आईटी ग्रैजुएट ने ढाई लाख रुपए से छाेटे शहरों में किराना दुकानों को नया रूप देना शुरू किया, तीसरे साल ही टर्नओवर 5 करोड़ रुपए पहुंचने की उम्मीद
03-Dec-2024
By सोफिया दानिश खान
सहारनपुर (उत्तर प्रदेश)
वैभव अग्रवाल ने जब अपने पिता की पश्चिमी उत्तर प्रदेश के छोटे शहर सहारनपुर की किराना दुकान को नया रूप देने का फैसला किया तो वे यह बिल्कुल नहीं जानते थे कि जल्द ही वे एक ऐसी कंपनी बनाएंगे, जिसका टर्नओवर दो साल में ही एक करोड़ रुपए को छू जाएगा.
वैभव उस समय 27 वर्ष के थे. उन्होंने देखा कि उनके पिता का स्टोर जगह के मामले में तो बड़ा था, लेकिन एक शहरी डिपार्टमेंटल स्टोर में जितनी सुविधाएं होनी चाहिए, उनकी कमी थी. उन्होंने तय किया कि वे स्टोर का आधुनिकीकरण कर उसे नया स्वरूप देंगे.
सहारनपुर में परिवार के किराना स्टोर में इंडियन किराना कंपनी स्टोर के संस्थापक वैभव अग्रवाल. (सभी फोटो : विशेष व्यवस्था से)
वैभव कहते हैं, "स्टोर 1,500 वर्ग फुट जगह में था, लेकिन सभी प्रोडक्ट बेतरतीबी से रखे थे. न स्टॉक व्यवस्थित था, न सूची बनाई जा रही थी और न ही आधुनिक बिलिंग सिस्टम था.''
जल्द, वैभव ने कमला स्टोर का आधुनिक सुविधा-संपन्न स्टोर के रूप में कायापलट कर दिया, जो उनके पिता ने 17 वर्ष की उम्र में 10 हजार रुपए से शुरू किया था. यह अब शहर के सबसे बड़े स्टोर में से एक था.
स्टोर में सुंदर सेल्फ थीं, जहां सभी सामान श्रेणीबद्ध तरीके से इस तरह जमाए गए थे ताकि ग्राहक उन्हें आसानी से खोज सकें. डिजिटल इन्वेंटरी सिस्टम की मदद से बेचे गए और कम हो रहे सामान का पता लगाया जा सकता था.
इस प्रोजेक्ट की सफलता ने वैभव को भारत के छोटे शहरों के सभी किराना स्टोर का कायापलट करने का बिजनेस आइडिया दे दिया. यह वैभव और स्टोर मालिकों दोनों के लिए फायदे का सौदा था.
वे नवीनीकरण और आधुनिकीकरण का काम करते हैं. इसके साथ-साथ स्टोर को दालें, मसाले और अन्य सामान भी नियमित रूप से उपलब्ध करवाते हैं. इससे उन्हें स्थिर आमदनी होने लगी है. स्टोर को नया रूप देने के बाद वहां अधिक लोग आने लगते हैं. इससे बिक्री और रेवेन्यू दोनों बढ़ा है.
वैभव कहते हैं, "मैंने 2018 में द इंडियन किराना स्टोर कंपनी का रजिस्ट्रेशन करवाया और 2.5 लाख रुपए से शुरुआत कर दी. हम अब तक 12 शहरों के 50 स्टोर के साथ काम कर चुके हैं. हम खास तौर पर टियर 2 पर ध्यान दे रहे हैं.''
अपने पारिवारिक स्टोर को आधुनिक रूप देने के बाद वैभव ने 2018 में कंपनी बनाई. उसी मॉडल पर 50 स्टोर को आधुनिक रूप दे चुके हैं. |
वित्त वर्ष 2019-20 में कंपनी ने 1 करोड़ रुपए का टर्नओवर हासिल कर लिया. कंपनी इस साल 5 करोड़ रुपए का टर्नओवर हासिल करने को तैयार है. उन्हें सबसे अधिक 15 लाख रुपए सहारनपुर के एक प्रोजेक्ट से मिले. उत्तराखंड के देहरादून में उनका एक प्रोजेक्ट चल रहा है, जिससे उन्हें 25 लाख रुपए मिलेंगे.
वैभव टियर 2 शहरों के छोटे रिटेल आउटलेट मालिकों की भी मदद करना चाहते हैं. अपनी कंपनी के तेजी से बढ़ते कामकाज के बारे में वे बताते हैं, "रिटेल पार्टनर हमारे काम को अपने साथी स्टोर वालों को बताते हैं. इससे हमें आगे बढ़ने में मदद मिल रही है.''
वे कहते हैं, "हम पूरे रिटेल सेगमेंट के विकास पर केंद्रित कर रहे हैं. मैं विभिन्न राज्यों के 35 से 40 जिलों में घूम चुका हूं. मैंने महसूस किया है कि किराना स्टोर की कार्य संस्कृति करीब-करीब हर 2 किमी पर बदल जाती है. इसलिए यह जानना बहुत महत्वपूर्ण है कि हम किस प्रकार के ग्राहकों के साथ कारोबार कर रहे हैं.''
किराना स्टोर संचालक का बेटा होने से उन्हें इस अपरिचित क्षेत्र में मुकाम हासिल करने में मदद मिली. वे दुकानों को बेहतर बनाने और महसूस कराने का ही काम नहीं कर रहे, बल्कि स्टोर में बेचे जा रहे सामान की गुणवत्ता भी बेहतर बना रहे हैं.
वे कहते हैं, "हम स्टोर्स को हमारी फैक्ट्री से गुणवत्तापूर्ण सामान की आपूर्ति करते हैं. हमने स्वच्छ और स्वस्थ भोजन को प्रोत्साहित किया है. उदाहरण के लिए हम अपने पार्टनर स्टोर्स में रिफाइंड ऑइल की जगह सरसों के तेल को प्रोत्साहित करते हैं. सरसों के तेल के बहुत स्वास्थ्य लाभ हैं, जिन्हें विभिन्न शोधकर्ताओं ने भी माना है.''
वैभव दृढ़तापूर्वक कहते हैं कि वे अंतिम ग्राहक के फायदे को ध्यान में रखकर नैतिक रूप से आगे बढ़ना चाहते हैं.
वैभव की कंपनी ने इस स्टोर को भी नया रूप दिया है. |
वैभव के पास मार्केटिंग टीम है. इन्हें वे 'एजुकेटर' कहते हैं. इस टीम के लोग किराना स्टोर मालिकों से मिलते हैं और उनकी दुकान को आधुनिक रूप देने के फायदों के बारे में बताते हैं.
वे कहते हैं, "आज, 90 प्रतिशत स्थानीय किराना दुकानें पारंपरिक तरीके से चलती हैं और इनमें से 60 प्रतिशत 100 साल पुरानी हैं.''
लेकिन वैभव और उनकी टीम कई दुकान मालिकों को आधुनिकीकरण की प्रक्रिया अपनाने के बारे में समझाने में सफल रहे हैं. इस प्रक्रिया में इलेक्ट्रॉनिक बिलिंग, इलेक्ट्रॉनिक तराजू से लेकर उन्हें पैकेज गुड्स की आपूर्ति तक शामिल है.
वैभव महसूस करते हैं, "हमने हमारी फैक्ट्री में पैक किए प्रोडक्ट भी बाजार में उतारे, क्योंकि अधिकतर भारतीय किराना स्टोर में अनाज टाट के बोरों में भरा होता है. इनमें बहुत सारा समय और सामान व्यर्थ जाता है.''
वे कहते हैं, "जब भी ग्राहक कोई सामान मांगता है, उन्हें उस चीज को तौलना पड़ता है और बांधना पड़ता है. दूसरी तरफ, पैक किए हुए सामान को महंगा माना जाता है, लेकिन हम खरीदने लायक कीमत के साथ उनकी जरूरतें पूरी करते हैं और रिटेलर्स को अपना ग्राहक बनाते हैं.''
वैभव ने जिन 50 स्टोरों के साथ पार्टनरशिप की है, वे दिल्ली, एनसीआर, हरिद्वार, रूड़की और सहारनपुर समेत 12 शहरों में मौजूद हैं.
वैभव अपने पिता और टीम के अन्य सदस्यों के साथ अपने पारिवारिक स्टोर के सामने. |
वे स्पष्ट करते हैं, "छोटी दुकान में भी सभी प्रॉडक्ट सफाई से इस तरह जमाते हैं कि दिखाई दे जाएं. हम बिजी अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर की मदद से उन्हें इन्वेंट्री मैनेजमेंट उपलब्ध कराते हैं.''
"हम डेटा एनालिटिक्स भी उपलब्ध कराते हैं. इसका मासिक शुल्क लिया जाता है. स्टोर मालिक यह पता कर सकते हैं कि कौन से सामान की बिक्री अच्छी हो रही है, कौन से सामान की अंतिम तारीख आ रही है. यही नहीं, वे सामान को सूचीबद्ध भी कर सकते हैं.''
वैभव ने लखनऊ के बाबू बनारसी दास नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से आईटी में बीटेक किया है. सबसे पहले उनकी नौकरी इन्फोसिस में लगी. वहां उन्होंने 3.5 लाख सालाना के पैकेज पर असिस्टेंट सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में करीब एक साल काम किया.
बाद में उन्होंने बहुत ही कम 10 हजार रुपए महीने की तनख्वाह में एक एफएमसीजी कंपनी के लिए अपने गृहनगर में मार्केटिंग की. इसी दौरान उन्होंने किराना दुकानों के साथ नजदीकी से काम किया.
वैभव कहते हैं, "इससे मुझे किराना दुकान मालिकों की मानसिकता समझने में मदद मिली. एक साल बाद मैंने नई दिल्ली के फोर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट से एमबीए में प्रवेश ले लिया. वहां मुझे मार्गदर्शन और सही दिशा मिली.''
इसके बाद एक कंपनी में उनकी नौकरी लगी, लेकिन छह महीने में ही उन्होंने नौकरी छोड़ दी और नवंबर 2017 में सहारनपुर आ गए. वहां उन्होंने सबसे पहले परिवार के स्टोर का कायापलट किया और सफल उद्यमी यात्रा पर निकल पड़े.
आज, उनकी टीम में 11 एजुकेटर्स हैं और 13 लोग उस फैक्ट्री में काम करते हैं, जहां वे दालें, अनाज और मसाले अपने ब्रांड केएस जायका, द इंडियन किराना कंपनी और चाय इंडिया के नाम से पैक करते हैं.
वैभव ने पिछले साल जून में विवाह किया है. अब वे कंपनी के काम को विस्तार देने के लिए निवेशक तलाश रहे हैं और कंपनी को अगले स्तर पर ले जाना चाहते हैं.
आप इन्हें भी पसंद करेंगे
-
प्रभु की 'माया'
कोयंबटूर के युवा प्रभु गांधीकुमार ने बीई करने के बाद नौकरी की, 4 लाख रुपए मासिक तक कमाने लगे, लेकिन परिवार के बुलावे पर घर लौटे और सॉफ्ट ड्रिंक्स के बिजनेस में उतरे. पेप्सी-कोका कोला जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों से होड़ की बजाए ग्रामीण क्षेत्र के बाजार को लक्ष्य बनाकर कम कीमत के ड्रिंक्स बनाए. पांच साल में ही उनका टर्नओवर 35 करोड़ रुपए पहुंच गया. प्रभु ने बाजार की नब्ज कैसे पहचानी, बता रही हैं उषा प्रसाद -
सफलता बुनने वाले भाई
खालिद रजा खान ने कॉलेज में पढ़ाई करते हुए ऑनलाइन स्टोर योरलिबास डाॅट कॉम शुरू किया. शुरुआत में काफी दिक्कतें आईं. लोगों ने सूट लौटाए भी, लेकिन धीरे-धीरे बिजनेस रफ्तार पकड़ने लगा. छोटे भाई अकरम ने भी हाथ बंटाया. छह साल में यह बिजनेस 14 करोड़ रुपए टर्नओवर वाली कंपनी बन गया है. इसकी यूएई में भी ब्रांच है. बता रही हैं उषा प्रसाद. -
मजबूरी में बने उद्यमी
जब राजीब की कंपनी ने उन्हें दो महीने का वेतन नहीं दिया तो उनके घर में खाने तक की किल्लत हो गई, तब उन्होंने साल 2003 में खुद का बिज़नेस शुरू किया. आज उनकी तीन कंपनियों का कुल टर्नओवर 71 करोड़ रुपए है. बेंगलुरु से उषा प्रसाद की रिपोर्ट. -
जुनूनी शिक्षाद्यमी
पॉली पटनायक ने बचपन से ऐसे स्कूल का सपना देखा, जहां कमज़ोर व तेज़ बच्चों में भेदभाव न हो और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाए. आज उनके स्कूल में 2200 बच्चे पढ़ते हैं. 150 शिक्षक हैं, जिन्हें एक करोड़ से अधिक तनख़्वाह दी जाती है. भुबनेश्वर से गुरविंदर सिंह बता रहे हैं एक सपने को मूर्त रूप देने का संघर्ष. -
विजय सेल्स की अजेय गाथा
हरियाणा के कैथल गांव के किसान परिवार में जन्मे नानू गुप्ता ने 18 साल की उम्र में घर छोड़ा और मुंबई आ गए ताकि अपनी ज़िंदगी ख़ुद संवार सकें. उन्होंने सिलाई मशीनें, पंखे व ट्रांजिस्टर बेचने से शुरुआत की. आज उनकी फर्म विजय सेल्स के देशभर में 76 स्टोर हैं. कैसे खड़ा हुआ हज़ारों करोड़ का यह बिज़नेस, बता रही हैं मुंबई से वेदिका चौबे.