2 लाख के बिज़नेस से शुरू हुआ टीपॉट, 4 साल में 2400 प्रतिशत बढ़कर हो गया 50 लाख
21-Nov-2024
By नरेंद्र कौशिक
नई दिल्ली
नई दिल्ली के रॉबिन झा ने वाक़ई चाय की प्याली में तूफ़ान मचा दिया है.
वो चाय बेचकर हर महीने 50 लाख रुपए का बिज़नेस कर रहे हैं.
30 वर्षीय रॉबिन गली के कोने पर चाय बेचने वाले आम व्यक्ति नहीं हैं, वो स्टार्ट-अप टीपॉट के सीईओ हैं. उनकी कंपनी दिल्ली-एनसीआर में 21 टी-बार चलाती है. शुरुआत हुई थी दो लाख रुपए महीने की बिक्री से. चार साल बाद यह 2400 प्रतिशत बढ़कर 50 लाख रुपए महीना पहुंच गई है.
टीपॉट के सीईओ रॉबिन झा ने वर्ष 2020 तक देशभर में 200 आउटलेट खोलने का लक्ष्य तय किया है. (सभी फ़ोटो : नवनिता)
|
रॉबिन चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं. इससे पहले अर्न्स्ट ऐंड यंग में मर्जर ऐंड एक्विजिशन एग्ज़ीक्यूटिव के तौर पर काम कर चुके हैं.
उन्होंने सपने में भी कभी बिज़नेस की इन ऊंचाइयों को छूने के बारे में नहीं सोचा था. कम से कम साल 2013 की शुरुआत में तो नहीं, जब उन्होंने 20 लाख रुपए के निवेश से दक्षिणी दिल्ली के मालवीय नगर में चाय की दुकान खोली.
उन्होंने नौकरी से बचाए पैसों से निवेश किया. साथ ही दो दोस्तों मार्केटिंग एग्ज़ीक्यूटिव अतीत कुमार और सीए असद खान की मदद ली.
सबसे पहले उन्होंने अप्रैल 2012 में शिवांता एग्रो फ़ूड्स नामक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाई. वो ख़ुद कंपनी के सीईओ थे. असद ऑपरेशन प्रमुख थे और अतीत मार्केटिंग प्रमुख.
रॉबिन बताते हैं, “ख़ुद का कुछ शुरू करने का विचार अर्न्स्ट ऐंड यंग में काम करते वक्त आया. मैंने ख़ुद से पूछा, क्या मैं कुछ करना चाहता हूँ?”
चाय के अतिरिक्त टीपॉट में थाई, इटैलियन और कॉन्टिनेंटल स्नैक्स भी उपलब्ध हैं.
|
उन्होंने दोस्तों के साथ बिज़नेस आइडिया पर मंथन किया और चाय से जुड़ा काम करना तय किया. उनके पिता नरेंद्र झा, जो रांची में बैंक मैनेजर हैं, और मां रंजना दोनों इस विचार के खिलाफ़ थे. उन्हें इस काम में सफलता मिलने को लेकर आशंकाएं थीं, लेकिन आखिर वो मान गए.
तैयारियों के रूप में रॉबिन ने कॉफ़ी बाज़ार से जुड़ी डिमांड और सप्लाई पर कई रिपोर्टें पढ़ीं. उन्होंने पाया कि 85-90 प्रतिशत भारतीय चाय पीते हैं और यह संख्या ख़ासी बड़ी है. चाय के साथ उन्होंने कई तरह के स्नैक भी जोड़ दिए.
उन्होंने चाय बागानों से संपर्क किया और दिल्ली के विभिन्न कैफ़े में चाय के विशेषज्ञ लोगों से मिले.
आखिरकार साल 2013 में दक्षिण दिल्ली के मालवीय नगर के मुख्य मार्केट में 800 वर्ग फ़ुट की दुकान में टीपॉट का जन्म हुआ. शुरुआत में 10 स्थायी कर्मचारी थे. वो 25 तरह की चाय और जलपान सर्व करते थे.
रॉबिन ने बीकॉम की शुरुआत दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से की लेकिन ग्रैजुएशन पूरा करने के लिए कॉरेसपांडेंस का रुख किया. साथ ही वो चार्टर्ड अकाउंटेंसी की पढ़ाई भी करते रहे.
वो बताते हैं कि शुरुआत में उनका इरादा टीपॉट की चेन शुरू करने का नहीं था.
टीपॉट की कामयाबी को लेकर उन्हें पूरा विश्वास नहीं था, इसलिए उन्होंने ईएंडवाय कंपनी में भी नौकरी जारी रखी लेकिन जून 2013 में वो पूरी तरह बिज़नेस में कूद पड़े.
अपनी आगे की रणनीति को मूर्त रूप देने के लिए उन्होंने मालवीय नगर के अपने ग्राहकों से टैबलेट और कागज़ पर फ़ीडबैक देने को कहा.
अपने आउटलेट पर रॉबिन.
|
इससे पता चला कि उनके यहां आने वाले ज़्यादातर ग्राहक 25-30 की उम्र के ऑफ़िस जाने वाले लोग थे, जो चाय पीने बाहर आते थे.
इसी बात ने उनका ध्यान दफ़्तरों की ओर खींचा और टीपॉट ने जून 2014 में गुरुग्राम में ऑनलाइन ट्रैवल कंपनी आईबीबो के दफ़्तर में पहला आउटलेट खोला.
वो बताते हैं, “दफ़्तर में ग्राहकों को इकट्ठा करना आसान होता है.”
आज टीपॉट के 21 आउटलेट हैं. इनमें क़रीब आधे दिल्ली-एनसीआर के दफ़्तरों में हैं, जैसे नोएडा में वर्ल्ड ट्रेड टॉवर और दिल्ली का केजी मार्ग.
बाकी आउटलेट बाज़ारों, मेट्रो स्टेशन, टी3 एअरपोर्ट टर्मिनल पर हैं.
आज उनके आउटलेट पर आधा दर्जन चाय जैसे ब्लैक, ऊलॉन्ग, ग्रीन, व्हाइट, हर्बल और फ्लेवर्ड के 100 से अधिक स्वाद मिलते हैं.
टीपॉट का असम और दार्जीलिंग के पांच चाय बागानों से गठजोड़ है. इस कारण हर साल कंपनी चाय के पांच नए फ़्लेवर की शुरुआत करती है और पुराने फ़्लेवर को बंद कर दिया जाता है..
रॉबिन के लिए जिंदगी कप और प्लेट के इर्द-गिर्द घूमती है.
|
चाय-नाश्ता को सार्थक करते हुए टीपॉट में कुकीज़, मफ़िंस, सैंडविच, वड़ा पाव, कीमा पाव के अलावा थाई, इटैलियन और कॉन्टिनेंटल स्नैक्स सर्व किए जाते हैं.
रॉबिन की योजना वर्ष 2020 तक 10 बड़े शहरों में 200 आउटलेट खोलने की है. वो मानते हैं कि हर्बल, ऊलॉन्ग और बिना दूध की चाय का भविष्य उज्ज्वल है.
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
इस आईटी कंपनी पर कोरोना बेअसर
पंजाब की मनदीप कौर सिद्धू कोरोनावायरस से डटकर मुकाबला कर रही हैं. उन्होंने गांव के लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए गांव में ही आईटी कंपनी शुरू की. सालाना टर्नओवर 2 करोड़ रुपए है. कोरोना के बावजूद उन्होंने किसी कर्मचारी को नहीं हटाया. बल्कि सबकी सैलरी बढ़ाने का फैसला लिया है. -
सचिन भी इनके रेस्तरां की पाव-भाजी के दीवाने
वो महज 13 साल की उम्र में 30 रुपए लेकर मुंबई आए थे. एक ऑफ़िस कैंटीन में वेटर की नौकरी से शुरुआत की और अपनी मेहनत के बलबूते आज प्रतिष्ठित शाकाहारी रेस्तरां के मालिक हैं, जिसका सालाना कारोबार इस साल 20 करोड़ रुपए का आंकड़ा छू चुका है. संघर्ष और सपनों की कहानी पढ़िए देवेन लाड के शब्दों में -
100% खरे सर्वानन
चेन्नई के सर्वानन नागराज ने कम उम्र और सीमित पढ़ाई के बावजूद अमेरिका में ऑनलाइन सर्विसेज कंपनी शुरू करने में सफलता हासिल की. आज उनकी कंपनी का टर्नओवर करीब 18 करोड़ रुपए सालाना है. चेन्नई और वर्जीनिया में कंपनी के दफ्तर हैं. इस उपलब्धि के पीछे सर्वानन की अथक मेहनत है. उन्हें कई बार असफलताएं भी मिलीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. बता रही हैं उषा प्रसाद... -
आईआईएम टॉपर बना किसानों का रखवाला
पटना में जी सिंह मिला रहे हैं आईआईएम टॉपर कौशलेंद्र से, जिन्होंने किसानों के साथ काम किया और पांच करोड़ के सब्ज़ी के कारोबार में धाक जमाई. -
ये हैं डस्टलेस पेंटर्स
नए घर की पेंटिंग से पहले सफ़ाई के दौरान उड़ी धूल से जब अतुल के दो बच्चे बीमार हो गए, तो उन्होंने इसका हल ढूंढने के लिए सालों मेहनत की और ‘डस्टलेस पेंटिंग’ की नई तकनीक ईजाद की. अपनी बेटी के साथ मिलकर उन्होंने इसे एक बिज़नेस की शक्ल दे दी है. मुंबई से देवेन लाड की रिपोर्ट