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Saturday, 22 November 2025

40 की उम्र में उद्यमी बने, खड़ा किया 225 करोड़ का दूध कारोबार

22-Nov-2025 By जी सिंह
कोलकाता

Posted 29 Jan 2018

साल 1997 में नारायण मजूमदार ने अपने गांव में साइकिल पर घूम-घूमकर किसानों से दूध इकट्ठा कर डेरी कारोबार शुरू किया. 

दो दशक और संघर्ष के कई सालों बाद आज उनका सालाना कारोबार 225 करोड़ रुपए का है. पश्चिम बंगाल के आठ जिलों में उनके तीन मिल्क प्रोसेसिंग प्लांट और 22 मिल्क चिलिंग प्लांट हैं.

उनकी कंपनी रेड काऊ डेरी प्राइवेट लिमिटेड आज पूर्वी भारत में दूध और दूध से बने उत्पादों की सबसे बड़ी सप्लायर है.

अपनी साइकिल पर किसानों से दूध एकत्रित करने और उसी डेरी फ़र्म पर सप्लाई करने, जहां वे काम करते थे, तक नारायण मजूमदार बहुत ऊंचाइयों तक उठे हैं. उनकी कंपनी रेड काऊ डेयरी प्राइवेट लिमिटेड दही, घी, पनीर और रसगुल्ला के अलावा पांच प्रकार के दूध बेचती है. (सभी फ़ोटो: मोनीरुल इस्लाम मुल्लिक)


मजूमदार की कंपनी हर दिन 1.8 लाख लीटर पैकेज़्ड दूध, 1.2 मीट्रिक टन पनीर, 10 मीट्रिक टन दही, 10-12 मीट्रिक टन घी, 1,500 डिब्बे रसगुल्ला और 500 डिब्बे गुलाब जामुन बेचती है.

साल 2017-18 में उनका लक्ष्य कारोबार को 300 करोड़ रुपए तक पहुंचाने का है.

उच्च विचारों में विश्वास रखने वाले नारायण मजूमदार इतनी ज़बर्दस्त कामयाबी के बावजूद बेहद सादगी से रहते हैं.
 

पश्चिम बंगाल के नादिया जिले के फुलिया गांव में 25 जुलाई 1958 को नारायण का जन्म हुआ. उनकी दो बहनें थीं. नारायण के पिता बिमलेंदु मजूमदार किसान थे, जबकि मां बसंती गृहिणी थीं.

नारायण कहते हैं, “गांव में मेरे पिता के पास एक एकड़ ज़मीन थी, लेकिन परिवार चलाने के लिए वह काफ़ी नहीं थी. इसलिए कभी-कभार वो दूसरे काम करके आजीविका चलाते थे. हालांकि फिर भी महीने में 100 रुपए तक ही कमा पाते थे. हमारी आर्थिक स्थिति तनावपूर्ण थी.”

नारायण आज जब अपनी कहानी सुना रहे हैं, वो कोलकाता से 15 किलोमीटर दूर दानकुनी के अपने शानदार दफ़्तर में बैठे हैं.

साल 1974 में उन्होंने गांव के बंगाली मीडियम के सरकारी स्कूल फ़ुलिया शिक्षा निकेतन से शिक्षा पूरी की. नारायण को आज भी याद है कि उस समय आर्थिक स्थिति इतनी ख़राब हुई कि बड़ी बहन की शादी के लिए पिता को साल 1973 में ज़मीन का एक हिस्सा बेचना पड़ा था.

एक फ़ोटो एलबम के लिए: हमारे फ़ोटोग्राफर के लिए पोज़ देते एक साइकिल पर बैठे नारायण.


नारायण ने राणाघाट कॉलेज में केमिस्ट्री में ग्रैजुएशन की पढ़ाई शुरू की, लेकिन सालभर में ही पढ़ाई से मन उचट गया.

वो कहते हैं, “केमिस्ट्री में मेरा मन नहीं लग रहा था, साथ ही मुझे जल्द ही कमाई शुरू करनी थी.”

नारायण के मुताबिक, “गांव के एक अफ़सर ने सलाह दी कि अगर मैं डेरी फ़ार्मिंग का कोर्स करूं तो मुझे जल्द नौकरी मिल जाएगी. मुझे यह सलाह पसंद आई और मैंने कोर्स बदलने का फ़ैसला कर लिया.”

साल 1975 में नारायण ने हरियाणा के करनाल स्थित नेशनल डेरी इंस्टिट्यूट में डेरी टेक्नोलॉजी में बीटेक की पढ़ाई शुरू की.

कोर्स चार साल था. ख़र्च पूरा करने के लिए वो एक मिल्क पार्लर में हर सुबह पांच से सात बजे तक सेल्समैन का काम करने लगे.

नारायण याद करते हैं, “मुझे हर दिन के तीन रुपए मिलते थे. 12,000 रुपए की फ़ीस जुटाने के लिए मेरे पिताजी को ज़मीन का एक और हिस्सा बेचना पड़ा था, इसलिए मैंने दैनिक ख़र्च के लिए काम करना शुरू किया.”

जुलाई 1979 में कोर्स पूरा करने के बाद नारायण ने लंबे वक्त तक कई नौकरियां कीं.

सबसे पहले उन्होंने कोलकाता की एक आइसक्रीम कंपनी में मासिक 612 रुपए पर डेरी केमिस्ट के तौर पर काम किया. पैसा कम था, इसलिए उन्होंने यह नौकरी छोड़ी और बेहतर तनख़्वाह पर उत्तरी बंगाल के सिलिगुड़ी में एक को-ऑपरेटिव डेरी में सुपरवाइज़र के पद पर काम शुरू किया.

रेड काऊ के तीन मिल्क प्रोसेसिंग प्लांट और 22 चिलिंग प्लांट हैं. ये सभी पश्चिम बंगाल के आठ जिलों में स्थित हैं. 


नारायण बताते हैं, “मैंने वहां एक साल से ज़्यादा वक्त तक काम किया और दिसंबर 1980 में इस्तीफ़ा दे दिया. इसके बाद 1,300 रुपए की तनख़्वाह पर कोलकाता में ही एक दूसरी डेरी कंपनी में काम किया. वहां मैंने पांच साल काम किया. जब मैंने वो नौकरी छोड़ी तब मैं सीनियर टेक्निकल सुप्रिटेंडेंट के पद पर था और मुझे 2,800 रुपए मिलते थे.”

इसी बीच साल 1982 में उनकी काकाली मजूमदार से शादी हो गई. दो साल में उनके बेटे नंदन ने जन्म लिया.

जुलाई 1985 में नारायण ने संयुक्त अरब अमीरात में डेनमार्क की एक कंपनी में काम किया, जहां उन्हें हर महीने 18,000 रुपए मिलते थे. हालांकि जब उनके परिवार को वीज़ा नहीं मिला, तो वो देश लौट आए.

वो अपनी पुरानी नौकरी में टेक्निकल सुपरिंटेंडेंट के पद पर काम करने लगे. वहां उन्होंने 10 साल काम किया. 
साल 1995 में जब उन्होंने यह नौकरी छोड़ी, तब वो क्वालिटी कंट्रोल अफ़सर बन चुके थे.

उसी साल उन्होंने 50,000 रुपए मासिक तनख़्वाह पर एक दूसरी डेरी कंपनी में जनरल मैनेजर के पद कर काम करना शुरू किया. वह कंपनी दूध और दूध के उत्पाद बनाती थी. वहां उन्होंने साल 2005 तक 10 साल काम किया. इसी नौकरी के दौरान उनके जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव आया. 

वो बताते हैं, “कंपनी के मालिक का मेरे प्रति व्यवहार बहुत अच्छा था. उन्होंने मुझे खुद का बिज़नेस शुरू करने के लिए प्रेरित किया. उनकी प्रेरणा से मैंने किसानों से दूध ख़रीदकर उसी कंपनी में सप्लाई करना शुरू कर दिया.”

इस तरह 19 जून 1997 में 40 साल की उम्र में नारायण उद्यमी बन गए. वो साइकिल पर एक घर से दूसरे घर गए और गांववालों से दूध इकट्ठा किया. पहले दिन उन्होंने 320 लीटर दूध इकट्ठा किया.

इस तरह ‘रेड काऊ मिल्क’ कंपनी की शुरुआत हुई.

रेड काऊ रोज़ 1.8 लाख लीटर पैकेज़्ड दूध बेचती है.


नारायण याद करते हैं, “कई गांवों की सड़कें ख़राब होने के कारण वहां साइकिल से जाना संभव नहीं हो पाता था, इसलिए कई बार मुझे दूध ख़रीदने कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था.”

“मेरा बिज़नेस गांववालों से कच्चा दूध इकट्ठा कर उसे कंपनी को सप्लाई करना था. पहले साल मेरी कंपनी को कोई मुनाफ़ा नहीं हुआ. इस काम से मुझे जो कुछ पैसा मिला था, उसे मैंने काम बढ़ाने में ख़र्च कर दिया.”

साल 1999 में हुगली ज़िले के आरमबाग में 10,000 रुपए के किराए पर पहले मिल्क प्लांट की शुरुआत हुई. उस समय तक भी नारायण नौकरी कर रहे थे.

साल 2000 आते-आते 30,000 से 35,000 लीटर कच्चा दूध एकत्रित होने लगा. साथ ही कंपनी का सालाना कारोबार चार करोड़ रुपए तक पहुंच गया.

उसी साल उन्होंने अपनी पत्नी के साथ बराबर की हिस्सेदारी की और कंपनी का नाम रेड काऊ डेरी पार्टनरशिप कंपनी रखा.

साल 2003 में कंपनी का नाम बदलकर रेड काऊ डेरी प्राइवेट लिमिटेड रख दिया गया, जिसमें नारायण और उनकी पत्नी डायरेक्टर थे. कंपनी में दोनों की बराबर की हिस्सेदारी थी.

उसी साल उन्होंने हावड़ा जिले के उदयनारायणपुर में 59 डेसिमल ज़मीन ख़रीदी और 25 लाख रुपए की लागत से अपने चिलिंग और पाश्चराइज़ेशन प्लांट की शुरुआत की.

इसके साथ ही वो झारखंड और असम तक दूध सप्लाई करने लगे. साल 2003-04 में कंपनी का सालाना कारोबार 6.65 करोड़ रुपए तक पहुंच गया. अब उनकी कंपनी में 20 कर्मचारी थे.

रेड काऊ डेरी पश्चिम बंगाल में निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी डेरी कंपनी है. यह 400 से अधिक लोगों को रोजगार मिला है.


यहां से चीज़ें वाक़ई बदलीं और कंपनी 30 प्रतिशत की सालाना तेज़ी से बढ़ने लगी. साल 2008 आते-आते हर दिन कंपनी 70,000-80,000 लीटर दूध इकट्ठा कर रही थी.

उन्होंने अपने उत्पादों का दायरा बढ़ाने का निर्णय लिया और टोंड व डबल टोंड दूध की बिक्री शुरू की. रेड काऊ मिल्क पैकेट्स की पैकेजिंग का काम दानकुनी की एक निजी कंपनी को दे दिया गया.

आज रेड काऊ पांच तरह के दूध के अलावा दही, घी, पनीर और रसगुल्ले बेचती है.

नारायण बताते हैं, “दिसंबर 2009 कंपनी के लिए टर्निंग प्वाइंट था जब मेरे बेटे नंदन ने कंपनी ज्वाइन की.”

एमबीए की पढ़ाई कर चुके नंदन बतौर डायरेक्टर कंपनी में शामिल हुए और बिज़नेस को नई आधुनिक दिशा दी. इसका नतीजा यह हुआ कि 2011-12 तक कंपनी का सालाना कारोबार 74 करोड़ रुपए तक पहुंच गया.

साल 2012 में नंदन की पत्नी उर्मिला कंपनी में बतौर डायरेक्टर शामिल हुईं.

दो साल बाद कंपनी ने 2.84 करोड़ रुपए के निवेश से उदयनारायणपुर में प्रोसेसिंग प्लांट की शुरुआत की. 

इस प्लांट की दैनिक उत्पादन क्षमता 50,000 लीटर थी. 

साल 2016 में उन्होंने बर्दवान जिले के जोगरा में 18 करोड़ की लागत से एक और आधुनिक प्लांट की स्थापना की. इस प्लांट की दैनिक उत्पादन क्षमता 3.5 लाख लीटर है.

कोलकाता के नज़दीक प्लांट पर अपने कुछ कर्मचारियों के साथ नारायण.


आज रेड काऊ डेरी पश्चिम बंगाल में निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी है. कंपनी में 400 से अधिक कर्मचारी और पूरे राज्य में 225 डिस्ट्रिब्यूटर हैं.

नारायण कहते हैं, “हम अपने उत्पादों की सूची में डेरी क्रीमर और पैकेज़्ड ड्रिंकिंग वाटर को शामिल करने की योजना बना रहे हैं.”

उनका लक्ष्य कंपनी के सालाना कारोबार को अगले पांच सालों में 400 करोड़ तक पहुंचाने का है.

साठ साल के नारायण अपनी सफलता के लिए कड़ी मेहनत और गुणवत्तापूर्ण उत्पादों को श्रेय देते हैं.

वो कहते हैं, “जीवन में सफलता हासिल करने के लिए ज़रूरी है कि आप कड़ी मेहनत करें, ईमानदारी से काम करें, अच्छी शिक्षा प्राप्त करें और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ें.”


 

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