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Friday, 4 July 2025

जब खेती में क्रांति लाना आपका सपना, शौक और बिज़नेस बन जाए

04-Jul-2025 By पीसी विनोज कुमार
चेन्नई

Posted 27 Dec 2017

चेन्नई में दो मंज़िला मकान की छत पर स्थित ग्रीनहाउस में जैसे ही आप प्रवेश करते हैं, आपको ख़ूबसूरत हरे-भरे पौधों की क़तारें नज़र आती हैं.

ये सभी पौधे पाइपों के ज़रिये उग रहे हैं, जिनमें पानी भरा है- इन पौधों को मिट्टी की कोई ज़रूरत नहीं है.

सुरक्षात्मक वातावरण में बढ़ रहे इन पौधों की पत्तियां हरी व मोटी हैं और उन पर धूल का एक कण तक नहीं है, जो इन्हें स्वच्छ व स्वस्थ रूप दे रहा है. आपको यहां इतालवी व थाई तुलसी, अजवाइन, ब्राह्मी, पुदीना और बाक चॉय के पौधे मिल जाएंगे.

हाइड्रोपोनिक्स के तेज़ी से उभर रहे क्षेत्र में श्रीराम गोपाल का दूसरा स्टार्ट-अप बढ़ोतरी का सकारात्मक संकेत दे रहा है. (फ़ोटो - एचके राजाशेकर)

भविष्य की मिट्टी-रहित खेती की दुनिया में आपका स्वागत है.

इस दुनिया में किसी भी व्यक्ति के लिए शहरी किसान बनना और घरेलू व व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए सब्ज़ियां उगाना संभव है. इन सब्ज़ियों को उगाने के लिए सिर्फ़ पोषक तत्वों से भरपूर पानी और नियंत्रित माहौल की ज़रूरत होती है.

इस तकनीक का नाम है हाइड्रोपोनिक्स. दुनियाभर में यह तकनीक तेज़ी से मशहूर हो रही है और चेन्नई का एक स्टार्ट-अप फ़्यूचर फ़ार्म्स भी इस दौड़ में शामिल हो गया है.


कंपनी के संस्थापक और सीईओ 34 वर्षीय श्रीराम गोपाल हैं. वो छत पर स्थित अपना फ़ार्म दिखाते हैं. जिस तेज़ी से उनकी कंपनी बढ़ रही है, उससे वो अत्यधिक उत्साहित हैं.


फ़्यूचर फ़ार्म्स ने 2016-17 में दो करोड़ रुपए का कारोबार किया और उम्मीद है कि ताज़ा वित्तीय वर्ष में यह तीन गुना हो जाएगा.

श्रीराम कहते हैं, “हम हर साल 300 प्रतिशत की रफ़्तार से बढ़ रहे हैं. वर्ष 2015-16 में हमने 38 लाख का कारोबार किया था और पिछले साल यह दो करोड़ रुपए का रहा. इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में ही हमने दो करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया है. उम्मीद है कि इस साल हमारा कारोबार छह करोड़ रुपए को भी पार कर जाएगा.”


वर्तमान परिस्थितियों में दुनिया भर में पानी के संसाधन कम हो रहे हैं. हाइड्रोपोनिक्स परंपरागत खेती के मुकाबले लाभकारी प्रतीत हो रहा है. दरअसल, परंपरागत खेती के बजाय इसमें पानी की खपत 90 प्रतिशत कम होती है. इसमें कीटनाशक डालने की भी ज़रूरत नहीं होती और पैदावार भी बेहतर होती है.

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का उपयोग सजावट के उद्देश्य से भी किया जाता है. चेन्नई में फ़्यूचर फ़ार्म्स के ऑफ़िस के बाहर का दृश्य.

 

ट्रांसपैरेंसी मार्केट रिसर्च की एक रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि “वर्ष 2025 तक हाइड्रोपॉनिक्स का वैश्विक बाज़ार बढ़कर 12.1 अरब डॉलर हो जाएगा, जो वर्ष 2016 में 6.93 अरब डॉलर था.”


जोखिम लेना और नई तकनीक खोजना श्रीराम का स्वभाव है. उन्होंने वर्ष 2007 में सफलतापूर्वक एक आईटी कंपनी की स्थापना की, लेकिन हाइड्रोपोनिक्स में उन्हें आकर्षक संभावनाएं नज़र आईं.


पांच साल पहले एक दोस्त ने उन्हें हाइड्रोपोनिक्स पर एक वीडियो यूट्यूब पर दिखाया था. उसके बाद उन्होंने खुद ही बिना मिट्टी की खेती को लेकर प्रयोग करना शुरू कर दिए. उन्होंने यह प्रयोग पेरुंगुडी में अपने पिता की बंद पड़ी फैक्ट्री की खाली ज़मीन पर किए.

 

उनके पिता ए. गोपालकृष्णन की एक फ़ैक्ट्री थी, जिसमें प्रिंटिंग और फ़ोटो प्रोसेसिंग मशीनें बनाई जाती थीं. वर्ष 2007 में उन्होंने अपनी बिगड़ती सेहत के चलते यह फ़ैक्ट्री बंद कर दी.
श्रीराम कहते हैं, “कोडक और फुज़ी की तरह भारत में ऐसी मशीनें बनाने वाली हमारी एकमात्र कंपनी थी. उन दिनों फ़ोटो लैब्स 20 से 22 लाख रुपए में सेकंड हैंड फ़ुजी और कोडक की मशीनें आयात किया करती थीं. लेकिन मेरे पिता की बनाई वैसी ही मशीन की क़ीमत महज सात लाख रुपए हुआ करती थीं और कई लैब ने इन मशीनों को हमसे ख़रीदा.”

श्रीराम के पिता कलर फ़ोटो लैब की चेन के मालिक भी थे. स्कूली दिनों से ही वो उच्च तकनीक वाले कैमरों की मरम्मत करने के शौकीन थे. इसलिए बेंगलुरु के बिट्स से इलेक्ट्रिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद उन्होंने चेन्नई में कैमरे की मरम्मत करने की दुकान खोलने का फ़ैसला किया.

चेन्नई में छत पर स्थित फ़ार्म में अपनी टीम के साथ श्रीराम.

गोपाकृष्णन का बिज़नेस तेज़ी से बढ़ रहा था और एक वक्त ऐसा आया, जब उनकी फ़ैक्ट्री और फ़ोटो लैब में क़रीब 300 लोग काम करते थे.

श्रीराम कहते हैं, “लेकिन उन्हें मार्केटिंग की बहुत ज़्यादा समझ नहीं थी और उन्होंने अपनी फ़ोटो प्रोसेसिंग मशीनों का प्रचार-प्रसार नहीं किया. उन्हें जो भी बिज़नेस मिला, वह एक-दूसरे लोगों को बताने से मिला. इस कारण बहुत कम उम्र से ही मेरी रुचि मार्केटिंग में हो गई.”

श्रीराम ने चेन्नई की हिंदुस्तान युनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशंस में इंजीनियरिंग की. उसके बाद ब्रिटेन के कैलेडोनियन बिज़नेस स्कूल से मार्केटिंग और स्ट्रैटजी में मास्टर डिग्री ली.

उन्होंने अपने पिता से एक मूल्यवान सबक़ सीखा और वो यह था कि हमेशा वक्त से आगे की सोचो. उनके पिता ने कोडैक और फ़ुजी जैसी कंपनियों से प्रतिस्पर्धा की, लेकिन इसके बावजूद बाज़ार में अपनी अलग जगह बनाई.

कारोबार को लेकर अपनी सोच के बारे में श्रीराम बताते हैं, “गुणवत्ता से समझौता किए बगै़र कम क़ीमत में वो एक बेहतरीन उत्पाद बाज़ार में लेकर आए. मैंने यह भी सीखा कि कारोबार में आपको आने वाले कल के बारे में सोचना होगा, न कि आज के बारे में, क्योंकि अगर यह आज का कारोबार है और अच्छा है तो बड़े खिलाड़ी उसे हड़प कर जाएंगे. अगर यह नहीं (पर्याप्त अच्छा) है, तो आप कभी आगे नहीं बढ़ पाएंगे.”


यही वह विचार था, जिसके चलते वो नए कारोबारी अवसर की तलाश करने लगे, जबकि लंदन से डिग्री लेने के बाद चेन्नई में वर्ष 2007 में शुरू की गई आईटी कंसल्टिंग कंपनी अच्छी चल रही थी.

श्रीराम ने जिस आईटी कंसल्टिंग कंपनी की स्थापना की थी, उसके एक अन्य डायरेक्टर को उसका सीईओ बना दिया, ताकि वे अपना समय और ऊर्जा फ़्यूचर फ़ार्म्स को दे सकें.

“मैंने कंपनी के एक अन्य डायरेक्टर को सीईओ बना दिया और अपना ध्यान हाइड्रोपोनिक्स की तरफ़ लगा दिया. कंपनी में अभी भी उनकी 68 प्रतिशत हिस्सेदारी है.”

श्रीराम बताते हैं, “मैंने यह कंपनी तीन लोगों के साथ शुरू की थी. हममें से प्रत्येक ने दो साल के लिए पांच लाख रुपए का निवेश किया. आज सिनामेन थिंकलैब्स प्राइवेट लिमिटेड दो करोड़ रुपए सालाना का कारोबार कर रही है.”

जैसे-जैसे कंपनी बढ़ रही थी, कंपनी के दूसरे डायरेक्टरों में ज़ोखिम लेने की प्रवृत्ति कम होती गई. उन्होंने सुरक्षित क्षेत्र में खेलने को वरीयता दी.

कंपनी के बढ़ने की रफ़्तार सुस्त थी, लेकिन कारोबार में अपने आप लगातार बढ़ोतरी हो रही थी और उसमें श्रीराम की भूमिका बहुत ज़्यादा नहीं थी. इस कारण वो परेशान रहने लगे और कुछ नया करने की सोचने लगे.

यही वक्त था जब श्रीराम को हाइड्रोपोनिक्स के बारे में पता चला और उन्होंने इस मौके़ को झपट लिया.

वो कहते हैं, “मैंने कंपनी के एक अन्य डायरेक्टर को सीईओ बना दिया और अपना ध्यान हाइड्रोपोनिक्स की तरफ़ लगा दिया. कंपनी में अभी भी उनकी 68 प्रतिशत हिस्सेदारी है.”

पांच साल पहले शौकिया तौर पर इसकी शुरुआत हुई. श्रीराम याद करते हैं, “मैं खुद ही कुछ चीज़ें करने लगा। मैंने कुछ सामान जैसे हाइड्रोपोनिक्स किट को आयात किया। उसे खोला और पानी की गुणवत्ता जांचने के लिए उसके चैनल, पंप, कंट्रोलर और विभिन्न उपकरणों आदि के परीक्षण किए.”

फ़्यूचर फ़ार्म्स की टीम से उच्च शिक्षित, युवा और जोशीले पेशेवर जुड़े हैं.

 

जल्द ही उन्होंने एक विदेश कंपनी की डिस्ट्रिब्यूटरशिप हासिल कर ली और उनकी हाइड्रोपोनिक्स किट को भारत में बेचना शुरू कर दिया.

वो कहते हैं, “मैंने खुद का नाम ऑनलाइन वेबसाइट पर उपलब्ध सूचियों में डलवा लिया। हालांकि बहुत ज़्यादा बिक्री नहीं हुई, क्योंकि किट बेहद महंगी थी.”

लेकिन इसका फ़ायदा यह हुआ कि उनकी मुलाक़ात समान सोच रखने वाले लोगों से हुई. उनमें से ज़्यादातर उन्हीं की उम्र के थे. ये सभी उच्च शिक्षित लोग थे. उनकी पृष्ठभूमि अलग थी और सभी कुछ नया करना चाहते थे.

श्रीराम हंसते हुए कहते हैं, “वो सब मेरी तरह थोड़े पागल से थे. मैंने सोचा कि मुझे अपनी कंपनी के लिए ऐसे ही लोगों की ज़रूरत है.”

ग्यारह लोग कंपनी में शामिल हो गए. ये सभी हुनरमंद थे, ख़ूब यात्राएं कर चुके थे और उनके मन में कुछ करने की आग थी.

उनमें से एक बायोटेक्नोलॉजिस्ट था, जिसने यूएई में एक बड़ी हाइड्रोपोनिक्स कंपनी में नौकरी छोड़ी थी. एक अन्य व्यक्ति ने थाइलैंड में एक हाइड्रोपोनिक्स कंपनी में डेढ़ साल तक काम किया था और वो भारत में सही मौके़ की तलाश कर रहा था जब उसकी मुलाकात श्रीराम से हुई. एक हफ़्ते बाद वह भी टीम में शामिल हो गया.

कोटागिरी स्थित हाइड्रोपोनिक्स फ़ार्म में आइसबर्ग लेट्यूस. (विशेष व्यवस्था से)

 

लेकिन सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि श्रीराम न केवल बेहतरीन लोगों को बिना ऊंची तनख़्वाहों के कंपनी में लाने में सफ़ल रहे थे, बल्कि इन लोगों को कंपनी में निवेश करने के लिए भी मना लिया गया.


श्रीराम कहते हैं, “हम अब तक अपने बिज़नेस में क़रीब ढाई करोड़ का निवेश कर चुके हैं. जो 11 लोग मेरी टीम में शामिल हुए हैं, उनमें से हर व्यक्ति ने 10 से 15 लाख रुपए कंपनी में निवेश किए हैं. कंपनी जल्द ही प्राइवेट लिमिटेड बनने वाली है और इन सभी 11 लोगों को कंपनी के शेयर दिए जाएंगे.”
 

कंपनी के हिस्सेदारों में से कोई भी निष्चित तनख़्वाह नहीं लेता है. सभी की कमाई कंपनी की मासिक आय पर निर्भर करती है. यह नियम संस्थापक श्रीराम सहित 12 लोगों पर लागू होता है, न कि 40 सदस्यीय टीम के बाक़ी के सदस्यों पर.


कंपनी अपनी वेबसाइट पर हाइड्रोपोनिक किट्स बेचती है. इनकी कीमत 999 रुपए से लेकर 69,999 रुपए तक होती है. किट को घर तक पहुंचाने का ख़र्च अलग होता है. वो तैयारशुदा आधार पर भी हाइड्रोपोनिक यूनिट स्थापित करते हैं.
 

श्रीराम बताते हैं कि 200 वर्ग फीट का हाइड्रोपोनिक फ़ार्म लगाने के लिए क़रीब एक लाख का ख़र्च आता है जबकि 200-5000 वर्ग फ़ीट के फ़ार्म पर एक से 10 लाख रुपए तक ख़र्च आता है.

श्रीराम के मुताबिक, ”24 से 30 महीनों में ही इस निवेश की लागत वसूल हो जाती है.“

श्रीराम मानते हैं कि हाइड्रोपोनिक्स देश में कृषि संबंधी संकट का जवाब है.

वो मानते हैं कि उनकी चुनौती इस किट के लिए बाज़ार तलाश करना है, लेकिन फ़िलहाल उन्हें ऐसे लोग मिल गए हैं जो बिक्री के लिए औषधि से जुड़े या दूसरे पौधे उगा रहे हैं.
 

कंपनी ने अडानी ग्रुप के लिए भुज में आधा एकड़ में फ़ार्म बनाए हैं. कंपनी ने कोटागिरी में भी एक किसान के लिए खेती की शुरुआत की है, जहां मैकडोनाल्ड कंपनी के लिए आइसबर्ग लेट्यूस उगाया जाता है.

श्रीराम को उम्मीद है कि नए ज़माने के किसान वो लोग होंगे जो कंप्यूटर और हाइड्रोपोनिक में इस्तेमाल में आने वाले सेंसर से वाक़िफ़ होंगे, जहां शहरों में इमारतों की छतों पर खेती की जा सकेगी.

वर्ष 2011 में श्रीराम की शादी हुई, उनकी पत्नी प्रीता सुरेश एक ग्राफ़िक डिज़ाइनर हैं। उन्होंने अहमदाबाद के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ डिज़ाइन में पढ़ाई की है. दोनों की ढाई साल की एक बेटी भी है.


 

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