4 लाख रुपए से शुरुआत, 20 साल में दो कंपनियां खोलीं, टर्नओवर 240 करोड़
27-Apr-2024
By सोफ़िया दानिश खान
नई दिल्ली
असम के छोटे से शहर तेजपुर के रहने वाले रोशन बैद ने दो दशक की अपनी उद्ममी यात्रा में ऐसे अहम मुकाम हासिल किए हैं, जो बहुत कम लोग कर पाते हैं.
उन्होंने खेल के सामान के उत्पादन की दुनिया में प्रवेश किया, जहां एडिडास, रीबॉक और नाइके जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों का दबदबा था.
दो दशक के इस सफ़र की शुरुआत चार लाख रुपए से हुई थी, जो उन्होंने अपने पिता से उधार लिए थे.
इस पैसे से उन्होंने दिल्ली के बाहरी इलाक़े तुगलकाबाद में छोटी सी फ़ैक्ट्री में 10 मशीनें लगाईं. वो दिन था और आज का दिन है.
कई वर्षों तक अंतरराष्ट्रीय ब्रैंड जैसे एडिडास और रीबॉक का सप्लायर रहने के बाद रोशन बैद ने वर्ष 2007 में एल्सिस की शुरुआत की. यह भारतीय स्पोर्ट्स ब्रैंड था. (सभी फ़ोटो : नवनिता)
|
रोशन ने अपनी पहली कंपनी पैरागॉन प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना 1997 में की थी. यह कंपनी एडिडास और रीबॉक जैसी कंपनियों के लिए टी-शर्ट, जैकेट, ट्रैक पैंट्स, ट्रैक सूट के अलावा हुड बनाती थी.
पिछले साल उन्होंने ऐल्सिस स्पोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड की शुरुआत की. यह कंपनी घरेलू बाज़ार के लिए ऐल्सिस ब्रैंड के नाम से खेल का सामान बनाती है.
यह कंपनी दुनिया की बड़ी कंपनियों को कड़ी टक्कर दे रही है.
आज इन दो कंपनियों में 5,000 से ज़्यादा कर्मचारी काम करते हैं और दोनों कंपनियों का कुल टर्नओवर 240 करोड़ रुपए है. इसमें से पहले साल में ऐल्सिस का योगदान 25 करोड़ रुपए रहा.
ऐल्सिस प्रो-कबड्डी लीग की छह टीमों के कपड़ों की आधिकारिक स्पांसर है.
46 वर्षीय रोशन कहते हैं, “हम श्रेष्ठ क्वालिटी वाले खेल के कपड़े ऑफ़र करना चाहते थे, लेकिन भारतीय दामों पर. इस तरह 2017 में ऐल्सिस स्पोर्ट्स का जन्म हुआ.”
“हमारी टी-शर्ट्स ऐसी चीज़ों से बनी हैं, जो पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचातीं. अंतरराष्ट्रीय ब्रैंड्स की टी-शर्ट्स का रंग गहरा होता है लेकिन हमारी टी-शर्ट्स कई चमकीले रंगों में उपलब्ध हैं. इन टी-शर्ट्स पर कीटाणुओं का असर नहीं होता और ये भारतीय माहौल के हिसाब से उपयुक्त हैं.”
कुछ टी-शर्ट्स इतनी हल्की होती हैं कि उनका वज़न मात्र 70 ग्राम होता है. इनका दाम 399 और 1,400 रुपए के बीच होता है.
पैरागॉन को हाल ही में फ़ीफ़ा 2018 के ‘फ़ैन-वियर’ कपड़े बनाने का लाइसेंस मिला. कंपनी ने चार आईपीएल और चार आईएसएल टीमों के लिए भी कपड़े बनाए हैं.
तेजपुर में जन्मे रोशन स्कूल के दिनों से ही खेलकूद में सक्रिय थे. वो राज्य स्तर पर टेनिस भी खेल चुके हैं.
उनके पिता की मोटर पार्ट्स की दुकान थी. वो चाहते थे कि उनके बेटे को अच्छी शिक्षा मिले. इसीलिए रोशन ने अजमेर के मेयो कॉलेज में स्कूली शिक्षा पूरी की.
पैरागॉन और एल्सिस दोनों कंपनियां संयुक्त रूप से 5,000 से अधिक लोगों को रोज़गार दे रही हैं. |
रोशन कहते हैं, “हॉस्टल में ज़िंदगी मुश्किल थी. उन दिनों ने हमें ज़िंदगी के मुश्किल क्षणों से निपटने के लिए तैयार किया.”
स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्मालय के हंसराज कॉलेज से बीएससी किया. फिर 1995 में निफ़्ट, दिल्ली से एपरेल मार्केटिंग एंड मर्चेंडाइज़िंग का कोर्स किया.
उसके बाद वो बेंगलुरु में कपड़ा बनाने वाली गोकुलदास कंपनी में 7,000 रुपए की तनख़्वाह पर काम करने चले गए. वहां उन्होंने 1995 से 1997 तक काम किया.
वो याद करते हैं, “मैं जल्द ही नौकरी से उब गया और दिल्ली आ गया. मैंने अपने पिता से चार लाख रुपए उधार लिए और 10 मशीनों के साथ दिल्ली के बाहरी इलाक़े में एक गारमेंट प्रोडक्शन युनिट की शुरुआत की.”
इस तरह पैरागॉन की शुरुआत हुई. पहले साल में ही कंपनी ने 40 लाख का टर्नओवर हासिल कर लिया.
शुरुआत में वो इलाक़े के प्रमुख निर्यातकों से सुबह कच्चा माल उठाते और शाम तक तैयार माल की डिलिवरी करते.
वो कहते हैं, “मैं अपने पिता की कार में दिनभर घूमता रहता था. हालांकि यह कई सालों तक चला. जिस तरह से काम चल रहा था मैं ख़ुश नहीं था और बिज़नेस को बेहतर करने के तरीक़े ढूंढ रहा था.”
साल 2001 में रोशन को रीबॉक के लिए खेल का सामान बनाने का मौक़ा मिला. उनके जीवन में यह बड़ा टर्निंग प्वाइंट था.
एल्सिस की डिज़ाइनिंग टीम समकालीन वैश्विक ट्रेंड से तालमेल बैठाकर काम करती है.
|
इसके बाद रोशन के बिज़नेस में बढ़ोतरी होने लगी.
रोशन कहते हैं, “साल 2010 तक हमारे पास 2,000 मशीनें हो गईं और हमने फ़ैक्ट्री नोएडा में शिफ़्ट कर दी. साल 2009 में हमारा टर्नओवर 100 करोड़ रुपए पहुंच गया. हमने नोएडा में ख़ुद की प्रिंटिंग और एम्ब्रॉइडरी फ़ैक्ट्री के अलावा हिमाचल प्रदेश में बड़ी फ़ैब्रिक मिल की शुरुआत की.”
साल 2012 कंपनी के लिए मील का पत्थर साबित हुआ.
“हमने कोरिया की एक कंपनी के साथ गठबंधन किया और 45 करोड़ की एडवांस्ड मशीन आयात की जिससे हमें भारत का सबसे बड़ा स्पोर्ट्सवियर ब्रैंड का सप्लायर बनने में मदद मिली.”
एडवांस्ड तकनीक के इस्तेमाल से रोशन को उत्पादन की क़ीमत घटाने में मदद मिली क्योंकि इससे पहले उन्हें महंगे कपड़े ताइवान ने आयात करने पड़ते थे.
इसके बाद रोशन ने भारत में खेलों के आरामदायक कपड़े के बढ़ते बिज़नेस में प्रवेश करने का फ़ैसला किया.
इस तरह साल 2017 में ऐल्सिस की शुरुआत हुई, जब सिंगापुर की कंपनी आरबी इन्वेस्टमेंट्स ने कंपनी में चार मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया और कंपनी में 25 प्रतिशत हिस्सा ख़रीद लिया.
ऐल्सिस को अपनी पैरेंट कंपनी पैरागॉन से भी सहयोगी मिला.
आज ऐल्सिस के 700 आउटलेट हैं. इसके अलावा सेंट्रल मॉल, शॉपर्स स्टॉप में कियोस्क के अलावा देश में कई स्थानों पर रिटेल काउंटर हैं. कंपनी के मेट्रो शहरों में आठ एक्सक्लूसिव रिटेल स्टोर हैं. कंपनी की ऑनलाइन भी मौजूदगी है.
रोशन ने क्रिकेटर शिखर धवन को एल्सिस का ब्रैंड एंबेसडर बनाया है. |
क्रिकेटर शिखर धवन ऐल्सिस के ब्रैंड एंबैसडर हैं. रोशन आक्रामक तरीक़े से अपने ब्रैंड का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं.
उन्हें उम्मीद है कि ताज़ा वित्तीय वर्ष के अंत तक ऐल्सिस का टर्नओवर 65 करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगा.
पैरागन को साल 2013, 2014 और 2015 में नोएडा एक्सपोर्ट्स क्लस्टर में सबसे बेहतरीन निर्यातक होने का अवार्ड मिला है. कंपनी को 2015 में एपरेल एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल की ओर से अवॉर्ड दिया गया. 2016 में यह टाइम्स अवार्ड की फ़ाइनालिस्ट की सूची में भी रही.
...तो रोशन की कामयाबी का क्या राज़ है?
वो कहते हैं, “उत्पादन के लिए ज़रूरी है कि डिलिवरी वक्त पर हो. कस्टमर तक सही समय पर पहुंचने के लिए बेहतर सप्लाई चेन होना भी महत्वपूर्ण है.”
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
शुद्ध मिठास के कारोबारी
ट्रेकिंग के दौरान कर्नाटक और तमिलनाडु के युवा इंजीनियरों ने जनजातीय लोगों को जंगल में शहद इकट्ठी करते देखा. बाजार में मिलने वाली बोतलबंद शहद के मुकाबले जब इसकी गुणवत्ता बेहतर दिखी तो दोनों को इसके बिजनेस का विचार आया. 7 लाख रुपए लगातार की गई शुरुआत आज 3.5 करोड़ रुपए के टर्नओवर में बदलने वाली है. पति-पत्नी मिलकर यह प्राकृतिक शहद विदेश भी भेज रहे हैं. बता रही हैं उषा प्रसाद -
संघर्ष से मिली सफलता
नितिन गोडसे ने खेत में काम किया, पत्थर तोड़े और कुएं भी खोदे, जिसके लिए उन्हें दिन के 40 रुपए मिलते थे. उन्होंने ग्रैजुएशन तक कभी चप्पल नहीं पहनी. टैक्सी में पहली बार ग्रैजुएशन के बाद बैठे. आज वो 50 करोड़ की एक्सेल गैस कंपनी के मालिक हैं. कैसे हुआ यह सबकुछ, मुंबई से बता रहे हैं देवेन लाड. -
नए भारत के वाटरमैन
‘हवा से पानी बनाना’ कोई जादू नहीं, बल्कि हकीकत है. मुंबई के कारोबारी सिद्धार्थ शाह ने 10 साल पहले 15 करोड़ रुपए में अमेरिका से यह महंगी तकनीक हासिल की. अब वे बेहद कम लागत से खुद इसकी मशीन बना रहे हैं. पीने के पानी की कमी से जूझ रहे तटीय इलाकों के लिए यह तकनीक वरदान है. -
घोर ग़रीबी से करोड़ों का सफ़र
वेलुमणि ग़रीब किसान परिवार से थे, लेकिन उन्होंने उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ा, चाहे वो ग़रीबी के दिन हों जब घर में खाने को नहीं होता था या फिर जब उन्हें अनुभव नहीं होने के कारण कोई नौकरी नहीं दे रहा था. मुंबई में पीसी विनोज कुमार मिलवा रहे हैं ए वेलुमणि से, जिन्होंने थायरोकेयर की स्थापना की. -
कॉस्मेटिक प्रॉडक्ट्स की मलिका
विदेश में रहकर आई मलिका को भारत में अच्छी गुणवत्ता के बेबी केयर प्रॉडक्ट और अन्य कॉस्मेटिक्स नहीं मिले तो उन्हें ये सामान विदेश से मंगवाने पड़े. इस बीच उन्हें आइडिया आया कि क्यों न देश में ही टॉक्सिन फ्री प्रॉडक्ट बनाए जाएं. महज 15 लाख रुपए से उन्होंने अपना स्टार्टअप शुरू किया और देखते ही देखते वे मिसाल बन गईं. अब तक उनकी कंपनी को दो बार बड़ा निवेश मिल चुका है. कंपनी का टर्नओवर 4 साल में ही 100 करोड़ रुपए काे छूने के लिए तैयार है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान.