चल निकला चाय आउटलेट का शगल, इनकी सालाना कमाई 7.4 करोड़ रुपए
27-Jul-2024
By राधिका सुधाकर
चेन्नई
चेन्नई के लोग अब कॉफी नहीं एक कप चाय पीना पसंद करने लगे हैं. इस बात को सच साबित किया है चेन्नई शहर के ही दो युवाओं ने. ये दोनों युवा अपना खुद का ब्रांड बनाना चाहते थे. इसी सपने को साकार करने के लिए उन्होंने चाय बेचने को बिजनेस के रूप में चुना. चाय की यह फ्लैवर्ड चुस्की का विचार चेन्नई में इतना सफल रहा है कि वित्तीय वर्ष 2018-19 में दोनों युवाओं ने अपने 17 आउटलेट की बदौलत 7.4 करोड़ का कारोबार किया. वह भी चाय किंग्स की लॉन्चिंग के महज दो साल बाद.
जहाबर सिद्दिक और बालाजी सदगोपान की सफलता की कहानी साथ-साथ चलती है. दोनों ने पहले आईटी इंडस्ट्री में साथ नौकरी की. इसके बाद फ्लैवर्ड चाय की विभिन्न रेंज वाले बिजनेस से चेन्नई का स्वाद बदल दिया. यह परी कथा जैसा लगता है.
जहाबर सिद्दिक (बाएं) और बालाजी सदगोपान ने वर्ष 2016 में चाय की एक दुकान से शुरुआत की थी. अब चाय किंग्स 17 आउटलेट में विस्तार पा चुका है. (सभी फोटो : विशेष व्यवस्था से)
|
चाय किंग्स की लॉन्चिंग से पहले दोनों ने दूसरे बिजनेस भी आजमाए. सिद्दिक याद करते हैं, ‘‘जब हमें अहसास हुआ कि चाय की विस्तृत रेंज वाला चेन्नई में कोई आउटलेट नहीं है, तो हमने यह बिजनेस शुरू करने पर विचार किया.’’ इसके लिए दोनों ने सबसे पहले चाय के इच्छुक शहर के सर्वोत्कृष्ट मीडिल क्लास तक पहुंच बनाई.
इंजीनियरिंग की पढ़ाई, फिर आईटी इंडस्ट्री में नौकरी, शादी और जीवन में सेटल हो जाना. सिद्दिक और सदगोपान भी इस नीरस और निरर्थक प्रक्रिया से एक के बाद एक गुजरे. लेकिन उन्होंने इसके आखिरी हिस्से में परिवर्तन कर अपनी जिंदगी बदल ली. जब उनके दोस्त टारगेट्स, प्रोजेक्ट, बाहरी अवसरों, अप्रैजल और प्रमोशन में व्यस्त थे, वे आजादी चाहते थे.
सबसे पहले बैंक मैनेजर के बेटे सदगोपान अपने साथी बैंक कैशियर के बेटे सिद्दिक के साथ बिजनेस शुरू करने का विचार लेकर गए. हालांकि सिद्दिक को अपने दोस्त के बचपन के सपने पर संदेह था. दरअसल, एक किशोर के रूप में वे अपने पिता को खुद का केबल टीवी का बिजनेस करते और नुकसान उठाते देख चुके थे.
इसके बावजूद जब सामने कुछ कर गुजरने का मौका आया तो सिद्दिक ने रजामंदी जताई और आगे आए. उन्होंने वर्ष 2012 में आईटी कंपनी से इस्तीफा दिया और जेबीएस वेंचर्स शुरू कर दिया. इस वक्त तक सदगोपान कंपनी से नहीं जुड़े थे. जेबीएस वेंचर्स ने कुछ नामी ब्रांड जैसे एक सैलून, एक फास्ट फूड चेन और आईटीईएस की फ्रैंचाइजी ली.
इससे पहले सदगोपान, जो अब 42 वर्ष के हो चुके हैं, और सिद्दिक, जो सदगोपान से दो वर्ष छोटे हैं, ने करीब एक डेढ़ दशक आईटी और आईटीईएस इंडस्ट्री में बिताया. उस वक्त उन्होंने विशाल स्टाफ का प्रबंधन किया, जो पूर्व से पश्चिम तक कई देशों में फैले थे.
दोनों दोस्त उत्तरी चेन्नई में मध्यम वर्गीय परिवार में बढ़े हुए. दोनों ने अलग-अलग इंजीनियरिंग कॉलेजों से बीई की डिग्री ली. दोनों की पहली मुलाकात वर्ष 2002 में एक ऑफिस में हुई, जब सदगोपान चेन्नई स्थित आईटी कंपनी में सिद्दिक की लीडरशिप वाली टीम से जुड़े. दोनों ने सात साल साथ काम किया. दोनों तब भी एक-दूसरे के संपर्क में रहे, जब सिद्दिक ने दूसरी कंपनी जॉइन कर ली.
जब जेबीएस वेंचर बेहतर करने लगा, तो सदगोपान ने भी नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से सिद्दिक से जुड़ गए. इसी बीच दिल्ली की एक यात्रा के दौरान अपना खुद का ब्रांड शुरू करने का विचार आया.
![]() |
चाय किंग्स में 150 कर्मचारियों का स्टाफ है.
|
सदगोपान कहते हैं, ‘‘फ्रैंचाइजी के साथ काम करने से हमें अंतर्दृष्टि मिली. बेवरेज शॉप खोलने का विचार सबसे पहले वर्ष 2007 में आया था, जब हम एक कॉफी शॉप के सामने से गुजरते हुए ऐसी ही एक शॉप खोलने का विचार कर रहे थे.’’
इस तरह अक्टूबर 2016 में चाय किंग्स का जन्म हुआ. 25 लाख रुपए के निवेश से किल्पौक में 350 वर्गफीट में पहला आउटलेट खुला. यही नहीं, दोनों ने सेंट्रल चेन्नई के पॉश इलाकों में एक करोड़ रुपए के निवेश से ऐसे चार आउटलेट खोलने की योजना बनाई. यह सब अगले छह महीनों में खोले जाने थे.
सबकुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. इसलिए चाय के एक कप की शुरुआती कीमत 20 रुपए रखी गई. यह कीमत चेन्नई की गलियों में चाय के स्टॉल पर मिलने वाली चाय से थोड़ी महंगी थी, लेकिन यह कीमत भव्य कैफे में मिलने वाली चाय की कीमत से कम थी, जहां लोग आमतौर पर आराम से बैठ कर चाय पीते थे. चाय किंग्स ने शहर के चाय के शौकीनों का ध्यान खींचा.
चाय किंग्स ने चाय का चिरपरिचित स्वाद बदलाव दिया था. चाय अब फ्लैवर्ड भी हो चली थी. यह अदरक से लेकर गुड़हर और हैदराबादी सुलेमानी से लेकर केरला दम के स्वाद में मिलने लगी. हर्बल चाय के भी विकल्प मौजूद थे.
चाय किंग्स पर स्नैक्स भी परोसे जाने लगे. इनमें नूडल्स समोसा से लेकर सैंडविच, कूकीज, मिठाई से लेकर नूडल्स और कुछ मिल्क शेक भी उपलब्ध थे. ये सभी घर बैठे भी बुक किए जा सकते थे और होम डिलिवरी मिल सकती थी. दोनों दोस्तों न केवल फूड डिलीवरी एप से जुड़े, बल्कि उन्होंने विशेष रूप से बनाए गए कार्डबोर्ड के फ्लास्क में गर्म पेय पदार्थ पैक कर भी बेचा.
![]() |
चेन्नई में चाय किंग्स का एक आउटलेट. चाय पर चर्चा के लिए बेहतरीन माहौल.
|
सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था, पहले चार आउटलेट से 7 से 9 लाख रुपए हर महीने आने लगे. चाय के कप की बात करें तो 35,000 कप चाय प्रतिमाह प्रति आउटलेट बेची जा रही थी. इसके बाद दोनों दोस्तों ने दक्षिण चेन्नई तक विस्तार किया. वहां 40 लाख रुपए के निवेश से तीन और आउटलेट खोले गए.
अब रेवेन्यू चार आउटलेट से 25 लाख रुपए से बढ़कर 7 आउटलेट से 2.3 करोड़ रुपए तक पहुंच गया. मार्च 2019 तक दोनों ने नौ और आउटलेट खोले. इस तरह उनका टर्नओवर बढ़कर 7.4 करोड़ रुपए हो गया. उनके कर्मचारियों की संख्या थी 150. उनका 17वां आउटलेट अप्रैल 2019 में पश्चिम मम्बलम में खुला है.
सिद्दिक कहते हैं, ‘‘अप्रैल 2020 के वित्तीय वर्ष के अंत तक हम 20 करोड़ रुपए टर्नओवर की उम्मीद कर रहे हैं.’’ दोनों ने जेबीएस वेंचर्स को छोड़ दिया है और अपनी फ्रैंचाइजी बेच रहे हैं.
अब उनका फोकस पूरी तरह चाय किंग्स पर है. अब उनकी 100 आउटलेट खोलने और वर्ष 2021 तक कई शहरों में मौजूदगी की योजना है. इसमें बेंगलुरु की एक ऐसी ही चेन का अधिग्रहण भी शामिल है.
![]() |
सदगोपान और सिद्दिक का वित्तीय वर्ष 2019-20 में 20 करोड़ रुपए टर्नओवर हासिल करने का लक्ष्य है.
|
सिद्दिक कहते हैं, ‘‘मुझे लगता है चाय के बाजार का हम अब भी केवल एक छोटे हिस्से का ही दोहन कर पाए हैं.’’ सिद्दिक अब चाय किंग्स के लिए फ्रैंचाइजी देने के प्रस्तावों को नकारने लगे हैं. वे कहते हैं, ‘‘हम इन्हें खुद चलाने और गुणवत्ता बरकरार रखने पर विश्वास करते हैं.’’
ऐसा हो भी क्यों नहीं, क्योंकि दोनों दोस्त ही आउटलेट का मैनू तैयार करते हैं और चाय बनाने की प्रक्रिया को विशेषज्ञों की मदद से मानकीकृत रखते हैं. सभी आउटलेट पर उनका स्टाफ विभिन्न प्रकार की फ्लैवर्ड चाय, अन्य स्नैक और मिल्कशेक बनाने में माहिर है.
दोनों को वर्ष 2018 में 10 आउटलेट शुरू करने के लिए एक फरिश्ते निवेशक से 2.1 करोड़ रुपए की फंडिंग मिली है. अब वे अपने नई विस्तार योजना के लिए कुछ अन्य निवेशकों से बात कर रहे हैं.
नई आयु की फर्स्ट जनरेशन के उद्यमी कहते हैं, ‘‘यदि हम इस बिजनेस पर फोकस करें और वर्तमान रफ्तार से ही आगे ले जाएं तो विस्तार के लिए पूरी दुनिया सामने है.’’
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
विनम्र अरबपति
चंदूभाई वीरानी ने सिनेमा हॉल के कैंटीन से अपने करियर की शुरुआत की. उस कैंटीन से लेकर करोड़ों की आलू वेफ़र्स कंपनी ‘बालाजी’ की शुरुआत करना और फिर उसे बुलंदियों तक पहुंचाने का सफ़र किसी फ़िल्मी कहानी जैसा है. मासूमा भरमाल ज़रीवाला आपको मिलवा रही हैं एक ऐसे इंसान से जिसने तमाम परेशानियों के सामने कभी हार नहीं मानी. -
पान स्टाल से एफएमसीजी कंपनी का सफर
गुजरात के अमरेली के तीन भाइयों ने कभी कोल्डड्रिंक और आइस्क्रीम के स्टाल से शुरुआत की थी. कड़ी मेहनत और लगन से यह कारोबार अब एफएमसीजी कंपनी में बढ़ चुका है. सालाना टर्नओवर 259 करोड़ रुपए है. कंपनी शेयर बाजार में भी लिस्टेड हो चुकी है. अब अगले 10 सालों में 1500 करोड़ का टर्नओवर और देश की शीर्ष 5 एफएमसीजी कंपनियों के शुमार होने का सपना है. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह -
कंगाल से बने करोड़पति
एक वक्त था जब के.आर. राजा होटल में काम करते थे, सड़कों पर सोते थे लेकिन कभी अपना ख़ुद का काम शुरू करने का सपना नहीं छोड़ा. कभी सिलाई सीखकर तो कभी छोटा-मोटा काम करके वो लगातार डटे रहे. आज वो तीन आउटलेट और एक लॉज के मालिक हैं. कोयंबटूर से पी.सी. विनोजकुमार बता रहे हैं कभी हार न मानने वाले के.आर. राजा की कहानी. -
यूज़्ड कारों के जादूगर
जिस उम्र में आप और हम करियर बनाने के बारे में सोच रहे होते हैं, जतिन आहूजा ने पुरानी कार को नया बनाया और बेचकर लाखों रुपए कमाए. 32 साल की उम्र में जतिन 250 करोड़ रुपए की कंपनी के मालिक हैं. नई दिल्ली से सोफ़िया दानिश खान की रिपोर्ट. -
सपनों का छात्रावास
साल 2016 में शुरू हुए विद्यार्थियों को उच्च गुणवत्ता के आवास मुहैया करवाने वाले प्लासिओ स्टार्टअप ने महज पांच महीनों में 10 करोड़ रुपए कमाई कर ली. नई दिल्ली से पार्थो बर्मन के शब्दों में जानिए साल 2018-19 में 100 करोड़ रुपए के कारोबार का सपना देखने वाले तीन सह-संस्थापकों का संघर्ष.