Milky Mist

Saturday, 23 November 2024

बचपन में टपकती छत के नीचे रहना पड़ा तो बड़े होकर बिल्डर बने, 300 करोड़ टर्नओवर

23-Nov-2024 By गुरविंदर सिंह
मुंबई

Posted 15 Oct 2020

एग्नेलोराजेश अथाइड एक ऐसे परिवार से आते हैं, जिसने अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष किया. एग्नेलोराजेश मुंबई के रियाल्टर और बिल्डर हैं. वे कहते हैं, मैं यह सुनिश्चित करता हूं कि जो घर बनाऊं, वे उच्च मानक के हों, ताकि मेरे ग्राहकों को ऐसे दिन न देखने पड़ें, जो मैंने बचपन में देखे थे. बचपन में अथाइड को ऐसे घर में रहना पड़ा था, जिसकी छत रिसती थी. 

अथाइड की कहानी किसी बॉलीवुड फिल्म की ऐसी स्क्रिप्ट लगती है, जिसमें हीरो बचपन के दिनों में बहुत सी दिक्कतों और तंगहाली सहन करता है, लेकिन सारी विषम परिस्थितियों को हराकर अमीर और सफल हो जाता है.


एग्नेलोराजेश अथाइड, जिन्होंने गरीबी से लड़ाई लड़ी, बचपन में नौकरी की, कठिन परिश्रम के बलबूते उद्यमी के रूप मेें सफल हुए. (सभी फोटो : विशेष व्यवस्था से)


उनकी रियल एस्टेट फर्म सेंट एग्नेलोज वीएनसीटी वेंचर्स के पास मुंबई, चेन्नई, मदुरै और कोयंबटूर में प्रोजेक्ट हैं. वहीं दुबई और लंदन में उनके ऑफिस हैं. वे महाराष्ट्र के इगतपुरी में एक रिसॉर्ट के मालिक हैं, अथाइड का बढ़ा हुआ टर्नओवर करीब 300 करोड़ रुपए है.

मुंबई के बाहरी इलाके वसई में साल 1971 में जन्मे अथाइड का बचपन बहुत मुश्किलोंभरा रहा. जब अथाइड बच्चे थे, तब उनका परिवार गोरेगांव की एक चॉल में रहता था. साल 1982 में परिवार मालवानी में 180 वर्ग फुट के किराए के घर में रहने चला गया. यह इलाका बारिश में नरक बन जाता था.


जब बारिश होती, तो घर में सोने की जगह ही नहीं बचती थी, क्योंकि पूरी छत बुरी तरह टपकती रहती थी. अथाइड के लिए आज भी बारिश उन डरावनी रातों की याद ताजा कर देती है. वे याद करते हैं, "मैं और मेरे दो भाई एक मैट पर सोया करते थे. बारिश के दौरान हम न केवल भीग जाया करते थे, बल्कि बाहर से टाॅयलेट और गटर का गंदा पानी भी घर में घुस आता था. हमें बदबू वाले पानी के बीच रातें गुजारनी पड़ती थीं.'' 

अथाइड के पिता एक निजी कंपनी में क्लर्क थे, जबकि उनकी मां ट्यूशंस पढ़ाकर परिवार के घर खर्च में सहयोग करती थीं. उनके पिता पहले कैथोलिक प्रीस्ट ट्रेनर थे, लेकिन चेन्नई की तमिल ब्राह्मण लड़की से शादी करने के कारण उन्हें यह काम छोड़ना पड़ा था. दोनों के ही परिवारों ने इस शादी का विरोध किया था. कपल को जाति से बाहर कर दिया था.

अथाइड कहते हैं, "अपर्याप्त आमदनी के कारण परिवार में हमेशा वित्तीय तनाव बना रहता था. मालवानी के घर में अटैच्ड टॉयलेट या नल कनेक्शन नहीं था. माता-पिता सुबह जल्दी उठते थे और सार्वजनिक नल से पानी भरते थे.''

परिवार को मालवानी में और भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ा. आपराधिक गतिविधियां बढ़ने से क्षेत्र बदनाम होने लगा था. इलाके में ड्रग्स बेची जाने लगी थी, हत्या के लिए सुपारी ली जाने लगी थी, पॉकेटमार बहुत हो गए थे, अवैध गैंबलिंग हो रही थी. सेक्स वर्कर भी रहने लगी थीं.

अथाइड ने साल 1992 में एक कंप्यूटर से डेटा एंट्री ऑपरेटर का काम शुरू किया था.

पुरानी यादों को खरोंचते हुए अथाइड कहते हैं, इलाके का जिक्र करते ही बहादुर लोग भी घबरा जाया करते थे. लेकिन हमें गरीबी के कारण इनके बीच रहना पड़ा. ऐसी स्थिति में भी हमारे परिजन ने हमारी शिक्षा से समझौता नहीं किया और हमें कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाया.

उनके पिता सार्वजनिक परिवहन से आने-जाने के बजाय रोज पैदल ऑफिस जाते थे और पैदल ही घर आते थे, जो हमारे घर से आठ किलोमीटर दूर था.

अथाइड कहते हैं, "अपने बच्चों पर खर्च करने के लिए उन्होंने पाई-पाई बचाई. जब तक हम सब पढ़-लिखकर अच्छा काम नहीं करने लगे, तब तक वे न छुट्टियों में कहीं घूमने गए, न ही उन्होंने कोई फिल्म देखी. वे एक ही जोड़ी कपड़े 10 साल तक पहनते रहे. वे हमारी पढ़ाई और घर खर्चों के लिए अपने दोस्तों और उनकी कंपनी से कर्ज लेते रहे. उनका पूरा दिवाली बोनस कर्ज चुकाने में ही खर्च हो जाता था.''

अथाइड की मां को जब घर खर्च चलाने के लिए अपनी सोने की चूड़ियां बेचनी पड़ीं तो 13 साल की उम्र में अथाइड ने एक बिंदी (जिसे महिलाएं माथे पर लगाती हैं) फैक्ट्री में काम करना शुरू किया.

वे कहते हैं, "युवा उम्र में ही मुझे अपनी जिम्मेदारी का अहसास हो गया था. इसलिए मैंने तय कर लिया था कि माता-पिता से कभी पैसे नहीं लूंगा. मैंने स्कूल के बाद बचे समय में 3.50 रुपए हफ्ते मेहनताने पर काम करना शुरू किया. ये पैसे उन दिनों बहुत हुआ करते थे क्योंकि वड़ा पाव 15 पैसे और सैंडविच 20 पैसे का मिलता था. मैं गर्व महसूस करता था कि अपनी पॉकेटमनी खुद कमा रहा हूं और परिवार पर बोझ नहीं हूं.''

जब वे कक्षा 10 में थे तो उन्होंने एक अमीर आदमी को अंग्रेजी भी सिखाई. उन्होंने घर-घर जाकर फ्रीज की मैट्स, कॉस्मेटिक्स, परफ्यूम्स और पायल चप्पल भी बेची ताकि अपनी पढ़ाई का खर्च निकाल सकें.

उन्होंने साल 1991 में डालमिया कॉलेज ऑफ कॉमर्स से बीकॉम की पढ़ाई पूरी की. उन्हें एहसास हुआ कि आने वाले दिनों में कंप्यूटर ही सबकुछ होने वाला है. वे औपचारिक कंप्यूटर शिक्षा के लिए तो नामांकन नहीं भर सके, लेकिन उन्होंने किसी तरह अपने पिता के दोस्त के ऑफिस में कई बेसिक प्रोग्राम सीख लिए.

अथाइड ने अपनी पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए घर-घर जाकर फ्रीजर मैट्स, कॉस्मेटिक्स और परफ्यूम्स समेत तरह-तरह के सामान बेचे.

उन्होंने 6 दिसंबर 1992 के दिन अपने तीन दोस्तों के साथ मिलकर अपना पहला कंप्यूटर खरीदा. उसी दिन अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद दंगे भड़क गए थे.

उन्हें दूरदर्शन से डेटा एंट्री का एक प्रोजेक्ट मिला. इसमें उन्हें चर्चित शो सुपरहिट मुकाबला के लिए श्रोताओं के भेजे फरमाइशी गीतों के पोस्टकार्ड की एंट्री कंप्यूटर में दर्ज करनी होती थी. उन्हें एक पोस्टकार्ड के 20 पैसे मिलते थे.

उन्होंने अपने 180 वर्ग फुट के घर से जो बिजनेस शुरू किया था, वह बढ़ने लगा था. जल्द ही उनके पास आठ कंप्यूूटर हो गए. अथाइड कहते हैं, "लेकिन एक बड़े घोटाले का खुलासा हुआ और 1993 में डेटा प्रोसेसिंग का मेरा काम छूट गया. मैं एक बार फिर चौराहे पर खड़ा था.'' इसके बाद उन्होंने स्थिति को देखते हुए अपने कंप्यूटर के जरिये एक नया बिजनेस प्लान बनाया.

वे कहते हैं, "मैं उन्हीं कंप्यूटर पर ट्रेनिंग देने लगा और मालवानी के घर-घर जाकर लोगों से कहा कि वे यह कोर्स करें. मैं 1500 रुपए में बेसिक कंप्यूटर कोर्स करवा रहा था. 15 दिन में ही मेरे पास 75 स्टूडेंट आ गए. इसके बाद सब इतिहास है.''

जल्द ही उन्होंने मालवानी के अपने घर पर सेंट एग्नेलो कंप्यूटर सेंटर शुरू कर दिया. उन्होंने कई लाख रुपए कमाए और कई नए कोर्स भी शुरू किए. वे हंसते हुए कहते हैं, "हमें यह भी अहसास हुआ कि हमारे सेंटर पर जो स्टूडेंट आ रहे हैं, वे बहुत ही गरीब परिवारों से हैं और ट्रेन के किराए से ज्यादा कुछ भी वहन नहीं कर सकते हैं. इसके बाद हमने अपने सेंटर रेलवे स्टेशन के बाहर खोल दिए. फिर एक समय ऐसा भी आया जब सभी रेलवे स्टेशन के बाहर हमारे सेंटर थे. एक भी स्टेशन ऐसा नहीं बचा था, जहां हमारा सेंटर न हो.'' हमारे सेंटर से लाखों स्टूडेंट्स ने ट्रेनिंग ली.

वे कहते हैं कि उन्होंने महाराष्ट्र के 15,000 पुलिस जवानों को भी कंप्यूटर की ट्रेनिंग दी. इसमें कई वरिष्ठ पुलिस अफसर भी थे.

अथाइड अपनी पत्नी सुग्रा के साथ.


जब उनका कंप्यूटर ट्रेनिंग बिजनेस चलना कम हुआ, ताे उन्होंने साल 2016 में सेंट एंग्लोज वीएनसीटी वेंचर्स की स्थापना की. यह अब देश की कुछ सबसे अनोखी विला बना रही है.

मोटिवेशनल स्पीकर के अलावा कई बिजनेस में भी उनकी हिस्सेदारी है. इनमें ऑनलाइन ज्वेलरी बिजनेस भी एक है. उनका विवाह सुग्रा के साथ हुआ है और उनके दो बच्चे हैं- 14 साल का बेटा आर्यंजल और 16 साल की बेटी साशा.

वे नए उद्यमियों को सलाह देते हैं : हमेशा केंद्रित रहें और अपने ग्राहकों के प्रति ईमानदार रहें; अपने प्रतिद्वंद्वी से आगे निकलने के लिए नवाचार करते रहें. सबसे महत्वपूर्ण, हमेशा अपने वादे निभाएं.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Success Story of Gunwant Singh Mongia

    टीएमटी सरियों का बादशाह

    मोंगिया स्टील लिमिटेड के मालिक गुणवंत सिंह की जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन उनका सिर्फ एक ही फलसफा रहा-‘कभी उम्मीद मत छोड़ो. विश्वास करो कि आप कर सकते हो.’ इसी सोच के बलबूते उन्‍होंने अपनी कंपनी का टर्नओवर 350 करोड़ रुपए तक पहुंचा दिया है.
  • thyrocare founder dr a velumani success story in hindi

    घोर ग़रीबी से करोड़ों का सफ़र

    वेलुमणि ग़रीब किसान परिवार से थे, लेकिन उन्होंने उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ा, चाहे वो ग़रीबी के दिन हों जब घर में खाने को नहीं होता था या फिर जब उन्हें अनुभव नहीं होने के कारण कोई नौकरी नहीं दे रहा था. मुंबई में पीसी विनोज कुमार मिलवा रहे हैं ए वेलुमणि से, जिन्होंने थायरोकेयर की स्थापना की.
  • Air-O-Water story

    नए भारत के वाटरमैन

    ‘हवा से पानी बनाना’ कोई जादू नहीं, बल्कि हकीकत है. मुंबई के कारोबारी सिद्धार्थ शाह ने 10 साल पहले 15 करोड़ रुपए में अमेरिका से यह महंगी तकनीक हासिल की. अब वे बेहद कम लागत से खुद इसकी मशीन बना रहे हैं. पीने के पानी की कमी से जूझ रहे तटीय इलाकों के लिए यह तकनीक वरदान है.
  • Rich and cool

    पान स्टाल से एफएमसीजी कंपनी का सफर

    गुजरात के अमरेली के तीन भाइयों ने कभी कोल्डड्रिंक और आइस्क्रीम के स्टाल से शुरुआत की थी. कड़ी मेहनत और लगन से यह कारोबार अब एफएमसीजी कंपनी में बढ़ चुका है. सालाना टर्नओवर 259 करोड़ रुपए है. कंपनी शेयर बाजार में भी लिस्टेड हो चुकी है. अब अगले 10 सालों में 1500 करोड़ का टर्नओवर और देश की शीर्ष 5 एफएमसीजी कंपनियों के शुमार होने का सपना है. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह
  • Dairy startup of Santosh Sharma in Jamshedpur

    ये कर रहे कलाम साहब के सपने को सच

    पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से प्रेरणा लेकर संतोष शर्मा ने ऊंचे वेतन वाली नौकरी छोड़ी और नक्सल प्रभावित इलाके़ में एक डेयरी फ़ार्म की शुरुआत की ताकि जनजातीय युवाओं को रोजगार मिल सके. जमशेदपुर से गुरविंदर सिंह मिलवा रहे हैं दो करोड़ रुपए के टर्नओवर करने वाले डेयरी फ़ार्म के मालिक से.