15 हज़ार रुपए से 1,450 करोड़ रुपए की अंतरराष्ट्रीय कंपनी खड़ी करने की कहानी
30-Oct-2024
By पीसी विनोज कुमार
चेन्नई
साल 1983 में तमिलनाडु के छोटे से शहर कडलोर में 22 साल के एक युवक ने घर छोड़ने का फ़ैसला किया. उसकी जेब में मात्र 15 हज़ार रुपए थे, लेकिन आंखों में अपना बिज़नेस शुरू करने का सपना था.
दो साल पहले ही इस युवक यानी सीके रंगनाथन के पिता की मौत हुई थी. वह अब अपनी मां, पांच भाई-बहन जिनके साथ वह बड़ा हुआ, 30 एकड़ खेतिहर ज़मीन पर स्थित पारिवारिक घर को छोड़ रहा था, जहां वो घंटों खेत के कुएं में तैरा करता था, तालाब में मछलियां पकड़ता था, कबूतरों को पालता था, नारियल व आम के पेड़ों के इर्द-गिर्द घूमता था, दोस्तों के साथ व्यायाम करता था और बेफ़िक्र ज़िंदगी जीता था.
केविनकेयर प्राइवेट लिमिटेड के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर सीके रंगनाथन चेन्नई स्थित अपने ऑफ़िस में. (सभी फ़ोटो - एचके राजाशेकर)
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रंगनाथन के लिए यह फ़ैसला बहुत मुश्किल था. उनका परिवार सैशे में उपलब्ध लोकप्रिय ‘वेलवेट’ शैंपू का उत्पादन करता था, लेकिन बिज़नेस की दिशा क्या हो, इसे लेकर रंगनाथन के बड़े भाइयों के साथ मतभेद हो गए थे.
लेकिन आज रंगनाथन या सीकेआर, जैसा कि उन्हें लोग प्यार से बुलाते हैं, को गुज़रे दिनों से कोई शिकायत नहीं.
क़रीब 34 साल पहले उन्होंने ‘चिक’ शैंपू के उत्पादन के साथ अपना बिज़नेस शुरू किया था. आज उनकी कंपनी कैविनकेयर प्राइवेट लिमिटेड 1,450 करोड़ रुपए का सालाना कारोबार कर रही है.
कंपनी का दख़ल पर्सनल केयर, डेयरी, स्नैक्स, बेवेरज और सैलून में है.
जेब में बचत के 15 हज़ार रुपए लेकर घर छोड़ने के बाद सबसे पहली चुनौती थी रहने के लिए जगह ढूंढना. और जल्द ही घर से 250 मीटर दूर ही उन्हें रहने की जगह मिल गई.
दिसंबर की एक शाम चेन्नई में सेनटैफ़ रोड स्थित अपने दफ़्तर में बैठे रंगनाथन याद करते हैं, “वो एक कमरे का घर था, जिसका किराया 250 रुपए महीना था. मैंने एक केरोसीन स्टोव, चारपाई और आसपास आने-जाने के लिए एक साइकिल ख़रीदी. जब मैंने घर छोड़ने का फ़ैसला किया था, तभी मैं किसी भी परेशानी का सामना करने के लिए तैयार था.
“घर छोड़ने के बाद एक मिनट भी मुझे अपने फ़ैसले पर पछतावा नहीं हुआ, हालांकि कई लोगों को ऐसा लगा कि मैंने ग़लती की है.”
शुरुआती दिनों से ही रंगनाथन की सफल उद्यमी यात्रा एक ख़ास बात यह रही कि वो फ़ैसले लेने में कभी देरी नहीं करते थे.
वो बताते हैं कि शुरुआत में वो शैंपू बनाने और अपने ही भाइयों के साथ स्पर्धा कने के पक्ष में नहीं थे. उन्होंने अन्य विकल्पों के बारे में विचार किया, जैसे पोल्ट्री यूनिट शुरू करना लेकिन जल्द ही उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें सिर्फ़ शैंपू बनाना आता था.
रंगनाथन कम समय में रणनीतिक फ़ैसले लेने के लिए जाने जाते हैं.
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उनका दूसरा महत्वपूर्ण फ़ैसला था कडलोर से 20 किलोमीटर दूर पुड्डुचेरी में फ़ैक्ट्री की शुरुआत करना. वहां निर्माण लाइसेंस पाना आसान था.
रंगनाथन कहते हैं, “मुझे एक हफ़्ते में ही लाइसेंस मिल गया. अगर तमिलनाडु होता तो लाइसेंस मिलने में चार से छह महीने लग जाते और तब तक मेरे सारे पैसे भी ख़त्म हो जाते.”
घर छोड़ने के एक महीने के भीतर ही उनका पहला प्रॉडक्ट चिक शैंपू मार्केट में दिखने लगा.
सात मिलीलीटर सैशे की क़ीमत 75 पैसे थी.
चिक नाम उनके पिता चिन्नी कृष्णन के नाम के पहले अक्षरों से लिया गया था. चिक शैंपू केविनकेयर का सबसे ज़्यादा बिकने वाला ब्रैंड है. कंपनी के ताज़ा 1,450 करोड़ रुपए के टर्नओवर में चिक शैंपू की बिक्री 300 करोड़ रुपए की है.
रंगनाथन ने अपना बिज़नेस पुड्डुचेरी के कन्नी कोइल इलाके़ से चार कर्मचारियों के साथ 300 रुपए के किराए के कमरे में शुरू किया था और मशीनों पर 3,500 रुपए निवेष किए थे. आज उनका बिज़नेस भारत के बाहर तक फैल गया है.
केविनकेयर के प्रॉडक्ट्स अब भारत के अलावा कई देशों जैसे श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, मलेशिया और सिंगापुर में भी मिलते हैं.
भारत से बाहर केविनकेयर की दो सहायक कंपनियां हैं - केविनकेयर बांग्लादेश प्राइवेट लिमिटेड और केविनकेयर लंका लिमिटेड. इन कंपनियों में क़रीब 4,000 लोग काम करते हैं. ज्यादातर यानी क़रीब 2,000 लोग कंपनी की सैलून चेन, लाइमलाइट और ग्रीन ट्रेंड्स में काम करते हैं.
संक्षेप में कहा जाए कि कडलोर का वह लड़का जिसकी पसंद शहरों में रहने वाले लोगों से अलग थी, जो मछुआरों के साथ वक्त बिताता था, जिसने तमिल माध्यम में पढ़ने को वरीयता दी क्योंकि उसे तमिल में आसानी होती थी और जिसे अंग्रेज़ी माध्यम मुश्किल लगता था और जिसे उसकी मां ‘नी उरुपडा माता’ (किसी काम का नहीं) बताती थीं, उसने अपनी शर्तों पर सफलता हासिल की.
यह बहुत कम लोग जानते हैं कि रंगनाथन को पक्षियों से बहुत लगाव है. चेन्नई में उन्होंने अपने घर पर बहुत से पक्षियों को रखा है.
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उन्हें पक्षियों से इतना प्रेम है कि उन्होंने खेत का वातावरण तैयार कर चेन्नई में गुज़ारे जवानी के दिनों को पुनर्जीवित किया है. चेन्नई के इंजाम्बक्कम में 3.5 एकड़ में फैले तट किनारे इस ख़ूबसूरत घर में वो कई सौ पक्षियों जैसे मोर, तीतर और मकाओ तोते के साथ रहते हैं जिन्हें बड़े-बड़े पिंजरे में रखा गया है. इन पक्षियों को देखकर लगता है कि आप पक्षियों के अभयारण्य में हैं.
इन पक्षियों को देखना, उनके साथ वक्त बिताना सीकेआर की दिनचर्या का हिस्सा है.
जीवन के इस स्तर तक पहुंचने के लिए रंगनाथन ने बहुत मेहनत की है और हमेशा सही चुनाव किए हैं. जिन फ़ैसलों से उन्हें फ़ायदा नहीं हुआ, उन फ़ैसलों को उन्होंने तुरंत बदला, उनसे सीख ली और अपने मज़बूत पक्षों पर काम किया.
अपने बिज़नेस के शुरुआती दिनों में उनका सीधा मुकाबला उनके परिवार के शैंपू ब्रैंड वेलवेट से था. वेलवेट शैंपू भी सैशे में बिकता था.
जब उन्होंने साल 1983 में चिक शैंपू को लॉन्च किया तो उन्होंने मार्केट में अंडे वाले एक महंगे वैरियंट को बाज़ार में उतारा. उसका दाम 90 पैसे प्रति सैशे था, जो वेलवेट शैंपू से 15 पैसे ज़्यादा था.
रंगनाथन याद करते हैं, “एक डिस्ट्रिब्यूटर ने कहा कि यह अच्छी रणनीति नहीं है, और मैंने तुरंत सैशे का दाम 75 पैसे कर दिया.”
घर छोड़ने के 26वें दिन उन्होंने चिक शैंपू के लिए पहला इनवॉयस बनाया. साल के अंत में चिक शैंपू ने छह लाख रुपए की बिक्री कर ली थी.
साल 1987 में उन्होंने तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि की पोती आर. थेनमोझी से शादी कर ली. उस साल कंपनी की मासिक बिक्री 3.5 लाख रुपए थी.
सीकेआर बताते हैं कि यह एक एरेंज्ड शादी थी, जिसमें पति और पत्नी अलग-अलग समुदाय से थे.
चिक इंडिया - तब कंपनी को इसी नाम से जाना जाता था - के लिए बड़ा ब्रेक 1988 में आया, जब किसी भी ब्रैंड के पांच खाली शैंपू सैशे के बदले कंपनी ने एक चिक शैंपू सैशे का ऑफ़र दिया.
मार्केटिंग के इस तरीके़ से वेलवेट शैंपू को कड़ा झटका लगा और चिक शैंपू की बिक्री में ज़बर्दस्त तेज़ी आई. जब रंगनाथन ने इस ऑफ़र में थोड़ा बदलाव कर सिर्फ़ खाली चिक सैशे के बदले एक शैंपू सैशे कर दिया, तो चिक शैंपू की बिक्री में और तेज़ी से बढ़ोतरी हुई.
साल 1980 में रंगनाथन एक्सचेंज स्कीम लाए, जिसके चलते उनके प्रतिस्पर्धी वेलवेट शैंपू को मुश्किलों का सामना करना पड़ा और चिक शैंपू की बिक्री बढ़ गई.
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बीते दिनों को मज़े से याद करते हुए रंगनाथन कहते हैं, “इस स्कीम ने वेलवेट को हिलाकर रख दिया था. उस समय गोदरेज वेलवेट शैंपू का डिस्ट्रिब्यूटर था. मैंने एक बड़े मज़बूत डिस्ट्रिब्यूशन नेटवर्क से टक्कर ली थी. मैंने बाज़ार को अस्त-व्यस्त कर दिया था और उस पर पकड़ बना ली थी. दस महीने बाद मैंने स्कीम बंद कर दी.”
रंगनाथन जायंट किलर बन चुके थे.
साल 1989 में कंपनी का सालाना टर्नओवर एक करोड़ रुपए को पार कर चुका था. रंगनाथन ने उन दिनों कॉलीवुड की शीर्ष हेरोइन आमला को कंपनी का ब्रैंड अंबैसेडर बनाया और टीवी व प्रिंट मीडिया में विज्ञापन पर ढेर सारा पैसा ख़र्च किया.
जल्द ही कंपनी का टर्नओवर 4.5 करोड़ रुपए पहुंच गया. एक साल बाद यह आंकड़ा 12 करोड़ रुपए पहुंच गया. साल 1990 में चिक इंडिया ‘ब्यूटी कॉस्मेटिक्स प्राइवेट लिमिटेड’ बन गई.
साल 1991-92 में कंपनी मोगरा, गुलाब की महक वाले शैंपू बाज़ार में लेकर आई. इसके साथ कंपनी ने मीरा हर्बल हेयरवाश पाउडर भी बाज़ार में उतारा. इन क़दमों से दक्षिण भारत के शैंपू बाज़ार में कंपनी सबसे बड़ी हिस्सेदार हो गई.
आने वाले सालों में कंपनी ने बाज़ार में और प्रॉडक्ट्स लांच किए - 1993 में नाइल हर्बल शैंपू, 1997 में स्पिंज़ परफ़्यूम, 1998 में इंडिका हेयर डाई और फ़ेयरएवर फ़ेयरनेस क्रीम.
साल 1998 में कंपनी ने वर्तमान ‘केविनकेयर’ नाम अपनाया - सीके शब्द एक बार फिर पिता चिन्नी कृष्णन के नाम के पहले अक्षरों से लिया गया था. वो ख़ुद दवाइयों और ब्यूटी प्रॉडक्ट्स के छोटे स्तर पर निर्माता थे. तमिल में ‘केविन’ का मतलब होता है, सौंदर्य.
साल 2001 में कंपनी का टर्नओवर 200 करोड़ रुपए को पार कर गया. अगले साल रंगनाथन ने सैलून चेन लॉन्च की. उन्हें लगा कि इस सेगमेंट में ढेर कारोबारी संभावनाएं हैं.
केविनकेयर की टैगलाइन है- ‘जीवन को आनंदमय बनाओ’
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वो कहते हैं, “जब भी मैं बाल कटवाने जाता था, तो मैं सैलून मालिकों से पूछता था कि वो अपने बिज़नेस को फैलाने के बारे में क्यों नहीं सोचते. इस पर वो मुझे ऐसा नहीं करने के कई कारण गिना देते थ्से. मुझे इसमें मौक़ा नज़र आया और हमने सैलून बिज़नेस में प्रवेश किया.”
पांच साल बाद केविनकेयर ने पारंपरिक ‘कडालाई मिट्टाई’ को चिन्नीज़ चिक्की के रूप में एक पौष्टिक स्नैक के तौर पर लॉन्च किया. आज चिन्नीज़ चिक्की की सालाना बिक्री सात से आठ करोड़ रुपए है.
कंपनी का एक मज़बूत स्तंभ इसका शोध और विकास विभाग हैं जिसमें क़रीब 70 लोग काम करते हैं. रंगनाथन ने अन्नामलाई विश्वविद्यालय से रसायन में बीएससी की डिग्री ली है और वो हमेशा से शोध विभाग के समर्थक रहे हैं.
“जब मैं अपने पारिवारिक कारोबार में शामिल हुआ था, तब मैंने वहां भी शोध के लिए लैब की स्थापना की थी.”
अपनी कंपनी लॉन्च करने से पहले उन्होंने आठ महीने परिवार के साथ काम किया था.
“बिज़नेस शुरू करने के पांच महीने में ही मैंने एक अलग बिल्डिंग में आरएंडडी (शोध और विकास) यूनिट की स्थापना की. उसके लिए मैं 500 रुपए महीने का किराया देता था, जो उस वक्त बड़ी रक़म होती थी. मैंने दो केमिस्ट्री ग्रैजुएट को लैब में काम पर रखा.”
तमिल माध्यम में पढ़ने के कारण अंग्रेज़ी पर उनकी पकड़ बहुत अच्छी नहीं थी. इसके विपरीत उनके भाई-बहनों ने अंग्रेज़ी माध्यम में पढ़ाई की थी. सीकेआर को जल्द अंदाज़ा हो गया कि अगर उन्हें अपना बिज़नेस को पूरे भारत में फैलाना है तो अंग्रेज़ी की जानकारी ज़रूरी है. बिना समय व्यर्थ किए उन्होंने अंग्रेज़ी सीखने के लिए प्लान बनाया.
रंगनाथन कहते हैं, “मैंने तमिल अख़बार की जगह अंग्रेज़ी अख़बार पढ़ना शुरू कर दिया. मैंने एक अंग्रेज़ी डिक्शनरी ख़रीदी और हर दिन पांच नए शब्द सीखने शुरू कर दिए. इन पांच शब्दों के आधार पर मैं प्रतिदिन पांच नए वाक्य बनाता था.”
विभिन्न प्रकार के चिक शैंपू सैशे थामे रंगनाथन. इनके जरिये कंपनी 300 करोड़ रुपए सालाना का कारोबार कर रही है.
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आज रंगनाथन देश के अलग-अलग हिस्सों से आने वाले दफ़्तर के साथियों से धाराप्रवाह अंग्रेज़ी में बात करते हैं.
एक छोटे कारोबारी के बेटे रंगनाथन अंतरराष्ट्रीय कंपनियों से मुकाबले के बाद आज इस मुकाम पर पहुंचे हैं. कारोबार बढ़ाने के लिए उन्होंने कंपनियां ख़रीदीं.
साल 2008 में उन्होंने कांचीपुरम की घाटे में चल रही एक डेरी कंपनी को ख़रीदा और डेरी बिज़नेस में क़दम रखा. साल 2009 में उन्होंने स्नैक और नमकीन बनाने वाली मुंबई की गार्डेन नमकींस प्राइवेट लिमिटेड को ख़रीदा. इसके अलावा उन्होंने मां फ्रूट ड्रिंक और रुचि पिकल्स जैसी कंपनियों को भी ख़रीदा.
रंगनाथन अपनी कंपनी के 100 प्रतिशत मालिक हैं. साल 2013 में निजी इक्विटी की बड़ी कंपनी क्राइसकैपिटल ने केविनकेयर के 13 प्रतिशत हिस्से के लिए 250 करोड़ रुपए का निवेश किया, लेकिन हाल ही में उन्होंने 525 करोड़ रुपए में उस हिस्से को वापस ख़रीद लिया.
रंगनाथन के बच्चे अमुथा, मनु और धारिणी पिता के दिए गए पैसे से अपने-अपने बिज़नेस को खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. उनके प्रदर्शन को देखने के बाद रंगनाथन अपने वारिस की घोषणा करेंगे.
वो कहते हैं, “जो सबसे बेहतर होगा वो कंपनी का नेतृत्व करेगा. बाकी सबको उसकी बात माननी होगी.”
रंगनाथन की लंबी ईनिंग अभी जारी है और वो अपने बच्चों को ध्यान से देख रहे हैं ताकि वक्त आने पर सही निर्णय किया जा सके.
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