Milky Mist

Thursday, 30 October 2025

आंवले की खेती कर हर साल कमा रहे 26 लाख रुपए

30-Oct-2025 By पार्थो बर्मन
भरतपुर, राजस्थान

Posted 12 May 2018

क़रीब 23 साल पहले अमर सिंह ने 1,170 रुपए में आंवले के 60 पौधे लगाए. आज वो 26 लाख रुपए बिक्री वाले असाधारण ग्रामीण उद्यमी हैं.

उनकी सफलता की कहानी भरतपुर जिले के सम्मान गांव में लोगों की जुबां पर है और सबको प्रेरणा देती है..

अमर सिंह ने आंवलों के पौधे लगाकर शुरुआत की. बाद में उसके उत्‍पाद बनाने लगे. उनके अमृत ब्रैंड का मुरब्‍बा कुम्‍हेर, भरतपुर, टोंक, डीग, मंडावर, माहवा में घर-घर पहचाना जाने लगा है. (सभी फ़ोटो : पार्थो बर्मन)


57 वर्षीय अमर सिंह ने पारंपरिक खेती से सफलता पाने से परे जाकर एक मिसाल क़ायम की है. ल्‍यूपिन ह्यूमन वेलफ़ेयर रिसर्च ऐंड फ़ाउंडेशन के सीता राम गुप्ता उनकी तारीफ़ करते नहीं थकते.

इसी फाउंडेशन ने ट्रेनिंग और फ़ंड से अमर सिंह की मदद की.

वो कहते हैं, अमर सिंह महिला रोज़गार और सशक्‍तीकरण के आइकॉन बन गए हैं. हमें ऐसे कई अमर सिंह की ज़रूरत है.

हालांकि इस कहानी में कई पड़ाव आए.

बात साल 1976-77 की है, जब अमर सिंह कक्षा 11 में थे. पिता वृंदावन सिंह की मौत के बाद उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी. उनके दो भाई और बहन बहुत छोटे थे. परिवार के पास कई एकड़ खेती की ज़मीन थी. इसकी ज़िम्मेदारी अब अमर सिंह पर थी.

लेकिन उनका दिल कहीं और था. वो कुछ साल घर पर रहे और ऑटो चलाकर 500 रुपए रोज़ की कमाई से गुज़ारा करते रहे.

साल 1984-85 में वो मामा के यहां अहमदाबाद चले गए.

मणिनगर में मामा का फ़ोटो स्‍टूडियो था. उन्होंने भी एक फ़ोटो स्टूडियो खोला और उसकी देखरेख के लिए अनुभवी व्यक्ति रख लिया.

इस बीच उनकी माँ सोमवती देवी मज़दूरों के ज़रिये खेती करती रहीं, लेकिन जब कामगार धोखा देने लगे तो दो साल बाद उन्होंने अमर सिंह को चिट्ठी लिखकर गांव लौटने को कहा. अमर वापस आए, लेकिन खेती के बजाय वैन में सवारियां ढोने लगे.

लेकिन यहीं कहानी में एक रोचक मोड़ आया.

साल 1995 की एक सुबह उनका ध्यान सड़क पर गिरे हिंदी अख़बार के एक टुकड़े पर गया. उन्होंने उसे उठाया और पढ़ना शुरू किया.

एक लेख में अमृतफल आंवले का ज़िक्र था.

अख़बार में आंवला की खेती के लेख ने अमर सिंह का जीवन बदल दिया और उन्‍हें समृद्धि की राह पर ला दिया.


अमर सिंह को तत्‍काल सूझा कि उनके पास आंवला उगाने के लिए अच्छी-ख़ासी ज़मीन है और उसमें निवेश भी कम लगेगा. उन्होंने इस बारे में जानकारी जुटानी शुरू कर दी.

उनकी गुहार पर भरतपुर बागवानी विभाग ने उन्हें आंवले के 60 पौधे दिए. हर पौधे की क़ीमत 19.50 रुपए थी. उन्होंने इन पौधों को 2.2 एकड़ उपजाऊ ज़मीन पर उगाया. अगले साल 70 और पौधे ख़रीदकर लगाए.

मेहनत रंग लाई. चार-पांच साल बाद कुछ पेड़ों पर पांच किलो, तो कुछ पर 10 किलो आंवला निकले. पहले साल उन्होंने सात लाख रुपए की बचत की.

ख़ुश होकर वो मथुरा, भरतपुर व भुसावाड़ के मुरब्‍बा बनाने वालों तथा व्‍यापारियों के पास गए और खुदरा बाज़ार को जाना.

उन्हें पता चला कि बड़ा आंवला 10 रुपए किलो में बिकता है, मध्‍यम आकार का आठ, जबकि छोटे आंवले की क़ीमत पांच रुपए किलो थी.

कुछ महीने बिज़नेस अच्छा चला, लेकिन बाद में व्यापारियों ने उन्हें सही दाम नहीं दिए.

अमर सिंह बताते हैं, व्यापारी दावा करते थे कि आंवले का आकार सैंपल में दिखाए गए आंवला से अलग था. वो ये बात उस वक्त बताते थे, जब मैं पूरा माल ट्रक पर लादकर उनकी फ़ैक्ट्री पहुंच जाता था. तब मेरे पास उनकी बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं बचता था.

दो-तीन साल ऐसे ही चला, लेकिन जब धैर्य टूटने लगा, तो अमर सिंह ने ख़ुद की फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट शुरू करने का सोचा.

साल 2003 में उन्हें पता चला कि स्थानीय एन.जी.ओ. ल्‍यूपिन ह्यूमन वेलफ़ेयर रिसर्च ऐंड फाउंडेशन गांव की महिलाओं को मुरब्बा बनाने की ट्रेनिंग दे रहा है. वो संस्था के केंद्र गए और आंवला से अलग-अलग खाद्य पदार्थ बनाने की ट्रेनिंग देने के लिए मदद मांगी.

2015-16 में अमर सिंह के यहां 400 क्विंटल आंवलों की बंपर पैदावार हुई.


साल 2005 में उन्होंने पांच लाख रुपए से अमर सेल्फ़ हेल्प ग्रुप की शुरुआत की. इसमें से तीन लाख ल्‍यूपिन ने दिए थे.

पहले साल खेत से निकले 70 क्विंटल (7,000 किलो) आंवलों से 10 महिलाओं की मदद से मुरब्बा बनाया गया.

पिछले एक दशक में अमृता ब्रैंड के नाम से बिकने वाला मुरब्बा कुम्हेर, भरतपुर, टोंक, डीग, मंडावर, माहवा, सुरूथ आदि इलाकों में मशहूर हो गया है.

अमर सिंह के यहां आंवला तोड़ने, छांटने, मुरब्बा बनाने और पैक करने का काम महिलाएं करती हैं. महिलाओं को मज़दूरी तो मिलती ही हैं, घर ले जाने के लिए मुरब्बा, आंवला और आंवले का जूस भी मिलता है.

अमर सिंह आंवला जैम, कैंडी, सिरप और लड्डू भी बनाने लगे हैं.

शुरुआती दो साल के बाद अमर सिंह अपना कारोबार फैलाना चाहते थे, लेकिन निजी और राष्‍ट्रीयकृत बैंकों की 20 प्रतिशत की ऊंची ब्याज़ दर के कारण वो कर्ज़ नहीं ले पाए. ऐसे में एक बार फिर ल्‍यूपिन ने मदद की.

अमर बताते हैं, उन्होंने न सिर्फ़ मुझे दो बार एक प्रतिशत की दर पर एक-एक लाख रुपए कर्ज़ दिया, बल्कि फ़ूड सेफ़्टी ऐंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया से लाइसेंस दिलवाने में भी मदद की.

उन्होंने वक्त पर पूरा कर्ज़ लौटा दिया.

अपने खेतों में अमर सिंह.


उनके खेत में अब आंवले के 100 पेड़ हैं. हर पेड़ पर साल में 200-225 किलो आंवले पैदा होते हैं. हालांकि साल 2015-16 में बंपर 400 क्विंटल आंवला हुआ.

साल 2012 में अमर सिंह ने कंपनी का नाम बदलकर अमर मेगा फूड प्राइवेट लिमिटेड रख लिया. उनके 15 कर्मचारियों में 10 महिलाएं हैं.

सालाना 26 लाख रुपए की कमाई के बावजूद अमर सिंह आज सरल जीवन जीते हैं. उन्होंने अपना घर नया करवा लिया है. आंवले लाने-ले जाने के लिए भी ट्रक ख़रीद लिया है. उनके दो बेटे और एक बेटी पढ़ रहे हैं, जबकि पत्‍नी उर्मिला कारोबार में मदद करती है.

अम‍र सिंह अब बैंगन, मिर्च, टमाटर, आलू, सरसों आदि भी उगाने लगे हैं. समग्र रूप से कहें तो अमर सिंह ने साबित कर दिया है कि सही प्रयास से पैसे भी पेड़ पर उगाए जा सकते हैं.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • From roadside food stall to restaurant chain owner

    ठेला लगाने वाला बना करोड़पति

    वो भी दिन थे जब सुरेश चिन्नासामी अपने पिता के ठेले पर खाना बनाने में मदद करते और बर्तन साफ़ करते. लेकिन यह पढ़ाई और महत्वाकांक्षा की ताकत ही थी, जिसके बलबूते वो क्रूज पर कुक बने, उन्होंने कैरिबियन की फ़ाइव स्टार होटलों में भी काम किया. आज वो रेस्तरां चेन के मालिक हैं. चेन्नई से पीसी विनोज कुमार की रिपोर्ट
  • Success story of Falcon group founder Tara Ranjan Patnaik in Hindi

    ऊंची उड़ान

    तारा रंजन पटनायक ने कारोबार की दुनिया में क़दम रखते हुए कभी नहीं सोचा था कि उनका कारोबार इतनी ऊंचाइयां छुएगा. भुबनेश्वर से जी सिंह बता रहे हैं कि समुद्री उत्पादों, स्टील व रियल एस्टेट के क्षेत्र में 1500 करोड़ का सालाना कारोबार कर रहे फ़ाल्कन समूह की सफलता की कहानी.
  • Match fixing story

    जोड़ी जमाने वाली जोड़ीदार

    देश में मैरिज ब्यूरो के साथ आने वाली समस्याओं को देखते हुए दिल्ली की दो सहेलियों मिशी मेहता सूद और तान्या मल्होत्रा सोंधी ने व्यक्तिगत मैट्रिमोनियल वेबसाइट मैचमी लॉन्च की. लोगों ने इसे हाथोहाथ लिया. वे अब तक करीब 100 शादियां करवा चुकी हैं. कंपनी का टर्नओवर पांच साल में 1 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान
  • Sid’s Farm

    दूध के देवदूत

    हैदराबाद के किशोर इंदुकुरी ने शानदार पढ़ाई कर शानदार कॅरियर बनाया, अच्छी-खासी नौकरी की, लेकिन अमेरिका में उनका मन नहीं लगा. कुछ मनमाफिक काम करने की तलाश में भारत लौट आए. यहां भी कई काम आजमाए. आखिर दुग्ध उत्पादन में उनका काम चल निकला और 1 करोड़ रुपए के निवेश से उन्होंने काम बढ़ाया. आज उनके प्लांट से रोज 20 हजार लीटर दूध विभिन्न घरों में पहुंचता है. उनके संघर्ष की कहानी बता रही हैं सोफिया दानिश खान
  • Miyazaki Mango story

    ये 'आम' आम नहीं, खास हैं

    जबलपुर के संकल्प उसे फरिश्ते को कभी नहीं भूलते, जिसने उन्हें ट्रेन में दुनिया के सबसे महंगे मियाजाकी आम के पौधे दिए थे. अपने खेत में इनके समेत कई प्रकार के हाइब्रिड फलों की फसल लेकर संकल्प दुनियाभर में मशहूर हो गए हैं. जापान में 2.5 लाख रुपए प्रति किलो में बिकने वाले आमों को संकल्प इतना आम बना देना चाहते हैं कि भारत में ये 2 हजार रुपए किलो में बिकने लगें. आम से जुड़े इस खास संघर्ष की कहानी बता रही हैं सोफिया दानिश खान