सफल नौकरी छोड़ सैलरी के पैसों से कारोबार शुरू किया, 41 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाला बिजनेस बनाया
23-Nov-2024
By उषा प्रसाद
बेंगलुरु
योग्य वेटरनरी चिकित्सक होने के नाते डॉ. एन एलनगोवन को पालतू पशुओं का इलाज करना चाहिए था. लेकिन पालतू पशुओं में रुचि को नजरअंदाज किए बगैर उन्होंने अपने दो जुनूनों को पूरा किया- पहला था पत्रकारिता और दूसरा बिजनेस. आज तीनों कंपनियों का कुल टर्नओवर 41 करोड़ रुपए है. जल्द ही वे उद्ममिता पर अपनी पहली अंग्रेजी की किताब ‘करेंसी कॉलोनी’ लॉन्च करने वाले हैं.
एलनगोवन तमिलनाडु सरकार के विनम्र अफसर के बेटे हैं. उन्होंने 1900 रुपए प्रति महीने की तनख्वाह पर कर्नाटक के हुबली में यूनिकेम लैबोरेटरीज की वेटरनरी फार्मा डिवीजन में सेल्स ऑफिसर के रूप में करियर की शुरुआत की थी.
डॉ. एन एलनगोवन ने सेल्स एग्जीक्यूटिव के रूप में करियर शुरू किया था. एंटरप्रेन्योर बनने से पहले ऊंचे पदों पर भी काम किया. (सभी फोटो – विशेष व्यवस्था से)
|
एलनगोवन अपने पिता की इच्छा के खिलाफ बिजनेस में उतरे थे. बिजनेस का विचार उन्हें वडोदरा में उनके गुजराती दोस्ताना पड़ोसी ने दिया था. उसने कहा था कि उन्हें अपनी कर्मठता, योग्यता और कठिन परिश्रम के मुकाबले बहुत कम पैसा मिल रहा है. उन्होंने सवाल भी किया था कि ‘आपको किसी और के लिए काम क्यों करना चाहिए?’
49 वर्षीय एलनगोवन याद करते हैं, ‘‘मैं 16 साल का था और मैंने स्कूली पढ़ाई पूरी ही की थी, तब मुझे सबसे पहले टेक्सटाइल में बिजनेस करने का विचार आया था. लेकिन परिवार ने मुझे रोक दिया था. मुझे बताया गया कि पढ़ाई बहुत जरूरी है.’’
एलनगोवन के तीन सफल वेंचर हैं- ड्रीम सर्व नेटवर्क्स प्राइवेट लिमिटेड, आइरिस लाइफ सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड और टिमो इवा वेलनेस प्राइवेट लिमिटेड. इनमें पहली मीडिया कंपनी है. अन्य दो पालतू जानवरों और इंसानों की कॉस्मेटिक्स से जुड़ी हैं.
परिवार की सलाह मानकर उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और मद्रास वेटरनरी कॉलेज से ग्रेजुएशन करते समय उन्हें अपने एक अलग जुनून का पता चला. वह था लेखन. इसने उन्हें दूसरे ही वर्ष में जर्नलिज्म की राह पर ला दिया. इसी के साथ एलनगोवन ने हाथ से लिखी तमिल मैग्जीन ‘आंधीमझाई’ शुरू की. यह तिमाही थी.
एलनगोवन याद करते हैं, ‘‘आंधीमझाई कॉलेज मैग्जीन की तरह नीरस नहीं थी. यह एक सामान्य मैग्जीन थी. इसमें सामान्य रुचि, लिटरेचर्स, प्रमुख हस्तियों और फिल्म स्टार्स के इंटरव्यू होते थे. हालांकि इसमें राजनीति का कोई स्थान नहीं था.’’
शुरुआत में इसकी चार कॉपी निकाली गई, जो कॉलेज के होस्टल और लाइब्रेरी में रखी जाती थी. बाद में डीटीपी के मशहूर होने पर वर्ष 1993 से इसकी 10 कॉपी छापी जाने लगी.
वे कहते हैं, ‘‘इसमें प्रकाशित कुछ लेख स्थानीय अखबारों में फिर से प्रकाशित किए जाते थे. आंधीमझाई कॉलेज छात्रों के बीच बहुत मशहूर हो गई थी.’’
1994 में ग्रेजुएशन के बाद एलनगोवन पत्रकार के रूप में करियर शुरू करना चाहते थे. लेकिन परिवार के सदस्यों ने जोर दिया कि उन्होंने जिस विषय की पढ़ाई की है, उन्हें उसी से संबंधित नौकरी करनी चाहिए. इस तरह उन्होंने यूनिकेम लैबोरेटरीज में सेल्स एग्जीक्यूटिव के पद पर काम शुरू किया.
16 महीनों बाद वे पॉल्ट्री कंपनी सेल्वम ब्रॉइलर्स से जुड़ गए. तमिलनाडु के नमक्कल में मुख्यालय वाली इस कंपनी में वे कर्नाटक क्षेत्र के इंचार्ज थे और बेंगलुरु में पदस्थ थे. दो साल बाद उन्होंने फॉर्चून 500 कंपनी फोर्ट डोज में नौकरी शुरू की. यह कंपनी वेटरनरी बॉयोलॉजिकल से जुड़ी थी. इस कंपनी में उन्होंने सेल्स और टेक्नो-कमर्शियल स्पेस संभाली. उनके पास तमिलनाडु और केरल की जिम्मेदारी थी.
एलनगोवन की तीन कंपनियों से 104 लोगों को रोजगार मिला हुआ है.
|
अपने लेखन के जुनून को जिंदा रखने के लिए वे चेन्नई के तमिल प्रकाशनों जैसे कुमुदम, थामिझन एक्सप्रेस और कुंगुमम आदि में लिखते रहे. पत्रकारिता का शौक इतना लुभावना था कि 1999 में एलनगोवन ने फोर्ट डॉज कंपनी छोड़ दी और करीब 75 प्रतिशत कम सैलरी में चेन्नई में पाक्षिक मैग्जीन ‘विन नयागान’ में पूर्णकालिक नौकरी शुरू कर दी.
हालांकि एक साल में ही जब उन्हें पता चला कि विन नयागान बंद होने की कगार पर है, तो उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी. इसके बाद वे बेंगलुरु लौट आए और वॉकहार्ट कंपनी के एनिमल हेल्थ बिजनेस से जुड़ गए.
अगले साल वे इंडो बायोकेयर कंपनी में थे. यह कंपनी भी बेंगलुरु में एनिमल हेल्थ बिजनेस में थी. कंपनी में उन्हें नेशनल बिजनेस हेड के रूप में पदोन्नत कर वडोदरा ट्रांसफर कर दिया. वहीं 2004 में उनकी अपने पड़ोसी से जीवन बदल देने वाली मुलाकात हुई.
उद्ममिता की सुप्त आकांक्षा को फिर से जगाने वाली उस घटना को याद करते हुए एलनगोवन कहते हैं, ‘‘उस समय मैं अच्छा–खासा कमा रहा था. जीवन में सबकुछ ठीक था. मैं महीने में 20 दिन बाहर रहता था. ऐसे ही एक दौरे के बाद जब मैं अपने ऑफिस जाने के लिए घर से कार निकाल रहा था, तो एक गुजराती ने मुझे रोका. वे मेरे घर के सामने रहते थे. उन्होंने मुझे बातचीत के लिए अपने घर आमंत्रित किया.’’
पड़ोसी ने उन्हें बगैर किसी बनावटीपन के कहा कि उनकी सैलरी उनकी सारी कर्मठता और कठिन परिश्रम के योग्य नहीं है. उन्हें अपनी प्रतिभा और योग्यता के अनुसार अपना खुद का कुछ करने का विचार करना चाहिए.
इस बातचीत ने उन्हें उद्ममी बनने के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया. हालांकि उनके परिवार ने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और उनका कोई सहयोग नहीं किया. इसके बाद एलनगोवन ने निर्णय लिया.
नियमित आमदनी के लिए अपनी कॉरपोरेट नौकरी जारी रखते हुए उन्होंने 2004 में ड्रीम सर्व नेटवर्क प्राइवेट लिमिटेड कंपनी शुरू की और उसी साल ‘आंधीमझाई’ का ऑनलाइन संस्करण शुरू कर दिया.
एलनगोवन ने अपने कॉलेज के दिनों में जो मैग्जीन शुरू की थी, उसे कॉलेज के छात्र अब तक चला रहे थे. वर्ष 2004 में एलनगोवन ने इसका रजिस्ट्रेशन करवाया. वर्ष 2012 से आंधीमझाई का मासिक प्रिंट संस्करण भी निकलने लगा. ड्रीम सर्व अब तक तमिल भाषा में 31 किताबें भी प्रकाशित कर चुका है.
वर्ष 2007 में, अंतत: एलनगोवन ने अपनी बचत के 16 लाख रुपए के निवेश से अपना सपनों का वेंचर आइरिस लाइफ सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड लॉन्च कर दिया.
आइरिस पालतू, पॉल्ट्री और पशुधन के 32 प्रॉडक्ट बेचता है.
|
एलनगोवन कहते हैं, ‘‘बुनियादी विचार 100 रोजगार पैदा करना था.’’ शुरुआत में वे डॉग ग्रूमिंग प्रॉडक्ट, शैंपू और डॉग बिस्किट की ही मार्केटिंग कर रहे थे. वर्ष 2008 में अपने दोस्त के ब्रांड वेफा हेल्थकेयर का अधिग्रहण करने के बाद वे पॉल्ट्री फीड सप्लीमेंट्स भी बेचने लगे.
बाद में दोस्त के लिए अपनी मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट चलाना मुश्किल हुआ तो उसने वह भी बेच दी. एलनगोवन ने अगले 5 सालों में कंपनी में 3 करोड़ रुपए का निवेश किया.
कंपनियों में लगाई गई अधिकतर रकम उनकी बचत का हिस्सा थी. वेंचर में कुछ दोस्तों ने भी पैसा लगाया. वर्ष 2008 में आइरिस ने बेंगलुरु के बोमनहल्ली में उत्पादन भी शुरू कर दिया. एलनगोवन ने वर्ष 2013 के बाद ही अपने बिजनेस का विस्तार करने के लिए बैंक लोन लिया.
वे कहते हैं, ‘‘मेरे पिता इस बात से खुश नहीं थे कि मैंने बिजनेस शुरू किया. उन्होंने मुझे सलाह दी थी कि मैं परिवार में से किसी से उधार न लूं. वर्ष 2009 में जब मुझे अधिक फंड की जरूरत पड़ी तो मैंने चेन्नई का अपना घर बेच दिया, जिसे मैंने पिछली नौकरी के दौरान खरीदा था.’’
हालांकि पहले साल का टर्नओवर महज 4.75 लाख रुपए रहा - जो उनकी पिछली नौकरी की सालाना टेक होम सैलरी से कहीं कम था – इसके बावजूद एलनगोवन प्रयत्न करते रहे.
वे कहते हैं, ‘‘मैंने ठान लिया था कि चाहे बिजनेस में नफा हो या नुकसान, मैं 1000 दिन तक बिजनेस करता रहूंगा. जब हमने 1000वां दिन क्रॉस कर लिया, तो मैं इसे बढ़ाना चाहता था. इसके बाद मैंने एक और 1000 दिन का बेंचमार्क बनाया. इसके बाद जो भी हुआ, उसकी बदौलत ही हम आज यहां हैं.’’
वेफा से अधिग्रहित विभिन्न ब्रांड में से आइरिस ने केवल 3 को बनाए रखा. हालांकि इसमें एक नया प्रॉडक्ट भी जोड़ा. आज उनकी कंपनी 32 प्रॉडक्ट बनाती है, जिनमें पेट्स, पॉल्ट्री और पशुधन शामिल हैं. वे कुछ अन्य प्रॉडक्ट के आयात और मार्केटिंग के साथ-साथ दो अन्य कंपनियों के लिए भी प्रॉडक्ट बनाते हैं.
एलनगोवन की इंग्लिश की पहली किताब ‘करेंसी कॉलोनी’ जल्द ही बाजार में आने वाली है.
|
इस बीच, वर्ष 2012 में टिमो इवा वेलनेस लॉन्च की गई. यह कंपनी एनिमल हेल्थ प्रॉडक्ट और ह्यूमन कॉस्मेटिक के बिजनेस में थी. तीनों कंपनियों ने अंतिम वित्तीय वर्ष में 41 करोड़ रुपए का टर्नओवर हासिल किया.
अपने मुश्किल समय को याद करते हुए एलनगोवन कहते हैं, ‘‘कई बार मुझे अपनी अच्छी-भली नौकरी छोड़ने का अफसोस भी हुआ. ऐसे समय मैंने उद्मियों और सफल लोगों की जीवनियां पढ़ीं और प्रेरित हुआ.’’
वे कहते हैं अरविंद मिल्स के संजय लालभाई की कहानी उनके लिए सबसे प्रेरणास्पद रही, जिसने उन्हें सिखाया कि कभी उम्मीद मत छोड़ो.
104 कर्मचारियों के साथ कंपनी ने अपना 100 लोगों को नौकरी देने का लक्ष्य हासिल कर लिया है. एलनगोवन कहते हैं, ‘‘मैं मानव अवयव को और अधिक महत्व देना चाहता हूं. मेरी टीम, ग्राहक और पार्टनर ने मेरे वेंचर को सफल बनाया है.’’ एलनगोवन दक्षिणी तमिलनाडु के तिरुनेवेली के मध्यमवर्गीय परिवार से हैं. वर्तमान में वे बेंगलुरु में अपनी पत्नी और दो बेटों ईटी एलैंन्जो और काथिर विथुरन के साथ रहते हैं.
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
ज्यूस से बने बिजनेस किंग
कॉलेज की पढ़ाई के साथ प्रकाश गोडुका ने चाय के स्टॉल वालों को चाय पत्ती बेचकर परिवार की आर्थिक मदद की. बाद में लीची ज्यूस स्टाॅल से ज्यूस की यूनिट शुरू करने का आइडिया आया और यह बिजनेस सफल रहा. आज परिवार फ्रेश ज्यूस, स्नैक्स, सॉस, अचार और जैम के बिजनेस में है. साझा टर्नओवर 75 करोड़ रुपए है. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह... -
कॉन्ट्रैक्टर बना करोड़पति
अंकुश असाबे का जन्म किसान परिवार में हुआ. किसी तरह उन्हें मुंबई में एक कॉन्ट्रैक्टर के साथ नौकरी मिली, लेकिन उनके सपने बड़े थे और उनमें जोखिम लेने की हिम्मत थी. उन्होंने पुणे में काम शुरू किया और आज वो 250 करोड़ रुपए टर्नओवर वाली कंपनी के मालिक हैं. पुणे से अन्वी मेहता की रिपोर्ट. -
प्रेरणादायी उद्ममी
सुमन हलदर का एक ही सपना था ख़ुद की कंपनी शुरू करना. मध्यमवर्गीय परिवार में जन्म होने के बावजूद उन्होंने अच्छी पढ़ाई की और शुरुआती दिनों में नौकरी करने के बाद ख़ुद की कंपनी शुरू की. आज बेंगलुरु के साथ ही कोलकाता, रूस में उनकी कंपनी के ऑफिस हैं और जल्द ही अमेरिका, यूरोप में भी वो कंपनी की ब्रांच खोलने की योजना बना रहे हैं. -
शहरी किसान
चेन्नई के कुछ युवा शहरों में खेती की क्रांति लाने की कोशिश कर रहे हैं. इन युवाओं ने हाइड्रोपोनिक्स तकनीक की मदद ली है, जिसमें खेती के लिए मिट्टी की ज़रूरत नहीं होती. ऐसे ही एक हाइड्रोपोनिक्स स्टार्ट-अप के संस्थापक श्रीराम गोपाल की कंपनी का कारोबार इस साल तीन गुना हो जाएगा. पीसी विनोज कुमार की रिपोर्ट. -
दूसरों के सपने सच करने का जुनून
मुंबई के विक्रम मेहता ने कॉलेज के दिनों में दोस्तों की खातिर अपना वजन घटाया. पढ़ाई पूरी कर इवेंट आयोजित करने लगे. अनुभव बढ़ा तो पहले पार्टनरशिप में इवेंट कंपनी खोली. फिर खुद के बलबूते इवेंट कराने लगे. दूसरों के सपने सच करने के महारथी विक्रम अब तक दुनिया के कई देशों और देश के कई शहरों में डेस्टिनेशन वेडिंग करवा चुके हैं. कंपनी का सालाना रेवेन्यू 2 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है.