Milky Mist

Thursday, 4 December 2025

किराए पर बाइक मिलने में परेशानी हुई तो बाइक रेंटल सर्विस शुरू करने का आइडिया आया, 7.5 लाख रुपए निवेश वाले स्टार्ट-अप का टर्नओवर आज 7.5 करोड़ रुपए

04-Dec-2025 By गुरविंदर सिंह
बेंगलुरु

Posted 13 Nov 2020

छुट्टियों में पुड्‌डुचेरी की एक ट्रिप ने बेंगलुरु के दो कॉलेज छात्रों का जीवन बदल दिया. वे लौटे और उन्होंने बाइक रेंटल कंपनी की शुरुआत की. यह कर्नाटक की पहली ऐसी कंपनी थी. यह एक ऐसी सफलता थी, जो उन्होंने राज्य के परिवहन विभाग से तमाम जरूरी मंजूरियां लेकर हासिल की.


अभिषेक चंद्रशेखर और आकाश सुरेश ने साल 2015 में जब अपना बाइक रेंटल स्टार्ट-अप 'रॉयल ब्रदर्स' शुरू किया, तब दोनों की उम्र महज 22 साल थी. यह शुरुआत उन्होंने 5 रॉयल एनफील्ड क्लासिक 350 क्रूजर बाइक से की थी. उस समय उनके पास बेंगलुरु में 800 वर्ग फुट का एक ऑफिस और 100 वर्ग फुट का एक गैरेज था.


(बाएं से दाएं) रॉयल ब्रदर्स के सह-संस्थापक आकाश सुरेश, अभिषेक चंद्रशेखर और कुलदीप पुरोहित.


महज दो कर्मचारियों, जो वे दोनों खुद थे, से शुरू हुई कंपनी ने इस साल 7.5 करोड़ रुपए का टर्नओवर हासिल किया है और अब कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल, गुजरात, तेलंगाना और राजस्थान के 25 शहरों में इसकी मौजूदगी है.

फिलहाल उनके बेड़े में 2000 बाइक है. इनमें महंगी बीएमडब्ल्यू (प्रत्येक की कीमत 4.5 लाख रुपए) और हार्ले डेविडसन (प्रत्येक की कीमत 7 लाख रुपए) बाइक भी शामिल हैं. उनकी टीम में अब 90 कर्मचारी हैं.

शुरुआत हालांकि साधारण थी. दोनों दोस्तों को अपना स्टार्ट-अप लॉन्च करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा. कर्नाटक में इस क्षेत्र में दोनों पहले ऐसे व्यक्ति थे, जो यह काम कर रहे थे. टू-व्हीलर रेंटल सर्विस के लिए उस समय कर्नाटक में लाइसेंस उपलब्ध नहीं था. इसलिए दोनों को शुरू से शुरुआत करनी पड़ी.

आकाश याद करते हैं, "हमने राज्य के ट्रांसपोर्ट सेक्रेटरी से मिलने की हिम्मत जुटाई और उनसे अपने प्रोजेक्ट के बारे में बात की. हमने उन्हें विस्तार से बताया कि इस सेवा से न केवल यात्रियों को सुविधा होगी, बल्कि सरकार को भी राजस्व मिलेगा. हमें उनकी प्रतिक्रिया को लेकर थोड़ा संदेह था, लेकिन संयोग से वे मददगार निकले.''

उस समय दोनों बेंगलुरु के आरवी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में पढ़ाई कर रहे थे और से ग्रैजुएशन के तीसरे साल में थे. अभिषेक मेकेनिकल इंजीनियरिंग और आकाश कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई कर रहे थे.


रॉयल ब्रदर्स के पास 25 शहरों में 2,000 मोटरबाइक का बेड़ा है.


दरअसल, दोनों को बाइक रेंटल सर्विस शुरू करने का आइडिया पुड्‌डुचेरी से आया था. वे वहां घूमने के लिए एक मोटरबाइक किराए पर लेना चाहते थे.

अभिषेक कहते हैं, "हमें एक व्यक्ति मिल गया, जिसने हमें बाइक दे दी. लेकिन उस बाइक के कोई दस्तावेज नहीं थे. उस व्यक्ति ने हमसे कहा कि रास्ते में यदि पुलिस पकड़ ले तो हम उसे फोन कर दें. बाकी सब वह देख लेगा. उस व्यक्ति ने उन्हें कोई रसीद भी नहीं दी थी.''

अभिषेक के मुताबिक, "बेंगलुरु लौटकर हमने बाइक रेंटल के लिए रिसर्च की. आश्चर्यजनक रूप से हमें मालूम पड़ा कि कर्नाटक में ऐसी एक भी कंपनी नहीं थी जो टू-व्हीलर किराए पर देती हो. हमें तत्काल बिजनेस का अवसर नजर आया. हमने तय किया कि हम यही काम करेंगे.''

अभिषेक कहते हैं, "कॉलेज की पढ़ाई खत्म होने के तुरंत बाद मई 2015 में हमने रॉयल ब्रदर्स की शुरुआत कर दी. हम कभी किसी कैंपस प्लेसमेंट में नहीं बैठे, क्योंकि हम हमेशा से उद्यमी बनना चाहते थे. हमने संचालन शुरू किए बगैर स्टार्ट-अप लॉन्च कर दिया था, क्योंकि लाइसेंस आना अभी बाकी था. हम यह नहीं जानते थे कि लाइसेंस आने में कितना समय लगेगा, लेकिन हम पूरी तरह से आश्वस्त थे कि आइडिया सफल होगा.''


अभिषेक चंद्रशेखर ने बेंगलुरु के आरवी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है.


दोनों ने रॉयल बाइसन ऑटोरेंटल्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में 7.5 लाख रुपए का निवेश किया. फंड का इंतजाम उन्होंने अपने परिवारों से किया. जुलाई में उन्हें राज्य सरकार से अनुमति मिल गई और उन्होंने संचालन शुरू कर दिया.

अभिषेक कहते हैं, "हमने बिना किसी स्टाफ के काम शुरू किया था. शुरुआत में हम खुद वाहनों को साफ करते थे और डिलीवरी भी खुद ही देते थे. दस्तावेज भी हम ही लेते थे. ग्राहक सेवा लेने के लिए अपने लाइसेंस और अन्य दस्तावेज जैसे आईडी प्रूफ अपलोड कर देते थे.''

बाइक किराए से लेने का शुल्क 50 रुपए प्रति घंटा तय था. बाइक कम से कम 10 घंटे और अधिकतम 30 दिन के लिए किराए पर ली जा सकती थी. पेट्रोल ग्राहक को ही भरवाना होता है. कंपनी कोई सिक्योरिटी डिपॉजिट नहीं लेती.

राज्य में अपनी तरह का पहला स्टार्ट-अप होने से शुरुआती दिनों में उन्हें अच्छा मीडिया कवरेज मिला. इससे उन्हें अधिक बिजनेस मिला. अभिषेक कहते हैं, "हमने उसी साल अक्टूबर में बिना गियर वाली 10 स्कूटी और खरीदी, लेकिन मांग बढ़ती जा रही थी और हमारे पास अधिक वाहन खरीदने के लिए संसाधन नहीं थे.'' इस तरह उन्होंने तय किया कि वे लोगों से भी उनकी बाइक किराए पर लेंगे.

अभिषेक बताते हैं कि बाइक के मालिक को किराए की 70 प्रतिशत राशि मिलती थी. शेष राशि हम कंपनी के हिस्से के रूप में रख लेते थे.

आकाश सुरेश ने बेंगलुरु के आरवी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की है.


जनवरी 2016 में, उन्होंने मैंगलुरु में एक बाइक डीलर को पहली फ्रैंचाइजी दी. रॉयल ब्रदर्स का संचालन शुरू हाेने के तीन महीने बाद जुड़े कंपनी के तीसरे सह-संस्थापक 32 वर्षीय कुलदीप पुरोहित कहते हैं, "हमने उनसे 50 हजार रुपए लिए. समझौता यह हुआ कि किराए की 80 प्रतिशत राशि वह रखेगा और 20 प्रतिशत हिस्सा हमें देगा.''

2018 तक तीनों के पास करीब 300 बाइक हो चुकी थी. उनका कामकाज कर्नाटक के 8 शहरों में फैल चुका था. जल्द ही उन्होंने आंध्र प्रदेश, केरल और तेलंगाना तक विस्तार किया.

कंपनी कोविड काल के पहले तक अच्छा काम कर रही थी. कोविड के चलते उनका कामकाज प्रभावित हुआ. इसके चलते उन्हें अपने बिजनेस में नया आयाम जोड़ने का दबाव पड़ा. यह था- बाइक लंबे समय के लिए किराए पर देना.

आकाश कहते हैं, "मासिक किराए का शुल्क करीब 3000 रुपए प्रति महीना है. यह योजना कारगर साबित हुई है क्योंकि लोग सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने के लिए सार्वजनिक वाहनों के बदले बाइक पसंद कर रहे हैं.''

आज, फ्रैंचाइजी का शुल्क 3 से 5 लाख रुपए के बीच है. यह शहर के आकार और बिजनेस की संभावना पर निर्भर करता है.

रॉयल ब्रदर्स के तीसरे सह-संस्थापक कुलदीप पुरोहित कंपनी से लॉन्चिंग के तीन महीने बाद जुड़े.


बिजनेस के जोिखम के बारे में अभिषेक बताते हैं, "हमने अपनी बाइक्स में जीपीएस लगाए हैं. सभी बाइक्स का बीमा भी है. अब तक हमारी तीन बाइक्स चोरी हो चुकी हैं.''

...तो बिजनेस में उन्होंने किन चुनौतियों का सामना किया और नए उद्यमियों को उनकी क्या सलाह है? इस पर अभिषेक कहते हैं, "हमने कई चुनौतियों का सामना किया. शुरुआत में बैंकें हमें लोन देने के लिए तैयार नहीं थीं. लेकिन हमने कभी हिम्मत नहीं हारी. उद्यमियों में सफल होने की सशक्त इच्छाशक्ति होनी चाहिए और राह अपने आप खुलती जाती है.''

 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • Sid’s Farm

    दूध के देवदूत

    हैदराबाद के किशोर इंदुकुरी ने शानदार पढ़ाई कर शानदार कॅरियर बनाया, अच्छी-खासी नौकरी की, लेकिन अमेरिका में उनका मन नहीं लगा. कुछ मनमाफिक काम करने की तलाश में भारत लौट आए. यहां भी कई काम आजमाए. आखिर दुग्ध उत्पादन में उनका काम चल निकला और 1 करोड़ रुपए के निवेश से उन्होंने काम बढ़ाया. आज उनके प्लांट से रोज 20 हजार लीटर दूध विभिन्न घरों में पहुंचता है. उनके संघर्ष की कहानी बता रही हैं सोफिया दानिश खान
  • former indian basketball player, now a crorepati businessman

    खिलाड़ी से बने बस कंपनी के मालिक

    साल 1985 में प्रसन्ना पर्पल कंपनी की सालाना आमदनी तीन लाख रुपए हुआ करती थी. अगले 10 सालों में यह 10 करोड़ रुपए पहुंच गई. आज यह आंकड़ा 300 करोड़ रुपए है. प्रसन्ना पटवर्धन के नेतृत्व में कैसे एक टैक्सी सर्विस में इतना ज़बर्दस्त परिवर्तन आया, पढ़िए मुंबई से देवेन लाड की रिपोर्ट
  • Weight Watches story

    खुद का जीवन बदला, अब दूसरों का बदल रहे

    हैदराबाद के संतोष का जीवन रोलर कोस्टर की तरह रहा. बचपन में पढ़ाई छोड़नी पड़ी तो कम तनख्वाह में भी काम किया. फिर पढ़ते गए, सीखते गए और तनख्वाह भी बढ़ती गई. एक समय ऐसा भी आया, जब अमेरिकी कंपनी उन्हें एक करोड़ रुपए सालाना तनख्वाह दे रही थी. लेकिन कोरोना लॉकडाउन के बाद उन्हें अपना उद्यम शुरू करने का विचार सूझा. आज वे देश में ही डाइट फूड उपलब्ध करवाकर लोगों की सेहत सुधार रहे हैं. संतोष की इस सफल यात्रा के बारे में बता रही हैं उषा प्रसाद
  • Vijay Sales story

    विजय सेल्स की अजेय गाथा

    हरियाणा के कैथल गांव के किसान परिवार में जन्मे नानू गुप्ता ने 18 साल की उम्र में घर छोड़ा और मुंबई आ गए ताकि अपनी ज़िंदगी ख़ुद संवार सकें. उन्होंने सिलाई मशीनें, पंखे व ट्रांजिस्टर बेचने से शुरुआत की. आज उनकी फर्म विजय सेल्स के देशभर में 76 स्टोर हैं. कैसे खड़ा हुआ हज़ारों करोड़ का यह बिज़नेस, बता रही हैं मुंबई से वेदिका चौबे.
  • Dairy startup of Santosh Sharma in Jamshedpur

    ये कर रहे कलाम साहब के सपने को सच

    पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से प्रेरणा लेकर संतोष शर्मा ने ऊंचे वेतन वाली नौकरी छोड़ी और नक्सल प्रभावित इलाके़ में एक डेयरी फ़ार्म की शुरुआत की ताकि जनजातीय युवाओं को रोजगार मिल सके. जमशेदपुर से गुरविंदर सिंह मिलवा रहे हैं दो करोड़ रुपए के टर्नओवर करने वाले डेयरी फ़ार्म के मालिक से.