Milky Mist

Wednesday, 9 July 2025

असफलताओं से डरे नहीं, आखिर टॉयलेट-कम-कैफे चेन बनाई; यह दो साल में 18 करोड़ रुपए के बिजनेस में बदल गई

09-Jul-2025 By गुरविंदर सिंह
हैदराबाद

Posted 31 Jan 2021

अभिषेक नाथ को उद्योग लगाने के शुरुआती प्रयासों में सफलता नहीं मिली. लेकिन वे कोशिश करते रहे और फिर वे एक ऐसा बढ़िया आइडिया लाए, जो महज 2 साल में 18 करोड़ रुपए के बिजनेस टर्नओवर में तब्दील हो गया. इससे 1000 लोगों को रोजगार भी मिल रहा है.

उनकी कंपनी लू कैफे ब्रांड नाम से 450 फ्री-टू-यूज पब्लिक टॉयलेट (सार्वजनिक शौचालय) संचालित करती है. ये अधिकतर तेलंगाना में हैं. हर टॉयलेट के साथ बने कैफे और विज्ञापन से होने वाली आय से कमाई होती है.

लू कैफे के संस्थापक अभिषेक नाथ. (सभी फोटो : विशेष व्यवस्था से)

इन बायो-टॉयलेट्स का रखरखाव पूरे समय प्रशिक्षित स्टाफ करता है. इसके परिसर के हाइजीन स्तर को सेंसर के जरिये कायम रखा जाता है. ये सेंसर आईओटी (इंटरनेट ऑफ थिंग्स) से लैस हैं.

अभिषेक को इस उपक्रम का आइडिया तब आया, जब वे एक रोड ट्रिप पर गोवा गए थे. इस दौरान जब उनका सामना टॉयलेट्स की भयावह स्थिति से हुआ, तो वे इसका समाधान सोचने पर मजबूर हुए. इसी के बाद लू कैफे का जन्म हुआ.

अभिषेक कहते हैं, “मैंने तत्काल हैदराबाद के म्यूनिसिपल कमिश्नर से संपर्क किया. उन्होंने कैफे, वाईफाई, सैनिटरी नैपकिन डिस्पेंसर और दिव्यांगों के लिए रैंप की सुविधा के साथ बायो टॉयलेट बनाने के मेरे प्रस्ताव पर बहुत दिलचस्पी दिखाई.”

ग्रेटर हैदराबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन (जीएचएमसी) ने प्राइवेट-पब्लिक पार्टनरशिप मॉडल पर टॉयलेट बनाने के लिए जगह उपलब्ध करवाई. अभिषेक कहते हैं, “हमने पहला टॉयलेट बनाने में करीब 25 लाख रुपए खर्च किए, जो मई 2018 में पूरा हुआ.”

यह मॉडल सफल हुआ तो पूरे तेलंगाना और एक श्रीनगर में विभिन्न स्थानीय निकायों के साथ पार्टनरशिप कर और अधिक टॉयलेट बनाए गए.

टॉयलेट की संख्या तेजी से बढ़ी और ढाई साल के छोटे से समय में ही करीब 450 हो गई. हर यूनिट में पुरुषों, महिलाओं और दिव्यांगों के लिए अलग-अलग टाॅयलेट थे. दिव्यांगों के लिए रैंप भी बनाए गए थे, ताकि वे आसानी से आ-जा सकें.

लग्जरी टॉयलेट्स के चलते अभिषेक जल्द ही चर्चा का केंद्र बन गए. इसे मिला मीडिया कवरेज बोनस था. लू कैफे चेन शुरू करने से पहले अभिषेक ने असफलताओं और निराशाओं का सामना किया था.
40 वर्षीय अभिषेक अपना बिजनेस कॉरपोरेट स्टाइल में चलाते हैं.

हैदराबाद में जन्मे अभिषेक का झुकाव शुरुआती उम्र से रचनात्मकता की ओर था और उन्हें नए-नए स्ट्रक्चर बनाने पसंद थे. हालांकि उनका परिवार चाहता कि वे अपने पिता और पूर्वजों की तरह डेंटल ओरल सर्जन बनें, जो पिछली पांच पीढ़ियों से इस पेशे में थे.

सन् 1997 में लिटिल फ्लॉवर जूनियर कॉलेज से 12वीं की पढ़ाई करने के बाद अभिषेक ने कर्नाटक के बिदर स्थित एसबी पाटिल डेंटल कॉलेज में एडमिशन लिया. यह चार वर्षीय कोर्स था, लेकिन उन्होंने सात महीने में ही इसे छोड़ दिया और अपने गृह नगर लौट आए.

वे कहते हैं, “मैंने महसूस किया कि मैं कभी बड़ा सर्जन नहीं बन सकता. मैं हमेशा से कुछ रचनात्मक और कुछ नया करना चाहता था. मैंने स्कूल में साइंस की पढ़ाई इसलिए की थी क्योंकि मुझे स्ट्रक्चर और मॉड्यूल बनाना अच्छा लगता था. मैंने इसके लिए कई अवॉर्ड भी जीते थे.”

अपनी युवावस्था के शुरुआती सालों के बारे में अभिषेक बताते हैं, “मैं जिस भी चीज के प्रति जोश महसूस नहीं करता था, मुझे उसके साथ सामंजस्य बैठाने में बहुत मुश्किल आती थी. इसलिए मैं कोर्स छोड़कर एडमिशन लेने के सात महीने के अंदर ही हैदराबाद आ गया था.”

इसके बाद उन्होंने तय किया कि वे होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई करेंगे. इसके लिए उन्होंने हैदराबाद के श्री शक्ति कॉलेज ऑफ होटल मैनेजमेंट में तीन वर्षीय कोर्स में दाखिला ले लिया.

साल 1999 में, बेंगलुरु के ताज ग्रुप ऑफ होटल्स से कैंपस प्लेसमेंट के जरिये मैनेजमेंट ट्रेनी के रूप में जुड़ गए. बाद में, उनका तबादला मुंबई हो गया और ताज प्रेसीडेंट में मैनेजर के पद पर उन्हें पदोन्नति कर दिया गया.

कॉरपोरेट वर्ल्ड में बेहतर उन्नति होने और देश के प्रतिष्ठित हॉस्पेटिलिटी ब्रांड में से एक में नौकरी करने के बावजूद अभिषेक को महसूस हो रहा था कि कुछ छूट रहा है और उन्हाेंने खुद का कुछ शुरू करने की इच्छा थी.

वे कहते हैं, “मुझे बहुत कम उम्र में बहुत अच्छी सैलरी मिल रही थी. लेकिन मैं अपना खुद का कुछ शुरू करना चाहता था. मैंने अपना काम छोड़ा और 2003 में हैदराबाद लौट आया. स्वाभाविक रूप से मेरा परिवार इस निर्णय से खुश नहीं था.”


लू कैफे का अगला हिस्सा काफी चमकदार और रंगबिरंगा है. भारत के पब्लिक टॉयलेट आम तौर पर ऐसे नहीं होते हैं.

जल्द ही, उन्होंने हैदराबाद में कैटरिंग बिजनेस शुरू किया और कॉरपोरेट ऑफिस को पैकेज्ड फूड पहुंचाने लगे. वे कहते हैं, “शहर में आईटी सेक्टर में जबर्दस्त बूम आ रहा था. इसलिए मैंने ऑफिसेस को पैकेज्ड मील भेजना शुरू किया.”

अभिषेक के मुताबिक, “मैं 300 वर्ग फीट के किराए के ऑफिस से दो कर्मचारियों के साथ काम कर रहा था. इसका किराया 5000 रुपए महीना था. बिजनेस बहुत अच्छी तरह बढ़ रहा था और साल 2003 तक मेरे पास 40 कर्मचारी हो गए थे.” अभिषेक ने उसका नाम फूड रिपब्लिक रखा.

हालांकि कई लाख रुपए का घाटा होने के बाद उन्हें 2004 में बिजनेस बंद करना पड़ा.

इसके बाद अभिषेक ने निर्णय लिया कि वे गोवा शिफ्ट हो जाएंगे. उन्हें लगता था कि वहां अधिक बिजनेस अवसर हैं क्योंकि वह एक पर्यटन स्थल है.

वे याद करते हैं, “मुझे पिछले बिजनेस से भारी नुकसान हुआ था, इसलिए मुझे बिल्कुल शुरुआत से शुरू करना था. मैंने कालान्गुते में 200 वर्ग फीट जगह किराए से ली और भाेजनालय शुरू कर दिया.”

वे कहते हैं, “स्थिति इतनी बुरी थी कि मैं कोई कर्मचारी नहीं रख सकता था. मैंने किसी तरह एक कुक को रखा. मैंने खुद वेटर की तरह काम किया. मैं लोगों को भोजन परोसता था और भोजनालय के अन्य काम करता था.”

कठिन परिश्रम का फल मिला और अभिषेक का बिजनेस चल पड़ा. उन्होंने अपने रेस्तरां को आसपास के छोटे होटल के लिए बैक किचन के रूप में भी तब्दील कर लिया.

वे कहते हैं, “गोवा में कई लोग रहने की जगह तो उपलब्ध करवाते हैं, लेकिन वे भोजन नहीं देते. इस तरह हम उनके मेहमानों को खाना सप्लाई करने लगे.” उसी साल उन्हाेंने गोवा में एक और रेस्तरां खोल लिया.

साल 2006 में, उन्होंने एक इन्वेस्टर की मदद की, जो गोवा में होटल बना रहा था. वे कहते हैं, “मुझे होटल बनवाने की जिम्मेदारी मिली. मैंने सजावट से लेकर फूड मेन्यू तक सब चीज की योजना बनाई.”

हर टॉयलेट के साथ एक कैफे और पुरुषों, महिलाओं और दिव्यांगों के लिए अलग-अलग टॉयलेट हैं. 

होटल और फूड इंडस्ट्री के अनुभव से उन्हें हैदराबाद में 2018 में लू कैफे चेन लॉन्च करने में मदद मिली.

वर्ष 2007 में गोवा के अपने दो रेस्तरां लीज पर देकर अभिषेक हैदराबाद लौट आए.

इसके बाद उन्होंने फैसिलिटीज मैनेजमेंट करने वाली एक एमएनसी एरिया मैनेजर के रूप में ज्वॉइन कर ली. 2010 तक वे कंपनी के साउथ ईस्ट एिशया के डायरेक्टर बन गए और मुंबई चले गए.

दो साल बाद, उन्होंने मुंबई में डायरेक्टर (डेवलपमेंट एंड ऑपरेशंस) के रूप में मरीन और ऑफशोर सर्विसेज कंपनी ज्वॉइन कर ली. उन्होंने वहां 4 साल काम किया और 2016 के मध्य में उसे भी छोड़ दिया.

वे हैदराबाद लौटे और इक्सोरा कॉरपोरेट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड की शुरुआत की. यह एक फैसिलिटी मैनेजमेंट कंपनी थी और इसमें 10 कर्मचारी थे. दो साल बाद अभिषेक को लू कैफे का आइडिया आया. वहां उन्होंने अपने बिल्डिंग इनोवेशन स्ट्रक्चर के हुनर का बखूबी इस्तेमाल किया. इसमें उनका एफ एंड बी इंडस्ट्री और फैसिलिटीज मैनेजमेंट का अनुभव भी काम आया.
सालों की मेहनत के बाद आखिर अभिषेक को अपने हिस्से की प्रसिद्धि मिल ही गई.

उन्होंने टॉयलेट बनाने के लिए प्री-फैब्रिकेटेड मटेरियल का इस्तेमाल किया, जिसे कहीं भी खोला और फिर बनाया जा सकता था. फूड इंडस्ट्री के अनुभव से उन्हें अच्छा कैफे खोलने में मदद मिली, जिससे उन्हें अपने बिजनेस के लिए रेवेन्यू बढ़ाने में मदद मिली.

उदीयमान उद्यमियों के लिए वे सलाह देते हैं : आप जो भी करें, उसे जोश और जुनून के साथ करें. हर असफलता एक सीख देती है और सफलता के एक कदम नजदीक ले जाती है. संकल्पित रहें और अपने सपनों का पीछा करने के लिए निकल पड़ें.

 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Nitin Godse story

    संघर्ष से मिली सफलता

    नितिन गोडसे ने खेत में काम किया, पत्थर तोड़े और कुएं भी खोदे, जिसके लिए उन्हें दिन के 40 रुपए मिलते थे. उन्होंने ग्रैजुएशन तक कभी चप्पल नहीं पहनी. टैक्सी में पहली बार ग्रैजुएशन के बाद बैठे. आज वो 50 करोड़ की एक्सेल गैस कंपनी के मालिक हैं. कैसे हुआ यह सबकुछ, मुंबई से बता रहे हैं देवेन लाड.
  • Bandana Jain’s Sylvn Studio

    13,000 रुपए का निवेश बना बड़ा बिज़नेस

    बंदना बिहार से मुंबई आईं और 13,000 रुपए से रिसाइकल्ड गत्ते के लैंप व सोफ़े बनाने लगीं. आज उनके स्टूडियो की आमदनी एक करोड़ रुपए है. पढ़िए एक ऐसी महिला की कहानी जिसने अपने सपनों को एक नई उड़ान दी. मुंबई से देवेन लाड की रिपोर्ट.
  • Success story of Susux

    ससक्स की सक्सेस स्टोरी

    30 रुपए से 399 रुपए की रेंज में पुरुषों के टी-शर्ट, शर्ट, ट्राउजर और डेनिम जींस बेचकर मदुरै के फैजल अहमद ने रिटेल गारमेंट मार्केट में तहलका मचा दिया है. उनके ससक्स शोरूम के बाहर एक-एक किलोमीटर लंबी कतारें लग रही हैं. आज उनके ब्रांड का टर्नओवर 50 करोड़ रुपए है. हालांकि यह सफलता यूं ही नहीं मिली. इसके पीछे कई असफलताएं और कड़ा संघर्ष है.
  • The rich farmer

    विलास की विकास यात्रा

    महाराष्ट्र के नासिक के किसान विलास शिंदे की कहानी देश की किसानों के असल संघर्ष को बयां करती है. नई तकनीकें अपनाकर और बिचौलियों को हटाकर वे फल-सब्जियां उगाने में सह्याद्री फार्म्स के रूप में बड़े उत्पादक बन चुके हैं. आज उनसे 10,000 किसान जुड़े हैं, जिनके पास करीब 25,000 एकड़ जमीन है. वे रोज 1,000 टन फल और सब्जियां पैदा करते हैं. विलास की विकास यात्रा के बारे में बता रहे हैं बिलाल खान
  • Caroleen Gomez's Story

    बहादुर बेटी

    माता-पिता की अति सुरक्षित छत्रछाया में पली-बढ़ी कैरोलीन गोमेज ने बीई के बाद यूके से एमएस किया. गुड़गांव में नौकरी शुरू की तो वे बीमार रहने लगीं और उनके बाल झड़ने लगे. इलाज के सिलसिले में वे आयुर्वेद चिकित्सक से मिलीं. धीरे-धीरे उनका रुझान आयुर्वेदिक तत्वों से बनने वाले उत्पादों की ओर गया और महज 5 लाख रुपए के निवेश से स्टार्टअप शुरू कर दिया। दो साल में ही इसका टर्नओवर 50 लाख रुपए पहुंच गया. कैरोलीन की सफलता का संघर्ष बता रही हैं सोफिया दानिश खान...