Milky Mist

Sunday, 24 August 2025

महज 30 हज़ार रुपए के निवेश से कम फ़ीस वाला स्कूल खोल साकार किया बचपन का सपना

24-Aug-2025 By गुरविंदर सिंह
भुबनेश्वर

Posted 21 Feb 2018

बचपन से पॉली पटनायक ऐसा स्कूल खोलना चाहती थीं, जहां बच्चों को सुबह जल्दी न उठना पड़े और कमज़ोर व तेज़ बच्चों में कोई भेदभाव न हो.
दृढ़ निश्चय के साथ उन्होंने अपना सपना साकार किया और भुबनेश्वर में मदर्स पब्लिक स्कूल की स्थापना की. 

पॉली पटनायक ने वर्ष 1992 में 30 हज़ार रुपए और पांच शिक्षकों के साथ मदर्स पब्लिक स्कूल की स्थापना की. (सभी फ़ोटो:  टिकन मिश्रा)

पॉली ने वर्ष 1992 में 30 हज़ार रुपए और पांच शिक्षकों के साथ छोटा सा स्कूल खोला. आज वो 150 शिक्षकों को रोज़गार दे रही हैं. उनके स्कूल में 2200 बच्चे सुबह 9 से शाम 4 बजे तक शिक्षा पाते हैं.

हंसते हुए पॉली बताती हैं, “जब मैं बच्ची थी, तब स्कूल के लिए सुबह उठने में बहुत मुश्किल होती थी. मैं ऐसे स्कूल की कल्पना करती थी, जहां बच्चे सुबह देर से आएं और आरामदेह महसूस करें.”

हालांकि उनके स्कूल जाने के प्रति अनिच्छा का कारण दूसरा था: वे इस बात से दुखी थी कि कमज़ोर बच्चों के प्रति शिक्षक पक्षपातपूर्ण व्यवहार करते थे.

पॉली कहती हैं, “हर बच्चे पर निरपेक्ष रूप से पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए, चाहे वह पढ़ाई में कैसा भी हो.” 
 

ओडिशा के कटक में जन्मी पॉली के पिता मधुदन नायक हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में कर्मचारी थे. उनकी पोस्टिंग कोरापुट जिले में होने से पॉली ने स्कूली शिक्षा यहीं वर्ष 1979 में पूरी की और भुबनेश्वर चली गईं. वहां उन्होंने मानविकी से ग्रैजुएशन किया.

मदर्स पब्लिक स्कूल में क़रीब 2200 बच्चे पढ़ते हैं.

वर्ष 1981 से 1985 तक उन्होंने टीचर ट्रेनिंग में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. पॉली कहती हैं, “मेरा लक्ष्य स्पष्ट था. इसीलिए अपने सपने को साकार करने के लिए यह कोर्स किया.”
 

वर्ष 1985 में वो कोरापुट लौटकर उसी स्कूल में प्राइमरी टीचर के रूप में पढ़ाने लगीं, जहां वो कभी पढ़ी थीं. 

कुछ ही महीनों में, भुबनेश्वर में इंटीरियर डिज़ाइनर नभरंजन पटनायक से पॉली की शादी हो गई. वे बताती हैं, “शादी के बाद मैं फिर भुबनेश्वर आ गई.”
 

शादी के बाद भी पॉली का अपने जुनून के प्रति लगाव जारी रहा. वो 1987 में कमला नेहरू कॉलेज से जुड़ीं और अगले 10 साल तक साइकोलॉजी विषय पढ़ाया.
 

पॉली हंसते हुए कहती हैं, “मैंने शादी से पहले पति के सामने शर्त रखी थी कि एक दिन मैं अपना स्कूल खोलूंगी. उनके राजी होने के बाद ही मैंने हामी भरी थी.”
20 जून 1992 को पॉली ने नौकरी जारी रखते हुए घर के पास एक कॉटेज में अपना स्कूल प्राकृत शुरू किया.

मदर्स पब्लिक स्कूल के बच्चों ने विभिन्न स्पर्धाएं जीती हैं.

पॉली बताती हैं, “इमारत बनाने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए कॉटेज से ही शुरुआत कर दी. यह शहर में पहला डे केयर स्कूल था, जहां पढ़ाई के साथ भोजन और परिवहन सुविधा उपलब्ध थी.” 

10 हज़ार वर्ग फ़ीट में फैले स्कूल के लिए पॉली ने बचत से 30 हज़ार रुपए निवेश किए थे. इसे दोगुना विस्तार देते हुए क्रेश भी शुरू कर दिया गया.

पॉली कहती हैं, “17 बच्चों और पांच शिक्षकों के साथ प्री-नर्सरी की शुरुआत हुई. हम ट्यूशन, भोजन और परिवहन की महज 300 रुपए फ़ीस लेते थे. हमने हमेशा फ़ीस कम रखी, ताकि हर तबके के माता-पिता बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिला सकें.” धीरे-धीरे स्कूल बढ़ने लगा.

पॉली बताती हैं, “तीन साल बाद 1995 में राज्य सरकार ने उन्हें एक एकड़ ज़मीन उपलब्ध करवा दी. उन दिनों, सरकार शैक्षणिक संस्थाओं को निशुल्क ज़मीन देती थी.”

चूंकि 56 वर्षीय शिक्षाविद के पास तब भी इमारत बनाने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए अस्थायी शेड में स्कूल चलने लगा.

पॉली खुलासा करती हैं, “यह स्कूल प्राकृत का विस्तार था. हमने कक्षा पांच से शुरुआत की. अब तक हमारे पास 400 बच्चे और आठ शिक्षक हो चुके थे. हमने कोई क़र्ज नहीं लिया और प्राकृत से मिलने वाली राशि को यहां निवेश करते गए. जैसे-जैसे पैसे आते गए, कक्षाएं बढ़ाते गए.”

स्कूल परिसर में अपने टीचिंग स्टाफ के साथ पॉली.

इस बीच, पॉली ने अपनी नौकरी जारी रखी और 1997 में उसे छोड़ा. 

बड़ा बदलाव तब आया, जब स्कूल को वर्ष 2002 में 10वीं और वर्ष 2004 में 12वीं के लिए सीबीएसई मान्यता मिल गई. पॉली कहती हैं, “इसके बाद ही मैंने एक करोड़ रुपए क़र्ज लिया और आधारभूत सुविधाएं जुटाईं.”

वर्ष 2015 में, मदर्स पब्लिक स्कूल की पहली ब्रांच खुली. पुरी में 20 लाख रुपए में सात एकड़ ज़मीन ख़रीदकर नर्सरी से नौवीं तक कक्षाएं शुरू की गईं और 300 बच्चों को प्रवेश दिया गया.

पॉली कहती हैं, “पांच एकड़ ज़मीन पर स्कूल और बाक़ी पर वरिष्ठ नागरिकों के लिए रिटायरहोम बनाया गया.”

इस शिक्षाद्यमी को वर्ष 2012 में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शिक्षकों के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया.

आज, मदर्स पब्लिक स्कूल भुबनेश्वर में नंबर 1 स्कूलों में शुमार है. यहां साल दर साल शत-प्रतिशत रिजल्ट हासिल किया जा रहा है.

पॉली ऊंची फ़ीस नहीं लेती हैं और हर साल सीमित आवेदन पत्र बेचती हैं.

अपने स्कूल को चलाने के लिए बमुश्किल राशि जुटाने वाली पॉली अब एक लग्ज़री कार चलाती हैं. एक करोड़ रुपए से अधिक की तनख़्वाह अपने 150 से अधिक टीचिंग स्टाफ़ को देती हैं और आरामदायक जीवन बिता रही हैं.

वे कहती हैं, “मैं पैसा बनाने के लिए इस पेशे में नहीं आई. मैं सिर्फ़ 200 फ़ॉर्म बेचती हूं और महज 60 बच्चों को एलकेजी में प्रवेश देती हूं. हम बड़ी कक्षाओं में बच्चों को प्रवेश नहीं देते हैं, जब तक कि तबादले का मामला न हो. हम प्रति महीना दो हज़ार से चार हज़ार रुपए तक फ़ीस लेते हैं, जो अन्य के मुकाबले बहुत कम है.”
 

पॉली सलाह देती हैं, “एक महिला कुछ भी कर सकती हैं. उसे अपने पति या किसी अन्य पुरुष पर निर्भर रहने की ज़रूरत नहीं है. उसे जुनून से काम करना होगा। पैसा अपने आप आ जाएगा.”


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Metamorphose of Nalli silks by a young woman

    सिल्क टाइकून

    पीढ़ियों से चल रहे नल्ली सिल्क के बिज़नेस के बारे में धारणा थी कि स्टोर में सिर्फ़ शादियों की साड़ियां ही मिलती हैं, लेकिन नई पीढ़ी की लावण्या ने युवा महिलाओं को ध्यान में रख नल्ली नेक्स्ट की शुरुआत कर इसे नया मोड़ दे दिया. बेंगलुरु से उषा प्रसाद बता रही हैं नल्ली सिल्क्स के कायापलट की कहानी.
  • Minting money with robotics

    रोबोटिक्स कपल

    चेन्नई के इंजीनियर दंपति एस प्रणवन और स्नेेहा प्रकाश चाहते हैं कि इस देश के बच्चे टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने वाले बनकर न रह जाएं, बल्कि इनोवेटर बनें. इसी सोच के साथ उन्होंने स्टूडेंट्स को रोबोटिक्स सिखाना शुरू किया. आज देशभर में उनके 75 सेंटर हैं और वे 12,000 बच्‍चों को प्रशिक्षण दे चुके हैं.
  • Chandubhai Virani, who started making potato wafers and bacome a 1800 crore group

    विनम्र अरबपति

    चंदूभाई वीरानी ने सिनेमा हॉल के कैंटीन से अपने करियर की शुरुआत की. उस कैंटीन से लेकर करोड़ों की आलू वेफ़र्स कंपनी ‘बालाजी’ की शुरुआत करना और फिर उसे बुलंदियों तक पहुंचाने का सफ़र किसी फ़िल्मी कहानी जैसा है. मासूमा भरमाल ज़रीवाला आपको मिलवा रही हैं एक ऐसे इंसान से जिसने तमाम परेशानियों के सामने कभी हार नहीं मानी.
  • Rich and cool

    पान स्टाल से एफएमसीजी कंपनी का सफर

    गुजरात के अमरेली के तीन भाइयों ने कभी कोल्डड्रिंक और आइस्क्रीम के स्टाल से शुरुआत की थी. कड़ी मेहनत और लगन से यह कारोबार अब एफएमसीजी कंपनी में बढ़ चुका है. सालाना टर्नओवर 259 करोड़ रुपए है. कंपनी शेयर बाजार में भी लिस्टेड हो चुकी है. अब अगले 10 सालों में 1500 करोड़ का टर्नओवर और देश की शीर्ष 5 एफएमसीजी कंपनियों के शुमार होने का सपना है. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह
  • success story of courier company founder

    टेलीफ़ोन ऑपरेटर बना करोड़पति

    अहमद मीरान चाहते तो ज़िंदगी भर दूरसंचार विभाग में कुछ सौ रुपए महीने की तनख्‍़वाह पर ज़िंदगी बसर करते, लेकिन उन्होंने कारोबार करने का निर्णय लिया. आज उनके कूरियर बिज़नेस का टर्नओवर 100 करोड़ रुपए है और उनकी कंपनी हर महीने दो करोड़ रुपए तनख्‍़वाह बांटती है. चेन्नई से पी.सी. विनोज कुमार की रिपोर्ट.