स्टार्ट-अप ‘प्लासिओ’, जो बन गया करोड़ों का कारोबार
07-Dec-2024
By पार्थो बर्मन
नई दिल्ली
मार्च 2017 में जब रोहित पटेरिया, अंकुश अरोरा और अतुल कुमार सिंह ने अपने एक साल पुराने छात्रावास स्टार्ट-अप ‘प्लासिओ’ को एमिटी यूनिवर्सिटी से जोड़ने का फ़ैसला किया, तब उन्हें भी इतनी बड़ी सफलता का अंदाजा नहीं था. इस गठजोड़ के बाद अप्रैल से अगस्त के बीच महज पांच महीनों में ही प्लासिओ का कारोबार 10 करोड़ रुपए के आंकड़े को छू चुका था.
प्लासिओ के संस्थापक एवं सीईओ 40 वर्षीय रोहित चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं. कंपनी के सह-संस्थापक एवं निदेशक 40 वर्षीय अंकुश हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रेजुएट हैं. एक साल बाद कंपनी से सह-संस्थापक एवं सीओओ के रूप में जुड़े 35 वर्षीय अतुल आईआईएम अहमदाबाद से एमबीए और आईआईटी रुड़की से बी.टेक. कर चुके हैं.
मार्च 2016 में रोहित (दाएं) और अंकुश (बाएं) ने प्लासिओ की स्थापना की. अतुल कुमार सिंह उनसे एक साल बाद जुड़े. प्लासिओ ने इस साल अप्रैल से अगस्त के बीच 10 करोड़ रुपए का कारोबार किया है.
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प्लासिओ मूल रूप से स्पेनिश शब्द है. इसका मतलब है रहने की ख़ूबसूरत जगह. प्लासिओ एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी है जिसकी स्थापना रोहित व अंकुर ने मिलकर मार्च 2016 में की थी. ये दोनों ही एक साथ वर्ष 2001 से कई कंपनियों में काम कर चुके हैं. इसके बाद 25 लाख रुपए की पूंजी लगाकर दोनों ने प्लासिओ की स्थापना की गई. शुरुआत में उन्होंने बिल्डर-डेवलपर से 3 साल के लिए अपार्टमेंट लेकर किराये पर लिए.
अतुल ने क्लिक-अ-होम नाम से एक कंपनी की स्थापना की थी, जो नोएडा में रियल एस्टेट के काम संभालती थी. मार्च 2017 में रोहित व अंकुश ने इस कंपनी को अधिग्रहित कर लिया. इस तरह अतुल छात्रावास प्रोजेक्ट से बतौर सह-संस्थापक जुड़ गए.
तीनों ने भारत में छात्रों के लिए कैंपस से बाहर रहने की व्यवस्था को फिर से परिभाषित किया. उन्होंने ऐसे विद्यार्थियों को किराए पर ब्रैंडेड सुविधा वाली जगह उपलब्ध जिन्हें यूनिवर्सिटी हॉस्टल में कमरे नहीं मिल पाते थे.
नोएडा स्थित एमिटी यूनिवर्सिटी के आसपास कुछ किलोमीटर के दायरे में प्लासिओ विद्यार्थियों को रहने के लिए आधुनिक सुविधायुक्त घर मुहैया करवाता है. इसमें सभी विद्यार्थियों के पास तीन श्रेणियों में आवास चुनने के विकल्प होते हैं - प्लासिओ लग्ज़री, प्लासिओ प्राइम और प्लासिओ डॉर्म.
प्लासिओ के पास लड़कों व लड़कियों को अलग-अलग जगह मौजूद है. यहां वर्तमान में 700 विद्यार्थी रह रहे हैं. प्लासिओ के पास फिलहाल 18 जगहों पर 1200 लोगों के रहने की व्यवस्था है.
आवास शुल्क के रूप में विद्यार्थी 10,000 से 24,000 रुपए प्रतिमाह के हिसाब से भुगतान करते हैं. इसमें उन्हें रहने के अलावा सुरक्षा, घर का रखरखाव, कपड़े धोने की व्यवस्था एवं भोजन जैसी सुविधाएं दी जाती हैं. लग्ज़री श्रेणी में सामान्य श्रेणी से तुलनात्मक बड़े कमरे, अच्छी गुणवत्ता के बिस्तर, अच्छी गुणवत्ता का खाना और कुछ अन्य अतिरिक्त सुविधाएं मुहैया करवाई जाती हैं.
रोहित बताते हैं, “अच्छी आमदनी वाले अभिभावक अपने बच्चों के लिए बेहतर जगह की तलाश में रहते हैं. यहां आवासों की बनावट अन्य छात्रावासों के मुकाबले बेहद अलग है, जिसमें बैठक, बालकनी व काफ़ी खुली जगह है। इसके अलावा खाना भी विद्यार्थियों की पसंद से तैयार किया जाता है.”
प्लासिओ आवास शुल्क के रूप में हर विद्यार्थी से 10,000 से 24,000 रुपए प्रतिमाह लेता है.
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प्लासिओ में देश के अलग-अलग कोने के विद्यार्थी रहते हैं, जिनमें उत्तर-पूर्वी राज्य, तमिलनाडु, केरल व कश्मीर के विद्यार्थी भी शामिल हैं.
रोहित बताते हैं, “यह बेहद संयुक्त आवास योजना है. प्लासिओ केवल छात्रावास योजना ही नहीं है. यहां विद्यार्थियों को सामाजिक रूप से जुड़ने का अवसर भी मिलता है. यह रहने के साथ ही एक नए समाज को गढ़ने की तरह है. हम एक ऐसा मंच तैयार करना चाहते हैं जहां विद्यार्थियों को उच्च अनुभव मिले.”
प्लासिओ के तीनों संस्थापक पहले कॉर्पोरेट कर्मचारी थे, जो रियल एस्टेट के क्षेत्र में कुछ कर गुज़रना चाहते थे. इसी एक मकसद के साथ तीनों ने नौकरी छोड़ी और उद्यमी बन गए. इसका कारण एक ही था : एक कॉर्पोरेट नौकरी आपको मासिक वेतन के रूप में सुरक्षा व आराम तो देती है पर आपके विचार और नवाचार को सीमित कर देती है.
रोहित और अंकुश ने रियल एस्टेट के क्षेत्र में एक ऐसी बड़ी समस्या ढूंढनी शुरू कर दी, जिसका हल आसान व फ़ायदेमंद हो. कई महीनों की गहन खोज के बाद वे विद्यार्थियों के आवास की समस्या पर केंद्रित हो गए. रियल एस्टेट निवेश प्रबंधन के क्षेत्र में काम करने वाली एक कंपनी जॉन्स लैंग लासाले (जेएलएल) के अनुसार, भारत में छात्रों के आवास से जुड़े व्यवसाय का बाज़ार क़रीब 50 अरब डॉलर का है.
इसके बाद दोनों ने भारत में विद्यार्थियों के आवास की मांग व बाज़ार में उनकी उपलब्धता पर शोध किया. इससे पता चला कि इस क्षेत्र में मांग व पूर्ति के बीच बड़ा अंतर था. इनके द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक़ भारत में लगभग 3.5 करोड़ विद्यार्थी उच्च शिक्षा ले रहे हैं. इनमें क़रीब 70 प्रतिशत अपने घर से दूर रहते हैं.
विद्यार्थियों से चर्चा में मशगूल प्लासिओ के प्रवर्तक रोहित और अंकुश.
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इसके बाद इन्होंने अपने शोध को ऐसी बड़ी यूनिवर्सिटी की खोज में सीमित कर दिया, जिनके पास विद्यार्थियों के मुकाबले हॉस्टल कम थे. एक ऐसा बाज़ार जहां मांग व पूर्ति के बीच बेहद बड़ा अंतर था, ऐसा शहर जहां छात्रों के आवास के लिए समुचित साधन मौजूद थे आदि. इस तरह इनकी खोज नोएडा स्थित एमिटी यूनिवर्सिटी पर आकर ख़त्म हुई, जहां 28,000 विद्यार्थी मौजूद हैं.
रोहित बताते हैं, “हमने एमिटी यूनिवर्सिटी से बातचीत शुरू कर दी. हमने उनसे एक बतौर स्टार्ट-अप इन्क्यूबेशन संपर्क किया और हमारा प्रस्ताव स्वीकार हो गया.”
बहुत कम समय में उन्होंने ख़ुद को स्टार्ट-अप उद्यमी के रूप में स्थापित कर लिया. सिंगापुर के एक करोड़पति निवेशक की मदद से ये इस साल अतिरिक्त 10,000 बिस्तरों की योजना बना रहे हैं. इसके अंतर्गत ग्रेटर नोएडा और लखनऊ (उत्तर प्रदेश), गुड़गांव (हरियाणा), नॉर्थ कैंपस, साउथ कैंपस और लक्ष्मीनगर (दिल्ली) और इंदौर (मध्य प्रदेश) में प्लासिओ का विस्तार किया जाएगा. साल 2018-19 में इन्हें क़रीब 100 करोड़ रुपए के कारोबार की उम्मीद है.
इस बारे में रोहित बताते हैं, “हमारी दिल्ली-एनसीआर में 8500 बिस्तर, इंदौर में 1000 बिस्तर व लखनऊ में 500 बिस्तरों के छात्रावास स्थापित करने की योजना है.”
रोहित मध्य प्रदेश में पन्ना के एक मध्यम-वर्गीय परिवार से नाता रखते हैं. उनके पिता प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक थे. बाद में उनका परिवार इंदौर जाकर बस गया. हालांकि तब तक रोहित पन्ना के रामखिरिया बोर्डिंग स्कूल चले गए. साल 1993 तक वो छठी से 12वीं तक हॉस्टल में रहे.
उन्होंने साल 1999-2000 में सीए की पढ़ाई पूरी की. उसके बाद कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम किया. उन्होंने आख़िरी नौकरी एडेलविस ब्रोकिंग लिमिटेड में की, जिसे जनवरी 2016 में छोड़ दिया. जनवरी 2001 में रोहित ने सारिका से शादी की. दोनों के दो लड़के व एक लड़की है.
प्लेसिओ में खाने का मीनू विद्यार्थियों के साथ सलाह-मशविरे से तय किया जाता है.
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रोहित को इन 16 सालों में कई बार विदेश जाने के आधिकारिक व व्यक्तिगत अवसर मिले. इस दौरान उन्होंने अमेरिका, सिंगापुर, इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड की यात्राएं की, जहां वे अधिकांश छात्रावासों में रुकना पसंद करते थे. इसी दौरान इन्होंने अनुभव किया कि किस तरह ये छात्रावास यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों को आपस में जोड़ने का काम करते हैं.
न्यूयॉर्क के ब्रुकलिन स्थित एक छात्रावास का अपना अनुभव साझा करते हुए रोहित बताते हैं, “मैं डोर्म में क़रीब 15 दिन रहा, वहां दुनियाभर से लोग आकर रुके हुए थे. यह एक बहु-सांस्कृतिक अनुभव था. वहां रसोईघर में हर कोई अपने लिए खुद खाना पका सकता था. वहां आपसी मेलजोल बढ़ाने पर बहुत ध्यान दिया जाता था.”
इन छात्रावासों की कुछ बुनियादी ख़ासियतों से रोहित बेहद प्रभावित हुए, जैसे साफ़-सफाई, विनम्र कर्मचारी, पेशेवर रवैया और शिकायतों के अनुसार सुधार करना.
अंकुश का जन्म व परवरिश लखनऊ में हुई. इनके स्व. पिता उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय निर्माण निगम में इंजीनियर थे. उन्होंने अपनी पढ़ाई लखनऊ के सेंट फ्रांसिस कॉलेज से की. अंकुश के पिता के दोस्त स्व. कुलदीप सिंह राणा मियामी (अमेरिका) में एक रिसोर्ट चलाते थे, उन्हीं के कहने पर साल 2001 में अंकुश ने बरेली के एमजेपी रोहिलखंड विश्वविद्यालय से हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट की पढ़ाई की.
कोर्स पूरा करने के बाद उन्होंने अमेरिका जाने हेतु एच1बी वीज़ा के लिए आवेदन किया, पर साल 2001 में हुई 9/11 की त्रासदी ने इनके सपने चकनाचूर कर दिए. अंकुश याद करते हैं, “उस समय तक हॉस्पिटैलिटी बिज़नेस मंद पड़ गया था. इसीलिए मैंने सेवा क्षेत्र खंगालने की ठानी. इसी क्रम में मेरी मुलाकात रोहित से हुई और हम प्लासिओ स्टार्ट-अप शुरू कर पाए.”
पूंजी बाजार और अंतरराष्ट्रीय रियल एस्टेट के क्षेत्र में 17 सालों का अनुभव लेने के बाद उन्होंने एक अमेरिकी कंपनी सेंचुरी-21 रियल एस्टेट में बतौर अंतरराष्ट्रीय सेल्स हेड अपनी आख़िरी नौकरी की. साल 2009 में अंकुश, नेहा के साथ शादी के बंधन में बंध गए. आज इनकी दो बेटियां भी हैं.
एक न्यायिक अधिकारी के बेटे के तौर पर अतुल का सफ़र बेहद आकर्षक रहा. अपने पिता के तबादलों की वजह से अतुल कई अलग-अलग शिक्षण संस्थानों से पढ़े. गाजियाबाद के सेंट पॉल्स अकादमी से उन्होंने 12वीं कक्षा पास की.
प्लासिओ का उद्देश्य विद्यार्थियों को रहने के लिए आरामदायक स्थान उपलब्ध कराना है.
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इसके बाद अतुल ने साल 2005 में आईआईटी रुड़की से केमिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक. की पढ़ाई पूरी की और कैंपस प्लेसमेंट के जरिए टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस में इनकी नौकरी लग गई.
साल 2008 में उन्होंने टीसीएस की अपनी नौकरी छोड़ दी और अमेरिका के एच1बी वीज़ा को भी न बोल दिया. इसके बजाय उन्होंने नोएडा में अपने दोस्त के साथ मिलकर रेंटभाई डॉट कॉम नाम से एक रियल एस्टेट कंपनी शुरू की, जिसके मुख्य ग्राहक कॉर्पोरेट कर्मचारी थे.
हालांकि उनका यह स्टार्ट-अप मंदी की चपेट में आकर बंद हो गया, जो इनके लिए काफ़ी बड़ा झटका था. फिर अपने पिता की सलाह मानते हुए उन्होंने कैट की परीक्षा दी और आईआईएम अहमदाबाद से एमबीए करने लगे.
एमबीए के दौरान मई 2010 में अतुल ने अपने बचपन की दोस्त प्रीति से शादी कर ली. इनके दो बेटे हैं. साल 2011 में एमबीए पूरा करने के बाद अतुल को प्राइस वाटर हाउस और आरपीजी से नौकरी के प्रस्ताव मिले. उन्होंने प्राइस वाटर हाउस को चुना और बतौर सलाहकार काम करने लगे.
अतुल कहते हैं, “मैं एक रियल एस्टेट कंपनी में काम करना चाहता था, पर कैंपस के दौरान वह विकल्प मौजूद नहीं था. मैं हमेशा से रियल एस्टेट डेवलपर बनना चाहता था.”
करियर के उतार-चढ़ाव के दौरान उन्होंने कई कंपनियां बदलीं. साल 2013 में वो आम आदमी पार्टी से भी जुड़े और अपने गृहनगर हमीरपुर से लोकसभा चुनाव में भी उतरे.
सेहत के प्रति जागरूक विद्यार्थियों के बीच प्लासिओ कर इन-हाउस जिम मशहूर है.
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अतुल बताते हैं, “मैं चुनाव में खड़ा हुआ. उत्तर प्रदेश में स्थित हमीरपुर एक ग्रामीण चुनावी क्षेत्र है, जिसके अंतर्गत क़रीब 1100 गांव आते हैं. वह एक बिलकुल ही अलग अनुभव था. मैंने अपना फ़्लैट बेच दिया और चुनाव में 30 लाख रुपए ख़र्च कर दिए. मुझे कई दोस्तों और परिवार वालों से डोनेशन भी मिला. हालांकि उस चुनाव में भाजपा की जीत हुई. मुझे केवल 10,000 वोट ही मिले. चुनाव ने मुझे आर्थिक रूप से काफ़ी कमजोर कर दिया था.”
इसके बाद अतुल ने 1 लाख रुपए उधार लेकर क्लिक-अ-होम की शुरुआत की, जो आगे चलकर मार्च 2017 में प्लासिओ में मिल गई.
प्लासिओ के ये तीन स्तंभ बिलकुल अलग माहौल से निकल कर आए हैं, लेकिन सभी की राह एक है : वो अपने दिल की आवाज़ सुनकर यहां पहुंचे हैं.
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