तमिलनाडु के छोटे शहर के 12वीं फेल लड़के ने अमेरिका में 18 करोड़ रुपए टर्नओवर वाली कंपनी बनाई
21-Nov-2024
By उषा प्रसाद
चेन्नई
तमिलनाडु में छोटे से शहर विरुधाचलम से शुरुआत कर अमेरिका के वर्जीनिया में 2.5 मिलियन डॉलर (करीब 18.5 करोड़ रुपए) टर्नओवर वाली कंपनी वानन ऑनलाइन सर्विसेज शुरू करने में 36 वर्षीय सर्वानन नागराज ने कई अवरोध पार किए. सर्वानन ने यह उपलब्धि खुद के बलबूते हासिल की, जबकि वे 12वीं कक्षा की पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाए थे.
सर्वानन की कंपनी ट्रांसलेशन, ट्रांसक्रिप्शन, वॉइस ओवर, कैप्शनिंग और सबटाइटल देने जैसी सेवाएं देती हैं. कंपनी के चेन्नई और वर्जीनिया में ऑफिस हैं. यह ग्लोबल टैलेंट और आउटसोर्सिंग के जरिये दुनियाभर के प्रोजेक्ट पर काम करती है.
सर्वानन नागराज ने साल 2016 में अमेरिका में कंपनी स्थापित की थी. सर्वानन अपनी पत्नी श्रीविद्या के साथ, जो कारोबार में उनकी मदद करती हैं. (सभी फोटो : विशेष व्यवस्था से)
सर्वानन की जिंदगी रोलर-कोस्टर की तरह उतार-चढ़ाव भरी रही. बचपन के शुरुआती सालों में उन्हें अच्छी शिक्षा पाने का सौभाग्य मिला. इसके बाद सरकारी स्कूल में पढ़े और 12वीं कक्षा में फेल हो गए. 18 साल की उम्र में नौकरी की और चेन्नई चले गए. अंतत: एक कंपनी स्थापित की, जिसमें आज 100 से अधिक लोग काम कर रहे हैं.
मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे सर्वानन के पिता की साइकिल किराए से देने की दुकान थी. चेन्नई से 225 किमी दूर विरुधाचलम में उनकी एक ट्रैवल एजेंसी भी थी.
पिता को बिजनेस में घाटा होने पर परिवार मुश्किल में पड़ गया. सर्वानन कहते हैं, "उन्होंने रियल एस्टेट में निवेश किया, बोतलबंद पानी की एक यूनिट लगाई और चिटफंड बिजनेस में भी हाथ आजमाया.'' ट्रैवल्स की कारों के एक के बाद एक एक्सीडेंट हुए, वहीं चिटफंड बिजनेस में दो कर्मचारी भारी-भरकम राशि लेकर चंपत हो गए.
सर्वानन कहते हैं, "मेरे पिता को कर्ज चुकाने के लिए बोतलबंद पानी का प्लांट और अन्य संपत्तियां बेचनी पड़ीं.'' सर्वानन उस समय नजदीकी शहर कडलोर के एक रेसीडेंशियल स्कूल में कक्षा 8 की पढ़ाई कर रहे थे.
परिवार पर आए वित्तीय संकट के चलते सवार्नन रेसीडेंशियल स्कूल में पढ़ाई जारी नहीं रख पाए और उन्हें विरुधाचलम लौटना पड़ा. वहां उनका एडमिशन एक मिशन स्कूल में करवा दिया गया. इसके बाद 11वीं-12वीं की पढ़ाई उन्हाेंने सरकारी स्कूल से की.
सर्वानन ने अपना ध्यान कंप्यूटर साइंस पर लगाया, जो कक्षा 12वीं में उनका प्रिय विषय था. वे एनआईआईटी कंप्यूटर कोचिंग सेंटर से जुड़े और अधिकतर समय वहीं बिताने लगे. यहां तक कि स्कूल की नियमित कक्षाएं भी छोड़ने लगे.
सर्वानन 18 साल की उम्र में कंप्यूटर कोचिंग सेंटर में इंस्ट्रक्टर के रूप में काम करने लगे. |
परिणाम यह हुआ कि वे 12वीं में फेल हो गए. जब दो प्रयासों के बाद भी वे पास नहीं हो पाए तो उन्होंने पढ़ाई छोड़ने का फैसला किया और नौकरी ढूंढ़नी शुरू कर दी.
सर्वानन कहते हैं, "कंप्यूटर के ज्ञान के आधार पर मुझे स्थानीय कंप्यूटर सेंटर में फैकल्टी की नौकरी मिल गई.'' सर्वानन उस समय केवल 18 साल के थे. इंजीनियरिंग, एमसीए और ग्रैजुएशन कर रहे स्टूडेंट्स को कंप्यूटर लैंग्वेज पढ़ाते थे. बाद में वे विरुधाचलम में एनआईआईटी कोचिंग सेंटर से इंट्रक्टर के रूप में जुड़ गए. उस वक्त उनकी सैलरी 2,500 रुपए थी.
हालांकि वे उन दिनों आज की तरह फर्राटेदार अंग्रेजी नहीं बोल पाते थे. कंप्यूटर लैंग्वेज की अच्छी समझ के चलते वे अच्छे टीचर बने.
एनआईआईटी में एक साल काम करने के बाद सर्वानन चेन्नई चले गए. वे प्रोग्रामर बनना चाहते थे. चेन्नई में उन्होंने दो महीने वाला इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स किया और कम्यूनिकेशन स्किल मजबूत की.
इससे उन्हें मोबिलिंक के कस्टमर सर्विस डेस्क पर नौकरी पाने में मदद मिली. उनकी तनख्वाह 1700 रुपए थी. इसके बाद वे एयरटेल कंपनी में कम्प्लेंट रिजॉल्यूशन टीम से जुड़े. तब उनकी सैलरी 4500 रुपए थी.
सर्वानन गर्व से कहते हैं, "कंप्यूटर के मेरे ज्ञान के चलते एयरटेल (तमिलनाडु) में शिकायतें दूर करने का समय 36 घंटे से घटकर पहले 8 घंटे और फिर 2 घंटे पर आ गया.''
सर्वानन को पहली बार अमेरिका जाने का मौका 2010 में मिला. तब वे सदरलैंड कंपनी में काम करते थे और यह मौका उसी कंपनी ने दिया था. |
हालांकि यह बहुत अच्छा अनुभव था, लेकिन इसके बावजूद वे एयरटेल छोड़कर एक अंतरराष्ट्रीय कॉल सेंटर से जुड़ गए. वे लंबे समय से इसी मौके की तलाश में थे. लेकिन कंपनी ज्वॉइन करने के एक महीने के भीतर ही खराब उच्चारण पर कंपनी ने उन्हें निकाल दिया.
उन्हें फिर एयरटेल में नौकरी मिल गई. इस बार मार्केटिंग विभाग में उन्होंने छह महीने तक सिम कार्ड्स बेचे. इसके बाद साल 2004 में उन्हें सदरलैंड कंपनी के कस्टमर सर्विसेज में 13 हजार रुपए महीने की सैलरी पर बड़ा ब्रेक मिल गया.
सदरलैंड में सर्वानन को जल्द ही टीम लीडर के रूप में पदोन्नत कर दिया गया और पांच साल के बाद उन्हें 15 दिन के लिए फ्रेडरिक्सबर्ग, वर्जीनिया जाने का मौका मिला.
वहां उनकी मुलाकात क्रिस्टीना बीयर्ड से हुई, वे सदरलैंड की एक अन्य डिविजन की एक मैनेजर थीं. उन्होंने उसमें उद्यमशीलता के बीज बोए.
सर्वानन कहते हैं, "जब वे कार से मुझे न्यूयाॅर्क ले जा रही थीं, तो रास्ते में उन्होंने मेरे जीवन के संघर्ष और अनुभव के बारे में जाना. उन्होंने सुझाव दिया कि मैं अमेरिका में बिजनेस शुरू करूं.''
चेन्नई लौटने पर क्रिस्टीना के शब्द लगातार सर्वानन के दिमाग में घूमते रहे. इसके बाद उन्होंने 2010 में सदरलैंड की नौकरी छोड़ने का बड़ा फैसला किया. तब उनकी सैलरी 55 हजार रुपए थी.
26 साल की उम्र में उन्होंने चेन्नई में डेटा ट्रांसक्रिप्शन कंपनी वानन इनोवेटिव सर्विसेज (वीआईएस) की शुरुआत की. इसके बाद वे यह सपना लेकर अमेरिका चले गए कि वे अपनी कंपनी के लिए अमेरिका से प्रोजेक्ट्स लेकर आएंगे.
अमेरिका में एक कार्यक्रम में सर्वानन. |
न्यूयॉर्क में उन्हें मैनपॉवर कंसल्टेशन फर्म में नौकरी मिल गई. लेकिन इससे पहले की वे नौकरी में जम पाते, उन्हें कंपनी ने निकाल दिया. उन्होंने अपनी रिपाेर्टिंग ऑफिसर से एक घंटा जल्दी जाने की अनुमति मांगी क्योंकि होस्टल में जिस साथी के साथ रह रहे थे, वहां से बदलाव चाहते थे.
वे याद करते हैं, "हालांकि वे जानती थीं कि मैं सबकुछ जोखिम में डालकर अमेरिका आया हूं, इसके बावजूद उन्होंने ऐसा कड़ा निर्णय लिया. जब मैंने ऑफिस से बाहर कदम रखे तो मेरे आंखों से आंसू निकल रहे थे.''
सर्वानन ने फिर काम तलाशना शुरू कर दिया. जहां वे किसी को नहीं जानते थे. वे ऑफिस-ऑफिस गए और लोगों से मिले. ऐसे ही तलाश के दौरान उनकी मुलाकात मैनहट्टन के साउथ एवेन्यु में फ्रेडरिको से हुई. फ्रेडरिको ने उन्हें वेबसाइट रिडिजाइन करने का काम दिया.
सर्वानन कृतज्ञता से कहते हैं, "फ्रेड अब मेरी सबसे अच्छी दोस्त है. उन्होंने मुझे एक मौका दिया था, जिसका मैं बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उन्होंने काम शुरू करने के लिए 250 डॉलर का चेक मुझे सौंपा.''
वे कहते हैं, "मैं लगभग रोज ही नए काम की तलाश में मैनहट्टन जाने लगा और फ्रेडरिको फोन कर मुझे बुलातीं. ऐसी ही एक मुलाकात में फ्रेड ने सुझाव दिया कि मैं मैनहट्टन में ही जगह ले लूं, ताकि वहीं से काम कर सकूं. यह जानने पर कि मेरे पास पैसे नहीं हैं, उन्होंने अपने ऑफिस में फ्री डेस्क मुहैया करवा दी.''
सर्वानन को अधिक प्रोजेक्ट मिलने लगे. उन्होंने दो लोगों को मदद के लिए रख लिया. जब उन्होंने भारत और अमेरिका के बीच दौड़भाग शुरू की तो चेन्नई ऑफिस उनकी छोटी बहन भारती प्रिया संभालने लगी.
2013 में जब बिजनेस बढ़ने लगा तो सर्वानन अपना ऑफिस चेन्नई ले आए. अब वहां 25 कर्मचारी हैं. 2015 में इससे बड़ी 7000 वर्ग फीट जगह में चले गए. यह जगह अम्बत्तूर इंडस्ट्रियल एस्टेट के इंडियाबुल्स पार्क में थी.
सर्वानन ने 2016 में 12 लोगों के साथ वर्जीनिया में वानन ऑनलाइन सर्विसेज की स्थापना की. उन्होंने वानन हेल्थकेयर भी शुरू किया, जो मेडिकल बिल सर्विसेज मुहैया कराता था.
पत्नी श्रीविद्या और बेटियों सामंथा और दिया के साथ सर्वानन.
सर्वानन ने सॉफ्टवेयर इंजीनियर श्रीविद्या के साथ शादी की है, जो बिजनेस में उनकी मदद करती हैं. दोनों की दो बेटियां हैं सामंथा श्री (4) और दिया (3).
सर्वानन का लक्ष्य वानन ऑनलाइन सर्विसेज को अमेजन सर्विसेज की तरह स्थापित करना है. वे कहते हैं, "हम लोगों को जोड़ने और वैश्विक आबादी को अधिक सेवाएं देना चाहते हैं. हमारा उद्देश्य है- जब आप कुछ काम डिजिटल रूप से करवाना चाहते हैं, तो आपको वानन के बारे में सोचना चाहिए.''
इसके अलावा, वे अंग्रेजी के छोटे यूट्यूब वीडियो लाने पर भी विचार कर रहे हैं, जो सामान्य ज्ञान, हिस्ट्री और विभिन्न विषयों से जुड़े हों.
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
कोटा सिल्क की जादूगर
गुरुग्राम की अंजलि अग्रवाल ने राजस्थान के कोटा तक सीमित रहे कोटा डोरिया सिल्क को न केवल वैश्विक पहचान दिलाई, बल्कि इसके बुनकरों को भी काम देकर उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ की. आज वे घर से ही केडीएस कंपनी को 1,500 रिसेलर्स के नेटवर्क के जरिए चला रही हैं. उनके देश-दुनिया में 1 लाख से अधिक ग्राहक हैं. 25 हजार रुपए के निवेश से शुरू हुई कंपनी का टर्नओवर अब 4 करोड़ रुपए सालाना है. बता रही हैं उषा प्रसाद -
छोटी शुरुआत से बड़ी कामयाबी
कोलकाता के अलकेश अग्रवाल इस वर्ष अपने बिज़नेस से 24 करोड़ रुपए टर्नओवर की उम्मीद कर रहे हैं. यह मुकाम हासिल करना आसान नहीं था. स्कूल में दोस्तों को जीन्स बेचने से लेकर प्रिंटर कार्टेज रिसाइकिल नेटवर्क कंपनी बनाने तक उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे. उनकी बदौलत 800 से अधिक लोग रोज़गार से जुड़े हैं. कोलकाता से संघर्ष की यह कहानी पढ़ें गुरविंदर सिंह की कलम से. -
‘हेलमेट मैन’ का संघर्ष
1947 के बंटवारे में घर बार खो चुके सुभाष कपूर के परिवार ने हिम्मत नहीं हारी और भारत में दोबारा ज़िंदगी शुरू की. सुभाष ने कपड़े की थैलियां सिलीं, ऑयल फ़िल्टर बनाए और फिर हेलमेट का निर्माण शुरू किया. नई दिल्ली से पार्थो बर्मन सुना रहे हैं भारत के ‘हेलमेट मैन’ की कहानी. -
मुंबई के रियल हीरो
गरीब परिवार में जन्मे एग्नेलोराजेश को परिस्थितिवश मुंबई की चॉल और मालवानी जैसे बदनाम इलाके में रहना पड़ा. बारिश में कई रातें उन्होंने टपकती छत के नीचे भीगते हुए गुजारीं. इन्हीं परिस्थितियाें ने उनके भीतर का एक उद्यमी पैदा किया. सफलता की सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते वे आज सफल बिल्डर और मोटिवेशनल स्पीकर हैं. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह -
रोक सको तो रोक लो
राजलक्ष्मी एस.जे. चल-फिर नहीं सकतीं, लेकिन उनका आत्मविश्वास अटूट है. उन्होंने न सिर्फ़ मिस वर्ल्ड व्हीलचेयर 2017 में मिस पापुलैरिटी खिताब जीता, बल्कि दिव्यांगों के अधिकारों के लिए संघर्ष भी किया. बेंगलुरु से भूमिका के की रिपोर्ट.