Milky Mist

Saturday, 23 November 2024

बचपन में 40 रुपए के लिए कुएं खोदे, अब 50 करोड़ टर्नओवर की कंपनी के मालिक

23-Nov-2024 By देवेन लाड
मुंबई

Posted 15 Jun 2018

बचपन में नितिन गोडसे को कुएं खोदने के लिए दिन के 40 रुपए मिलते थे. आज वो 50 करोड़ सालाना टर्नओवर वाली गैस पाइपलाइन और उपकरण कंपनी एक्सेल गैस के मालिक हैं.

एक्सल ने भारत और मध्य-पूर्व में एसबीएम ऑफ़शोर, कतर फ़र्टिलाइज़र और कतर पेट्रोलियम जैसी कंपनियों के लिए गैस पाइपलाइन स्थापित की हैं.

नितिन गोडसे ने 10 हज़ार रुपए से वर्ष 1999 में एक्‍सेल गैस की शुरुआत की थी. फिलहाल कंपनी का सालाना टर्नओवर 50 करोड़ रुपए है. (सभी फ़ोटो : मनोज पाटील)


नितिन अहमदनगर जिले के वाशेर गांव के रहने वाले हैं. यह गांव मुंबई से 157 किलोमीटर दूर है. मध्‍यवर्गीय परिवार में जन्‍मे नितिन तीन भाई-बहन थे. पिता को-ऑपरेटिव स्टोर में सेल्‍समैन थे और 400 रुपए महीना कमाते थे.

47 साल के हो चुके नितिन याद करते हैं, मैंने ग्रैजुएशन तक कभी चप्पल नहीं पहनी. उन दिनों साइकिल का मालिक होना भी बड़ी बात थी. मैं टैक्सी में पहली बार ग्रैजुएशन के बाद बैठा.

नितिन बताते हैं, पॉकेटमनी के लिए मैंने छठी कक्षा के बाद से खेत में काम करना शुरू कर दिया था. मैंने मकान बनाने में लगने वाले पत्थर भी तोड़े, कुएं खोदने का काम भी किया.”

नितिन ने मराठी माध्‍यम से स्‍कूली पढ़ाई की और सावित्री फूले पुणे युनिवर्सिटी से 1993 में जनरल साइंस में ग्रैजुएशन किया.

इसके बाद उन्होंने अंडे के बिज़नेस में किस्मत आज़माई. इसके लिए बैंक से ऋण भी लिया, लेकिन कामयाबी नहीं मिली.

फिर उन्होंने नवी मुंबई में ओर्के सिल्क मिल्स में पांच महीने शिफ़्ट सुपरवाइज़र के तौर पर काम किया. इसके बाद छह महीने टेक्नोवा इमेजिंग सिस्टम में काम किया.

टेक्नोवा में उन्हें एहसास हुआ कि आगे बढ़ने के लिए एमबीए करना ज़रूरी है. इसलिए उन्होंने पुणे के निकट लोनी में इंस्टिट्यूट ऑफ़ बिज़नेस मैनेजमेंट ऐंड एडमिनिस्ट्रेशन में दाखिला लिया.

साल 1995 में उन्होंने एमबीए पूरा किया और मुंबई लौट आए. यहां वो पैकेज्‍़ड सब्ज़ी बेचने वाली एक कंपनी में 3,000 रुपए की तनख्‍़वाह पर काम करने लगे, लेकिन जल्द ही कंपनी बंद हो गई और उनकी नौकरी चली गई.

नितिन ने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन सफलता मिलने तक वे संघर्ष करते रहे.


साल 1996 में एक गुजराती स्टॉक ब्रोकर ने ऐसे ही बिज़नेस में पांच लाख रुपए निवेश की पेशकश की. यह बिज़नेस मुंबई में नितिन को संभालना था.

नितिन याद करते हैं, मैंने 4,000 रुपए की तनख्‍़वाह पर काम शुरू किया. उन्‍होंने वादा किया कि छह महीने में वो मुझे पार्टनर बना लेंगे, इसलिए मैंने कड़ी मेहनत की.

नितिन बताते हैं, सुबह 4.30 बजे वाशी की एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी जाता और आठ बजे तक सब्ज़ियां लेकर अंधेरी महाकाली आउटलेट आता. यहां उसे सप्लाई के लिए तारीख और दाम का स्टिकर लगाकर पैक किया जाता था.

सिर्फ़ 4,000 की तनख्‍़वाह में मुंबई जैसे शहर में ज़िंदगी गुज़ारना आसान नहीं था.

मैं नाश्‍ते के लिए बैग में गाजर लेकर चलता था और दिनभर में बस एक समोसा व दो पाव खाता था. पेट भरने के लिए ढेर सारा पानी पीता था.

दोपहर साढ़े तीन बजे तक अधिकतर सब्ज़ियों को दुकानदार उठा लेते और छह बजे तक बची सब्ज़ियों को छोटी होटलों में आधे दाम में बेच दिया जाता. नितिन का दिन मध्यरात्रि में ख़त्‍म होता. अगली सुबह फिर वही दिनचर्या शुरू हो जाती.

छह महीने बाद बॉस अपने वादे से मुकर गया और उन्हें पार्टनर बनाने से मना कर दिया. इस कारण नितिन डिप्रेशन में चले गए.

वो बताते हैं, दो महीने तक मैंने कोई काम नहीं किया. मैं दिनभर घर पर सोता रहता था. तब एक दिन मेरे एक दोस्त ने मुझे नौकरी दिलाने में मदद की.

यह नौकरी नितिन के करियर की टर्निंग प्वाइंट साबित हुई.

एक्‍सेल गैस हैंडलिंग सिस्‍टम्‍स, गैस कैबिनेट्स, गैस डिटेक्‍टर्स और फ़्लो मीटर्स जैसे उत्‍पाद बनाती है.


नितिन ने स्पान गैस में 10,000 रुपए मासिक तनख्‍़वाह पर दो साल काम किया.

वाशी की यह कंपनी एलपीजी उपकरण, गैस वॉल्व और सिलेंडर रेग्युलेटर आदि के वितरण से जुड़ी थी.

उनके कार्यकाल के दौरान कंपनी का सालाना टर्नओवर दो लाख से बढ़कर 20 लाख रुपए पहुंच गया, लेकिन मैनेजमेंट से असहमति के कारण उन्होंने कंपनी से इस्तीफ़ा दे दिया, लेकिन तब तक उन्होंने अपनी कंपनी शुरू करने का इरादा कर लिया था.

नितिन बताते हैं, साल 1998 में मेरी शादी हुई और अगले साल 26 दिसंबर को मेरे बेटे आदित्य का जन्म हुआ. 30 दिसंबर 1999 में एक्सेल इंजीनियरिंग की बुनियाद रखी गई.

नितिन कंपनियों के दफ़्तर जाते और ऑर्डर लेते. जब आखिरकार उन्हें गैस पाइप में इस्तेमाल होने वाले फ़्लो मीटर का ऑर्डर मिला, तो पता चला कि उनके पास न लेटरहेड था और न ही सेल्स टैक्स नंबर. लेकिन वो घबराए नहीं.

वो बताते हैं, मैंने पिताजी से 10,000 रुपए उधार लिए. 2,200 रुपए में एक टेलीफ़ोन ख़रीदा, 5,000 रुपए का वैट सर्टिफ़िकेशन बनवाया और सायबर कैफ़े जाकर रसीद बनाई. मुझे उस सौदे से 1,200 रुपए का फ़ायदा हुआ.

वर्ष 2000 में जहां तीन कर्मचारी थे, वहीं अब एक्‍सेल 60 सदस्‍यों की मज़बूत टीम बन चुकी है.


उन्‍हें पहला बड़ा ऑर्डर साल 2,000 में डिपार्टमेंट ऑफ़ एटॉमिक एनर्जी से मिला. इसने उन्हें गैस पाइपलाइन इंडस्ट्री से जुड़े उपकरण के लिए 25,000 रुपए का ऑर्डर दिया.

उस साल उन्हें ऑर्डर मिलते रहे और उनका बिज़नेस बढ़ता रहा. उन्हें नेवल मेटेरियल्स रिसर्च लैबोरेटरी ने गैस पाइपलाइन बनाने का बड़ा ऑर्डर मिला. नितिन ने इस चुनौतीपूर्ण कार्य को भी स्‍वीकार किया.

अपने बेटे के जन्मदिन के पांच दिन पहले उन्हें साढ़े चार लाख रुपए का चेक मिला. बैंक में जमा करने से पहले उन्होंने उस चेक की एक कॉपी बनवाई. वो कॉपी आज भी उन्‍होंने सहेज रखी है.

बाद में उन्होंने वो सारे पैसे बैंक से निकाल लिए.

नितिन कहते हैं, मैं घर गया और पत्नी के सामने सारे नोट फैला दिए, क्योंकि हमने कभी एक लाख रुपए भी एक साथ नहीं देखे थे.

साल 2,000 में उनके साथ उनके भाई के अलावा दो-तीन कर्मचारी काम करते थे. कंपनी का पहले साल का टर्नओवर पांच लाख रुपए था.

साल 2008 में उनकी कंपनी का टर्नओवर साढ़े चार करोड़ रुपए रहा और कंपनी में कर्मचारियों की संख्‍या 60 पहुंच गई.

साल 2016 तक कंपनी का टर्नओवर 40 करोड़ तक पहुंच गया और अभी इसने 50 करोड़ का आंकड़ा छू लिया है.

आज कंपनी का नाम एक्सेल गैस ऐंड इक्विपमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड है और नवी मुंबई में 2000 वर्ग फ़ीट में इसका दफ़्तर है.

कंपनी गैस हैंडलिंग सिस्टम्स, गैस कैबिनेट्स, गैस डिटेक्टर्स और फ़्लो मीटर्स बनाती है.

यही काफ़ी नहीं है. नितिन मुस्कुराकर कहते हैं, अगर मुझे मौक़ा मिले तो आज भी सब्ज़ी का कारोबार कर सकता हूं.

अपने भाई प्रवीण गोडसे के साथ नितिन. प्रवीण शुरुआत से कंपनी के साथ जुड़े हुए हैं.


अब नितिन की योजना फरफ़रल बनाने के लिए केमिकल प्लांट शुरू करने की है. खेती से निकले इस वेस्‍ट का इस्‍तेमाल खाद के रूप में होता है. इसके लिए उन्होंने लातविया से तकनीक ख़रीदी है.

अगले 15 सालों में इस प्लांट का कुल टर्नओवर 6,000 करोड़ रुपए होगा और एक दिन यह कारोबार उनका बेटा संभाल सकता है. उनके बेटा अभी केमिकल इंजीनियरिंग कर रहा है.

40 रुपए रोज़ की मजदूरी से 50 करोड़ सालाना टर्नओवर तक नितिन ने लंबा सफ़र तय किया है... यह साबित करता है कि सपनों को सच किया जा सकता है.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • New Business of Dustless Painting

    ये हैं डस्टलेस पेंटर्स

    नए घर की पेंटिंग से पहले सफ़ाई के दौरान उड़ी धूल से जब अतुल के दो बच्चे बीमार हो गए, तो उन्होंने इसका हल ढूंढने के लिए सालों मेहनत की और ‘डस्टलेस पेंटिंग’ की नई तकनीक ईजाद की. अपनी बेटी के साथ मिलकर उन्होंने इसे एक बिज़नेस की शक्ल दे दी है. मुंबई से देवेन लाड की रिपोर्ट
  • Success of Hatti Kaapi

    बेंगलुरु का ‘कॉफ़ी किंग’

    टाटा कॉफ़ी से नया ऑर्डर पाने के लिए यूएस महेंदर लगातार कंपनी के मार्केटिंग मैनेजर से मिलने की कोशिश कर रहे थे. एक दिन मैनेजर ने उन्हें धक्के मारकर निकलवा दिया. लेकिन महेंदर अगले दिन फिर दफ़्तर के बाहर खड़े हो गए. आखिर मैनेजर ने उन्हें एक मौक़ा दिया. यह है कभी हार न मानने वाले हट्टी कापी के संस्थापक यूएस महेंदर की कहानी. बता रही हैं बेंगलुरु से उषा प्रसाद.
  • success story of courier company founder

    टेलीफ़ोन ऑपरेटर बना करोड़पति

    अहमद मीरान चाहते तो ज़िंदगी भर दूरसंचार विभाग में कुछ सौ रुपए महीने की तनख्‍़वाह पर ज़िंदगी बसर करते, लेकिन उन्होंने कारोबार करने का निर्णय लिया. आज उनके कूरियर बिज़नेस का टर्नओवर 100 करोड़ रुपए है और उनकी कंपनी हर महीने दो करोड़ रुपए तनख्‍़वाह बांटती है. चेन्नई से पी.सी. विनोज कुमार की रिपोर्ट.
  • Aamir Qutub story

    कुतुबमीनार से ऊंचे कुतुब के सपने

    अलीगढ़ जैसे छोटे से शहर में जन्मे आमिर कुतुब ने खुद का बिजनेस शुरू करने का बड़ा सपना देखा. एएमयू से ग्रेजुएशन के बाद ऑस्ट्रेलिया का रुख किया. महज 25 साल की उम्र में अपनी काबिलियत के बलबूते एक कंपनी में जनरल मैनेजर बने और खुद की कंपनी शुरू की. आज इसका टर्नओवर 12 करोड़ रुपए सालाना है. वे अब तक 8 स्टार्टअप शुरू कर चुके हैं. बता रही हैं सोफिया दानिश खान...
  •  Aravind Arasavilli story

    कंसल्टेंसी में कमाल से करोड़ों की कमाई

    विजयवाड़ा के अरविंद अरासविल्ली अमेरिका में 20 लाख रुपए सालाना वाली नौकरी छोड़कर देश लौट आए. यहां 1 लाख रुपए निवेश कर विदेश में उच्च शिक्षा के लिए जाने वाले छात्रों के लिए कंसल्टेंसी फर्म खोली. 9 साल में वे दो कंपनियों के मालिक बन चुके हैं. दोनों कंपनियों का सालाना टर्नओवर 30 करोड़ रुपए है. 170 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं. अरविंद ने यह कमाल कैसे किया, बता रही हैं सोफिया दानिश खान