Milky Mist

Thursday, 28 March 2024

चीन की तकनीक भारत लाए, 40 लाख रुपए का टर्नओवर चार साल में हुआ तीन करोड़

28-Mar-2024 By सोफिया दानिश खान
नई दिल्ली

Posted 08 Aug 2019

छोटे से खेल के मैदान से शुरुआत करने वाले सात दोस्‍तों ने कारोबार में भी एकजुटता दिखाकर मिसाल कायम की है. इन दोस्‍तों ने 3डी प्रिंटर कारोबार में हाथ आजमाया और अगली पीढ़ी को इसमें माहिर बनाने के लिए इसे स्‍कूलों तक ले गए. महज चार सालों में उनका टर्नओवर 3 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है.

सात दोस्‍तों का यह समूह एक ही बाल भारती पब्लिक स्‍कूल से वर्ष 2012 में पढ़कर निकला. सभी अपनी-अपनी राह चले. सभी अलग-अलग कोर्स करने लगे. लेकिन सब संपर्क में रहे और साथ ही घूमने-फिरने जाया करते थे.

3डेक्‍स्‍टर के संस्‍थापक – खड़े हुए (बाएं से) निकुंज, रौनक, शांतनु और पार्थ, बैठे हुए (बाएं से) समर्थ, राघव और नमन. (सभी फोटो : विशेष व्‍यवस्‍था से)

इन दोस्‍तों की एडवेंचर ट्रिप की तस्‍वीरें सोशल मीडिया पर अन्‍य दोस्‍तों को सवाल करने के लिए उकसाती थी. इन सप्‍तकों में से एक राघव सरीन याद करते हैं, ‘‘एडवेंचर ट्रेवल को सुगम और स‍हज बनाने के लिए वर्ष 2014 में हमने स्‍मैप्‍सटर्स नामक कंपनी रजिस्‍टर करवाई.’’

इस तरह ये दोस्‍त घूमने के शौकीन लोगों को 20 से 25 दिन की ट्रिप कराने लगे. बहुत कम समय में इन्‍होंने दो लाख रुपए मुनाफा कमाया. इस पैसे से दोस्‍तों के इस समूह ने रौनक सिंघी के ठसाठस भरे कमरे से 3डेक्‍स्‍टर की शुरुआत की.

सह-संस्थापकों में से एक 25 वर्षीय नमन सिंघल याद करते हैं, ‘‘हमने कुछ आरएंडडी की और एक चीनी 3डी प्रिंटर आयात किया. जब प्रिंटर आया, तो हमने उसे पूरा खोल लिया और देखा कि यह कैसे काम करता है. अब हम भारत में उपलब्‍ध और कुछ चीन के आयातित पार्ट्स के दम पर अपना खुद का 3डी प्रिंटर बनाने की राह पर थे.’’

3डी प्रिंटर पहले से प्रोग्राम की गई सॉफ्टवेयर फाइल्‍स के जरिये ठोस चीजों का उत्‍पादन करता है. अग्रणी कंसल्टिंग फर्म मैकिन्‍जे का अनुमान है कि वर्ष 2020 तक वैश्विक 3डी प्रिंटर इंडस्‍ट्री 20 अरब डॉलर की हो जाएगी. इसमें भारत का हिस्‍सा 79 मिलियन डॉलर आंका गया है.

सिंघल कहते हैं, ‘‘मैकर्स एंड बायर्स और स्‍केच अप जैसे विशेष सॉफ्टवेयर पर इमेज तैयार कर लेने पर प्रिंटर एक के ऊपर एक क्षैतिज लेयर्स बनाकर प्रिंटिंग शुरू कर देता है. प्रॉडक्‍ट का अंतिम स्‍वरूप प्‍लास्टिक से बना 3डी रूप में होगा. हमने वुडन फ्रेम का 3डी प्रिंटर बनाया और उसे 45 हजार रुपए में बेच दिया. इससे हमें अच्‍छा-खासा मुनाफा हुआ.’’

3डेक्‍स्‍टर एजुकेशन प्राइवेट लिमिटेड के निदेशकों की सूची में सिंघल का नाम सरीन (25), सिंघी (25), निकुंज सिंघल (22), समर्थ वासदेव (25), पार्थ बत्रा (25) और शांतनु क्‍वात्रा (25) आ गया. इनके साथ नरेंद्र श्‍याम चुखा का नाम भी था.

अकाउंट्स और फाइनेंस ट्रेनिंग इंस्‍टीट्यूट आईसीए एजुस्‍कील्‍स के निदेशक चुखा ने सातों दोस्‍तों के विजन से प्रभावित होकर सितंबर 2016 में उनकी कंपनी में एक करोड़ रुपए निवेश किए. सिंघी कहते हैं, ‘‘वे हमारे लिए मेंटर से बढ़कर साबित हुए, जिन्‍होंने सही दिशा में बढ़ने के लिए हमारा मार्गदर्शन किया. खर्चों पर नियंत्रण की उनकी सलाह से हमें परिष्‍कृत उद्यमी बनने में मदद मिली.’’

एक स्‍कूल में 3डी प्रिंटिंग का सेशन.

सभी के लिए असली चुनौती उत्‍पादों की मार्केटिंग करना था. सिंघी कहते हैं, ‘‘इन उत्‍पादों की फैशन और ऑटोमोबाइल इंडस्‍ट्री में बहुत संभावनाएं हैं. इसके अतिरिक्‍त आर्किटेक्‍ट की भी यह मदद कर सकता है. वे कोई भी मकान बनाना शुरू करने से पहले उसका 3डी स्‍केच देख सकते हैं’’

लेकिन इन सभी दोस्‍तों ने शिक्षा क्षेत्र पर गौर करने का फैसला किया, क्‍योंकि ये जिस ‘मेक अ डिफरेंस’ नामक एनजीओ से जुड़े थे, वह अनाथालय के बच्‍चों के लिए ही काम करता था.

अपने उत्‍पाद की नवाचार तरीके से मार्केटिंग करने के बारे में सिंघी कहते हैं, ‘‘शुरुआत में हम करीब 20 स्‍कूल गए और इस नई तकनीक के इस्‍तेमाल के बारे में बताने के लिए नि:शुल्‍क कार्यशालाएं कीं. हमने दिल्‍ली के द्वारका स्थित मैक्‍सफोर्ट स्‍कूल में तीन महीने का पायलट प्रोजेक्‍ट किया और 3डेक्‍स्‍टर को उनके सिलेबस में शामिल कराने की इच्‍छा जताई्’’

उन्‍हें अच्‍छा रिस्‍पॉन्‍स मिला. वे सही राह पर चल पड़े और टीम ने 3डी प्रिंटिंग को कोर्स में शामिल कराने का प्रस्‍ताव लेकर अन्‍य स्‍कूलों में जाना शुरू कर दिया, ताकि छात्र-छात्राएं कुछ नया सीख सकें.

वर्तमान में वे दो लाख से लेकर सात लाख रुपए तक का पैकेज उपलब्‍ध करवा रहे हैं. इसमें प्रिंटर की संख्‍या स्‍कूल की मांग पर आधारित होती है.

सिंघी हंसते हुए कहते हैं, ‘‘हम टीचर्स को प्रशिक्षण देते हैं या अपने विशेषज्ञ टीचर्स को स्‍कूलों में भेजते हैं. स्‍कूलों में 3डी प्रिंटिंग की कक्षा रोज लगती है और इसका सालाना खर्च कम होकर 1200 रुपए प्रति विद्यार्थी तक आ चुका है. यानी यह खर्च एक कक्षा पर 100 रुपए प्रति महीना या 40 रुपए प्रति कक्षा तक आ चुका है. छात्र-छात्राओं ने बहुत से नए-नए प्रॉडक्‍ट बनाए हैं, जो अन्‍य बच्‍चों को बहुत खुशी देते हैं.’’

3डेक्‍स्‍टर ने बच्‍चों को 3डी प्रिंटिंग में प्रशिक्षित करने के लिए देशभर के करीब 150 स्‍कूलों से समझौता किया है.

कक्षा तीन से पांच के बच्‍चे मैकर्स एंड बायर्स का इस्‍तेमाल करते हैं. यह ऑस्‍ट्रेलियाई कंपनी का एक सॉफ्टवेयर है, जिससे 3डी डिजाइन बनाई जाती हैं. कक्षा छह से नौ तक के बच्‍चे स्‍केच अप का इस्‍तेमाल करते हैं. यह गूगल का एक ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर है.

साइटलाइन मैप्‍स के जरिये छात्र-छात्राएं गूगल मैप पर कोई सी भी भौगोलिक स्थिति को तलाश सकते हैं और 3डी मॉडल बना सकते हैं. चाहे वह पहाड़ हो, ज्‍वालामुखी हो, पठार हो या स्‍मारक हो.

सिंघल कहते हैं, ‘‘वर्तमान में 3डेक्‍स्‍टर पूरे भारत में 150 स्‍कूलों में चल रही है और 300 यूनिट प्रति वर्ष बेची जा रही है. टायर-टू श्रेणी के शहरों के स्‍कूलों ने भी इसमें गहरी दिलचस्‍पी दिखाई है. हालांकि हमारा उद्देश्‍य ऐसे स्‍कूलों से जुड़ना है, जिनकी एक से अधिक शाखाएं हैं. इसका कारण यह है कि इसमें कम प्रयास में अधिक मुनाफे की गुंजाइश है.’’

अब हमारा फोकस अधिक चैनल पार्टनर से जुड़ना है. जो हर शहर में सेल्‍स और मार्केटिंग संभाल सकें.

फिलहाल कोलकाता, चेन्‍नई और मदुराई में हमारे चैनल पार्टनर हैं, जिन्‍हें हमारी कोर टीम ने प्रशिक्षित किया है. बी2बी और बी2सी में नई संभावनाएं तलाशने के साथ वे फ्रैंचाइजी विकल्‍पों और चेन स्‍कूलों को भी तलाश रहे हैं.

लकड़ी की फ्रैम के स्‍ट्रक्‍चर से शुरू हुआ 3डी प्रिंटर अब पतली और शानदार मेटल फ्रैम में भी आने लगा है. 3डी इमेज बनाने में इस्‍तेमाल होने वाला सामान भी बदल गया है. अब प्‍लास्टिक के स्‍थान पर पर्यावरण हितैषी सामान इस्‍तेमाल हो रहा है. जैसे पीएलए, एबीएस, नायलोन और बायोडिग्रेडेबल प्‍लास्टिक.

लकड़ी की साधारण फ्रैम से करीने से संवारी गई सुरुचिपूर्ण मेटल फ्रैम तक 3डैक्‍स्‍टर टीम ने लंबा रास्‍ता तय किया है.

सात दोस्‍तों और पांच कर्मचारियों के साथ 2015 में शुरू हुई इस कंपनी में अब 40 पूर्णकालिक कर्मचारी हैं. शुरुआती वर्ष के 40 लाख रुपए के सामान्‍य टर्नओवर वाली कंपनी अब तीन करोड़ रुपए के टर्नओवर वाली बन गई है.

इस कंपनी के जो संस्‍थापक शुरुआत में 20 हजार रुपए तनख्‍वाह ले रहे थे, अब 50 हजार रुपए महीना तनख्‍वाह ले रहे हैं. सिंघल बंधु, सिंघी और सरीन पूर्णकालिक रूप से काम कर रहे हैं, जबकि वासुदेव, बत्रा व क्‍वात्रा बैठक और अन्‍य महत्‍वपूर्ण दिनों में टीम के साथ शामिल होते हैं.

सभी दोस्‍त परिवार से बढ़कर हैं. सभी के परिवार एक-दूसरे को जानते हैं और सभी पारिवारिक समारोहों के हिस्‍सा होते हैं. वे कभी नहीं चाहते कि उनके परिजन बिजनेस में निवेश करें और परिजनों ने हमेशा उनका समर्थन किया है.

सात दोस्‍तों की यह जुगलबंदी इसी तरह से जारी है. सबके बीच मतभेद हो सकते हैं, लेकिन मनभेद नहीं है. समय के साथ यह दोस्‍ती और प्रगाढ़ होती जा रही है.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Chai Sutta Bar Story

    चाय का नया जायका 'चाय सुट्टा बार'

    'चाय सुट्टा बार' नाम आज हर युवा की जुबा पर है. दिलचस्प बात यह है कि इसकी सफलता का श्रेय भी दो युवाओं को जाता है. नए कॉन्सेप्ट पर शुरू की गई चाय की यह दुकान देश के 70 से अधिक शहरों में 145 आउटलेट में फैल गई है. 3 लाख रुपए से शुरू किया कारोबार 5 साल में 100 करोड़ रुपए का हो चुका है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान
  • How Two MBA Graduates Started Up A Successful Company

    दो का दम

    रोहित और विक्रम की मुलाक़ात एमबीए करते वक्त हुई. मिलते ही लगा कि दोनों में कुछ एक जैसा है – और वो था अपना काम शुरू करने की सोच. उन्होंने ऐसा ही किया. दोनों ने अपनी नौकरियां छोड़कर एक कंपनी बनाई जो उनके सपनों को साकार कर रही है. पेश है गुरविंदर सिंह की रिपोर्ट.
  • PM modi's personal tailors

    मोदी-अडानी पहनते हैं इनके सिले कपड़े

    क्या आप जीतेंद्र और बिपिन चौहान को जानते हैं? आप जान जाएंगे अगर हम आपको यह बताएं कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निजी टेलर हैं. लेकिन उनके लिए इस मुक़ाम तक पहुंचने का सफ़र चुनौतियों से भरा रहा. अहमदाबाद से पी.सी. विनोज कुमार बता रहे हैं दो भाइयों की कहानी.
  • success story of courier company founder

    टेलीफ़ोन ऑपरेटर बना करोड़पति

    अहमद मीरान चाहते तो ज़िंदगी भर दूरसंचार विभाग में कुछ सौ रुपए महीने की तनख्‍़वाह पर ज़िंदगी बसर करते, लेकिन उन्होंने कारोबार करने का निर्णय लिया. आज उनके कूरियर बिज़नेस का टर्नओवर 100 करोड़ रुपए है और उनकी कंपनी हर महीने दो करोड़ रुपए तनख्‍़वाह बांटती है. चेन्नई से पी.सी. विनोज कुमार की रिपोर्ट.
  • how a parcel delivery startup is helping underprivileged women

    मुंबई की हे दीदी

    जब ज़िंदगी बेहद सामान्य थी, तब रेवती रॉय के जीवन में भूचाल आया और एक महंगे इलाज के बाद उनके पति की मौत हो गई, लेकिन रेवती ने हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने न सिर्फ़ अपनी ज़िंदगी संवारी, बल्कि अन्य महिलाओं को भी सहारा दिया. पढ़िए मुंबई की हे दीदी रेवती रॉय की कहानी. बता रहे हैं देवेन लाड