Milky Mist

Friday, 26 April 2024

इस युवा ने स्टोरेज रूम में शुरू की कंपनी, सात साल में टर्नओवर पहुंचाया 18 करोड़ रुपए

26-Apr-2024 By गुरविंदर सिंह
बेंगलुरु

Posted 01 Sep 2018

बंगाल के एक छोटे से गांव के निवासी सुमन हलदर हमेशा से कुछ बड़ा करना चाहते थे. वो अपने सपनों पर भरोसा करते थे. अपनी मध्‍यमवर्गीय पृ‍ष्‍ठभूमि और सामान्‍य स्‍कूल में पढ़ाई के बावजूद 37 वर्षीय इस युवा ने साबित कर दिखाया है कि यदि कोई व्‍यक्ति अपना लक्ष्‍य तय कर ले तो कोई बाधा उसके रास्‍ते में नहीं आ सकती.

अपनी धारणा को साबित करने के लिए सुमन के पास कुछ नहीं था और वो ख़ुद भी कुछ नहीं थे. लेकिन उन्‍होंने अपने दृढ़ निश्‍चय के बलबूते यह कर दिखाया और शीर्ष पर जा पहुंचे.

सुमन हलदर ने बेंगलुरु में चार कर्मचारियों के साथ 50 वर्गफुट जगह में बनाए गए ऑफिस से फोइवे की शुरुआत की थी. आज, वो 400 लोगों को रोज़गार दिया है. कंपनी के कोलकाता और रूस में भी ऑफिस हैं. (सभी फ़ोटो – विशेष व्‍यवस्‍था से)

सुमन ने अपनी आईटी सर्विसज़ मैनेजमेंट फर्म फोइवे (Fusion of Intelligence with Excellence) इन्‍फो ग्‍लोबल सॉल्‍यूशंस एलएलपी की शुरुआत बेंगलुरु में 50 वर्गफुट जगह से वर्ष 2010 में की थी. तब उनके पास मात्र तीन पुराने कंप्‍यूटर, एक राउटर, एक सेल फ़ोन और कुछ फर्नीचर था.

उन्‍होंने अपनी बचत से 60,000 रुपए बिज़नेस में लगाए और चार लोगों के साथ गंदे से स्‍टोरेज रूम से की.

सुमन हंसते हुए कहते हैं, ‘‘ऑफिस के लिए जगह लेने में समर्थ नहीं था. मैंने स्‍टोरेज रूम किराए पर ले लिया क्‍योंकि कोई भी उसे लेने के लिए इच्‍छुक नहीं था.’’

आज, फ़ोइवे बेंगलुरु की सीमाओं से आगे निकल चुकी है. कंपनी के कोलकाता के साथ-साथ रूस में भी ऑफिस हैं और इनमें 400 लोग काम करते हैं. वर्ष 2017-18 में कंपनी का टर्नओवर 18 करोड़ रुपए रहा.

फ़ोइवे ने आईटी सर्विसेज़ मैनेजमेंट, कंटेंट मॉडरेशन और कस्‍टमर सपोर्ट के तौर पर शुरुआत की थी.

सुमन कहते हैं, ‘‘हम प्रतिष्ठित ब्रैंड की वेबसाइट पर यूज़र द्वारा पोस्‍ट किए गए संदेशों को टेक्‍स्‍ट, इमेज, वीडियो, रिव्‍यूज़ और फ़ीडबैक के रूप में मोडिफाई करते हैं.’’

वो कहते हैं, ‘‘जब यूज़र द्वारा जनरेट कंटेंट निपुणता से नियंत्रित किया जाता है, तो आपकी ऑनलाइन मौजूदगी अधिक विश्‍वसनीय हो जाती है. कंटेंट मॉडरेशन का हमारा काम दिन-रात लगातार चलता रहता है और हम यह सुनिश्चित करते हैं कि जब भी यूज़र किसी ब्रैंड की वेबसाइट पर जाए तो उसे उपयुक्‍त कंटेंट मिले.’’

साल 2010 को याद करते हुए सुमन कहते हैं, ‘‘उस वक्‍त पैसे की बहुत तंगी थी. हमें ऑफिस का किराया 800 रुपए चुकाने में भी परेशानी आ रही थी.’’

सुमन की यात्रा कितनी अपवादों से भरी रही है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि वो अब दुनियाभर में फैले ऑफिसों का किराया ही क़रीब 1.5 करोड़ रुपए सालाना चुकाते हैं.

10 अगस्‍त 1981 को जन्‍मे सुमन बंगाल के चौबीस परगना जिले के बिस्‍वनाथपुर गांव के रहने वाले हैं. यह गांव कोलकाता से क़रीब 40 किमी दूर है. दो बच्‍चों में वो सबसे बड़े हैं. दोनों मध्‍यमवर्गीय परिवार में पले-बढ़े.

उनके पिता एक किसान थे, जबकि मां गृहिणी थीं.

सुमन कहते हैं, ‘‘हमारे पास जीवनयापन लायक़ ही कमाई होती थी...इसके बावजूद मेरे पिता हमारी पढ़ाई के लिए कुछ बचत कर लेते थे.’’

बेंगलुरु में अपने कुछ कर्मचारियों के साथ सुमन.

उन्‍होंने अपनी स्‍कूली शिक्षा 1998 में बैरकपुर के भोलानंदा नैशनल विद्यालय से पूरी की और बेंगलुरु चले गए, जहां होटल मैनेजमेंट कोर्स के तीन वर्षीय कोर्स के लिए केपीएचआर इंस्‍टीट्यूट में दाखिला ले लिया. उन्‍होंने साथ-साथ विभिन्‍न कंप्‍यूटर कोर्स भी किए.

सुमन कहते हैं, ‘‘तंगी के बावजूद पिता ने मेरे लिए बहुत कुछ किया. उद्ममी बनने के अपने सपने के बावजूद मैं उन पर और अधिक बोझ नहीं बनना चाहता था. इसलिए स्‍नातक की डिग्री के बाद तत्‍काल बाद नौकरी करने लगा.’’

साल 2001 में उन्‍होंने तकनीकी सलाहकार के तौर पर आईटीसी इन्‍फ़ोटेक ज्‍वॉइन की, जहां उनकी मासिक तनख्‍़वाह 7,500 रुपए थी.

सुमन के मुताबिक, ‘‘मैं नौकरी और पढ़ाई साथ-साथ कर रहा था.’’ उन्‍होंने इवनिंग क्‍लास के जरिये साल 2003 में बेंगलुरु के एएमसी कॉलेज से एमबीए किया और बाद में रायपुर की महात्‍मा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी से एमसीए की डिग्री ली.

उन्‍होंने वर्ष 2010 तक आईबीएम और यूनिसिस जैसी कंपनियों में काम किया.

सुमन कहते हैं, ‘‘साल 2010 में आखिर मुझे अहसास हुआ कि खुद की कंपनी खोलने का सपना साकार करने का यही सही वक्त है. मैं न केवल कुछ बड़ा करना चाहता था, बल्कि मैं समाज को वापस लौटाने को लेकर भी प्रेरित था- दरअसल, मैं लोगों को नौकरी देना चाहता था.’’

जुलाई 2010 में, सुमन ने फ़ोइवे इन्‍फ़ो ग्‍लोबल सॉल्‍यूशंस एलएलपी का रजिस्‍ट्रेशन करवाया और गंदे से स्‍टोर रूप में काम शुरू कर दिया, जो उनका पहला ऑफिस बना. शुरुआती दिनों में कंटेंट मॉडरेशन की मांग अधिक नहीं थी, क्‍योंकि लोगों को इसकी ज़रूरत महसूस नहीं होती थी. इस तरह सुमन को अच्‍छी शुरुआत करने में थोड़ा वक्‍त लगा.

सुमन की योजना अपना बिज़नेस अमेरिका और यूरोप तक विस्‍तार करने की है.

सुमन बताते हैं, ‘‘ऐसा भी समय रहा, जब मैंने परिवार के जेवरात बेचकर पैसे जुटाए, क्‍योंकि मुझे तनख्‍़वाह और मासिक बिलों के लिए पैसों की आवश्‍यकता होती थी. संतुष्टि की बात सिर्फ़ यह थी कि मेरा परिवार मेरे साथ चट्टान की तरह अडिग रहा.’’

तमाम अवरोधों के बावजूद पहले साल का टर्नओवर 2.9 लाख रुपए रहा.

सुमन की कंपनी वर्तमान में लेवल 1 की कोर कंटेंट मैनेजमेंट कंपनी हैं. अब वे अमेरिका और यूरोप में अपने बिज़नेस को विस्‍तार देने की योजना बना रहे हैं.

सुमन की प्रेरणादायी उद्ममी यात्रा साबित करती है कि आप कहां से आए हैं, यह मायने नहीं रखता. महत्‍वपूर्ण यह है कि आप कहां जा रहे हैं.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Aamir Qutub story

    कुतुबमीनार से ऊंचे कुतुब के सपने

    अलीगढ़ जैसे छोटे से शहर में जन्मे आमिर कुतुब ने खुद का बिजनेस शुरू करने का बड़ा सपना देखा. एएमयू से ग्रेजुएशन के बाद ऑस्ट्रेलिया का रुख किया. महज 25 साल की उम्र में अपनी काबिलियत के बलबूते एक कंपनी में जनरल मैनेजर बने और खुद की कंपनी शुरू की. आज इसका टर्नओवर 12 करोड़ रुपए सालाना है. वे अब तक 8 स्टार्टअप शुरू कर चुके हैं. बता रही हैं सोफिया दानिश खान...
  • kakkar story

    फर्नीचर के फरिश्ते

    आवश्यकता आविष्कार की जननी है. यह दिल्ली के गौरव और अंकुर कक्कड़ ने साबित किया है. अंकुर नए घर के लिए फर्नीचर तलाश रहे थे, लेकिन मिला नहीं. तभी देश छोड़कर जा रहे एक राजनयिक का लग्जरी फर्नीचर बेचे जाने के बारे में सुना. उसे देखा तो एक ही नजर में पसंद आ गया. इसके बाद दोनों ने प्री-ओन्ड फर्नीचर की खरीद और बिक्री को बिजनेस बना लिया. 3.5 लाख से शुरू हुआ बिजनेस 14 करोड़ का हो चुका है. एकदम नए तरीका का यह बिजनेस कैसे जमा, बता रही हैं उषा प्रसाद.
  • J 14 restaurant

    रेस्तरां के राजा

    गुवाहाटी के देबा कुमार बर्मन और प्रणामिका ने आज से 30 साल पहले कॉलेज की पढ़ाई के दौरान लव मैरिज की और नई जिंदगी शुरू की. सामने आजीविका चलाने की चुनौतियां थीं. ऐसे में टीवी क्षेत्र में सीरियल बनाने से लेकर फर्नीचर के बिजनेस भी किए, लेकिन सफलता रेस्तरां के बिजनेस में मिली. आज उनके पास 21 रेस्तरां हैं, जिनका टर्नओवर 6 करोड़ रुपए है. इस जोड़े ने कैसे संघर्ष किया, बता रही हैं सोफिया दानिश खान
  • Ready to eat Snacks

    स्नैक्स किंग

    नागपुर के मनीष खुंगर युवावस्था में मूंगफली चिक्की बार की उत्पादन ईकाई लगाना चाहते थे, लेकिन जब उन्होंने रिसर्च की तो कॉर्न स्टिक स्नैक्स उन्हें बेहतर लगे. यहीं से उन्हें नए बिजनेस की राह मिली. वे रॉयल स्टार स्नैक्स कंपनी के जरिए कई स्नैक्स का उत्पादन करने लगे. इसके बाद उन्होंने पीछे पलट कर नहीं देखा. पफ स्नैक्स, पास्ता, रेडी-टू-फ्राई 3डी स्नैक्स, पास्ता, कॉर्न पफ, भागर पफ्स, रागी पफ्स जैसे कई स्नैक्स देशभर में बेचते हैं. मनीष का धैर्य और दृढ़ संकल्प की संघर्ष भरी कहानी बता रही हैं सोफिया दानिश खान
  • Santa Delivers

    रात की भूख ने बनाया बिज़नेसमैन

    कोलकाता में जब रात में किसी को भूख लगती है तो वो सैंटा डिलिवर्स को फ़ोन लगाता है. तीन दोस्तों की इस कंपनी का बिज़नेस एक करोड़ रुपए पहुंच गया है. इस रोचक कहानी को कोलकाता से बता रहे हैं जी सिंह.