Milky Mist

Wednesday, 30 October 2024

46 हजार रुपए से कंस्‍ट्रक्‍शन कंपनी शुरू की, हाल ही में पूरे किए 20 करोड़ के प्रोजेक्ट

30-Oct-2024 By उषा प्रसाद
बेंगलुरु

Posted 24 Aug 2019

कॉलेज में अंतिम वर्ष की पढ़ाई के दौरान ही शरथ सोमन्‍ना को उनका पहला कॉन्‍ट्रेक्‍ट मिल गया था. बात वर्ष 2013 की है. एक निर्माणाधीन इमारत के मालिक ने काम बीच में रोक दिया था. शरथ ने समय पर इसका काम पूरा किया. पांच साल बाद वे एक बिल्‍डर और इंटीरियर डिजाइनर के रूप में स्‍थापित हो चुके हैं. उनकी कंपनी ने पिछले वर्ष 20 करोड़ रुपए के प्रोजेक्‍ट पूरे किए.

अब वे ठेके पर काम लेने के बजाय तैयारशुदा परियोजनाओं पर ध्‍यान दे रहे हैं. इस तरह वे अपनी कंपनी ब्‍ल्‍यू ओक कंस्‍ट्रक्‍शंस एंड इंटीरियर्स प्राइवेट लिमिटेड को भी बदल रहे हैं. इस कंपनी की नींव वर्ष 2014 में महज 46,000 रुपए के निवेश से रखी गई थी. भारतभर में फैली उनकी यह कंपनी जल्‍द ही वैश्विक होने पर विचार कर रही है.

शरथ सोमन्‍ना को उनका पहला कॉन्‍ट्रेक्‍ट तब मिला, जब वे बीबीए के अंतिम वर्ष के छात्र थे. (फोटो – विशेष व्‍यवस्‍था से)


27 वर्षीय सोमन्‍ना कहते हैं, ‘‘ग्राहक आजकल डिजाइनर, कॉन्‍ट्रेक्‍टर आदि की अलग-अलग सेवाएं नहीं लेना चाहते. हम ऐसे लोगों को एक समाधान देने की कोशिश कर रहे हैं. हमारे पास डिजाइनर्स की बड़ी टीम है, इसलिए हम सबसे बेहतर काम कर सकते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि हम डिजाइन का अलग से शुल्‍क नहीं लेते हैं.’’

हालांकि कोडागु जिले के एक फौजी के बेटे के लिए यह सब आसान नहीं था. सिविल इंजीनियरिंग या इंटीरियर डिजाइनिंग में औपचारिक प्रशिक्षण न होना भी उन्‍हें बड़े प्रोजेक्‍ट लेने से नहीं रोक नहीं पाया. शरथ ने आवासीय इमारत से लेकर व्‍यावसायिक संरचनाएं और कॉर्पोरेट ऑफिस तथा उद्योग तक का निर्माण किया..

बेंगलुरु की कंस्‍ट्रक्‍शन इंडस्‍ट्री का शिखर छूने से पहले, सोमन्‍ना को मुश्किल दौर से गुजरना पड़ा. उन्‍हें भारी नुकसान झेलना पड़ा. वर्ष 2014 में कंपनी शुरू करने के पहले साल में उन्‍हें 55 लाख रुपए का नुकसान हुआ.

शुरुआती धक्‍कों को याद करते हुए सोमन्‍ना कहते हैं, ‘‘भले ही मैं बहुत तनाव में था, लेकिन मेरे कभी पीछे न हटने के नजरिये ने मुझे चुनौतियों से मुकाबला करने की जरूरी ताकत दी. इससे मैंने बहुत कुछ सीखा भी. मैंने कभी हार नहीं मानी.’’

कंपनी स्‍थापित करने के बाद शरथ ने 16 करोड़ रुपए के दो प्रोजेक्‍ट हासिल किए. वे याद करते हैं, ‘‘प्रोजेक्‍ट हासिल करना आसान रहा, लेकिन चूंकि मैं कारोबारी परिवार से नहीं था, इसलिए मुझे संरक्षण और परामर्श नहीं मिल पाया. मैंने कई गलतियां कीं. मैं वही रणनीति अपनाता, जो मैंने अपने पहले प्रोजेक्‍ट में अपनाई थी, लेकिन बाद में समझ आया कि एक ही रणनीति अन्‍य प्रोजेक्‍ट के लिए कारगर नहीं है.’’

शरथ को पहला प्रोजेक्‍ट तब मिला था, जब वे बेंगलुरु के एमएस रामैया इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी से बीबीए की पढ़ाई कर रहे थे. वे कहते हैं, ‘‘एक दिन कॉलेज से लौटते समय मेरी नजर एक आधे-अधूरे आवासीय निर्माण पर पड़ी. मुझे आश्‍चर्य हुआ कि इसका निर्माण क्‍यों रोक दिया गया था. अगले दिन मैं उस ढांचे के मालिक से मिला और उनसे काम आगे बढ़ाने की बात कही.’’

सोमन्‍ना कहते हैं उनके पास प्रतिभाशाली पेशेवर लोगों की एक टीम है, जो ग्राहक की उम्‍मीदों की मुताबिक प्रोजेक्‍ट पूरे करने में उनकी मदद करती है.


सोमन्‍ना ने 51 वर्षीय अनुभवी सिविल इंजीनियर को अपने साथ लिया और उन्‍हें कहा कि यदि वे प्रोजेक्‍ट पाने में सफल रहे तो वे उन्‍हें नौकरी पर रख लेंगे. युक्ति काम कर गई और उन्‍हें अपना पहला प्रोजेक्‍ट मिल गया.

सोमन्‍ना कहते हैं, ‘‘मालिक ने हमें बस 4 लाख रुपए एडवांस दिए. हमने 1.1 करोड़ रुपए का प्रोजेक्‍ट लिया था और एक साल में 46,000 वर्ग फीट इमारत बना दी. लेकिन अगला प्रोजेक्‍ट मुश्किल में पड़ गया. प्रोजेक्‍ट बड़ा था, हम प्रबंधकीय उपाय नहीं कर पाए. डेवलपर ने भी समय पर पैसा नहीं दिया. ऐसे में पहले साल में कंपनी को 55 लाख रुपए का नुकसान हुआ.’’

हालांकि सोमन्‍ना इतने दृढ़ योद्धा थे कि उन्‍होंने ये झटके सह लिए. वे कहते हैं, ‘‘वह बहुत अच्‍छी सीख थी और मुझे आनंद आया.’’

उन्‍होंने टीम का पुनर्गठन किया, कुशल लोगों को रखा और बिजनेस मॉडल को बेहतर किया. वे भरोसे से कहते हैं, ‘‘चूंकि मैं बहुत तनाव से गुजर चुका था, इसलिए इस कवायद ने मुझे कठोर परिश्रम करने की ऊर्जा दी. घाटे के बावजूद कोई मुझे तबाह नहीं कर पाया. मैंने बहुत से धोखेबाजी देखी, कई इंजीनियर ने मेरी पीठ पर वार किया, लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी, और मैं कभी नहीं मानूंगा.’’

वे कहते हैं, ‘‘जब मैं अपने कर्मचारियों को समय पर तनख्‍वाह नहीं दे पाया, तब मैंने तय किया कि मैं इतनी सतर्कतापूर्वक काम करूंगा कि किसी भी समय मेरे पास पांच साल की तनख्‍वाह देने के बराबर पैसा हो. आज मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि मैंने यह मुकाम हासिल कर लिया है.’’

सोमन्‍ना की उम्र महज 22 वर्ष थी, जब उन्‍होंने अपना वित्‍तीय और कर्मचारियों का प्रबंधन सीखा.

कॉलेज के दिनों में राष्‍ट्रीय स्‍तर के हॉकी खिलाड़ी रहे सोमन्‍ना अब समय मिलने पर गोल्‍फ खेलना पसंद करते हैं.

शरथ इस घाटे से कैसे उबरे? सोमन्‍ना कहते हैं, ‘‘चूंकि मेरे माता-पिता मध्‍यम वर्गीय परिवार से थे, इसलिए उन्‍होंने पैसे से मेरी मदद नहीं की. लेकिन जिस चीज की सबसे अधिक जरूरत थी, वह दिया. यानी भावनात्‍मक और नैतिक समर्थन. मैंने अवसरों का इंतजार किया और घाटा पाटने के लिए कुछ बड़े प्रोजेक्‍ट हासिल किए.’’

वर्ष 2016 के बाद से ब्‍ल्‍यू ओक ने कई प्रोजेक्‍ट सफलतापूर्वक पूरे किए. बाहर से कोई अतिरिक्‍त फंड नहीं जुटाया. उनके प्रोजेक्‍ट में 3.5 लाख वर्ग फीट इलाके में फैले 200 फ्लैट, उच्‍च स्‍तरीय आवासीय इमारत, भव्‍य कॉर्पोरेट ऑफिस और मैसुरु में औद्योगिक प्रोजेक्‍ट शामिल हैं. अब उनकी निगाहें गोवा में एक रिजॉर्ट प्रोजेक्‍ट पर हैं.

भविष्‍य की योजना के बारे में शरथ बताते हैं, ‘‘इस वर्ष से हम अधिक से अधिक बिल्डिंग डिजाइन पर ध्‍यान केंद्रित कर रहे हैं. इसमें हम पूरे प्रोजेक्‍ट की संकल्‍पना से लेकर स्‍ट्रक्‍चरल डिजाइन और इंटीरियर पर काम करेंगे.’’

11 ऑफिस कर्मचारियों और 60 ऑनसाइट कर्मचारियों से शुरू हुई ब्‍लू ओक कंपनी में अब 18 ऑफिस कर्मचारी और 150 ऑनसाइट कर्मचारी हैं. समृद्ध प्रतिभाशाली लोगों के चलते कंपनी से जेएलएल, कुशमैन एंड वैकफील्‍ड्स और दो अमेरिकी कंपनियों से आकर कई अनुभवी लोग जुड़ चुके हैं.

शरथ कारोबार की बारीकियों से कैसे निपटते हैं, जबकि उनके पास इसका कोई अनुभव भी नहीं है? इस सवाल पर शरथ कहते हैं, ‘‘कारोबारी के रूप में मैं अब भी यह मानता हूं कि अपने आसपास स्‍मार्ट लोगों को रखना हमेशा बेहतर होता है. इससे कंपनी की कई प्रक्रियाएं समझने में मदद मिलती है.’’

सोमन्‍ना का जन्‍म और लालन-पालन कोडागु जिले के मडिकेरी में हुआ. कक्षा छह तक उन्‍होंने वहीं पढ़ाई की. इसके बाद बेंगलुरु चले गए और सेंट जोसेफ इंडियन हाई स्‍कूल में पढ़ाई की. इस दौरान वे होस्‍टल में रहे. परिजन के बेंगलुरु आने के बाद वे उनके साथ रहने लगे.

ब्‍ल्‍यू ओक्‍स कंस्‍ट्रक्‍शनंस एंड इंटीरियर्स की बनाई एक रचना.

उनके पिता गणेश अपैया सेवानिवृत्‍त फौजी हैं. उनकी मां सीथाम्‍मा गणेश गृहिणी हैं. हॉकी खिलाड़ी रहे पिता के पदचिन्‍हों पर चलते हुए सोमन्‍ना की भी हॉकी में दिलचस्‍पी रही. स्‍कूली दिनों में उन्‍होंने राष्‍ट्रीय स्‍तर पर कर्नाटक का प्रतिनिधित्‍व किया. आजकल वे समय मिलने पर गोल्‍फ खेलते हैं.

एक खिलाड़ी का अनुशासन उन्‍होंने अपने निजी और पेशेवर जीवन में अपना रखा है. वे सुबह 10 से रात 10 बजे तक काम करते हैं. इसके अलावा रोज दिन की शुरुआत करने से पहले 40 मिनट ध्‍यान लगाते हैं. उन्‍हें श्‍वानों से भी प्‍यार है. वे कहते हैं, ‘‘मेरे दोनों श्‍वान मेरा तनाव दूर कर देते हैं.’’

एक सवाल अब भी बाकी है. ब्‍ल्‍यू ओक का क्‍या मतलब है? सोमन्‍ना बताते हैं, ‘‘ ब्‍ल्‍यू का मतलब है स्‍पष्‍टता. ओक यानी बलूत निर्माण में इस्‍तेमाल होने वाली सबसे मजबूत लकड़ी है. सिंह हमारा लोगो है. इस तरह हम वादा करते हैं कि हम आपको स्‍पष्‍टता और सच के साथ मजबूत बिल्डिंग बनाकर देंगे. मेरे हिसाब से कंस्‍ट्रक्‍शन उद्योग में इसी बात की कमी है.’’

सोमन्‍ना काम से छुट्टी लेकर अपने परिवार और पालतु श्‍वानों के साथ समय बिताते हैं.

इन दिनों सोमन्‍ना वास्‍तव में अपने सपनों का जीवन जी रहे हैं. वे हंसते हुए कहते हैं, ‘‘मैं युवावस्‍था से ही चाहता था कि कोई बिजनेस करूं.’’ मैं स्‍कूल में बबलगम के टैटू बेचा करता था और हमेशा एक उद्यमी बनना चाहता था.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • PM modi's personal tailors

    मोदी-अडानी पहनते हैं इनके सिले कपड़े

    क्या आप जीतेंद्र और बिपिन चौहान को जानते हैं? आप जान जाएंगे अगर हम आपको यह बताएं कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निजी टेलर हैं. लेकिन उनके लिए इस मुक़ाम तक पहुंचने का सफ़र चुनौतियों से भरा रहा. अहमदाबाद से पी.सी. विनोज कुमार बता रहे हैं दो भाइयों की कहानी.
  • UBM Namma Veetu Saapaadu hotel

    नॉनवेज भोजन को बनाया जायकेदार

    60 साल के करुनैवेल और उनकी 53 वर्षीय पत्नी स्वर्णलक्ष्मी ख़ुद शाकाहारी हैं लेकिन उनका नॉनवेज होटल इतना मशहूर है कि कई सौ किलोमीटर दूर से लोग उनके यहां खाना खाने आते हैं. कोयंबटूर के सीनापुरम गांव से स्वादिष्ट खाने की महक लिए उषा प्रसाद की रिपोर्ट.
  •  Aravind Arasavilli story

    कंसल्टेंसी में कमाल से करोड़ों की कमाई

    विजयवाड़ा के अरविंद अरासविल्ली अमेरिका में 20 लाख रुपए सालाना वाली नौकरी छोड़कर देश लौट आए. यहां 1 लाख रुपए निवेश कर विदेश में उच्च शिक्षा के लिए जाने वाले छात्रों के लिए कंसल्टेंसी फर्म खोली. 9 साल में वे दो कंपनियों के मालिक बन चुके हैं. दोनों कंपनियों का सालाना टर्नओवर 30 करोड़ रुपए है. 170 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं. अरविंद ने यह कमाल कैसे किया, बता रही हैं सोफिया दानिश खान
  • Snuggled in comfort

    पसंद के कारोबारी

    जयपुर के पुनीत पाटनी ग्रैजुएशन के बाद ही बिजनेस में कूद पड़े. पिता को बेड शीट्स बनाने वाली कंपनी से ढाई लाख रुपए लेने थे. वह दिवालिया हो रही थी. उन्होंने पैसे के एवज में बेड शीट्स लीं और बिजनेस शुरू कर दिया. अब खुद बेड कवर, कर्टन्स, दीवान सेट कवर, कुशन कवर आदि बनाते हैं. इनकी दो कंपनियों का टर्नओवर 9.5 करोड़ रुपए है. बता रही हैं उषा प्रसाद
  • Success story of helmet manufacturer

    ‘हेलमेट मैन’ का संघर्ष

    1947 के बंटवारे में घर बार खो चुके सुभाष कपूर के परिवार ने हिम्मत नहीं हारी और भारत में दोबारा ज़िंदगी शुरू की. सुभाष ने कपड़े की थैलियां सिलीं, ऑयल फ़िल्टर बनाए और फिर हेलमेट का निर्माण शुरू किया. नई दिल्ली से पार्थो बर्मन सुना रहे हैं भारत के ‘हेलमेट मैन’ की कहानी.