैचलर ऑफ़ मास मीडिया की पढ़ाई के बाद नियति साल 2009 में बकिंघम यूनिवर्सिटी गईं. लौटने के बाद साल 2014 में उन्होंने सीएनबीसी चैनल में नौकरी की.
साल 2014 में उन्होंने डस्टलेस पेंटिंग के लिए अपना करियर छोड़ दिया.
नियति कहती हैं, “बिज़नेस को लेकर हमारी गहन बातचीत हुई कि हम इसे कैसे करेंगे और कैसे लोगों को आकर्षित करेंगे.”
लेकिन शुरुआत आसान नहीं थी. क़रीब दो सालों तक उनके पास कोई काम नहीं था. तब नियति को महसूस हुआ कि बिज़नेस बढ़ाने के लिए विज्ञापन देना महत्वपूर्ण है.
नियति बताती हैं, “शुरुआती साल हमारे पास कोई काम नहीं था, तब हमने सार्वजनिक स्थानों और ऑनलाइन विज्ञापन देना शुरुआत किए. यह एक नया कॉन्सेप्ट था और पारंपरिक तरीके़ से महंगा था. इसलिए काम मिलना आसान नहीं था, लेकिन मुझे पता था कि लोग जल्द ही इसे अपना लेंगे.”
लेकिन बिज़नेस में एक और झटका लगना बाक़ी था. उन्होंने आर्किटेक्ट्स के साथ काम करने की कोशिश की, लेकिन यह तरीक़ा नहीं चला और कुछ आर्किटेक्ट्स ने पैसे तक नहीं दिए.
अपने पेंटिंग स्टाफ़ के साथ अतुल और नियति.
|
नियति कहती हैं, “हमने सबसे अच्छे प्रॉडक्ट्स इस्तेमाल किए और उच्च गुणवत्ता की सेवा दी, लेकिन लोग पैसे देने को तैयार नहीं थे. लेकिन जब कुछ बड़े आर्किटेक्ट्स ने हमें धोख़ा दिया और लाखों रुपए नहीं लौटाए तो हमें सदमा पहुंचा... लेकिन हमने इससे सबक लिए और हार नहीं मानी.”
डस्टलेस पेंटिंग की जानकारी नहीं होना सबसे बड़ी बाधा है. उन्होंने इसके प्रति जागरूकता बढ़ाने की कोशिश की, तो उन्हें अतिरिक्त नुकसान उठाना पड़ा. उन्होंने पैसे ख़र्च कर कई प्रदर्शनियों में हिस्सा लिया, लेकिन बिज़नेस नहीं मिला.
बहुत संघर्ष के बाद साल 2016 में उन्हें आख़िरकार मुंबई के विशेष बच्चों के एक स्कूल की पुताई का काम मिला.
उन्हें 43 दिनों में 18 हज़ार वर्ग फ़ीट क्षेत्र में आठ मज़दूरों के साथ पुताई करनी थी और उन्होंने बिना किसी मुश्किल के यह काम किया.
अतुल कहते हैं, “स्कूल के ट्रस्टी चाहते थे कि धूल का असर बच्चों पर न पड़े, इसलिए बिना दोबारा सोचे हमने यह काम अपने हाथों में ले लिया. यह हमारे लिए अच्छा मौक़ा था. अब वो हमें दूसरे स्कूल का कॉन्ट्रैक्ट दे रहे हैं.”
अभी तक डस्टलेस पेंटिंग ने 37 प्रोजेक्ट पर काम किया है - ज़्यादातर काम घरों का रहा है. स्कूल के अलावा कंपनी ने एक ईएनटी अस्पताल में भी पुताई की है.
संस्थापक महसूस करते हैं कि डस्टलेस पेंटिंग का भविष्य बेहतर है.
|
नियति और अतुल को कंपनी चलाने में कई आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा है. उन्होंने अब तक कंपनी में 80-85 लाख रुपए लगाए हैं और उन्हें सालाना तीन लाख रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है.
लेकिन भविष्य को लेकर नियति आशावादी हैं. डस्टलेस पेंटिंग ओम आर्किटेक्ट्स के साथ काम कर रही है और दोनों पक्षों के बीच बेहतरीन संबंध हैं.
नियति बताती हैं, “हमारा कॉन्सेप्ट नया है लेकिन प्रगति धीमी है लेकिन मुझे उम्मीद है लोग जल्द ही इसे अपनाएंगे. भारत में सिर्फ़ चेन्नई स्थित एक अन्य कंपनी ऐसी ही सेवाएं दे रही है. चूंकि हम बाज़ार में पहले आए हैं, इसलिए हम इस फ़ायदे को आगे बढ़ाना चाहते हैं.”
एक दिन पैसा भी ज़रूर आएगा, लेकिन अतुल अपने मनपसंद काम को आगे बढ़ाने को लेकर बहुत ख़ुश और आशावान हैं.
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
ये 'आम' आम नहीं, खास हैं
जबलपुर के संकल्प उसे फरिश्ते को कभी नहीं भूलते, जिसने उन्हें ट्रेन में दुनिया के सबसे महंगे मियाजाकी आम के पौधे दिए थे. अपने खेत में इनके समेत कई प्रकार के हाइब्रिड फलों की फसल लेकर संकल्प दुनियाभर में मशहूर हो गए हैं. जापान में 2.5 लाख रुपए प्रति किलो में बिकने वाले आमों को संकल्प इतना आम बना देना चाहते हैं कि भारत में ये 2 हजार रुपए किलो में बिकने लगें. आम से जुड़े इस खास संघर्ष की कहानी बता रही हैं सोफिया दानिश खान -
रेस्तरां के राजा
गुवाहाटी के देबा कुमार बर्मन और प्रणामिका ने आज से 30 साल पहले कॉलेज की पढ़ाई के दौरान लव मैरिज की और नई जिंदगी शुरू की. सामने आजीविका चलाने की चुनौतियां थीं. ऐसे में टीवी क्षेत्र में सीरियल बनाने से लेकर फर्नीचर के बिजनेस भी किए, लेकिन सफलता रेस्तरां के बिजनेस में मिली. आज उनके पास 21 रेस्तरां हैं, जिनका टर्नओवर 6 करोड़ रुपए है. इस जोड़े ने कैसे संघर्ष किया, बता रही हैं सोफिया दानिश खान -
100% खरे सर्वानन
चेन्नई के सर्वानन नागराज ने कम उम्र और सीमित पढ़ाई के बावजूद अमेरिका में ऑनलाइन सर्विसेज कंपनी शुरू करने में सफलता हासिल की. आज उनकी कंपनी का टर्नओवर करीब 18 करोड़ रुपए सालाना है. चेन्नई और वर्जीनिया में कंपनी के दफ्तर हैं. इस उपलब्धि के पीछे सर्वानन की अथक मेहनत है. उन्हें कई बार असफलताएं भी मिलीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. बता रही हैं उषा प्रसाद... -
कॉस्मेटिक प्रॉडक्ट्स की मलिका
विदेश में रहकर आई मलिका को भारत में अच्छी गुणवत्ता के बेबी केयर प्रॉडक्ट और अन्य कॉस्मेटिक्स नहीं मिले तो उन्हें ये सामान विदेश से मंगवाने पड़े. इस बीच उन्हें आइडिया आया कि क्यों न देश में ही टॉक्सिन फ्री प्रॉडक्ट बनाए जाएं. महज 15 लाख रुपए से उन्होंने अपना स्टार्टअप शुरू किया और देखते ही देखते वे मिसाल बन गईं. अब तक उनकी कंपनी को दो बार बड़ा निवेश मिल चुका है. कंपनी का टर्नओवर 4 साल में ही 100 करोड़ रुपए काे छूने के लिए तैयार है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान. -
विलास की विकास यात्रा
महाराष्ट्र के नासिक के किसान विलास शिंदे की कहानी देश की किसानों के असल संघर्ष को बयां करती है. नई तकनीकें अपनाकर और बिचौलियों को हटाकर वे फल-सब्जियां उगाने में सह्याद्री फार्म्स के रूप में बड़े उत्पादक बन चुके हैं. आज उनसे 10,000 किसान जुड़े हैं, जिनके पास करीब 25,000 एकड़ जमीन है. वे रोज 1,000 टन फल और सब्जियां पैदा करते हैं. विलास की विकास यात्रा के बारे में बता रहे हैं बिलाल खान