कभी रेलवे स्टेशन पर सोते थे, आज 100 करोड़ का कारोबार करने वाली ट्रेवल कंपनी के मालिक हैं
23-Nov-2024
By पी.सी. विनोज कुमार
चेन्नई
बचपन में वो इतने ग़रीब थे कि उनका परिवार दूसरों के बचे-खुचे खाने पर निर्भर था, लेकिन उनका सपना बड़ा था. एक दिन वो गांव छोड़कर चेन्नई आ गए. रेलवे स्टेशन पर रातें गुजारीं. आज उनका 100 करोड़ रुपए का कारोबार है. चेन्नई से पी.सी. विनोज कुमार बता रहे हैं वी.के.टी. बालन की सफलता की कहानी
वर्ष 1981 में, 27 वर्षीय एक युवा मदुराई से क़रीब 180 किमी दूर गांव तिरुचेंदुर से चेन्नई के इग्मोर रेलवे स्टेशन आया. उसके मन में तमिल फ़िल्म इंडस्ट्री में उस दौर के सुपरस्टार कमल हासन या रजनीकांत की तरह स्टार बनने का सपना था.
वी.के. थानाबालन, जिन्हें बाद में वी.के.टी. बालन नाम से जाना जाने लगा, मदुरा ट्रेवल सर्विस प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक हैं. मदुरा ट्रेवल ने वर्ष 2017 तक 100 करोड़ रुपए का कारोबार हासिल कर लिया है.
बालन ने एक समय अपने परिवार को बिना बताए घर छोड़ दिया था और तिरुचेंदुर से ट्रेन पकड़कर चेन्नई आ गए थे.
|
चेन्नई में मदुरा ट्रेवल्स के संस्थापक वी.के.टी. बालन आज भी अपनी सादगीपूर्ण जड़ों को याद करते हैं और पहले की तरह कमीज़ व धोती पहनते हैं. 1981 में इसी पहनावे में वो उत्साहपूर्ण युवा के रूप में पहली बार चेन्नई आए थे. (फ़ोटो: एच के राजाशेकर) |
आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ चुके और थिएटर में दिलचस्पी दिखाने लगे 64 वर्षीय बालन याद करते हैं, “मैं चेन्नई आया, तब मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं थी. ट्रेन में भी मैंने बिना टिकट सफ़र किया था. मेरे पास बस एक धोती और एक कमीज़ था, जो मैंने पहन रखा था.”
वो फ़िल्मों को लेकर बिल्कुल पागल थे और शिवाजी गणेशन व एम.जी.आर. के कट्टर प्रशंसक थे, जो 50 और 60 के दशक के शीर्ष अभिनेता थे. वो उनकी फ़िल्मों के लंबे संवादों को याद कर लिया करते थे.
बालन हंसते हुए कहते हैं, “यही दिलचस्पी किशोरावस्था में मुझे थिएटर की ओर ले गई. मैं दोस्तों के साथ जुड़ गया और हमारे गांव में मशहूर फ़िल्मों पर आधारित नाटक खेलना शुरू कर दिए. इन नाटकों में हीरो से कमतर कोई भूमिका मुझे मंजूर नहीं होती थी.”
इसी सोच ने व्यक्ति को बनाया और उन ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया, जिस पर वो आज हैं- अभिनेता की भूमिका निभाने और प्रसिद्धि छू लेने की इच्छा. वह भी ऐसे समय जब उनका परिवार ग़रीबी में गुज़र-बसर कर रहा था और उन गांव वालों के दिए बचे-खुचे भोजन पर जीवन बिताता था, जिनके कपड़े उनके माता-पिता धोया करते थे.
बालन की किशोरावस्था के दौरान भी तिरुचेंदुर एक गांव ही था- हालांकि अब वह छोटे शहर में विकसित हो चुका है. उनका परिवार धोबी समुदाय से है. उनके माता-पिता गांववालों के घर-घर जाकर गंदे कपड़े इकट्ठा करते, उनकी गठरी बनाते, अपने गधे पर लादते और उन्हें धोने के लिए पास की नदी या स्त्रोत पर ले जाते.
बालन कहते हैं, “हमने कभी घर पर भोजन नहीं पकाया. गांववासी अपना बचा-खुचा भोजन हमें दे देते थे. हम बस वही भोजन खाते थे.”
बालन के दो बड़े भाई थे और दोनों ही अब इस दुनिया में नहीं हैं. उन्होंने 19 वर्ष की उम्र में अपने पिता को भी खो दिया था.
चेन्नई में, कॉलीवुड के केंद्र कोडामबक्कम के स्टूडियो के बाहर बालन का जब सच्चाई से सामना हुआ तो सैलूलॉइड की दुनिया में दाख़िल होने के उनके सपने चूर-चूर हो गए.
बालन कहते हैं, “मैं उम्मीद कर रहा था कि कोडामबक्कम की गलियों में मशहूर अभिनेताओं से मुलाक़ात हो जाएगी और मुझे फ़िल्मों में काम करने का मौक़ा मिलेगा.
लेकिन न तो मैं कभी किसी अभिनेता से मिल पाया, न ही किसी स्टूडियो में प्रवेश मिला. मैंने इग्मोर की होटलों और ट्रेवल एजेंसियों में नौकरी के लिए कोशिश की, पर मुझे जल्द ही अहसास हो गया कि कोई भी किसी अजनबी को नौकरी नहीं देगा.”
वो शहर में किसी को नहीं जानते थे और वहां उनकी मदद करने वाला कोई नहीं था. कई दिनों तक बिना भोजन के रहे बालन उन तंगहाल दिनों को याद करते हुए कहते हैं, “इग्मोर रेलवे स्टेशन का प्लेटफ़ॉर्म मेरा घर बन गया था और मैं रिक्षा खींचने वालों, भिखारियों, जेबकतरों व मेरे जैसे अन्य बेघर लोगों के साथ रहने लगा.”
|
इग्मोर में जिस कमर्शियल कॉम्प्लेक्स में बालन का ऑफ़िस है, उसकी छत से रेलवे स्टेशन का नज़ारा. इसी रेलवे स्टेशन पर बालन ने कई रातें भूखे पेट गुज़ारी थीं. |
“मैं दुबला और कमज़ोर हो गया था. अपने अस्तव्यस्त बालों और बढ़ी हुई दाढ़ी से मैं भिखारी जैसा नज़र आने लगा था. एक रात जब मैं रेलवे स्टेशन पर सो रहा था, तो एक पुलिसवाले ने लाठी मारी. मुझे अन्य लोगों के साथ क़तार में खड़ा हो जाने के लिए कहा गया.
वे याद करते हैं, “किसी ने मुझे बताया कि हम सभी को झूठे आरोपों में हिरासत में लेकर जेल भेज दिया जाएगा. मुझे पता चला कि पुलिस अक्सर ऐसे बेघर लोगों को घेरती है और उन पर झूठे मुकदमे लगाकर जेल भेज देती है.”
बालन ने एक पल से भी कम समय में वहां से भागने का निर्णय लिया. वे कहते हैं, “मैं बस दौड़ पड़ा. मुझे यह नहीं पता कि मुझमें शक्ति कहां से आ गई थी कि मैं इतनी तेज़ दौड़ा. जल्द ही, मुझे एक पत्थर का फर्श दिखा, जहां कई लोग सोए थे. मैं भी वहां बैठ गया और कुछ ही देर में मुझे नींद आ गई.”
यह चेन्नई में अमेरिकी दूतावास के बाहर का फर्श था, जहां लोग अपने वीज़ा के लिए एक रात पहले से क़तार लगाए हुए थे. वहां सोए लोगों में कुछ ऐसे एजेंट भी शामिल थे, जो सुबह वीज़ा की तलाश में आए लोगों को क़तार का अपना स्थान बेच देते थे.
तड़के क़रीब 5 बजे किसी ने उन्हें जगाया और उनके द्वारा रोके गए स्थान के बदले 2 रुपए दिए.
इन पैसों से उन्होंने कई दिन भूखे रहने के बाद पहला खाना किया. वे कहते हैं, “मैं चावल, सांभर, रसम, और कोटु पोरियाल (सब्ज़ी वाला एक पारंपरिक भोजन, जो तमिलनाडु में चावल के साथ परोसा जाता है) वाला भोजन करना चाहता था.
किसी कथा लेखक की अलंकृत भाषा की तरह कहानी बताते हुए वे कहते हैं, “मैंने सुबह का नाश्ता छोड़ दिया और छोटी सी होटल में दोपहर का भोजन किया. हालांकि वहां 2 रुपए में ‘सीमित भोजन’ मिला, लेकिन थोड़े से चावल के साथ परोसे गए बहुत से सांभर व पोरियाल से मेरा पेट भर गया.”
|
अपने कुछ सहकर्मियों के साथ ऑफ़िस में बालन. |
वो कहते हैं, “मैं रातोरात उद्यमी बन गया. मैंने अमेरिकी दूतावास के बाहर रोज़ रूमाल व पत्थर रखकर पांच-छह लोगों के लिए जगह रोकना शुरू कर दी और अगले दिन वह जगह लोगों को बेचने लगा.”
उनकी रोज़ की कमाई 2 रुपए से बढ़कर 10 रुपए हो गई, और फिर 20 रुपए. उन्होंने सैदापेट में 150 रुपए महीना के किराए पर एक कमरा ले लिया.
अमेरिकी दूतावास के बाहर अपने ‘कार्यस्थल’ पर वो ट्रेवल एजेंसियों के लिए काम करने वाले एजेंटों से परिचित हो गए. उनका परिचय एक कंपनी से कराया गया, जो उड़ान के टिकट बेचने पर उन्हें 9 प्रतिशत कमीशन देती थी.
बालन कहते हैं, “मैं वीज़ा इंटरव्यू के लिए आने वाले लोगों को फ़्लाइट टिकट पर पांच प्रतिशत डिस्काउंट देने लगा. मैं ट्रेवल एजेंसी के विज़िटिंग कार्ड के पीछे मेरा नाम लिखकर उन्हें दे देता था. कई लोग कार्ड दिखाकर डिस्काउंट हासिल कर लेते थे. मुझे हर टिकट पर अपने हिस्से का चार प्रतिशत डिस्काउंट मिल जाता था.”
वर्ष 1982 तक, उन्हें एक एजेंट के लिए रामेश्वरम-कोलंबो जहाज़ से यात्रा करने वाले लोगों के वीज़ा पहुंचाने का काम मिल गया. ऐसे बहुत से लोग थे, जो यही काम करते थे.
बालन कहते हैं, “मैं चेन्नई से शाम की ट्रेन में बैठकर अगले दिन सुबह-सुबह रामेश्वरम पहुंच जाता था और जहाज़ रवाना होने के कुछ घंटों पहले एजेंट को वीज़ा सौंप देता था.
“एक यात्रा के दौरान भोर के समय ट्रेन के बाहर शोरगुल सुनकर मेरी नींद टूटी. मैंने पाया कि ट्रेन 2 किमी लंबे पम्बन ब्रिज (जो भारतीय धरती को रामेश्वरम द्वीप से जोड़ता है) से पहले रुक गई थी.
“मुझे बताया गया कि ट्रेन कुछ घंटे देरी से रवाना होगी, क्योंकि ट्रैक पर कुछ मरम्मत की जाना थी और वह कर्मचारियों के काम पर आने के बाद ही शुरू होना थी. इसके बाद मैंने ट्रैक को पैदल पार करने का निर्णय लिया. हालाँकि मैं इस दौरान आने वाले जोखि़म से बिलकुल अनजान था.
“कुछ मीटर चलने के बाद मैंने पाया कि समुद्र तक ट्रैक के नीचे गिट्टी नहीं थी. लकड़ी के लट्ठ (स्लीपर्स) चिकने तथा गीले थे और मैं उनके नीचे प्रचंड समुद्र देख सकता था.
|
पम्बन ब्रिज को ख़तरनाक तरीके़ से रेंगकर पार करते बालन का एक कलाकार द्वारा बनाया चित्र. (कलाकार: जीवा) |
“लहरें पानी को ट्रैक पर उछाल रही थीं. मैं अपने पेट के बल लेट गया और पूरे तख्तों को रेंगकर पार करने लगा. मैंने वीज़ा से भरा बैग अपनी पीठ पर बांध लिया था.
बालन के एक भी ग़लत क़दम का मतलब था उनकी जलसमाधि बनना. पूरे मंजर को जीवंतता से बताते हुए वे कहते हैं, “पूरी स्थिति अवास्तविक लग रही थी और अंधेरे से निकल रही प्रकाश की पहली किरण इसे डरावना बना रही थी.”
लेकिन बालन अपनी दास्तां सुनाने के लिए जीवित बचे. अपने एजेंट तक वीज़ा पहुंचाने वाले वो एकमात्र वाहक थे, जिसने क़रीब 100 लोगों के वीज़ा की व्यवस्था की थी और वे जहाज़ पर चढ़ने का इंतज़ार कर रहे थे.
बालन कहते हैं, “अपने पूरे कपड़ों व शरीर पर चिकनाई और कीचड़ लगे हुए ही मैं रामेश्वरम पहुंचा. एजेंट ने मुझे गले लगा लिया और दावत दी. उसने मुझे 1000 रुपए का पुरस्कार भी दिया. उन दिनों यह राशि बहुत बड़ी होती थी.”
बालन कहते हैं, “यदि मैं अपने जीवन को ख़तरे में डालकर समय पर नहीं पहुंचता, तो उसे बहुत बड़ी राशि का नुक़सान होता. इस घटना ने मुझे ट्रेवल और टूर इंडस्ट्री में विश्वसनीय व्यक्ति के रूप में स्थापित कर दिया.”
|
विभिन्न सिटी कॉलेज के पर्यटन के विद्यार्थियों से चर्चा करते बालन. |
वर्ष 1986 में, बालन ने उत्तरी चेन्नई के मन्नाडी में अपनी ख़ुद की एजेंसी शुरू की और अंतरराष्ट्रीय वायु यातायात संस्था (आईएटीए) से मान्यता प्राप्त एजेंसी के उप-एजेंट रूप में काम करने लगे. बालन कहते हैं, “मैंने छोटे तरीके़ से शुरुआत की. मैंने 1000 रुपए प्रति माह के किराए पर एक दुकान ली. मेरे साथ तीन लोग काम कर रहे थे.”
वर्ष 1988 में उन्होंने अपने व्यवसाय में बड़ी कामयाबी हासिल की, जब उन्होंने अग्रणी कर्नाटक गायक सिरकाझी गोविंदाराजन के कुछ प्रमुख यूरोपियाई शहरों में म्यूजिक कॉन्सर्ट आयोजित किए. सभी शहरों में कॉन्सर्ट ज़बर्दस्त हिट रहे और एकाएक बालन फ़िल्म शख्सियतों के साथ विदेशों में कार्यक्रम आयोजित करने वाले व्यक्ति के रूप में पहचाने जाने लगे.
बालन को अब पीछे पलटकर नहीं देखना था. वो अब तक 25 से अधिक देशों में 300 से ज़्यादा कार्यक्रम आयोजित कर चुके हैं, जिनमें बॉलीवुड और कॉलीवुड दोनों से अग्रणी फ़िल्म हस्तियां शामिल हुई हैं. इस असाधारण कार्य ने उन्हें किसी भारतीय कंपनी द्वारा विदेशों में सबसे ज्यादा सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने के लिए लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में स्थान दिला दिया.
वे कॉलीवुड के क्षेत्र में मशहूर हो गए और कई सेलीब्रिटी उनके ग्राहक बन गए. वर्ष 1997 में, उन्हें संस्कृति का प्रचार-प्रसार करने में योगदान देने पर तमिलनाडु सरकार ने प्रतिष्ठित ‘कलाईमामानी अवार्ड’ से सम्मानित किया.
आज, मदुरा ट्रेवल्स एमआईसीई (मीटिंग्स, इन्सेंटिव्ज़, कॉन्फ्रे़ंस ऐंड एग्ज़ीबिशन, ऐंड ईवेंट्स), और क्रूज़ जैसी श्रेणियों में अंतरराष्ट्रीय पैकेज टूर तथा दक्षिण भारत के स्थानों के लिए आयुर्वेद पैकेज व घरेलू क्षेत्रों में आध्यात्मिक टूर उपलब्ध कराती है.
वर्ष 1993 में, बालन ने आईएटीए मान्यता लेने के लिए अपनी कंपनी को प्राइवेट लिमिटेड में तब्दील कर लिया. अपनी कंपनी में उनकी 90 प्रतिशत अंशधारिता है और बाक़ी शेयर उनकी पत्नी व बेटे के नाम हैं.
1998 तक, कंपनी के कारोबार ने 22 करोड़ रुपए का आंकड़ा छू लिया था. मदुरा ट्रेवल्स सालभर बिना किसी अवकाश लिए 24*7 काम करती है. 40 स्थायी कर्मचारियों के साथ कंपनी में 400 अतिरिक्त कॉन्ट्रैक्ट और सब-एजेंट्स भी काम करते हैं.
कंपनी ने तमिलनाडु में पर्यटकों को लक्ष्य रखकर मदुरा वेलकम नाम से एक तिमाही प्रकाशन भी शुरू किया है. अब तक इसकी तमिल में चार किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें से एक पूर्व मुख्यमंत्री के कामराज पर केंद्रित थी.
|
बालन राज्य सरकार के प्रतिष्ठित कलाइमामानी पुरस्कार समेत कई पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं. |
बालन पिछले आठ सालों से दूरदर्शन पर एक साप्ताहिक कार्यक्रम ‘वेलिचाथिन मरुपक्कम’ भी कर रहे हैं, जो समाज के कमज़ोर तबके जैसे यौनकर्मियों, अपराधियों, और अन्य आम लोगों जैसे सड़क पर बेचने वालों पर केंद्रित होता है.
बालन अब अपनी कंपनी की बागडोर अपने 27 वर्षीय बेटे श्रीहरन को सौंपने को तैयार हैं और उनकी 60 वर्षीय पत्नी उनके लिए सुशीला एक महान संपत्ति है. वो उन्हें मूल्यों व नैतिकता सिखाने और एक बेहतर व्यक्ति के रूप में गढ़ने का श्रेय देते हैं.
उनकी 30 वर्षीय बेटी सारन्या फिलहाल मनोविज्ञान से डॉक्टरेट कर रही हैं. उनका विवाह बी जयकुमार क्रिस्टुरंजन से हुआ है, जो चेन्नई के सेंट. जोसेफ़ कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग के निदेशक हैं. छह वर्षीय ताशा और छह महीने की शिवानी उनकी नातिनें हैं. उन्हें उनके साथ समय गुज़ारना पसंद है.
बालन कहते हैं, “उन्होंने अपने जीवन में कभी भी इन दो चीज़ों से समझौता नहीं किया- अपनी व्यक्तिगत अखंडता और मदद करने वाले लोगों के लिए कृतज्ञता.”
एक भावनात्मक टिप्पणी से अपनी बात ख़त्म करते हुए वो दावा करते हैं कि “यदि कोई मुझे पर यह आरोप लगाए कि मुझमें ये गुण नहीं हैं, तो मैं निश्चित रूप से अपना जीवन ख़त्म कर लूंगा.”
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
देसी नस्ल सहेजने के महारथी
चेन्नई के चेंगलपेट के रहने वाले सेंथिलवेला ने देश-विदेश में सिटीबैंक और आईबीएम जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों की 1 करोड़ रुपए सालाना की नौकरी की, लेकिन संतुष्ट नहीं हुए. आखिर उन्होंने पोल्ट्री फार्मिंग का रास्ता चुना और मुर्गियों की देसी नस्लें सहेजने लगे. उनका पांच लाख रुपए का शुरुआती निवेश अब 1.2 करोड़ रुपए सालाना के टर्नओवर में तब्दील हो चुका है. बता रही हैं उषा प्रसाद -
मधुमक्खी की सीख बनी बिज़नेस मंत्र
छाया नांजप्पा को एक होटल में काम करते हुए मीठा सा आइडिया आया. उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. आज उनकी कंपनी नेक्टर फ्रेश का शहद और जैम बड़े-बड़े होटलों में उपलब्ध है. प्रीति नागराज की रिपोर्ट. -
जोड़ी जमाने वाली जोड़ीदार
देश में मैरिज ब्यूरो के साथ आने वाली समस्याओं को देखते हुए दिल्ली की दो सहेलियों मिशी मेहता सूद और तान्या मल्होत्रा सोंधी ने व्यक्तिगत मैट्रिमोनियल वेबसाइट मैचमी लॉन्च की. लोगों ने इसे हाथोहाथ लिया. वे अब तक करीब 100 शादियां करवा चुकी हैं. कंपनी का टर्नओवर पांच साल में 1 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान -
कॉस्मेटिक प्रॉडक्ट्स की मलिका
विदेश में रहकर आई मलिका को भारत में अच्छी गुणवत्ता के बेबी केयर प्रॉडक्ट और अन्य कॉस्मेटिक्स नहीं मिले तो उन्हें ये सामान विदेश से मंगवाने पड़े. इस बीच उन्हें आइडिया आया कि क्यों न देश में ही टॉक्सिन फ्री प्रॉडक्ट बनाए जाएं. महज 15 लाख रुपए से उन्होंने अपना स्टार्टअप शुरू किया और देखते ही देखते वे मिसाल बन गईं. अब तक उनकी कंपनी को दो बार बड़ा निवेश मिल चुका है. कंपनी का टर्नओवर 4 साल में ही 100 करोड़ रुपए काे छूने के लिए तैयार है. बता रही हैं सोफिया दानिश खान. -
शीशे से चमकाई किस्मत
कोलकाता के मोहम्मद शादान सिद्दिक के लिए जीवन आसान नहीं रहा. स्कूली पढ़ाई के दौरान पिता नहीं रहे. चार साल बाद परिवार को आर्थिक मदद दे रहे भाई का साया भी उठ गया. एक भाई ने ग्लास की दुकान शुरू की तो उनका भी रुझान बढ़ा. शुरुआती हिचकोलों के बाद बिजनेस चल निकला. आज कंपनी का टर्नओवर 5 करोड़ रुपए सालाना है. शादान कहते हैं, “पैसे से पैसा नहीं बनता, लेकिन यह काबिलियत से संभव है.” बता रहे हैं गुरविंदर सिंह