Milky Mist

Thursday, 27 November 2025

कैसे ख़ुद पर भरोसा कर खड़ा किया 130 करोड़ रुपए का कारोबार

27-Nov-2025 By सोफ़िया दानिश खान
नई दिल्ली

Posted 11 Aug 2018

नीलम मोहन अद्भुत महिला हैं. उन्‍होंने ख़ुद के दम पर अपना बिज़नेस एंपायर खड़ा कर लिया. चाहे कॉलेज की पढ़ाई हो, शादी हो, मां बनना हो या फिर गारमेंट डिज़ाइनर के तौर पर ख़ुद को स्थापित करना, उन्होंने हमेशा ख़ुद पर भरोसा किया.

यह शुरुआत हुई 1993 में मात्र चार दर्जियों के साथ. आज 130 करोड़ के टर्नओवर वाले मैग्नोलिया मार्टनिक क्लोदिंग प्राइवेट लिमिटेड में 3,000 लोग काम करते हैं.

दिल्‍ली में फ़्रीलांस डिज़ाइनर के तौर पर शुरुआत करने वाली नीलम मोहन अब एक बिज़नेस की मालकिन हैं. इसका टर्नओवर 130 करोड़ रुपए सालाना है और इससे 3,000 लोगों को रोज़गार मिला है. (सभी फ़ोटो : नवनिता)


बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से बीए करते हुए उन्‍होंने वैकल्पिक विषय के रूप में पेंटिंग की पढ़ाई की. उनके पिता रेलवे कर्मचारी थे. चाहे दिल्ली हो, पंजाब या बनारस, जहां-जहां उनके पिता का तबादला हुआ, वहीं नीलम का बचपन बीता.

21 साल की उम्र में उनकी शादी आईआईटी-एमबीए कर चुके अमित मोहन से हो गई.

अब उम्र के 62वें पड़ाव पर पहुंच चुकीं नीलम बताती हैं, मैं पति के साथ दिल्ली आ गई और डिज़ाइनर के तौर पर पहला मौक़ा मिला. मैंने यूपी एक्सपोर्ट कॉर्पोरेशन के साथ पुरुषों के कपड़ों के कुछ डिज़ाइन तैयार किए. इस काम के लिए मुझे मासिक 3,000 रुपए मिले.

नीलम की ड्राइंग अच्छी थी, इसलिए उन्हें क्रिएटिव डिज़ाइन बनाने में आसानी हुई.

जल्‍द ही साल 1977 में उन्‍हें नारायना स्थित कानी फ़ैशंस में स्‍थायी नौकरी मिल गई.

नीलम बताती हैं, उस वक्‍त मेरी उम्र सिर्फ़ 22 साल थी और मैं कंपनी के सैंपलिंग डिपार्टमेंट की प्रमुख थी.

साल 1978 में जब वो गर्भवती हुईं, तो सातवें महीने में उन्‍हें यह काम छोड़ना पड़ा, क्‍योंकि वो बस से सफर नहीं कर सकती थीं. उस समय वह एक्‍सपोर्ट हाउस उन पर इस कदर निर्भर हो गया था कि नौवें महीने तक चेयरमैन की कार उन्‍हें घर से लेकर जाती और छोड़ने आती.

सिद्धार्थ के जन्‍म के बाद वो पूरा समय अपने बेटे को देना चाहती थीं, लेकिन एक एक्सपोर्ट हाउस के मालिक उनके पुराने दोस्त ने उन्‍हें आधा दिन काम करने का सुझाव दिया. वहां वो अपने बेटे को भी साथ ले जा सकती थीं. इस प्रस्‍ताव पर वो मान गईं.

मैग्‍नोलिया ने अपना ध्‍यान बच्‍चों के कपड़ों से हटाकर महिलाओं के कपड़ों की तरफ़ लगाया. यूरोप से अमेरिका तक बदले मार्केट से यह क़दम स्‍मार्ट साबित हुआ.


एक जर्मन क्लाइंट स्टीलमैन को उनकी डिज़ाइन पसंद आई और पहली बार उन्होंने एक भारतीय डिज़ाइनर से डिज़ाइन मंगाई.

नीलम बताती हैं, मैंने फ़्रीलांसिंग का काम जारी रखा. मुझे 500 रुपए प्रति घंटा कमाई होती थी. इसी दौरान मेरी पुरानी कंपनी की एक ऑस्ट्रेलियाई बायर ऐलिस मेरे कंपनी छोड़ने के बाद से काम के स्तर से ख़ुश नहीं थी. इसलिए उसने मुझे ढूंढा और 50 प्रतिशत पैसा एडवांस ऑफ़र किया ताकि मैं उनके लिए तुरंत काम शुरू कर सकूं.

ऐलिस के 50,000 रुपए की मदद से उन्होंने अपने दोस्त हरमिंदर सालधी के साथ 1983 में ओपेरा हाउस प्राइवेट लिमिटेड की शुरुआत की. इसमें उनके पुराने साथी सुशील कुमार भी शामिल हुए. इस तरह ऑस्ट्रेलियन क्लाइंट के लिए उत्पादन की शुरुआत हुई.

पहले साल कंपनी का टर्नओवर 15 लाख रुपए था, जो हर आने वाले सालों में दोगुना होता चला गया.

साल 1991 तक सब कुछ ठीकठाक चला, लेकिन उसी साल वो और उनके पति अलग हो गए.

अगले साल हरमिंदर और साहिल के साथ मतभेद के कारण नीलम कंपनी से अलग हो गईं और उन्होंने कंपनी में अपना हिस्सा तीन करोड़ रुपए में बेच दिया.

उन दिनों को याद करते हुए नीलम बताती हैं, कंपनी छोड़ने से पहले मैंने अपना सबसे अच्छा कलेक्शन डिज़ाइन तैयार किया क्योंकि मैं बिना किसी झगड़े के कंपनी छोड़ना चाहती थी.

डिज़ाइन नीलम के डीएनए का हिस्‍सा है.


2 जनवरी 1993 में उन्होंने चार दर्ज़ियों और मुट्ठीभर कर्मचारियों के साथ मैग्नोलिया ब्लॉसम की शुरुआत की. उन्होंने पंचशील पार्क में 1 करोड़ 40 लाख की लागत से एक घर ख़रीदा और उसे एक फ़ैक्ट्री में तब्‍दील कर दिया. यहां कर्मचारी दिन भर काम के बाद खा और सो भी सकते थे.

नीलम बताती हैं, मैं शुरुआत में हर महीने 20,000 रुपए सैलेरी भुगतान करती थी. पहले साल से ही हम मुनाफ़ा कमाने लगे और हमारा टर्नओवर 1.25 करोड़ रुपए पहुंच गया. मैंने ग्राहकों की तलाश में दुनिया भर का दौरा किया और फ़्रांस की कंपनी कियाबी के साथ अच्‍छी डील साइन की.

अब तक मैग्नोलिया ब्‍लॉसम मुख्‍य रूप से बच्‍चों के कपड़े बनाती थी. हालांकि बाद में उसने महिलाओं के कपड़ों की ओर ध्‍यान देना शुरू किया. साथ ही उन्होंने बाज़ार को यूरोप से अमेरिका तक फ़ैलाया, जो एक स्मार्ट क़दम साबित हुआ.

आगामी वर्षों में, नीलम की बदौलत कई ज़िंदगियों में बदलाव आया. जैसे मुन्ना मास्टर जिन्हें नीलम ने मैग्नोलिया में पैटर्न मेकिंग सिखाई. उनके पास आज एक कार है और वो एक लाख रुपए महीना तक कमाते हैं.

नीलम का बिज़नेस अच्छा चल रहा था, लेकिन कर्मचारियों पर अधिक ख़र्च के चलते कंपनी को घाटा होने लगा और साल 2002 में कंपनी दीवालिया होने की कगार पर आ गई.

ऐसे में एक एक्सपोर्टर दोस्त ने उन्हें सलाह दी कि वो कंपनी का काम आउटसोर्स कर दें.

नीलम बताती हैं, मैंने उत्पादन का काम आउटसोर्स करना शुरू कर दिया और भारी मात्रा में कर्मचारी कम कर दिए. एक वक्त जहां मैग्नोलिया ब्लॉसम में 650 लोग काम करते थे, यह संख्या घटकर अब 100 हो गई थी.

कंपनी को संभलने में क़रीब एक साल लगा, लेकिन आखिरकार अच्छे दिन एक बार फिर लौट आए.

साल 2002 में जब उनका बेटा सिद्धार्थ अमेरिका से पढ़ाई करके लौटा तो अपनी मां को सुबह तीन बजे तक काम करते देखकर वह तुरंत मां की मदद के लिए आगे आया.

नोएडा स्थित मैग्‍नोलिया की इमारत के सामने नीलम.


2007 में कंपनी फिर से अपनी गति से दौड़ने लगी. अगले 10 सालों में कंपनी का टर्नओवर 30 करोड़ से बढ़कर 130 करोड़ रुपए हो गया.

नीलम कहती हैं, सिद्दार्थ अब लीड-सर्टिफ़ाइड सस्टेनेबल फ़ेसिलिटी बनाना चाहता है. मुझे उस पर बहुत नाज़ है.

नीलम, सिद्दार्थ और उनकी पत्नी पल्लवी मैग्नोलिया मार्टनिक क्लोदिंग प्राइवेट लिमिटेड में डायरेक्टर हैं. उनका ऑफ़िस नोएडा में है और एक दूसरी फ़ैक्ट्री पर काम चल रहा है.

साल 2009 में नीलम ने बुज़ुर्गों के लिए एक घर बनाने पर काम करना शुरू किया. पंचवटी नामक इस घर में बुज़ुर्गों के लिए सभी सुविधाएं हैं.

अब उनका ध्‍यान पूरी तरह इसी पर है.

मुस्‍कुराते हुए नीलम कहती हैं, मैं जानती हूं कि बेटे के हाथ में कंपनी का भविष्‍य सुरक्षित है. यक़ीनन नीलम ने संबंधों के साथ बिज़नेस में भी बेहतर तरीक़े से निवेश किया है.

 


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • How Two MBA Graduates Started Up A Successful Company

    दो का दम

    रोहित और विक्रम की मुलाक़ात एमबीए करते वक्त हुई. मिलते ही लगा कि दोनों में कुछ एक जैसा है – और वो था अपना काम शुरू करने की सोच. उन्होंने ऐसा ही किया. दोनों ने अपनी नौकरियां छोड़कर एक कंपनी बनाई जो उनके सपनों को साकार कर रही है. पेश है गुरविंदर सिंह की रिपोर्ट.
  • Once his family depends upon leftover food, now he owns 100 crore turnover company

    एक रात की हिम्मत ने बदली क़िस्मत

    बचपन में वो इतने ग़रीब थे कि उनका परिवार दूसरों के बचे-खुचे खाने पर निर्भर था, लेकिन उनका सपना बड़ा था. एक दिन वो गांव छोड़कर चेन्नई आ गए. रेलवे स्टेशन पर रातें गुजारीं. आज उनका 100 करोड़ रुपए का कारोबार है. चेन्नई से पी.सी. विनोज कुमार बता रहे हैं वी.के.टी. बालन की सफलता की कहानी
  • A rajasthan lad just followed his father’s words and made fortune in Kolkata

    डिस्काउंट पर दवा बेच खड़ा किया साम्राज्य

    एक छोटे कपड़ा कारोबारी का लड़का, जिसने घर से दूर 200 वर्ग फ़ीट के एक कमरे में रहते हुए टाइपिस्ट की नौकरी की और ज़िंदगी के मुश्किल हालातों को बेहद क़रीब से देखा. कोलकाता से जी सिंह के शब्दों में पढ़िए कैसे उसने 111 करोड़ रुपए के कारोबार वाली कंपनी खड़ी कर दी.
  • Vada story mumbai

    'भाई का वड़ा सबसे बड़ा'

    मुंबई के युवा अक्षय राणे और धनश्री घरत ने 2016 में छोटी सी दुकान से वड़ा पाव और पाव भाजी की दुकान शुरू की. जल्द ही उनके चटकारेदार स्वाद वाले फ्यूजन वड़ा पाव इतने मशहूर हुए कि देशभर में 34 आउटलेट्स खुल गए. अब वे 16 फ्लेवर वाले वड़ा पाव बनाते हैं. मध्यम वर्गीय परिवार से नाता रखने वाले दोनों युवा अब मर्सिडीज सी 200 कार में घूमते हैं. अक्षय और धनश्री की सफलता का राज बता रहे हैं बिलाल खान
  • Royal brother's story

    परेशानी से निकला बिजनेस आइडिया

    बेंगलुरु से पुड्‌डुचेरी घूमने गए दो कॉलेज दोस्तों को जब बाइक किराए पर मिलने में परेशानी हुई तो उन्हें इस काम में कारोबारी अवसर दिखा. लौटकर रॉयल ब्रदर्स बाइक रेंटल सर्विस लॉन्च की. शुरुआत में उन्हें लोन और लाइसेंस के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा, लेकिन मेहनत रंग लाई. अब तीन दोस्तों के इस स्टार्ट-अप का सालाना टर्नओवर 7.5 करोड़ रुपए है. रेंटल सर्विस 6 राज्यों के 25 शहरों में उपलब्ध है. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह