एक घंटे में 60 डोसा बना सकता है डोसामेकर, अगले साल तक 100 करोड़ कमाने का लक्ष्य
22-Nov-2024
By उषा प्रसाद
बेंगलुरु
डोसामैटिक दुनिया की पहली डोसा बनाने वाली मशीन है. इसका आविष्कार दो दोस्तों ईश्वर के. विकास और सुदीप साबत ने कॉलेज में पढ़ते-पढ़ते कर दिया.
इसी आविष्कार की बदौलत उनकी कंपनी आज करोड़ों का बिज़नेस कर रही है.
ईश्वर के. विकास (ऊपर) और सुदीप साबत ने कॉलेज में पढ़ते हुए डोसा मशीन बनाई है. दोनों ने मिलकर किचन रोबोटिक्स कंपनी मुकुंद फूड्स की स्थापना की है. (सभी फ़ोटो: एच.के. राजशेकर)
|
दोनों दोस्तों ने साल 2014 में मुकुंद फ़ूड्स प्राइवेट लिमिटेड की शुरुआत की. महज दो साल में कंपनी का टर्नओवर छह करोड़ रुपए पहुंच गया.
आज कई होटलों, रेस्तरांओं, कैफ़ेटेरिया, अस्पतालों, स्कूलों, कॉलेज कैंटीन के अलावा बीएसएफ़ और डीआरडीओ (डिफेंस ऐंड रिसर्च डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन) जैसी संस्थाएं इस मशीन का इस्तेमाल कर रही हैं.
व्यावसायिक मशीन की कीमत डेढ़ लाख रुपए है. यह हर घंटे 50-60 डोसे बना सकती है और लगातार 14 घंटे काम कर सकती है.
इसके लिए विभिन्न कंटेनर में डोसे की लेई, तेल और पानी भरना होता है. साथ ही डोसे का आकार और मोटाई (एक से सात मिलीमीटर के बीच) चुननी होती है.
अभी तक दोनों दोस्त 500 मशीनें बेच चुके हैं. इनमें से 60 प्रतिशत मशीनें भारत, जबकि बाकी अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, फ्रांस, जर्मनी, श्रीलंका, दुबई और म्यांमार सहित 16 देशों में बेची गईं.
भारत में मशीन की पहली यूनिट ऋषिकेश के एक रेस्तरां ने ख़रीदी.
मुकुंद फूड्स के सीईओ ईश्वर बताते हैं, “जब हमें उत्तर में ऋषिकेश से पहला ऑर्डर मिला तो आश्चर्य हुआ. होटल ने साल 2013 में ऑर्डर दिया और हमने अगले साल डिलिवरी दे दी.”
ईश्वर ख़ुद डोसा खाने के शौकीन हैं. चेन्नई के एसआरएम विश्वविद्यालय में इलेक्ट्रिकल ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग से ग्रैजुएशन करते समय उन्हें ऑटोमैटिक डोसामेकर बनाने का आइडिया आया. उन्हें महसूस हुआ कि चेन्नई में जैसा पतला, कुरकुरा डोसा मिलता है, वह देश में कहीं नहीं मिलता.
डोसामैटिक से एक घंटे में 50 से 60 डोसा बनाए जा सकते हैं. यह मशीन लगातार 14 घंटे काम कर सकती है.
|
साल 2011 में कॉलेज के पहले साल के अंत में उन्होंने और सुदीप ने मशीन का प्रोटोटाइप बनाने का फ़ैसला किया.
उन्हें अपने परिवारों से आर्थिक मिली, मगर अधिक पैसों की ज़रूरत थी. इसके लिए उन्होंने सामने आए हर मौक़े को भुनाया. यहां तक कि पार्ट-टाइम जॉब भी किया.
कॉलेज फ़ेस्ट में ईश्वर ने फूड स्टाल में वड़ा पाव और जल जीरा बेचा. उनके पास वड़ा पाव और जल जीरा बनाने की सामग्री ख़रीदने के पैसे नहीं थे. इसलिए फूड कूपन छपवाए और उन्हें कैंपस में बेचा.
ईश्वर बताते हैं, “एक वड़ा पाव की क़ीमत 15 रुपए रखी गई थी, लेकिन मैंने फ़ेस्ट से पूर्व पांच कूपन ख़रीदने पर 10 रुपए में वड़ा पाव देने का ऑफ़र दिया. इस तरह सारे कूपन बिक गए. इस तरह 15,000 रुपए का मुनाफ़ा कमाया.”
कॉलेज के दूसरे साल में दोनों ने चेन्नई की कंपनी में 5,000 रुपए महीने के स्टाइपेंड पर पार्ट टाइम काम किया.
ईश्वर ने कंपनी के सीईओ के एग्ज़ीक्यूटिव असिस्टेंट के तौर पर 11 महीने काम किया, तो सुदीप तीन महीने तक लीड मार्केट रिसर्चर रहे.
दोनों ने विभिन्न कॉलेज की डिज़ाइन कॉन्टेस्ट में नकद इनाम जीते. इससे मिले क़रीब तीन लाख रुपए से साल 2012 में पहला प्रोटोटाइप बनाया. इसके बाद कॉलेज के पास एक इडली वाले से डील की.
मुकुंद फूड्स एक महीने में 70-80 व्यावसायिक मशीनें बना सकती है.
|
ईश्वर याद करते हैं, “सप्ताह के अंत में हम भारी मशीन को कॉलेज से दुकान तक ले जाते ताकि दुकान मालिक डोसे बना सके. वो 20 रुपए के हिसाब से 100 से 150 डोसे बेचता था और हमें हर डोसे पर पांच रुपए देता था. चार महीने चली टेस्टिंग में लोगों को डोसा पसंद आया. गुणवत्ता व स्वाद को लेकर कोई शिकायत नहीं मिली.”
“हमारी अगली चुनौती थी कि मशीन के वज़न को 150 किलो से घटाकर 60 किलो पर लाना, ताकि यह एक टेबल-टॉप मशीन हो और ऑटो में लाया-ले जाया जा सके.”
मशीन का प्रोटोटाइप देख मेकैनिक इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ चुके ऐलेस्टेयर टीम से जुड़े. उन्होंने नौ महीने काम किया.
ईश्वर याद करते हैं, “शुरुआत में मशीन 10-20 डोसे बनाती थी. एलेस्टेयर ने मशीन को बेहतर बनाया तो वह लगातार 100 डोसे बनाने लगी. एलेस्टेयर फ़रिश्ते की तरह आए, अपना काम किया और एक डर्ट बाइक बनाने दुबई चले गए.”
जब ईश्वर साल 2013 में इंजीनियरिंग के आख़िरी साल में थे, तब उनके स्टार्टअप को इंडियन एंजेल नेटवर्क से 1.5 करोड़ रुपए की फंडिंग मिली.
अपनी आरऐंडडी टीम के प्रमुख राकेश जी. पाटिल के साथ ईश्वर.
|
जो पहली मशीन बेची गई, उसकी कीमत 1.2 लाख रुपए थी. उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
साल 2014 में देश के भीतर और बाहर 100 मशीनें बेची गईं.
मुकुंद फ़ूड्स के सीओओ और टीम के हार्डवेयर एक्सपर्ट सुदीप बताते हैं, “हम किचन रोबोटिक्स कंपनी हैं, जो खाना बनाने की प्रक्रिया को ऑटोमैटिक करने की कोशिश कर रहे हैं.”
25 साल के युवा इंजीनियर राकेश जी. पाटिल मुकुंद फ़ूड्स की आरऐंडडी टीम के प्रमुख हैं. उन्होंने घरेलू इस्तेमाल के लिए डोसामैटिक का छोटा रूप तैयार किया है जिसका वज़न 10 किलो से कम है. यह मशीन पैनकेक, क्रेप्स और ऑमलेट बना लेती है.
यह मशीन अगले साल बाज़ार में आएगी और उसकी कीमत 12,500 रुपए होगी. उन्होंने रेडी-टु-यूज़ डोसामिक्स, फ़िलिंग्स, चटनी भी बेचनी शुरू कर दी है. इनकी शेल्फ़ लाइफ़ छह से 12 महीने होती है और वो ‘डोसामैटिक स्टोर’ के ब्रैंड तले बिकती हैं.
‘डोसामेटिक स्टोर’ के ब्रैंड तले कंपनी ने रेडी-टु-यूज़ डोसामिक्स, फ़िलिंग्स और चटनी भी बेचना शुरू कर दी है.
|
इंस्टैंट मिक्स 100 प्रतिशत ऑर्गैनिक होते हैं और वो बिग बास्केट व ग्रोफ़र्स पर ऑनलाइन उपलब्ध हैं. जल्द ही ये देश भर की दुकानों और सुपरमार्केट में उपलब्ध होंगे. कंपनी ऑटोमैटिक समोसा और करी मेकिंग मशीन के प्रोटोटाइप भी बाज़ार में लाई है.
कंपनी के संस्थापक आने वाले दिनों में 25 करोड़ रुपए इकट्ठा करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि वो घरेलू डोसामैटिक मशीन लॉन्च कर पाएं.
बाज़ार में उन्हें जिस तरह का रिस्पांस मिल रहा है, उससे कंपनी अगले वित्तीय वर्ष में 100 करोड़ की वार्षिक आय कमाने का लक्ष्य बना रही है.
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
डॉक्टर भी, फोटोग्राफर भी
क्या कभी डाॅक्टर जैसे गंभीर पेशे वाला व्यक्ति सफल फोटोग्राफर भी हो सकता है? हैदराबाद की नम्रता रुपाणी इस अटकल को सही साबित करती हैं. उन्हाेंने दंत चिकित्सक के रूप में अपना करियर शुरू किया था, लेकिन एक बार तबियत खराब होने के बाद वे शौकिया तौर पर फोटोग्राफी करने लगीं. आज वे दोनों पेशों के बीच संतुलन बनाते हुए 65 लाख रुपए सालाना कमा लेती हैं. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह... -
नई सोच, नया बाजार
जम्मू के छोटे से नगर अखनूर की मानसी गुप्ता अपने परिवार की परंपरा के विपरीत उच्च अध्ययन के लिए पुणे गईं. अमेरिका में पढ़ाई के दौरान उन्हें महसूस हुआ कि वहां भारतीय हैंडीक्राफ्ट सामान की खूब मांग है. भारत आकर उन्होंने इस अवसर को भुनाया और ऑनलाइन स्टोर के जरिए कई देशों में सामान बेचने लगीं. कंपनी का टर्नओवर महज 7 सालों में 19 करोड़ रुपए पर पहुंच गया है. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह -
मनी बिल्डर
असम के सिल्चर का एक युवा यह निश्चय नहीं कर पा रहा था कि बिजनेस का कौन सा क्षेत्र चुने. उसने कई नौकरियां कीं, लेकिन रास नहीं आईं. वह खुद का कोई बिजनेस शुरू करना चाहता था. इस बीच जब वह जिम में अपनी सेहत बनाने गया तो उसे वहीं से बिजनेस आइडिया सूझा. आज उसकी जिम्नेशियम चेन का टर्नओवर 2.6 करोड़ रुपए है. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह -
रेस्तरां के राजा
गुवाहाटी के देबा कुमार बर्मन और प्रणामिका ने आज से 30 साल पहले कॉलेज की पढ़ाई के दौरान लव मैरिज की और नई जिंदगी शुरू की. सामने आजीविका चलाने की चुनौतियां थीं. ऐसे में टीवी क्षेत्र में सीरियल बनाने से लेकर फर्नीचर के बिजनेस भी किए, लेकिन सफलता रेस्तरां के बिजनेस में मिली. आज उनके पास 21 रेस्तरां हैं, जिनका टर्नओवर 6 करोड़ रुपए है. इस जोड़े ने कैसे संघर्ष किया, बता रही हैं सोफिया दानिश खान -
चार्टर्ड अकाउंटेंट से चाय वाला
रॉबिन झा ने कभी नहीं सोचा था कि वो ख़ुद का बिज़नेस करेंगे और बुलंदियों को छुएंगे. चार साल पहले उनका स्टार्ट-अप दो लाख रुपए महीने का बिज़नेस करता था. आज यह आंकड़ा 50 लाख रुपए तक पहुंच गया है. चाय वाला बनकर लाखों रुपए कमाने वाले रॉबिन झा की कहानी, दिल्ली में नरेंद्र कौशिक से.