Milky Mist

Saturday, 23 November 2024

30 से 399 रुपए कीमत में पुरुषों के रेडिमेड कपड़े बेच बनाया 50 करोड़ टर्नओवर वाला ब्रांड

23-Nov-2024 By पी सी विनोज कुमार
चेन्नई

Posted 14 Sep 2019

‘‘आप हमारे किसी भी आउटलेट से एक प्‍याली चाय की कीमत में एक टी-शर्ट खरीद सकते हैं.’’

यह दावा है ससक्‍स ब्रांड के संस्‍थापक सी एम फैजल अहमद का. मदुरै के फैजल ने पुरुषों के इस ब्रांड के जरिये तमिलनाडु के रिटेल गारमेंट मार्केट में भूचाल ला दिया है.

नए शहर में उनके शोरूम की ब्रांच खुलते ही उसके बाहर ग्राहकों की एक-एक किलोमीटर लंबी कतार देखी जा सकती है. इस 15 अगस्‍त को चेन्‍नई की बारी थी. यहां अन्‍ना नगर में शोरूम का आउटलेट भी लोगों के ऐसे ही सैलाब का साक्षी बना.

फैजल अहमद ने वर्ष 2006 में मदुरै से सात सिलाई मशीनों और तीन टेलर के साथ ससक्‍स की शुरुआत की थी. (सभी फोटो – रवि कुमार)


शोरूम के बाहर भीड़ के वीडियो अहमद सोशल मीडिया पर पोस्‍ट करते हैं, जिससे शोरूम पर अधिक से अधिक भीड़ जुटाने और बिजनेस बढ़ाने में मदद मिलती है. 32 वर्षीय उद्यमी कहते हैं, ‘‘हमारे स्‍टोर पर पहले दिन ही नहीं, हर दिन भीड़ उमड़ती है.’’

वे कहते हैं, ‘‘हम टी-शर्ट, शर्ट, ट्राउजर और डेनिम बेचते हैं. कीमतें हैं 30 रुपए से 399 रुपए तक.’’ हमारी प्रति वर्ग फीट प्रति साल आमदनी 55,000 रुपए है. यह उद्योग की मानक आमदनी 7,000 प्रति वर्ग फीट से अधिक है. किसी भी उद्योग की उच्‍चतम आमदनी 13 हजार रुपए प्रति वर्ग फीट है, जो डी मार्ट की है.’’

कॉलेज की पढ़ाई के दौरान अहमद ने पांच लाख रुपए के निवेश से दक्षिण तमिलनाडु के मदुरै शहर में सात सिलाई मशीन और तीन टेलर के साथ शर्ट बनाने की यूनिट शुरू की थी.

उन्‍होंने ससक्‍स को 50 करोड़ रुपए टर्नओवर वाला ब्रांड बना दिया है. उन्‍होंने अपनी गलतियों से सीखा, सुधारों को अपनाया और अंतत: ‘लो-प्राइज’ का ऐसा फॉर्मूला लेकर आए, जो उनकी सफलता की कुंजी बना. यह भविष्‍य में बिजनेस-स्‍कूलों के शोध का विषय भी हो सकता है.

अहमद ऐसे परिवार से हैं, जिसकी दो पीढि़यों ने टेक्‍सटाइल ट्रेडिंग की. अहमद पर भी दबाव डाला गया कि वे पारिवारिक बिजनेस में उतरें और अपने पिता की मदद करें क्‍योंकि पिता पर 65 लाख रुपए का कर्ज था. इस कर्ज को एक पारिवारिक संपत्ति बेचकर चुकाया गया.

अहमद कहते हैं, ‘‘मेरे दादाजी ने अपने दो भाइयों के साथ मिलकर वर्ष 1940 में मदुरै के विलाकुथून से इंडियन क्‍लॉथ डिपो (आईसीडी) की शुरुआत की थी. 70 और 80 के दशक में उनका कारोबार खूब फला-फूला. आईसीडी के पास बिन्‍नी, मफतलाल और प्रीमियर मिल्‍स की होलसेल डीलरशिप थी. हम तमिलनाडु के सभी शीर्ष रिटेलर्स को शर्टिंग, सूटिंग, साड़ी और ब्‍लाउज पीस सप्‍लाई करते थे.’’

हालांकि, अगली पीढ़ी इस कंपनी को पेशेवर तरीके से नहीं चला पाई और कारोबार प्रभावित हुआ. अहमद याद करते हैं, ‘‘जब मैं दसवीं कक्षा में था, तब हमारी हालत बहुत खराब थी. हम निम्‍न मध्‍यमवर्गीय परिवार की तरह हो गए थे और किराए के घर में रहते थे. मेरे पिता गहरे कर्ज में डूब गए थे और मुझे कक्षा 9 से 12 तक के वे मुश्किलभरे दिन स्‍पष्‍ट रूप से याद हैं.’’

चेन्‍नई के ससक्‍स स्‍टोर में प्रवेश के इंतजार करती भीड़.


अहमद बताते हैं, ‘‘हमने पारिवारिक संपत्ति बेची और कर्ज चुकाया. विदेश जाकर उच्‍च शिक्षा हासिल करने का सपना मुझे छोड़ना पड़ा. इसके बजाय मैंने मदुरै के अमेरिकन कॉलेज में बीकॉम के लिए दाखिला किया.’’

अहमद ने जल्‍द ही नया बिजनेस शुरू कर फिर से परिवार की तकदीर बदल दी. वह महज 17 वर्ष के थे और कॉलेज के प्रथम वर्ष में ही थे, तब उनके पिता उन्‍हें तमिलनाडु की टेक्‍सटाइल चेन के डायरेक्‍टर पोथीस के पास ले गए. उन्‍होंने दोनों को कहा कि शर्ट बनाओ और हमारे आउटलेट पर सप्‍लाई करो.

उनकी सलाह पर अमल करते हुए अहमद ने पांच लाख रुपए के निवेश से शर्ट बनाने की ईकाई शुरू की. यह ऐसा वेंचर था, जिसे परिवार के कपड़ों के पारंपरिक ज्ञान का लाभ हुआ. यह प्रदेश के टेक्‍सटाइल रिटेलर्स से संपर्कों के आधार पर बढ़ा.

अहमद ने मदुरै के दक्षिण मासी स्‍ट्रीट में किराए की जगह से शुरुआत की और ससक्‍स ब्रांड नाम से 100 शर्ट रोज बनाने लगे. वे कहते हैं, ‘‘हमने अपनी इंडिका कार 3 लाख रुपए में बेची और कारोबार को मजबूती देने के लिए 2 लाख रुपए का कर्ज लिया.’’

वे 250 रुपए प्रति शर्ट के हिसाब से सिर्फ पोथीस को सप्‍लाई कर रहे थे. हर शर्ट पर उन्‍हें 15 रुपए लाभ हो रहा था. अहमद लागत पर मेहनत से काम कर रहे थे और अपने अकाउंटेंसी व कॉमर्स के ज्ञान का उपयोग कर रहे थे.

अहमद कहते हैं, ‘‘हम हर महीने करीब 2,000 शर्ट बनाने की तैयारी में थे, ताकि 20,000 से 30,000 रुपए तक मुनाफा कमा सकें. मैंने बटन, कपड़े की लागत का हिसाब लगाया और कटिंग व सिलाई प्रक्रिया के दौरान व्‍यर्थ निकलने वाले कपड़े को घटाकर अपना मार्जिन बढ़ाया. जल्‍द ही, हम हर महीने एक लाख रुपए मुनाफा कमाने लगे.’’

परिवार का टेक्‍सटाइल के कारोबार का बुनियादी अनुभव अहमद के काम आया. इसकी बदौलत वे ससक्‍स उत्‍पादों की लागत कम करने में सफल हुए.

परिवार की खोई प्रतिष्‍ठा और आर्थिक रुतबा लौटाने के लिए अहमद ने कठिन परिश्रम किया. वे कहते हैं, ‘‘बिजनेसमैन के ऐसे बच्‍चों को देखकर मैं प्रेरित होता था, जिन्‍हें मैं बचपन से जानता था और अब वे बेहतर कर रहे थे. मैं अपने परिवार का रुतबा भी बढ़ाना चाहता था और अपना सपना पूरा करने के लिए दिन-रात कठिन मेहनत करने में जुटा था.’’

टीवीएस एक्‍सएल बाइक की सवारी और कभी-कभी लोक परिवहन के साधन इस्‍तेमाल करते हुए अहमद सफलतापूर्वक कॉलेज और अपने काम के बीच संतुलन बनाए हुए थे.

वे याद करते हैं, ‘‘मैं सुबह 8 से दोपहर 3 बजे तक रोज कॉलेज जाता था. वहां से सीधे कारखाने चला जाता था और आधी रात तक काम करता था. हम लगातार उत्‍पादन बढ़ा रहे थे. तीसरे साल में मैंने मारुति स्विफ्ट कार खरीदी. जब मेरी कॉलेज की पढ़ाई पूरी हुई, तब तक हमारे पास 110 कर्मचारी थे. हम रोज 800 शर्ट बनाते थे और पोथीस समेत 30 स्‍टोर्स को आपूर्ति करते थे.’’

वर्ष 2010 में 23 वर्ष की उम्र में उनकी नाजिया से शादी हो गई. नाजिया तंजावुर से बीबीए में स्‍नातक थीं. उनका परिवार भी टेक्‍सटाइल रिटेल बिजनेस से जुड़ा था.

अगले वर्ष, अहमद ने मदुरै में एक एक्‍सक्‍लूसिव ब्रांड आउटलेट (ईबीओ) शुरू किया. छह महीने बाद इरोड में एक और ईबीओ शुरू किया. वर्ष 2013 तक उनके पांच आउटलेट खुल चुके थे. हालांकि इन स्‍टोर से अपेक्षित बिक्री नहीं हो पाई और कंपनी को घाटा होने लगा.

अहमद कहते हैं, ‘‘हमने बड़ा निवेश किया था, लेकिन मुनाफा बहुत कम हुआ. इरोड में किराया एक लाख रुपए था, लेकिन हम रोज केवल 800-1000 रुपए की बिक्री कर पा रहे थे. मुझे महसूस हुआ कि मैंने गलतियां कर दीं और कई सारे कारकों पर गौर ही नहीं किया- जैसे माल बिक्री और इसे फिर से भरना. इससे हमें असफलता हाथ लगी.’’ हमारी सारी तरल पूंजी और पिछले वर्षों में कमाया गया मुनाफा खत्‍म हो गया. इसके बाद मैंने सभी स्‍टोर बंद करने का फैसला किया.

ससक्‍स आउटलेट पर स्‍टॉक तुरत-फुरत खत्‍म हो जाता है. यहां कोई भी प्रोडक्‍ट अधिकतम 10 दिन ही टिक पाता है.

अहमद ने अपने इरोड स्थित आउटलेट पर डिस्‍काउंट सेल लगाकर सारा स्‍टॉक खत्‍म करने का निर्णय लिया. उन्‍होंने ‘एक खरीदो एक मुफ्त पाओ’ के विचार को त्‍याग दिया और स्‍टोर मैनेजर को कहा कि ‘1000 रुपए में 7 शर्ट पाओ’ ऑफर शुरू कर सभी ग्राहकों को संदेश भेज दें. उनके पास 3000 ग्राहकों का डाटाबेस था. उन सभी को सूचित कर दिया गया.

अहमद कहते हैं, ‘‘मैं बचे स्‍टॉक को वापस लाने में पैसा नहीं खर्च करना चाहता था, लेकिन नए ऑफर पर ग्राहकों की प्रतिक्रिया गेम चेंजर साबित हुई. पहले ही दिन यानी 22 दिसंबर 2015 को स्‍टोर पर 3.5 लाख रुपए की बिक्री हुई. बिक्री इसी तरह होती रही, जब तक कि स्‍टॉक खत्‍म नहीं हो गया. इसके बाद मैनेजर ने और स्‍टॉक भरने को कहा.’’

अहमद को लागत, कपड़ा खरीदने की प्रक्रिया, मुनाफा घटाने और इस मॉडल को टिकाऊ बनाने पर फिर से काम करना पड़ा. मदुरै और अन्‍य स्‍थानों पर कम कीमत की रणनीति को आजमाने से पहले एक साल तक उन्‍होंने इरोड में प्रयोग किया.

अहमद कहते हैं, ‘‘हमने निगेटिव वर्किंग कैपिटल पर काम किया. हमने उधार लेकर कच्‍चा माल इकट्ठा किया और वेंडर्स को बिक्री के बाद भुगतान किया. निर्माण से लेकर बिक्री तक की पूरी प्रक्रिया बहुत तेजी से की. स्‍टॉक 10 दिन में बिक जाता था.’’ वे कहते हैं हमने लाइट असेट मॉडल का अनुसरण किया और रोजमर्रा के हिसाब से कई नियम अपनाए.

उदाहरण के लिए, उन्‍होंने अपना आउटलेट मार्केट वैल्‍यू के 60 प्रतिशत पर किराए पर दे दिया और सिर्फ छह महीने का एडवांस दिया.

अहमद स्‍पष्‍टता से कहते हैं, ‘‘मकान मालिक इसलिए सहमत हो जाते थे क्‍योंकि वे किराएदारों से परेशान थे. वे किराया तो ऊंचा देते थे, लेकिन कुछ ही महीनों में बिजनेस बंद कर देते थे. इसके बाद अगला किराएदार मिलने तक उनकी संपत्ति खाली रहती थी. हमारा मॉडल टिकाऊ था.’’ वे बहुत कम मार्जिन पर काम कर रहे थे. शोरूम का इंटीरियर भी साधारण और कम-लागत का बनवाते थे.

अहमद कहते हैं, ‘‘इस तरह हमने लागत कम की और ग्राहकों तक फायदा पहुंचाया.’’ अहमद अगले कुछ महीनों में चार और स्‍टोर खोलने की योजना बना रहे हैं. वे इस संख्‍या को इस वित्‍तीय वर्ष के अंत तक 12 पर ले जाना चाहते हैं.

अहमद ने जब ससक्‍स की शुरुआत की थी, तब वे टीवीएस एक्‍सएल मोपेड की सवारी करते थे. आज उनके पास बीएमडब्‍ल्‍यू कार है.

इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल उत्‍पाद की क्‍वालिटी का है. खासकर उस टी-शर्ट की, जिसे अहमद 30 रुपए में बेचते हैं? यह कितने दिन चलती होगी?

अहमद दावा करते हैं, ‘‘यह महज भ्रम है कि यदि आप अधिक पैसा चुकाएंगे तो आपको ऊंची क्‍वालिटी का उत्‍पाद मिलेगा और कम पैसा चुकाएंगे तो आपको हल्‍की क्‍वालिटी मिलेगी. हमने इस मानसिकता को बदलने के लिए लोगों के बीच एक कैंपेन लॉन्‍च किया. जहां तक 30 रुपए की टी-शर्ट की बात है, यह छह महीने तक चल सकती है. इस दौरान इसे चाहे जितनी बार धोया जा सकता है.’’

आठ वर्षीय बेटे जरिफ के पिता अहमद रविवार का दिन अपने परिवार के साथ बिताते हैं. वे यंग इंडियंस और यंग एंटरप्रेन्‍योर स्‍कूल (वाईईएस) जैसे एंटरप्रेन्‍योर फोरम के सक्रिय सदस्‍य हैं.

अहमद प्रेरक वक्‍ताओं शिव खेड़ा, रॉबिन शर्मा और वित्‍तीय विशेषज्ञ अनिल लांबा के उत्‍कट अनुयायी हैं. उन्‍हें अग्रणी संस्‍थानों द्वारा आयोजित किए जाने वाले लीडरशिप प्रोग्राम में शामिल होना अच्‍छा लगता है. वे ऑक्‍सफोर्ड के 10 दिनी प्रोग्राम में शामिल हो चुके हैं. इसी दिसंबर में होने जा रहे स्‍टैनफोर्ड के प्रोग्राम के लिए भी उन्‍होंने रजिस्‍ट्रेशन करवाया है.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Shadan Siddique's story

    शीशे से चमकाई किस्मत

    कोलकाता के मोहम्मद शादान सिद्दिक के लिए जीवन आसान नहीं रहा. स्कूली पढ़ाई के दौरान पिता नहीं रहे. चार साल बाद परिवार को आर्थिक मदद दे रहे भाई का साया भी उठ गया. एक भाई ने ग्लास की दुकान शुरू की तो उनका भी रुझान बढ़ा. शुरुआती हिचकोलों के बाद बिजनेस चल निकला. आज कंपनी का टर्नओवर 5 करोड़ रुपए सालाना है. शादान कहते हैं, “पैसे से पैसा नहीं बनता, लेकिन यह काबिलियत से संभव है.” बता रहे हैं गुरविंदर सिंह
  • Ishaan Singh Bedi's story

    लॉजिस्टिक्स के लीडर

    दिल्ली के ईशान सिंह बेदी ने लॉजिस्टिक्स के क्षेत्र में किस्मत आजमाई, जिसमें नए लोग बहुत कम जाते हैं. तीन कर्मचारियों और एक ट्रक से शुरुआत की. अब उनकी कंपनी में 700 कर्मचारी हैं, 200 ट्रक का बेड़ा है. सालाना टर्नओवर 98 करोड़ रुपए है. ड्राइवरों की समस्या को समझते हुए उन्होंने डिजिटल टेक्नोलॉजी की मदद ली है. उनका पूरा काम टेक्नोलॉजी की मदद से आगे बढ़ रहा है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान
  • Bikash Chowdhury story

    तंगहाली से कॉर्पोरेट ऊंचाइयों तक

    बिकाश चौधरी के पिता लॉन्ड्री मैन थे और वो ख़ुद उभरते फ़ुटबॉलर. पिता के एक ग्राहक पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर थे. उनकी मदद की बदौलत बिकाश एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी में ऊंचे पद पर हैं. मुंबई से सोमा बैनर्जी बता रही हैं कौन है वो पूर्व क्रिकेटर.
  • He didn’t get regular salary, so started business and became successful

    मजबूरी में बने उद्यमी

    जब राजीब की कंपनी ने उन्हें दो महीने का वेतन नहीं दिया तो उनके घर में खाने तक की किल्लत हो गई, तब उन्होंने साल 2003 में खुद का बिज़नेस शुरू किया. आज उनकी तीन कंपनियों का कुल टर्नओवर 71 करोड़ रुपए है. बेंगलुरु से उषा प्रसाद की रिपोर्ट.
  • KR Raja story

    कंगाल से बने करोड़पति

    एक वक्त था जब के.आर. राजा होटल में काम करते थे, सड़कों पर सोते थे लेकिन कभी अपना ख़ुद का काम शुरू करने का सपना नहीं छोड़ा. कभी सिलाई सीखकर तो कभी छोटा-मोटा काम करके वो लगातार डटे रहे. आज वो तीन आउटलेट और एक लॉज के मालिक हैं. कोयंबटूर से पी.सी. विनोजकुमार बता रहे हैं कभी हार न मानने वाले के.आर. राजा की कहानी.