Milky Mist

Wednesday, 2 April 2025

22 साल के दो युवाओं ने 3 लाख रुपए के निवेश से चाय की दुकान खोली, 5 साल में इसका टर्नओवर 100 करोड़ रुपए पहुंचा

02-Apr-2025 By सोफिया दानिश खान
इंदौर

Posted 23 Jun 2021

एंटरप्रेन्योरशिप भले ही उनके जीन में रही हो, लेकिन रियल एस्टेट बिजनेसमैन के बेटे अनुभव दुबे ने पिता को बताए बगैर 22 साल की उम्र में अपने दोस्त आनंद नायक के साथ मिलकर इंदौर में एक चाय की दुकान शुरू की.

पांच साल बाद यह दुकान 100 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाली 145 आउटलेट की चाय शृंखला में विकसित हो गई है. इसकी भारत के 70 से अधिक शहरों में मौजूदगी है. मस्कट और दुबई में भी इसके एक-एक आउटलेट हैं.
चाय सुट्टा बार के संस्थापक अनुभव दुबे (बीच में). कंपनी के दो अन्य निदेशक संस्थापक, आनंद नायक (बाएं) और राहुल. (फोटो: विशेष व्यवस्था से)

अपने स्कूल के दिनों से बिजनेस के दांव-पेंच का इस्तेमाल करते रहे अनुभव कहते हैं, “हमने 2016 में 3 लाख रुपए के निवेश से पहला चाय सुट्टा बार आउटलेट शुरू किया था. इसके बाद फ्रैंचाइजी मॉडल के जरिए विस्तार किया.”

कंपनी के पास पांच आउटलेट हैं, जबकि बाकी 140 आउटलेट्स फ्रेंचाइजी के पास हैं.

अनुभव जब छोटे थे, जब उनका परिवार कई मुश्किल दौर से गुजरा. उन दिनों की कुछ यादें अनुभव के दिमाग में ताजा हैं. उस समय उनका परिवार करीब 3 लाख की आबादी वाले छोटे से शहर रीवा में रहता था. यह शहर इंदौर से करीब 670 किमी दूर है.

उन्होंने स्थानीय स्कूल महर्षि विद्या मंदिर में आठवीं कक्षा तक पढ़ाई की. रीवा में अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए अनुभव बताते हैं, “हम निम्न मध्यम वर्गीय परिवार थे. मुझे याद है कि कई बार मैं फटे-पुराने जूते पहन कर स्कूल जाता था, क्योंकि हम नए जूते नहीं खरीद सकते थे.”

“मेरे पास स्कूल की एक जोड़ी यूनिफॉर्म थी और मेरी गृहिणी-मां उसे हर दिन धोती थी. पांचवीं कक्षा तक मैं नोटबुक में केवल पेंसिल से लिखता रहा. मां साल के आखिर में पेंसिल की लिखावट साफ कर देती थी और नोटबुक फिर लिखने के लायक बन जाती थी.”

सीमित संसाधनों से परिवार को चलाने में उनके पिता की चतुराई मां की जुगाड़ से मेल खाती थी.
अनुभव ने एंटरप्रेन्योरशिप में अपनी तकदीर आजमाने के लिए सिविल सेवा की अपनी इच्छाओं को दबा दिया.

अनुभव बताते हैं, “जब भी हम रीवा से 215 किलोमीटर दूर छोटे से गांव छिलपा अपने नाना-नानी के घर जाते, पिताजी अपने एक दोस्त से कार उधार मांग लगते थे.”

अनुभव कहते हैं, “आते-जाते समय पिताजी कुछ यात्रियों को गाड़ी में बैठा लेते और उन्हें रास्ते में पड़ने वाले गंतव्य तक छोड़ देते. उन लोगों से जो किराया मिलता, उस पैसे का इस्तेमाल कार में ईंधन भराने में करते थे.”

आठवीं कक्षा पास करने के बाद इंदौर में एक कॉन्वेंट स्कूल में भर्ती हुए अनुभव कहते हैं, “ये मेरे जीवन के शुरुआती सबक थे, जो वित्त का प्रबंधन करने और एक-एक पैसे को उपयोगी बनाने के बारे में थे.”

उस समय तक उनके पिता की आर्थिक स्थिति में सुधार हो चुका था. वे अपने बेटे को इंदौर के कोलंबिया कॉन्वेंट में दाखिल करा सकते थे और हॉस्टल की फीस भी भर सकते थे. अनुभव कहते हैं, “परिवार अब भी इस स्कूल में केवल एक बच्चे की शिक्षा का खर्च उठा सकता था. ऐसे में मेरा छोटा भाई माता-पिता के साथ ही रहा.”

शुरुआत में, अनुभव को नए परिवेश से सामंजस्य बैठाने में कुछ समय लगा. इंदौर उनके गृहनगर रीवा से बहुत बड़ा शहर था. स्कूल में बच्चे फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते थे. इससे उन्हें महसूस होता था कि वे बाहरी हैं.

लेकिन अनुभव का आत्मविश्वास तेजी से बढ़ा और जल्द ही उन्होंने दोस्त बना लिए. आनंद नायक से वे 11वीं कक्षा में मिले थे. वे उनके सबसे अच्छे दोस्त और आगे चलकर बिजनेस पार्टनर भी बन गए.

दोनों औसत छात्र थे, लेकिन होशियार थे. इसलिए पैसा कमाने के अवसर तलाशते रहते थे. यह वह समय था जब टच स्क्रीन मोबाइल बाजार में आए ही थे. दोनों ने 6,000 रुपए में सेकंड हैंड सैमसंग स्मार्टफोन खरीदा था.

“हम दोनों में से प्रत्येक ने 2,000 रुपए मिलाए और बाकी पैसे तीन अन्य छात्रों ने दिए. हम रोज छात्रों को फोन किराए पर देते थे और बाद में मुनाफे में बेच देते थे.

“फिर हमने 19,000 रुपए में एक पुरानी सीटी100 बाइक खरीदी. उसका इस्तेमाल हम कॉलेज के दिनों में करते थे. बाद में हमने उसे बेच दिया.”
कॉलेज के दिनों में दोस्तों के साथ अनुभव.

दोनों ने 2014 में इंदौर के रेनेसां कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड मैनेजमेंट से कॉमर्स में स्नातक की डिग्री ली. कॉलेज में भी उन्होंने सेकंड हैंड फोन का कारोबार जारी रखा और निजी खर्चों के लिए पैसे बनाते रहे.

कॉलेज के बाद दोस्तों के रास्ते अलग हो गए. अनुभव सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए दिल्ली चले गए और अपने पिता के आईएएस अधिकारी बनने के सपने को पूरा करने के लिए करोल बाग में वजीराम और रवि कोचिंग इंस्टीट्यूट में एडमिशन ले लिया. आनंद अपने जीजा की गारमेंट फैक्ट्री में मदद करने लगे.

लगभग दो साल तक दोनों अपनी पढ़ाई और काम में व्यस्त रहे. 2016 में एक दिन आनंद ने अनुभव को फोन करके बताया कि सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है और उन्हें एक साथ कुछ करने के बारे में सोचना चाहिए.

अनुभव ने अपने दोस्त का साथ देने के लिए दिल्ली से इंदौर के लिए पहली ट्रेन ली. वहां दोनों ने अपने भविष्य पर चर्चा की और फैसला किया कि वे अपना बिजनेस करेंगे, जैसा कि उन्होंने पहले एक दूसरे से वादा किया था.

अनुभव याद करते हैं, “हमारे दिमाग में सबसे पहला ख्याल रियल एस्टेट का आया, क्योंकि यह पैसा कमाने का सबसे आसान तरीका है. हालांकि इसमें बहुत पैसा लगता है, जबकि हमारे पास केवल 3 लाख रुपए थे, जो माता-पिता ने आनंद को दिए थे.”

“मेरे पिता को नहीं पता था कि मैंने दिल्ली छोड़ दी थी और इंदौर आ गया था. मेरी मां को पता था, लेकिन उन्होंने पिता को बताने की हिम्मत नहीं की. वे मेरे किराए और अन्य खर्चों के लिए पैसे भेजते रहे. इससे हमारे बिजनेस के शुरुआती दिनों में काफी मदद मिली.”

बहुत मंथन के बाद अनुभव और आनंद ने चाय की दुकान लगाने का फैसला किया और भंवरकुआं इलाके में एक गर्ल्स हॉस्टल के सामने एक कोने की जगह तय कर ली.

अनुभव कहते हैं, “किराया 18,000 रुपए प्रति माह था. उसके पास एक बहुत बड़ा पेड़ था, और उस तरह के लुक के लिए एकदम सही था जैसी हमने अपनी कंपनी के लिए कल्पना की थी. हमने ज्यादातर काम खुद करके पैसों की बचत की.”
पिताजी के साथ अनुभव और उनका भाई.

“हमने खुद ही उस जगह की पुताई की और नाम का एक बोर्ड भी बनाया, क्योंकि डिजिटल बोर्ड बहुत महंगा था. हमने सेकंड हैंड मार्केट से फर्नीचर भी खरीदा और काफी पैसा बचाया.”

उन्होंने अपने पहले कर्मचारी मनोज का पास के एक दंत चिकित्सालय से शिकार किया. उन्होंने उसे ऑफर दिया कि अगर वह बिजनेस बढ़ने के बाद वेतन लेगा तो दोगुनी राशि देंगे.

अपने बिजनेस के शुरुआती दिनों में दोनों दोस्तों ने चाय की मार्केटिंग करने के लिए तरह-तरह के तरीके अपनाए. अनुभव कहते हैं, “उद्घाटन के दिन हमने राहगीरों को मुफ्त चाय पेश की. हम दोनों इस बारे में बात करते हुए शहर में घूमे कि कैसे 'चाय सुट्टा बार' नाम के इस नए ठिकाने पर कितनी अलग-अलग तरह की चाय मिलती है.”

“हमने इंदौर में अपने स्कूल और कॉलेज के दोस्तों को भी बुलाया. और देखते ही देखते वह जगह युवाओं की भीड़ से गुलजार हो गई. छात्रावास की लड़कियों ने इसे एक शांत और गतिविधि वाली जगह के रूप में देखा और उन्होंने अपने दोस्तों के साथ आना शुरू कर दिया.”

वे पेपर कप से कुल्हड़ (मिट्टी के बर्तन) पर आए और सात प्रकार की चाय पेश करने लगे. इसमें चॉकलेट फ्लेवर भी शामिल है, जिसे युवाओं ने बहुत पसंद किया. इसके अलावा रोज चाय, पारंपरिक मसाला, अदरक, इलायची चाय और एक विशेष पान के स्वाद वाली चाय भी इनमें शामिल थी.

चाय और मैगी, सैंडविच, पिज्जा जैसी अन्य आयटम की कीमत 10 रुपए से 200 रुपए के बीच है.

अनुभव के पिता को अपने बेटे के बिजनेस के बारे में करीब छह महीने बाद पता चला. लेकिन उन्होंने इस बारे में कोई शिकायत नहीं की. अनुभव कहते हैं, “चीजें इस हद तक बढ़ गईं कि तीन महीने के भीतर हमने अपना दूसरा फ्रैंचाइजी आउटलेट शुरू कर दिया.”

“कुछ समय बाद, मुझे एक टेड टॉक के लिए आमंत्रित किया गया. मैंने अपनी पूरी हिम्मत जुटाते हुए पिताजी को साथ चलने को कहा. बात करने के बाद उनकी आंखों में आंसू थे और उन्होंने मुझे कसकर गले लगाया. मेरे जीवन में पहली बार उन्होंने मुझे गले लगाया था.”
अनुभव को लगता है कि एफएंडबी उद्योग महामारी के बाद फिर उछाल मारेगा.

प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन चुकी चाय सुट्टा बार ने 2016 के बाद तेजी से फ्रैंचाइजी आउटलेट खोलने का विस्तार किया है. वे एक आउटलेट के लिए 6 लाख रुपए फ्रैंचाइजी शुल्क लेते हैं.

आत्मविश्वास से भरे अनुभव कहते हैं, “पिछले एक साल में दो लॉकडाउन के बावजूद, हमारा कोई भी आउटलेट बंद नहीं हुआ है और अच्छा कारोबार कर रहा है. यह फूड एंड बेवरेज (एफएंडबी) उद्योग के लिए सबसे खराब दौर है, लेकिन हम जानते हैं कि हम इससे पार पा जाएंगे.”

 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Alkesh Agarwal story

    छोटी शुरुआत से बड़ी कामयाबी

    कोलकाता के अलकेश अग्रवाल इस वर्ष अपने बिज़नेस से 24 करोड़ रुपए टर्नओवर की उम्मीद कर रहे हैं. यह मुकाम हासिल करना आसान नहीं था. स्कूल में दोस्तों को जीन्स बेचने से लेकर प्रिंटर कार्टेज रिसाइकिल नेटवर्क कंपनी बनाने तक उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे. उनकी बदौलत 800 से अधिक लोग रोज़गार से जुड़े हैं. कोलकाता से संघर्ष की यह कहानी पढ़ें गुरविंदर सिंह की कलम से.
  • Vijay Sales story

    विजय सेल्स की अजेय गाथा

    हरियाणा के कैथल गांव के किसान परिवार में जन्मे नानू गुप्ता ने 18 साल की उम्र में घर छोड़ा और मुंबई आ गए ताकि अपनी ज़िंदगी ख़ुद संवार सकें. उन्होंने सिलाई मशीनें, पंखे व ट्रांजिस्टर बेचने से शुरुआत की. आज उनकी फर्म विजय सेल्स के देशभर में 76 स्टोर हैं. कैसे खड़ा हुआ हज़ारों करोड़ का यह बिज़नेस, बता रही हैं मुंबई से वेदिका चौबे.
  • Prakash Goduka story

    ज्यूस से बने बिजनेस किंग

    कॉलेज की पढ़ाई के साथ प्रकाश गोडुका ने चाय के स्टॉल वालों को चाय पत्ती बेचकर परिवार की आर्थिक मदद की. बाद में लीची ज्यूस स्टाॅल से ज्यूस की यूनिट शुरू करने का आइडिया आया और यह बिजनेस सफल रहा. आज परिवार फ्रेश ज्यूस, स्नैक्स, सॉस, अचार और जैम के बिजनेस में है. साझा टर्नओवर 75 करोड़ रुपए है. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह...
  • From Rs 16,000 investment he built Rs 18 crore turnover company

    प्रेरणादायी उद्ममी

    सुमन हलदर का एक ही सपना था ख़ुद की कंपनी शुरू करना. मध्यमवर्गीय परिवार में जन्म होने के बावजूद उन्होंने अच्छी पढ़ाई की और शुरुआती दिनों में नौकरी करने के बाद ख़ुद की कंपनी शुरू की. आज बेंगलुरु के साथ ही कोलकाता, रूस में उनकी कंपनी के ऑफिस हैं और जल्द ही अमेरिका, यूरोप में भी वो कंपनी की ब्रांच खोलने की योजना बना रहे हैं.
  • Weight Watches story

    खुद का जीवन बदला, अब दूसरों का बदल रहे

    हैदराबाद के संतोष का जीवन रोलर कोस्टर की तरह रहा. बचपन में पढ़ाई छोड़नी पड़ी तो कम तनख्वाह में भी काम किया. फिर पढ़ते गए, सीखते गए और तनख्वाह भी बढ़ती गई. एक समय ऐसा भी आया, जब अमेरिकी कंपनी उन्हें एक करोड़ रुपए सालाना तनख्वाह दे रही थी. लेकिन कोरोना लॉकडाउन के बाद उन्हें अपना उद्यम शुरू करने का विचार सूझा. आज वे देश में ही डाइट फूड उपलब्ध करवाकर लोगों की सेहत सुधार रहे हैं. संतोष की इस सफल यात्रा के बारे में बता रही हैं उषा प्रसाद