Milky Mist

Thursday, 4 December 2025

जानिए किस पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर ने संवारी इस व्यक्ति की ज़िंदगी

04-Dec-2025 By सोमा बैनर्जी
कोलकाता

Posted 23 Jun 2018

सादगीपूर्ण जीवन से शुरुआत कर कॉर्पोरेट क्षेत्र की ऊंचाइयां छूने की बिकाश चौधरी के जीवन की कहानी किसी बॉलीवुड फ़िल्म जैसी है.

बिकाश मुंबई के जेएसडब्ल्यू स्टील में ट्रेज़री के वाइस प्रेसिडेंट हैं.

दक्षिणी मुंबई के पॉश इलाक़े में विशाल और क़रीने से सजाए गए उनके अपार्टमेंट के गैराज में फ़ॉक्सवैगन वेंटो और रेनॉ डस्टर पार्क की हुई हैं. 

मुंबई स्थित अपने अपार्टमेंट में बिकाश चौधरी. (सभी फ़ोटो : रोहन पोत्‍दार)


मुश्किल दिनों को पार कर इस मुकाम पर पहुंचे 40 वर्षीय बिकाश कहते हैं, ‘‘मैं पहले से कॅरियर तय कर लेने या लक्ष्‍य निर्धारित करने में विश्‍वास नहीं करता, लेकिन मैं पूरी सामर्थ्‍य लगाकर प्रगति करने की कोशिश करता हूं.’’

बिकाश के बचपन के दिनों में जाएं तो एक ख़ूबसूरत कहानी निकल कर आती है, जो तंगहाली में जी रहे किसी भी व्‍यक्ति को उम्‍मीद दे सकती है.

बिकाश के पिता लॉन्‍ड्रीमैन थे. वो कोलकाता के 10X15 वर्गफ़ीट के कमरे में परिवार के आठ सदस्यों के साथ बड़े हुए.

तीन पीढ़ी पहले उनका परिवार बिहार के आरा जिले से दक्षिण कोलकाता के भवानीपुर आकर बस गया था.

बचपन में उन्होंने बहुत मुश्किल दिन देखे. कई बार रात में बच्‍चों के भोजन करने के बाद उनके पिता और चाचा को बिना खाए ही सोना पड़ता था.

आईआईएम कोलकाता से ग्रैजुएशन करने के बाद बिकाश बेहतर कॉर्पोरेट कॅरियर की ओर बढ़ गए.


बिकाश कहते हैं, मेरी ग़रीबी ने मुझे बहुत परेशान नहीं किया. पिताजी ने मुझे समझाया कि ज़िंदगी का मज़ा कैसे उठाया जाए, और ये भी कि कभी ज़िंदगी से बहुत उम्मीद मत करो.

उन दिनों लोगों के पास वॉशिंग मशीन नहीं होती थी. बिकाश के पिता नज़दीक स्थित उच्‍च वर्ग के घरों में जाकर कपड़े इकट्ठा करते और उन्हें धोकर इस्‍तरी करते.

इन्‍हीं में से एक घर 80 के दशक के मशहूर क्रिकेटर अरुण लाल और उनकी पत्नी देबजानी का था.

माँ की गुहार पर बिकाश का दाखिला पास स्थित जूलियन डे स्कूल में करवा दिया गया. वहां शुरुआत में कोई फ़ीस नहीं देनी पड़ती थी. पांचवीं कक्षा के बाद फ़ीस बेहद कम थी.

बिकाश अपने परिवार के पहले व्यक्ति थे, जो अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल में पढ़ रहे थे. लेकिन उन्हें अंग्रेज़ी में मदद चाहिए थी. तब उनके पिता ने देबजानी से मदद करने का निवेदन किया. उस वक्त बिकाश 12  साल के थे. यह बिकाश के जीवन का टर्निंग पॉइंट था.

उस वक्त तक बिकाश ने पढ़ाई को बहुत गंभीरता से नहीं लिया था. वो कहते हैं, ‘‘मैं बस होमवर्क पूरा कर लेता था और पास होने लायक़ नंबर ले आता था.’’

बिकास बताते हैं, ‘‘बचपन से मैं फ़ुटबॉल का शौकीन था. स्‍कूल के बाद का मेरा अधिकतर समय फ़ुटबॉल मैदान में ही बीतता था.’’

किशोरावस्‍था में फ़ुटबॉलर रहे बिकाश यंग बंगाल के लिए खेलते थे, जो 1989 से 1991 तक कोलकाता में प्रथम श्रेणी का फ़ुटबॉल क्‍लब था.


बिकाश फ़ुटबॉल में इतने अच्छे थे कि 1989-91 में प्रथम श्रेणी के फ़ुटबॉल क्लब यंग बंगाल ने उन्हें मिडफ़ील्डर खेलने के लिए चुना.

क्लब फ़ुटबॉल खेलने से उनकी 10,000 रुपए सालाना तक की कमाई हो जाती थी. साथ ही उन्हें क्लब कैंटीन का खाना, टी-शर्ट्स, टॉवेल, ट्रेवल अलाउंस आदि भी मिलते थे. इसके अलावा वो ईस्ट बंगाल क्लब के सब जूनियर डिवीज़न में भी खेले.

बिकाश ने देबजानी के घर अंग्रेज़ी पढ़ने के लिए जाना शुरू किया. वहां रोज़ मिलने वाला एक गिलास ऑरेंज स्‍क्‍वैश ही उनका इंसेंटिव था. बिकाश के कक्षा आठ में पहुंचने तक अरुण लाल और देबजानी ने उनकी पढ़ाई की पूरी ज़िम्मेदारी ले ली.

लाल दंपति की कोई संतान नहीं थी और बिकाश से उनका रिश्ता गहराता चला गया. बिकाश उन्हें दूसरे माता-पिता कहने लगे.

अरुण ने बिकाश को फ़ुटबॉल की बजाय पढ़ाई पर ज़्यादा ध्यान देने को कहा. बिकाश फ़ुटबॉल के दीवाने थे, लेकिन उन्होंने अरुण लाल की सलाह को गंभीरता से लिया.

अपनी तीन साल की बेटी अरुणिमा के साथ खेलते बिकाश, जिसका नाम अरुण लाल से प्रेरित होकर रखा गया है.


जब वो मास्टर्स कर रहे थे, तब लाल दंपति ने उन्हें कैट (सीएटी) की तैयारी करने को कहा.

उनका सिलेक्शन हो गया. अच्‍छी रैंक की बदौलत उन्हें किसी भी आईआईएम में दाखिला मिल सकता था लेकिन दोनों परिवारों से नज़दीकी की चाह में उन्‍होंने आईआईएम कोलकाता को चुना.

उसके बाद उन्हें ज़िंदगी में कोई नहीं रोक सका. ड्यूश बैंक, क्रेडिट एग्रीकोल, एचडीएफ़सी और सिंगापुर की डीबीएस बैंक जैसी कंपनियों में वो महत्वपूर्ण पद पर रहे. इसके बाद वो जेएसडब्ल्यू स्टील से जुड़े.

असाधारण रूप से बिकाश ने हाई-प्रोफाइल कॉर्पोरेट की सभी रूढ़ीवादिताओं को चुनौती दी.

वो अभी भी वक्त मिलने पर पुराने दोस्तों के साथ फ़ुटबॉल खेलते हैं, हालांकि वो किसी अंतरराष्ट्रीय फ़ुटबॉल लीग क्लब के फ़ैन नहीं हैं.

 

अपने 11 वर्षीय शिकारी कुत्‍ते सिंडी के साथ बिकाश.


बिकाश की पत्नी कामना प्लैटिनम गिल्ड में कंसल्टिंग मार्केटिंग हेड हैं.

लाल दंपति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए बिकाश ने उन्हें मर्सिडीज़ बेंज गिफ़्ट की है. साथ ही अपनी तीन साल की बेटी का नाम अरुण लाल के नाम पर अरुणिमा रखा है.

उन्होंने अरुण लाल को बंगला ख़रीदने में मदद की. इसके अलावा अपने पिता के लिए उन्होंने एक फ़्लैट भी ख़रीदा.

बिकाश को साझा करना और मदद करना पसंद है, लेकिन वो यह काम बिना किसी प्रचार-प्रसार के करते हैं.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Success story of helmet manufacturer

    ‘हेलमेट मैन’ का संघर्ष

    1947 के बंटवारे में घर बार खो चुके सुभाष कपूर के परिवार ने हिम्मत नहीं हारी और भारत में दोबारा ज़िंदगी शुरू की. सुभाष ने कपड़े की थैलियां सिलीं, ऑयल फ़िल्टर बनाए और फिर हेलमेट का निर्माण शुरू किया. नई दिल्ली से पार्थो बर्मन सुना रहे हैं भारत के ‘हेलमेट मैन’ की कहानी.
  • success story of two brothers in solar business

    गांवों को रोशन करने वाले सितारे

    कोलकाता के जाजू बंधु पर्यावरण को सहेजने के लिए कुछ करना चाहते थे. जब उन्‍होंने पश्चिम बंगाल और झारखंड के अंधेरे में डूबे गांवों की स्थिति देखी तो सौर ऊर्जा को अपना बिज़नेस बनाने की ठानी. आज कई घर उनकी बदौलत रोशन हैं. यही नहीं, इस काम के जरिये कई ग्रामीण युवाओं को रोज़गार मिला है और कई किसान ऑर्गेनिक फू़ड भी उगाने लगे हैं. गुरविंदर सिंह की कोलकाता से रिपोर्ट.
  • how Chayaa Nanjappa created nectar fresh

    मधुमक्खी की सीख बनी बिज़नेस मंत्र

    छाया नांजप्पा को एक होटल में काम करते हुए मीठा सा आइडिया आया. उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. आज उनकी कंपनी नेक्टर फ्रेश का शहद और जैम बड़े-बड़े होटलों में उपलब्ध है. प्रीति नागराज की रिपोर्ट.
  • Ready to eat Snacks

    स्नैक्स किंग

    नागपुर के मनीष खुंगर युवावस्था में मूंगफली चिक्की बार की उत्पादन ईकाई लगाना चाहते थे, लेकिन जब उन्होंने रिसर्च की तो कॉर्न स्टिक स्नैक्स उन्हें बेहतर लगे. यहीं से उन्हें नए बिजनेस की राह मिली. वे रॉयल स्टार स्नैक्स कंपनी के जरिए कई स्नैक्स का उत्पादन करने लगे. इसके बाद उन्होंने पीछे पलट कर नहीं देखा. पफ स्नैक्स, पास्ता, रेडी-टू-फ्राई 3डी स्नैक्स, पास्ता, कॉर्न पफ, भागर पफ्स, रागी पफ्स जैसे कई स्नैक्स देशभर में बेचते हैं. मनीष का धैर्य और दृढ़ संकल्प की संघर्ष भरी कहानी बता रही हैं सोफिया दानिश खान
  • A rajasthan lad just followed his father’s words and made fortune in Kolkata

    डिस्काउंट पर दवा बेच खड़ा किया साम्राज्य

    एक छोटे कपड़ा कारोबारी का लड़का, जिसने घर से दूर 200 वर्ग फ़ीट के एक कमरे में रहते हुए टाइपिस्ट की नौकरी की और ज़िंदगी के मुश्किल हालातों को बेहद क़रीब से देखा. कोलकाता से जी सिंह के शब्दों में पढ़िए कैसे उसने 111 करोड़ रुपए के कारोबार वाली कंपनी खड़ी कर दी.