Milky Mist

Tuesday, 20 May 2025

13 साल की उम्र में 30 रुपए लेकर मुंबई आए थे, आज 20 करोड़ टर्नओवर वाले मशहूर शिव सागर रेस्तरां के मालिक हैं

20-May-2025 By देवेन लाड
मुंबई

Posted 16 Jan 2018

13 साल का एक लड़का हमेशा मुंबई आने के सपने देखा करता है. एक दिन वह अपने सपनों के शहर आता है और सफलता की नई ऊंचाइयां छूता है. सुनने में यह किसी बॉलीवुड फ़िल्म की कहानी लगती है, लेकिन यह कोई फ़िल्मी कहानी नहीं बल्कि मुंबई की प्रतिष्ठित रेस्तरां श्रृंखला शिव सागर को सफल बनाने वाले नारायण पुजारी के जीवन की दास्तां है.

शिव सागर मुंबई का सबसे प्रतिष्ठित शाकाहारी रेस्तरां है. पूरे महानगर में इसकी 16 शाखाएं हैं. साल 1990 से शुरू हुई नारायण की कंपनी शिव सागर फूड्स ऐंड रिज़ॉर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड का सालाना कारोबार इस बार 20 करोड़ रुपए का आंकड़ा पार कर चुका है.

एक कैंटीन में वेटर के रूप में दो साल काम करने के बाद नारायण पुजारी ने अपना पहला कैंटीन कफ़ परेड में शुरू किया. यहां 20 लोगों के बैठने की व्यवस्था थी. इसके बाद उन्होंने पीछे पलटकर नहीं देखा. (विशेष व्यवस्था से)

यह सफर मुंबई के केम्प्स कॅार्नर में एक छोटी सी आइसक्रीम दुकान से शुरू हुआ था.

साल 1967 में कर्नाटक के कुंडापुरा में जन्मे नारायण हमेशा से मुंबई के प्रति ख़ास आकर्षित रहे. मुंबई में रहने व काम करने वाले उनके गांव के लोग उन्हें मायानगरी के क़िस्से सुनाया करते थे. तभी से उनके मन में कम से कम एक बार मुंबई जाने का सपना पनपने लगा था.

खेती करने वाले मध्यम वर्गीय संयुक्त परिवार में पले-बढ़े नारायण का यह सपना उनकी असल ज़िंदगी से बिलकुल मेल नहीं खाता था. फिर भी, 1980 में महज 13 साल के नारायण ने एकाएक अपनी पढ़ाई छोड़कर मुंबई जाने का फ़ैसला कर लिया.

वह याद करते हैं, “उस समय मैं पांचवीं में था, जब मैंने अपने परिवार वालों से कहा कि मैं मुंबई जाकर काम करना चाहता हूँ. मैं छह भाई-बहनों में सबसे बड़ा था, इसलिए मैंने तय किया कि अब मेरे काम करने का समय आ गया है.”

उसी साल अप्रैल में उनकी नानी ने उन्हें 30 रुपए दिए और वह एक निजी बस पकड़ कर मुंबई आ गए. मुंबई के सांताक्रूज़ में उनकी एक बुआ रहती थीं, जिससे उन्हें रहने के लिए जगह भी मिल गई. 

एक रिश्तेदार की मदद से नारायण को दक्षिण मुंबई के बलार्ड एस्टेट स्थित एक ऑफ़िस कैंटीन में वेटर की नौकरी मिल गई.

नारायण बताते हैं, “मेरे जिस रिश्तेदार ने सिफ़ारिश के जरिए मुझे यह नौकरी दिलवाई थी, वो नहीं चाहते थे कि मैं अपनी पढ़ाई छोड़ दूं. इसीलिए उन्होंने कैंटीन मालिक से बात कर यह सुनिश्चित कर लिया था कि मैं एक रात्रि स्कूल में पढ़ाई कर सकूं.”

“सुबह 9 से शाम 6 बजे तक काम करने पर मुझे 40 रुपए मासिक वेतन मिलता था. रोज़ आने-जाने के लिहाज से बुआ का घर थोड़ा दूर था, इसीलिए रात में स्कूल से वापस आकर कैंटीन में ही सो जाया करता था. शनिवार व रविवार को मेरी छुट्टी होती थी. उस समय मैं दूसरे बच्चों के साथ क्रिकेट व फ़ुटबॉल खेलता था.”

साल 1990 में नारायण को एक अच्छा मौक़ा मिला. उन्हें मुनाफ़े की साझेदारी में शिव सागर नामक आइसक्रीम दुकान चलाने का प्रस्ताव मिला. बाद में वो इस ब्रैंड के मालिक बन गए.

नारायण मुंबई के बोरा बाजार स्थित मदर इंडिया फ्री नाइट स्कूल जाते थे. कुछ महीनों बाद उन्होंने अपनी पहली नौकरी छोड़ दी और लोक निर्माण विभाग की कैंटीन में काम करने लगे.

वहां उन्होंने दो साल काम किया. तब तक वो दसवीं में आ चुके थे. तभी उन्हें कफ़ परेड क्षेत्र में 25,000 रुपए के निवेश से अपनी ख़ुद की कैंटीन खोलने का मौक़ा मिला, जिसमें 20 लोगों के बैठने की व्यवस्था थी.

नारायण कहते हैं, “कैंटीन संभालने के दौरान मैंने व्यवसाय के प्रबंधन का हर पहलू सीखा. मुझे यह समझ आ गया था कि कोई रेस्तरां कैसे चलाया जाता है.”

पढ़ाई में बहुत अच्छा न होने के बावजूद नारायण ने नाइट स्कूल से किसी तरह कक्षा 12वीं तक पढ़ाई पूरी कर ली थी. अगले कुछ सालों तक कैंटीन चलाने के साथ-साथ उन्होंने महेश लंच होम रेस्तरां के मालिक सुरु करकेरा के लिए भी काम किया.

साल 1990 में उनकी ज़िंदगी को एक नई दिशा मिली और फिर सबकुछ बदल गया. बाघुभाई पटेल नामक शख़्स ने नारायण को दक्षिण मुंबई के कैम्प्स कॉर्नर की अपनी आइसक्रीम दुकान चलाने का प्रस्ताव दिया, क्योंकि वो उसे अच्छी तरह नहीं संभाल पा रहे थे. उस दुकान का नाम था शिव सागर.

नारायण ने दुकान संभालने के लिए बाघुभाई के साथ साझेदारी कर ली. दोनों के बीच समझौता हुआ कि दुकान से होने वाले फ़ायदे का 25 प्रतिशत नारायण रखेंगे और 75 प्रतिशत हिस्सा बाघुभाई को जाएगा. 

वह याद करते हैं, “वह दुकान बड़ी थी और काफ़ी अच्छा व्यवसाय भी कर रही थी, इसीलिए मैंने उसी दुकान में पाव-भाजी बेचना भी शुरू कर दिया, जिसे लोग पसंद करने लगे. बहुत जल्द हम एक पूर्ण शाकाहारी रेस्तरां बन गए, हमारे अधिकतर ग्राहक गुजराती थे.”

उन्होंने चर्चगेट पर भी शाखा खोलने का फ़ैसला किया. पहले शिव सागर का सालाना कारोबार जो महज 3 लाख रुपए था, वह नारायण के व्यवसाय संभालने के बाद साल भर में 1 करोड़ रुपए पहुंच गया.

शिव सागर की मुंबई में 16 शाखाएं हैं. नारायण की ग़ैर-शाकाहारी श्रृंखला महेश लंच होम में भी 50 प्रतिशत हिस्सेदारी है.

नारायण बताते हैं, “मेरी ज़िंदगी अचानक ही बदल गई, मैं अमीर हो गया था.”

साल 1990 से 1994 के बीच का समय उनके लिए बेहद ख़ास रहा. उन्होंने शिव सागर में बड़ी हिस्सेदारी ख़रीद ली थी. हालांकि बाघुभाई के पास अब भी थोड़ी हिस्सेदारी थी, लेकिन नारायण शिव सागर के मालिक बन चुके थे. चर्चगेट में अपनी नई शाखा खोलने के लिए वे रोज़ लगभग 16 घंटे काम किया करते थे. साल 1994 में ही उन्होंने शादी भी कर ली.

नारायण कहते हैं, “वो चार साल मेरे लिए काफ़ी महत्वपूर्ण थे, क्योंकि शिव सागर के विस्तार का मेरा सपना पूरा हो रहा था और मेरी पत्नी भी यह व्यवसाय चलाने में मेरी मदद करने लगी थी. आज वह मेरी कंपनी के निदेशकों में से एक है.”

आज मुंबई शहर और उपनगरों में उनके रेस्तरां 16 शाखाएं हैं. साथ ही महेश लंच होम (एमएलएच) के संस्थापक व उनके पिता-तुल्य सुरु करकेरा के लिए भी वो उसमें 50 प्रतिशत का निवेश कर चुके हैं. 

नारायण बताते हैं, “शिव सागर पूर्ण शाकाहारी रेस्तरां है, जबकि महेश लंच होम गै़र-शाकाहारी रेस्तरां है, इसीलिए मैंने दोनों के बीच संतुलन बैठा लिया है. श्री करकेरा मेरे लिए धर्म-पिता की तरह हैं, इसीलिए महेश लंच होम पारिवारिक व्यवसाय की तरह ही है.”

आज शिव सागर बड़ा शाकाहारी रेस्तरां ब्रैंड है, जिसकी गुणवत्ता व सेवाओं पर सब भरोसा करते हैं.

नारायण कहते हैं, “मेरा ध्यान मुख्य रूप से खाने के स्वाद पर केंद्रित रहता है. खाने की अच्छी गुणवत्ता बनाए रखने के लिए हमारे पास पेशेवर, कॉर्पोरेट रसोइये हैं और कई हस्तियों को शिव सागर का खाना पसंद है, जैसे सचिन तेंडुलकर हमारे यहां पाव-भाजी स्पेशल ऑर्डर करते हैं, तो जैकी श्रॉफ़ को इडली व चटनी पसंद है. मुंबई की रणजी टीम भी चर्चगेट स्थित शिव सागर आकर खाना खाती है।”

कैंटीन में वेटर का काम करने के दिनों की तरह ही आज भी नारायण का दिन सुबह 6.30 बजे शुरू हो जाता है. हालांकि अब उनका काम बदल गया है. सुबह कुछ देर व्यायाम करने के बाद क़रीब 9.30 बजे वे अपने रेस्तराओं का चक्कर लगाने के लिए निकल पड़ते हैं और कभी भी अपने किसी भी रेस्तरां में पहुंच जाते हैं.

नारायण ख़ुलासा करते हैं, “केम्प्स कॉर्नर व चर्चगेट की शाखाओं के लिए मेरे दिल में हमेशा ख़ास जगह रहेगी। सामान्यतः मैं इन्हीं दोनों शाखाओं पर बैठता हूं, पर सभी रेस्तरां पर नज़र रखने के लिए कभी भी मुआयना करने निकल पड़ता हूं. इससे मुझे अपने ग्राहकों के क़रीब रहने व उनके स्वाद में आ रहे बदलाव को समझने में भी मदद मिलती है.”

नारायण अपनी बेटी निकिता के साथ. निकिता ने बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स में फ़िश ऐंड बैट नाम से ग़ैर-शाकाहारी रेस्तरां शुरू किया है.

नारायण की दो बेटियां हैं, निकिता व अंकिता. अब वो सांताक्रूज़ में रहते हैं. उनकी पत्नी यशोदा व बेटी निकिता शिव सागर फ़ूड्स एंड रिज़ॉर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशकों में शामिल हैं. स्वामी विवेकानंद कॉलेज से इंस्ट्रूमेंटल इंजीनियरिंग में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद हाल ही में अपने पिता के व्यवसाय से जुड़ी निकिता ने बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स में फिश एंड बैट नाम से ग़ैर-शाकाहारी रेस्तरां शुरू किया है. 

नारायण कहते हैं, “मैंने ज़्यादा नहीं पढ़ पाया, पर हमेशा यह चाहा है कि मेरे बच्चे अच्छी पढ़ाई कर मेरे व्यवसाय को आगे बढ़ाएं. मैंने कभी उन पर दबाव नहीं डाला, पर मैं जानता था कि वो इसमें दिलचस्पी लेने लगेंगी. मैं ख़ुश हूं कि निकिता ने कुछ बिल्कुल अलग शुरू किया है. मुझे वाक़ई गर्व है कि उसने शिव सागर की नई शाखा खोलने के बजाय एक अलग रास्ता चुना.”

उनकी दूसरी बेटी भी जल्द ही इस व्यवसाय से जुड़ने की योजना बना रही है.

आज मुंबई के अलावा पुणे व मंगलुरु में भी शिव सागर की शाखाएं खुल चुकी हैं. साल 2018 में नारायण दो से तीन नई शाखाएं खोलना चाहते हैं. वो भारत के बाहर भी व्यवसाय का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं. 

नारायण, जो कभी अपनी जेब में मात्र 30 रुपए लेकर मुंबई आए थे, आज शिव सागर के मालिक हैं, मुंबई में ख़ुद का घर व चार कारें हैं. इनकी कहानी बताती है कि सपनों का पीछा करते हुए की गई कड़ी मेहनत ही सफलता की राह बनाती है.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • former indian basketball player, now a crorepati businessman

    खिलाड़ी से बने बस कंपनी के मालिक

    साल 1985 में प्रसन्ना पर्पल कंपनी की सालाना आमदनी तीन लाख रुपए हुआ करती थी. अगले 10 सालों में यह 10 करोड़ रुपए पहुंच गई. आज यह आंकड़ा 300 करोड़ रुपए है. प्रसन्ना पटवर्धन के नेतृत्व में कैसे एक टैक्सी सर्विस में इतना ज़बर्दस्त परिवर्तन आया, पढ़िए मुंबई से देवेन लाड की रिपोर्ट
  • Apparels Manufacturer Super Success Story

    स्पोर्ट्स वियर के बादशाह

    रोशन बैद की शुरुआत से ही खेल में दिलचस्पी थी. क़रीब दो दशक पहले चार लाख रुपए से उन्होंने अपने बिज़नेस की शुरुआत की. आज उनकी दो कंपनियों का टर्नओवर 240 करोड़ रुपए है. रोशन की सफ़लता की कहानी दिल्ली से सोफ़िया दानिश खान की क़लम से.
  • Archna Stalin Story

    जो हार न माने, वो अर्चना

    चेन्नई की अर्चना स्टालिन जन्मजात योद्धा हैं. महज 22 साल की उम्र में उद्यम शुरू किया. असफल रहीं तो भी हार नहीं मानी. छह साल बाद दम लगाकर लौटीं. पति के साथ माईहार्वेस्ट फार्म्स की शुरुआती की. किसानों और ग्राहकों का समुदाय बनाकर ऑर्गेनिक खेती की. महज तीन साल में इनकी कंपनी का टर्नओवर 1 करोड़ रुपए पहुंच गया. बता रही हैं उषा प्रसाद
  • Your Libaas Story

    सफलता बुनने वाले भाई

    खालिद रजा खान ने कॉलेज में पढ़ाई करते हुए ऑनलाइन स्टोर योरलिबास डाॅट कॉम शुरू किया. शुरुआत में काफी दिक्कतें आईं. लोगों ने सूट लौटाए भी, लेकिन धीरे-धीरे बिजनेस रफ्तार पकड़ने लगा. छोटे भाई अकरम ने भी हाथ बंटाया. छह साल में यह बिजनेस 14 करोड़ रुपए टर्नओवर वाली कंपनी बन गया है. इसकी यूएई में भी ब्रांच है. बता रही हैं उषा प्रसाद.
  • Bharatpur Amar Singh story

    इनके लिए पेड़ पर उगते हैं ‘पैसे’

    साल 1995 की एक सुबह अमर सिंह का ध्यान सड़क पर गिरे अख़बार के टुकड़े पर गया. इसमें एक लेख में आंवले का ज़िक्र था. आज आंवले की खेती कर अमर सिंह साल के 26 लाख रुपए तक कमा रहे हैं. राजस्थान के भरतपुर से पढ़िए खेती से विमुख हो चुके किसान के खेती की ओर लौटने की प्रेरणादायी कहानी.