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Wednesday, 22 January 2025

छोटे से गैराज में शुरू की कंपनी आज है 71 करोड़ रुपए का बिज़नेस

22-Jan-2025 By उषा प्रसाद
बेंगलुरु

Posted 12 Jan 2018

राजीब कुमार रॉय को एक “इरिगेशन सिस्टम्स” कंपनी में अपनी पहली नौकरी के लिए सात दौर के इंटरव्यू से गुज़रना पड़ा था, और वो भी बेहद छोटी तनख़्वाह के लिए.
आज वो तीन कंपनियों - एग्रीप्लास्ट टेक इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, एग्रीप्लास्ट प्रोटेक्टेड कल्टिवेशन प्राइवेट लिमिटेड और दएग्रीहब - के संस्थापक और निदेशक हैं. पहली नौकरी से ख़ुद का कारोबार शुरू करने तक 50 वर्षीय राजीब कुमार रॉय ने लंबा सफ़र तय किया है.
तीनों कंपनियों का कुल सालाना टर्नओवर 71 करोड़ रुपए है. 
एग्रीप्लास्ट टेक इंडिया और एग्रीप्लास्ट प्रोटेक्टेड कल्टिवेशन बेंगलुरु के नज़दीक तमिलनाडु के होसुर में स्थित हैं.
एग्रीप्लास्ट टेक इंडिया एक लाख वर्ग फ़ीट के मालिकाना हक़ वाले प्लॉट पर स्थित है, जिसमें 25 हज़ार वर्ग फ़ीट क्षेत्र ढंका हुआ है, जबकि एग्रीप्लास्ट प्रोटेक्टेड कल्टिवेशन 80 हज़ार वर्ग फ़ीट के किराए के प्लॉट पर स्थित है, जिसमें 9 हज़ार वर्ग फ़ीट पर निर्माण किया हुआ है.

राजीब कुमार रॉय ने साल 2003 में अपनी पहली कंपनी एग्रीप्लास्ट की शुरुआत होसुर में एक गैराज से की थी. (सभी फ़ोटो: विशेष व्यवस्था से)


राजीब ने अपनी पहली कंपनी एग्रीप्लास्ट की शुरुआत साल 2003 में छोटे कार गैराज में की, जो पिछले 15 सालों में उनकी सफलता का ज़रिया बना.
उन्हें उम्मीद है कि साल 2017-18 में सभी कंपनियों का समग्र टर्नओवर 130 करोड़ रुपए पहुंच जाएगा.
एग्रीप्लास्ट टेक इंडिया का ताल्लुक विशेष रूप से बनाए जाने वाले पॉलीहाउस व वेंटिलेटेड टनल से जुड़ी गिनेगर ग्रीनहाउस फ़िल्म, ग्रीनहाउस एक्सेसरीज़ जैसे शेडिंग नेट्स, इनसेक्ट नेट्स, वीड मैट, ड्रिप टेप, रेन होज़ और अन्य दूसरे सामान से है. वहीं एग्रीप्लास्ट प्रोटेक्टेड कल्टिवेशन सुरक्षित खेती के तैयार प्रोजेक्ट्स उपलब्ध कराता है.
राजीब कहते हैं, “आधुनिकतम तकनीक और अच्छी गुणवत्ता की मदद से तैयार हमारे उत्पादों का मक़सद किसानों की आमदनी बढ़ाना है.”
राजीब का ताल्लुक बिहार के मधुबनी से है. वो अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ बेंगलुरु में रहते हैं.
उनका ज़्यादातर वक्त मधुबनी के बाहर बीता. साल 1987 में उन्होंने महाराष्ट्र के महात्मा फूले कृषि विद्यापीठ की कृषि इंजीनियरिंग शाखा में दाख़िला लिया. साल 1993 में उन्होंने आईआईटी खड़गपुर से पोस्ट-हार्वेस्ट टेक्नोलॉजी में एम.टेक किया.
साल 2012 में उन्होंने आईआईएम बैंगलोर से एग्ज़ीक्यूटिव जनरल मैनेजमेंट प्रोग्राम भी पूरा किया.
इस क्षेत्र के अच्छे-ख़ासे तकनीकी ज्ञान के साथ राजीब ने दुनिया भर के विभिन्न देशों में घूमकर किसानों के बारे में जानकारी हासिल की है.
साल 2003 में एग्रीप्लास्ट की शुरुआत करने से पहले उन्होंने इज़राइल की गिनेगर प्लास्टिक प्रॉडक्ट्स लिमिटेड में डायरेक्टर मार्केटिंग (भारत) पद पर काम किया. उनकी मेहनत की बदौलत भारतीय ग्रीनहाउस इंडस्ट्री में गिनेगर घर-घर में जाना-माना नाम बन गया.

राजीब को मज़बूरी में उस वक्त उद्यमी बनना पड़ा, जब उन्हें नौकरी देने वाली कंपनी बुरे दौर से गुज़रने लगी और उसने कर्मचारियों को तनख़्वाह देना बंद कर दिया.

राजीब को अपनी पहली नौकरी में महज 3 हज़ार रुपए तनख़्वाह मिली. तीन महीने बाद उनकी तनख़्वाह 300 रुपए बढ़ाने का भी वादा किया गया.
राजीब याद करते हैं, “मैंने नौकरी ज्वाइन कर ली और बहुत मेहनत की, लेकिन वेतन में बढ़ोतरी का जो वादा किया गया था, उसे पूरा नहीं किया गया!”
हालांकि राजीब को पोस्ट-हार्वेस्ट तकनीक में महारत हासिल थी, लेकिन वो खेत और ग्रीनहाउस में भी काम करने में नहीं झिझके, जहां तापमान 48 डिग्री तक पहुंच जाता था.
राजीब लगातार मेहनत करते रहे, लेकिन नौ महीने बाद भी वेतन में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई. तब तक उनकी शादी हो चुकी थी और वो अपनी पत्नी रंजना के साथ एक कमरे के मकान में रहते थे. रंजना 600 रुपए तनख़्वाह पर शिक्षक के रूप में काम करने लगी थीं. 
राजीब ने नौकरी छोड़ने का विचार किया. स्थितियां इतनी ख़राब हो गईं कि एक बार उन्हें 40 रुपए प्रतिदिन के मामूली अलाउंस पर एक इवेंट के लिए चंडीगढ़ भेजा गया.
राजीब कहते हैं, “मेरे पास आईआईटी डिग्री थी. ऐसे हालात में काम करने में मुझे शर्मिंदगी महसूस होने लगी थी, इसलिए मैंने नौकरी छोड़ने का फ़ैसला किया.”
उसी इवेंट में चेन्नई की एक कंपनी ने स्टॉल लगाया था. वो अपना ग्रीनहाउस डिवीज़न खोलना चाहते थे. साल 1994 में राजीब ने उस कंपनी में सीनियर इंजीनियर की नौकरी कर ली.
वो चेन्नई चले गए और कंपनी की ग्रीनहाउस डिवीज़न की शुरुआत की.
राजीब कहते हैं, “मेरे वेतन में 300 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी हुई. उन्होंने मुझे 10,000 रुपए दिए.”
लेकिन अच्छा वक्त ज्यादा दिन नहीं रहा. कंपनी को घाटा हुआ और दो महीने कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला. 
राजीब और रंजना के लिए वो दिन मुश्किलों भरे थे, क्योंकि उनके जीवन में अब उनकी बेटी आकांक्षा भी थी.

तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ राजीब और उनकी पत्नी रंजना.

ऐसी भी कई रातें बीतीं, जब घर में खाने के लिए भी कुछ नहीं था. 
बेहद परेशान हालात में एक दिन राजीब अपने बॉस के घर गए और वेतन देने की गुज़ारिश की, लेकिन वहां उनकी बेइज्ज़ती की गई. राजीब के लिए निर्णायक घड़ी थी. उन्होंने उसी वक्त फ़ैसला कर लिया कि बिना वेतन काम करने से बेहतर है, वो काम ही न करें.
अपनी दूसरी नौकरी छोड़ने के बाद राजीब ने इज़राइल की कंपनी पॉलीयॉन बार्काई इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड में नौकरी की शुरुआत की.
कंपनी ने उन्हें अपनी ग्रीनहाउस कवरिंग के डिस्ट्रिब्यूशन का काम सौंपा.
राजीब कहते हैं, “मुझे 500 डॉलर (उस वक्त 22 हज़ार रुपए) का वेतन मिलना तय हुआ. उसके अलावा बिक्री पर 10 प्रतिशत इंसेंटिव भी मुझे मिलना था.”
उन्होंने साल 1996 में नौकरी की शुरुआत की. पहले साल ही उन्होंने कंपनी के लिए 50 लाख रुपए के ऑर्डर हासिल किए.
बाद में पॉलीयॉन का विलय एक दूसरी इज़राइली कंपनी गिनेगर प्लास्टिक प्रॉडक्ट्स लिमिटेड के साथ हो गया और राजीब को साल 1997 में गिनेगर का डायरेक्टर मार्केटिंग (भारत) बनाया गया.
कुछ वक्त सब कुछ ठीक चला, लेकिन दिसंबर 2003 में उन्हें एक अप्रत्याशित परेशानी का सामना करना पड़ा.
उनके एक ग्राहक ने आयातित सामान का दाम कथित तौर पर कम करके आंका था. इस मामले में डायरेक्टोरेट ऑफ़ रेवेन्यू इंटेलिजेंस ने उनके घर पर छापा मारा.
राजीब याद करते हैं, “इस घटना से मेरी पत्नी को इतना सदमा पहुंचा कि उनका गर्भपात हो गया. मुझे हफ़्तों नींद नहीं आई. मैं बस इतना कहूंगा कि मेरी ईमानदारी और शराफ़त ने मुझे बचा लिया.”

राजीब की कंपनी ग्रीनहाउस एक्सेसरीज़ का निर्माण करती है.

उस वक्त राजीब ने अपना खुद का इम्पोर्ट बिज़नेस शुरू करने का फ़ैसला किया.
उन्होंने दोस्तों, रिश्तेदारों से 20 लाख रुपए 24 प्रतिशत सालाना ब्याज़ पर उधार लिए और उन्होंने चेन्नई का अपना घर भी बेच दिया. जो पैसा इकट्ठा हुआ, उससे उन्होंने होसुर, तमिलनाडु के एक छोटे कार गैराज में एग्रीप्लास्ट टेक इंडिया की नींव रखी.
दिन था 13 जनवरी, 2004 - जो उनका जन्मदिन भी है.
उनके ज़्यादातर ग्राहक जिन्हें ग्रीनहाउस की ज़रूरत थी, वो पास के शहर बेंगलुरु के रहने वाले थे.
पहले साल ही कंपनी ने एक करोड़ रुपए का टर्नओवर हासिल कर लिया.
साल 2011 में एग्रीप्लास्ट प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन गई. बाद में साल 2013 में राजीब ने एग्रीप्लास्ट प्रोटेक्टेड कल्टिवेशन की शुरुआत की. यह कंपनी प्रोटेक्टेड फ़ार्मिंग में पूरी तरह से तैयार परियोजनाएं उपलब्ध कराती है. 
उनकी दोनों कंपनियों ने दुनियाभर की कृषि की कई नई तकनीकों का भारत में परिचय कराया. एग्रीप्लास्ट प्रोटेक्टेड कल्टिवेशन अपने कुछ उत्पाद नेपाल, कीनिया और युगांडा भी निर्यात करती है. कंपनी की ऑस्ट्रेलिया की कुछ कंपनियों के साथ भी व्यापार के लिए गंभीर बातचीत चल रही है.
स्टार्ट-अप इंडिया और डिजिटल इंडिया अभियान से प्रेरणा लेकर राजीब ने साल 2016 में दएग्रीहब की शुरुआत की. दएग्रीहब कृषि उत्पाद की ख़रीद के लिए ई-कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म है.
उनक बेटी आकांक्षा (22) बंगलुरु में एक फ़ैशन डिज़ाइन स्टूडियो ‘सज’ चलाती हैं. उनका बेटा अभिनव (16) उभरता हुआ क्रिकेटर है और पढ़ाई कर रहा है. उनकी पत्नी बेटी के बिज़नेस में मदद करती हैं.
राजीब कई सामाजिक कार्यों से भी जुड़े हैं. ग़रीबों की मदद करना हमेशा से उनका जुनून रहा है. इसी मक़सद के लिए उन्होंने स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के उच्च मैनेजमेंट के साथ मिलकर श्री शंकरा कैंसर हॉस्पिटल ऐंड रिसर्च सेंटर बेंगलुरु के लिए आधुनिकतम पेट सीटी स्कैन मशीन ख़रीदी, जिसकी कीमत 8.6 करोड़ रुपए है.
इस मशीन से ग़रीब और ज़रूरतमंद लोगों की काफ़ी मदद हुई.

अपनी पत्नी और बच्चों के साथ राजीब.

राजीब मैरी कॉम रीजनल बॉक्सिंग फ़ाउंडेशन से भी जुड़े हैं और हर साल मैरी कॉम की सिफ़ारिश पर दो प्रतिभावान छात्रों की मदद करते हैं.
राजीब कहते हैं कि आज वो जो कुछ भी हैं, अपने माता-पिता - डॉ. परमानंद रॉय और श्यामा देवी - की बदौलत हैं, जिन्होंने उनकी अच्छी परवरिश की और उन्हें जीवन के बुनियादी मूल्यों की सीख दी. उनके माता-पिता का देहांत हो चुका है.
“मेरे पिता मेरी ज़िंदगी के सबसे बड़े प्रेरणास्रोत थे. वो मधुबनी के आरके कॉलेज में दर्शनशास्त्र के प्रोफ़ेसर थे. उनका बचपन बहुत मुश्किल में बीता. वो एक चरवाहा थे, लेकिन तमाम विपरीत परिस्थतियों के बावजूद उन्होंने कड़ी मेहनत की और प्रोफ़ेसर बनने में कामयाब रहे.”
जीवन की सफ़ल यात्रा में राजीब ने भी कई बाधाओं और कठिन दौर का सामना किया, लेकिन वो विश्वास करते हैं कि “कुछ भी असंभव नहीं है.”


 

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